जलागम प्रबंधन

Submitted by admin on Mon, 09/08/2008 - 12:51

जलागम प्रबंधनजलागम प्रबंधनजलागम एक ऐसा प्राकृतिक विभाजन है जो मेढ़ की तरह है तथा जिससे घिरे क्षेत्र से उत्पन्न होकर बहने वाला जल (अपवाह) एक ही निकास द्वार से होकर बहता है। एक जलागम के मुख्य प्राकृतिक स्रोत हैं भूमि, जल, एवं जैविक सम्पदा जिसमें मानव, पशु-पक्षी तथा वनस्पति शामिल हैं। ये स्रोत इस प्रकार आपस में जुड़े हैं कि एक में किए गये परिवर्तन का असर दूसरे पर भी पड़ता है। ये स्रोत सीमित हैं तथा एक संतुलित तरह से सहअस्तित्वित हैं, परन्तु एक बार संतुलन बिगड़ने पर बहुत से हानिकारक एवं अवांछनीय परिणाम भी हो सकते हैं।

जलागम प्रबन्धन का मुख्य उद्देश्य है जलागम क्षेत्र में उपलब्ध प्राकृतिक श्रोतों से एक योजनाबद्व, तालमेल बनाकर व क्रमबद्व रूप में उच्चतम उत्पादन लेना तथा समाज को पूर्ण लाभ प्रदान कराना परन्तु साथ ही यह भी ध्यान रखना कि प्राकृतिक स्रोत का न्यूनतम ह्रास हो। चूंकि स्रोत सीमित हैं, अतः जलागम में विकास इष्टतम, संतुलित तथा स्थिर होना चाहिए, अर्थात प्रबन्धन क्रियाएं पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव न डालें तथा जलागम का स्वास्थ्य भी बनाए रखना चाहिए। किसी भी क्षेत्र विशेष के उपलब्ध स्रोत एवं प्रतिबन्धों के आधार पर विभिन्न जलागमों की योजना व प्रबन्धन की विधियां विभिन्न हो सकती हैं। मूल्यांकन एवं अनुश्रवण जलागम प्रबन्धन के मुख्य भाग होने चाहिए क्योंकि इनसे हमें विभिन्न स्तरों पर मार्गदर्शन मिलता रहता है, तथा भविष्य की रणनीति बनाने एवं स्थिरता बनाए रखने में सहायता मिलती है।

जलागम प्रबन्धन की विशिष्ट विधियां-

स्थान विशेष की आवश्यकतानुसार जलागम प्रबन्धन के लिए निम्न लिखित कार्य आवश्यक हैः-

• क्षेत्र में जलागम प्रबन्धन के बृहद उद्देश्यों की पहचान करना • जलागम प्रबन्धन दल का गठन • जलागम का चयन, आरम्भिक सर्वेक्षण एवं सतही मानचित्र बनाना • स्रोत सर्वेक्षण, सहभागितापूर्ण ग्रामीण मूल्यांकन, एवं आंकड़ा-संग्रहण • आंकड़ों का विश्लेषण, समस्या-पहचानना तथा वरीयताकरण • समस्याओं के व्यवहारिक सुधारों की पहचान • जलागम प्रबन्धन योजना का गठन • योजनानुसार सुधारों का कार्यान्वयन • कार्यो का मध्यकालीन पुनरावलोकन • कार्यान्वयन की विभिन्न अवस्थाओं पर मूल्यांकन व अनुश्रवण

जलागम प्रबन्धन योजना सहभागितापूर्ण होनी चाहिए, अर्थात इसमें लाभार्थियों (कृषकों) की सहभागिता आरम्भिक (नियोजन) स्तर से अंतिम (मूल्यांकन एवं अनुश्रवण) स्तर तक सुनिश्चित होनी चाहिए। पूर्व के पृथ्वी सम्मेलनों में भी सहभागितापूर्ण जलागम प्रबन्धन पर बल दिया गया है।