जल मंगल की रचयिता हैं बसंती बहन

Submitted by Hindi on Thu, 09/08/2011 - 11:09
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लाइव हिन्दुस्तान, 07 दिसम्बर 2010

इस दल की महिलाओं ने उस समय कोसी के जल में खड़े होकर संकल्प लिया- ‘कोसी जीवन दायिनी है, हम इसको बचाएंगे।’ महिलाओं के इस दल ने तय किया कि वे कोसी नदी को बचाएंगी। कच्ची लकड़ी जंगल से नहीं काटेंगी और अपनी नजर के सामने कटने भी नहीं देंगी। चौड़ी पत्ती वाले पेड़ों को सूखने से पहले नहीं कटने देंगी।

कई महिलाओं ने आकर खुद बसंती बहन के सामने कुबूल किया कि जंगल से पानी और खेत का क्या संबंध है। यह उन्हें पता ही नहीं था, ना ही किसी ने उन्हें बताया था। पहाड़ पर जंगल काटने की होड़ थी, इसलिए वे भी होड़ में शामिल हो गईं। महिलाओं के इस समर्थन के बाद 15 महिलाओं को लेकर मंगल दल की शुरुआत हुई। कौसानी (अल्मोड़ा) लक्ष्मी आश्रम की बसंती बहन का नाम उत्तरांचल में खासा जाना-पहचाना है। उनकी प्रेरणा से इस वक्त कौसानी और अल्मोड़ा के आस-पास के गांवों में लगभग 200 महिला मंगल दल चल रहे हैं। प्रत्येक दल में 10-15 महिलाएं हैं। इन मंगल दलों की शुरुआत क्षेत्र में पानी की कमी के साथ हुई। धीरे-धीरे पीने के पानी की भी किल्लत होने लगी। वर्ष 2003 में स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि यहां पानी पर पुलिस का पहरा बिठा दिया गया।

ऐसी स्थिति से बचाव के लिए बसंती बहन ने प्रयास प्रारम्भ किए। शुरू में उनकी बात कोई सुनने को तैयार नहीं था। उन्होंने पेड़ के महत्त्व को समझाने के लिए घर के बड़े-बुजुर्गों से बात करनी शुरू की तो पहले परिणाम बेहद निराशाजनक थे। बसंती बहन ने फिर महिलाओं से सीधी बात करनी शुरू की। उन्होंने कहा कि लकड़ी जंगल से लाओ, लेकिन उतनी ही लेकर आओ, जितने की जरूरत है। पहाड़ की अधिकांश महिलाएं पूरे दिन लकड़ी काटतीं और जरूरत से अधिक लकड़ी लाकर घर भरती थीं, जिसका परिणाम यह होता था कि बाद में बची हुई लकड़ियों को सड़ जाने की वजह से फेंकना पड़ता था। बसंती बहन ने गांव की महिलाओं को समझाना शुरू किया- यदि इसी तरह जंगल कटता रहा तो 10 सालों में यह कोसी सूख जाएगी। पानी के बिना खेती नहीं होगी। फिर जीवन कितना कठिन होगा, इस बात की कल्पना करो?’कई महिलाओं ने आकर खुद बसंती बहन के सामने कुबूल किया कि जंगल से पानी और खेत का क्या संबंध है, यह उन्हें पता ही नहीं था, ना ही किसी ने उन्हें बताया था। पहाड़ पर जंगल काटने की होड़ थी, इसलिए वे भी होड़ में शामिल हो गईं।

बसंती बहन का 'कोसी नदी बचाओं अभियान'बसंती बहन का 'कोसी नदी बचाओं अभियान'महिलाओं के इस समर्थन के बाद 15 महिलाओं को लेकर मंगल दल की शुरुआत हुई। इस दल की महिलाओं ने उस समय कोसी के जल में खड़े होकर संकल्प लिया- ‘कोसी जीवन दायिनी है, हम इसको बचाएंगे।’ महिलाओं के इस दल ने तय किया कि वे कोसी नदी को बचाएंगी। कच्ची लकड़ी जंगल से नहीं काटेंगी और अपनी नजर के सामने कटने भी नहीं देंगी। चौड़ी पत्ती वाले पेड़ों को सूखने से पहले नहीं कटने देंगी। धीरे-धीरे दूसरे गांवों की महिलाएं भी इस आंदोलन से जुड़ने लगीं। महिला मंगल दल ने अपने जिम्मे फिर एक और काम लिया। छापेमारी का। अपने गांव में जब महिलाओं को पता चलता था कि किसी महिला ने जंगल से लकड़ी काट कर अपना घर भरा है तो फौरन मंगल दल का छापामार दस्ता उसके घर पहुंच जाता और उसके बाद वह लकड़ी जब्त की जाती थी।

धीरे-धीरे गांवों के लोगों ने इस आंदोलन के महत्त्व को समझा और इसका परिणाम यह हुआ कि बसंती बहन का यह आंदोलन इस समय पहाड़ के लगभग 200 से भी अधिक गांवों में सफलतापूर्वक चल रहा है। अब गांवों में महिलाओं ने महिला मंगल दल के नाम पर अपना स्व-सहायता समूह भी बना लिया है। इसके माध्यम से वे 10-10 रुपए प्रति महिला इकट्ठा करती हैं और जरूरत के समय पर यहां से वे खुद आर्थिक मदद ले सकती हैं। बसंती बहन की शादी के 2-3 साल बाद पति की मौत हो गई। बाल विधवा का जीवन जीना चुनौतीपूर्ण था। उस समय पिता ने साथ दिया। बसंती बहन ने बातचीत के दौरान कहा- ‘सेवा के काम में मेहनताना नहीं, लोगों का प्रेम, स्नेह, आशीर्वाद मिलता है।’ एक बात और, बसंती बहन ने 34 साल की उम्र में अपनी पढ़ाई एक बार फिर शुरू की और मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। वास्तव में बसंती बहन जैसी महिलाएं महिला सशक्तिकरण की जीती-जागती मिसाल हैं।
 

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