जल पर सात सूत्री एजेंडा लागू होगा

Submitted by Hindi on Wed, 12/21/2011 - 11:06
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दैनिक भास्कर ईपेपर, 20 दिसम्बर 2011
अगले साल अप्रैल से शुरू हो रही 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) के दौरान ‘जल ही जीवन है’ के जिस सिद्धांत को लेकर योजना आयोग चलने वाला है, उसके तहत भारत में जल और जल संरक्षण से जुड़े कई कानूनी और आर्थिक बदलाव दिख सकते हैं। इनमें एक राष्ट्रीय जल आयोग के गठन से लेकर जल के अनियंत्रित इस्तेमाल पर अंकुश लगाने के लिए कुछ कड़े कानून भी संभावित हैं। सोमवार को 2011 की इंडिया इन्फ्रास्ट्रक्चर रिपोर्ट (जल नीति और समावेशी विकास की प्रगति) को जारी करते हुए योजना आयोग के सदस्य मिहिर शाह ने जल से जुड़े योजना आयोग के सात सूत्री एजेंडे की चर्चा करते हुए उपरोक्त संभावनाओं के अलावा जल से संबंधित देश भर के सरकारी जल संगठनों और विभागों के एकीकरण की जरूरत पर भी बात की।

2001 से जारी की जाने वाली इंडिया इन्फ्रास्ट्रक्चर रिपोर्ट के इस 11वें संस्करण में कहा गया है कि दुनिया भर में एक अरब से अधिक लोगों को पीने के लिए साफ पानी नहीं है। तीन चौथाई भारतीय उन इलाकों में रहते हैं, जहां जल का बड़ा संकट है। जल की बेतरतीब और अनियंत्रित मांग की वजह से भविष्य में बड़ी समस्याएं आने वाली हैं। रिपोर्ट में जल क्षेत्र के लिए अविलंब एक नीति और कानूनी फ्रेमवर्क बनाने की जरूरत की बात कही गई है और इस नीति पर अमल करने के लिए जल पर मौजूदा दृष्टिकोण में आमूलचूल बदलाव, सिंचाई से जुड़े प्रशासन, जल संसाधन विकास में क्षेत्रीयकरण पर विशेष जोर, वाटरशेड मैनेजमेंट और जल से जुड़ी सभी संस्थाओं में बेहतर आपसी तालमेल की बात कही गई है।

रिपोर्ट को पेश करते हुए आईडीएफसी की मुख्य अर्थशास्त्री रितु आनंद ने कहा कि हमारी जल सुरक्षा इस बात पर निर्भर करेगी कि हम जल से जुड़े आर्थिक, सामाजिक, क्षेत्रीय और पर्यावरणीय दवाबों से कैसे निबटते हैं। जरूरत इस बात की भी है कि हम किसान समूहों, इंडस्ट्री और समुदायों के प्रतिस्पर्धी दावों के बीच एक ऐसे नए दृष्टिकोण को कैसे अपनाते हैं जो इस संदर्भ में शहरी और ग्रामीण अंतर मिटाकर एक संस्थागत पारदर्शिता को जन्म दे। इस अवसर पर जल के इस्तेमाल और इसके संरक्षण से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों के संचालन के लिए एक रेगुलेटरी फ्रेमवर्क समेत राष्ट्रीय जल आयोग के गठन पर भी चर्चा हुई।