दुनिया भर में पानी की बढ़ती कमी के वर्तमान हाल को देखते हुए यह चिंता जताई जाने लगी है कि अगला विश्व युद्ध इसी मुद्दे पर लड़ा जाएगा। पानी की बहुतायत वाले देशों पर नियंत्रण की होड़ में बड़ी शक्तियों का भी आपस मं टकराव हो सकता है। कहने-सुनने में यह बात अजीब सी लगे पर किसी हद तक यह सच भी है। पृथ्वी पर तीन चौथाई हिस्से में समुद्री जल की उपस्थिति के बावजूद स्वच्छ एवं पेयजल के अभाव को अनगिनत राष्ट्रों में झेलने की नौबत आज बन आई है।
प्राकृतिक संसाधन के रूप में प्रदत्त इस बहुमूल्य संसाधन के दोहन और शोषण को बचाने के अतिरिक्त जल संरक्षण की चुनौतियां भी आज समस्त विश्व की सरकारों के लिए ज्वलंत मुद्दा बन चुकी हैं। नदियों की सफाई, वर्षाजल का भंडारण मकानों के निर्माण के साथ वाटर हार्वेस्टिंग की प्रणाली की स्थापना नदियों की बाढ़ से आने वाले पानी को सूखाग्रस्त इलाकों के लिए संग्रहित करना, सीवेज पानी का प्रबंधन कर खेती आदि के कार्यकलापों में इस्तेमाल आदि पर आधारित योजनाओं का क्रियान्वयन समस्त देशों में किया जा रहा है। इतना ही नहीं, उद्योग-धंधों में जल बर्बादी पर नियंत्रण और कम जल खपत वाली टेक्नोलॉजी के विकास पर भी जोर दिया जा रहा है। जल-पुनर्चक्रण (वाटर रीसायकीलिंग) के तौर-तरीकों को भी इस्तेमाल में लाने की सलाह घरेलू और व्यावसायिक काम-काजों के लिए प्रचार माध्यमों के जरिए दी जा रही है।
अगर इस संपूर्ण परिदृश्य पर गौर किया जाए तो निस्संदेह यह अत्यंत चिंताजनक स्थिति है। यानी पीढ़ियों को जल संकट से बचाने के लिए अभी से परंपरागत और आधुनिक वैज्ञानिक विषयों को अपनाने की जरूरत हर तरफ मजबूत की जाने लगी है। यही कारण है कि जल प्रबंधन पर आधारित ट्रेनिंग कोर्सेज दुनिया भर में बड़े पैमाने पर अस्तित्व में आते दिखाई पड़ रहे हैं। ऐसे ट्रेंड लोगों को फिलहाल सरकारी विभागों जैसे जल आपूर्ति एवं सैनिटेशन, बाढ़ नियंत्रण विभागों, उद्योग विभागों तथा कृषि विभागों में नियुक्त किया जा रहा है अथवा इनसे कंसल्टेंसी ली जा रही है। ऐसे लोगों की शैक्षिक पृष्ठभूमि ग्रेजुएट से लेकर टाइड्रो इकोलॉजिस्ट, इंजीनियर, वैज्ञानिक अथवा प्रबंधन पर आधारित हो सकती है। तमाम गैर सरकारी स्वयंसेवी संस्थाएं (एनजीओ) भी जल संरक्षण एवं प्रबंधन से जुड़े प्रोजेक्ट्स में शहरों से लेकर दूरवर्ती इलाकों में कार्यरत हैं।
लोगों को इस बाबत ज्ञान देना अथवा संबंधित अत्याधुनिक जल संरक्षण टेक्नोलॉजी से उन्हें अवगत कराना या जागरूकता पैदा करना इन एनजीओ का प्रमुख दायित्व है। सरकारी अनुदानों एवं अन्य विदेशी संस्थाओं से विकासशील देशों में विकास करने के उद्देश्य से इन्हें काफी मोटी राशि ऐसे प्रोजेक्टस के लिए हासिल हो जाती है। लक्ष्य प्राप्ति एवं प्रभावी क्रियान्वयन के लिए जल संरक्षण एवं प्रबंधन विशेषज्ञों को इन एनजीओ द्वारा नियुक्त किया जाता है। यहां तक बताना भी दीगर होगा कि यूनेस्को, वर्ल्ड बैंक, इंटरनेशनल वाटर रिसोर्स एसोसिएशन, इंटरनेशनल वाटर एसोसिएशन सरीखी संस्थाओं द्वारा भी इस बाबत काफी कार्यक्रमों को विभिन्न देशों में चलाया जा रहा है।
ये कार्यक्रम बाकायदा एनजीओ को ग्रांटस देकर चलाए जाते हैं। यह राशि प्रायः लाखों डॉलर में होती है। हालांकि ये अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं ताजा जल, महासागरों, तटवर्ती क्षेत्र एवं द्वीपों में इस प्रकार के जल संरक्षण पर भी काफी ध्यान देती हैं। जल प्रबंधन एवं संरक्षण पर आधारित कोर्सेज अब औपचारिक तौर पर तमाम देशों में अस्तित्व में आ गए हैं। पहले परंपरागत विधियों एवं प्रणालियों से जल बर्बादी को रोकने तक ही समस्त उपाय सीमित थे। देश में स्कूली शिक्षा के बाद से लेकर एमई और एम टेक स्तर तक के कोर्सेज विभिन्न यूनिवर्सिटीज में आयोजित किए जाते हैं। इनमें वाटर कंजर्वेशन वाटर मैनेजमेंट, वाटर हार्वेस्टिंग, वाटर ट्रीटमेंट, वॉटर रिसोर्स मैनेजमेंट आदि का विशेष रूप से नाम लिया जा सकता है।
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एजुप्लायमेंट ब्लॉग