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जलागम प्रबन्धन प्रशिक्षण कार्यक्रम अध्ययन सामग्री
पाठ - 4
भारत सरकार 2008
ग्राम पंचायतों की भूमिका
1. जल एवं जलागम समिति का सहयोग करना व सुझाव देना।
2. जलागम विकास परियोजनाओं के निरूपम, क्रियान्वयन, अनुश्रवण एवं मूल्यांकन में सहयोग करना।
3. ग्राम स्तर पर क्रियान्वित की जा रही विभिन्न योजनाओं का आई.डब्ल्यू.एम.पी के साथ समन्वयन एवं समायोजन करना।
4. जलागम विकास निधि के बैंक खाते का संचालन।
5. जल एवं जलागम समिति के लिये कार्यालय व अन्य सुविधायें उपलब्ध करवाना।
6. आई.डब्ल्यू.एम.पी. की सम्पत्ति पंजिका का रख-रखाव।
7. उपभोक्ता समूह व स्वयं सहायता समूह को ग्राम सम्पत्ति का भोगाधिकार देना।
वर्षा सिंचित क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता को मद्देनजर रखते हुए नवम्बर, 2006 में राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण (एन. आर. ए. ए.) का गठन किया गया।
1. जलागम विकास गरीबी उन्मूलन हेतु संसाधनों के प्रबन्धन का बेहतर उपाय है।
2. जलागम विकास हेतु यथोचित मात्रा में निवेश की व्यवस्था करने के लिए समेकन के उभरते हुए मुद्दों के सम्बन्ध में नव-परिवर्तनकारी समान मार्गनिर्देशिका की आवश्यकता महसूस की गई।
3. इस सन्दर्भ में सभी मंत्रालयों द्वारा एकीकृत पद्धति अपनाए जाने को मद्देनजर रखते हुए समान मार्गनिर्देशिका तैयार की गई हैं।
4. यह समान मार्गनिर्देशिका जलागम विकास परियोजनाओं हेतु भारत सरकार के सभी विभागों/मंत्रालयों की सभी जलागम विकास परियोजनाओं के लिए लागू हैं।
1. पिछले 15 वर्षों के अनुभव पर आधारित
2. नई एवं सार्थक संस्थागत व्यवस्थायें
3. प्राकृतिक संसाधनों के प्रबन्धन, उत्पादकता, आजीविका विकास एवं आय अर्जन का समन्वय
4. पंचायतीराज संस्थाओं की यथोचित भूमिका
5. नीतियों, कार्यक्रमों योजनाओं में एकरूपता
1. विकेन्द्रीकरण
2. सुविधाप्रदाता संस्थाएं
3. सामुदायिक गतिशील हेतु प्रेरक संस्थाएं
4. सामुदायिक भागीदारी एवं पारदर्शिता - केन्द्र बिन्दु
5. क्षमता निर्माण एवं तकनीकी मदद
6. निगरानी, मूल्यांकन और ज्ञानार्जन
7. संगठनात्मक पुनर्सरचना
1. राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण (एनआरएए)
2. राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी (एसएलएनए)
3. District watershed cell cum data centre (DWCDC)
4. जिला जलागम विकास इकाई/एजेंसी (DWDA/DWDU)
5. जिला तथा मध्यवर्ती स्तरों पर पंचायती राज संस्थाएं
6. परियोजना स्तर पर संस्थागत व्यवस्थायें
परियोजना कार्यान्वयन एजेंसी (पीआईएएस)
जलागम विकास दल
7. ग्राम स्तर पर संस्थागत व्यवस्थायें
1. निगरानी, मूल्यांकन तथा ज्ञानार्जन का कार्य नियमित रूप से करना।
2. जलागम विकास परियोजनाओं की निधियाँ सुचारू रूप से जारी किए जाने को सुनिश्चित करना।
3. उत्पादकता तथा जीविका के साधनों में वृद्धि करने हेतु कृषि, बागवानी, ग्रामीण विकास, पशु पालन आदि के संगत कार्यक्रमों का जलागम विकास परियोजनाओं के साथ समन्वय को सुविधाजनक बनाना।
4. जलागम विकास परियोजनाओं/योजनाओं को जिला आयोजन समितियों की जिला योजनाओं के साथ समेकित करना।
5. जिला स्तरीय आँकड़ा प्रकोष्ठ को स्थापित करना तथा इसका रख-रखाव करना और इसे राज्य स्तरीय तथा राष्ट्र स्तरीय आँकड़ा केन्द्र के साथ जोड़ना।
1. जलागम विकास दल डब्ल्यूडीटी परियोजना कार्यान्वयन एजेंसी (पीआईए) द्वारा गठित किया जाएगा।
2. प्रत्येक जलागम विकास दल में मुख्यतः कृषि, मृदा, विज्ञान, जल प्रबन्धन, सामाजिक संघठन तथा संस्थागत निर्माण में व्यापक जानकारी और अनुभव रखने वाले कम से कम चार सदस्य शामिल होने चाहिए।
3. डब्ल्यू डी टी में कम से कम एक सदस्य महिला होनी चाहिए।
4. जलागम विकास दल के सदस्यों के वेतन सम्बन्धी व्यय को परियोजना कार्यान्वयन एजेंसी की प्रशासनिक सहायता में से प्रभारित किया जाएगा।
5. जिला जलागम विकास इकाई (डीडब्ल्यूडीयू) जलागम विकास दल के सदस्यों के प्रशिक्षण हेतु सुविधा उपलब्ध कराएगी।
ग्राम स्तर पर संस्थागत व्यवस्थायें तथा लोगों की भागीदारी
1. समय-समय पर जलागम समिति का पर्यवेक्षण करना, उसे सहायता देना।
2. जलागम समिति तथा जलागम परियोजना की अन्य संस्थाओं के लेखों/व्यय विवरणों को प्रमाणित करना।
3. जलागम विकास परियोजना की संस्थाओं के लिए विभिन्न परियोजनाओं/योजनाओं के एकीकरण को सुविधाजनक बनाना।
1. जलागम विकास परियोजनाओं के अन्तर्गत परिसम्पत्ति रजिस्टरों का जलागम विकास परियोजना के पूरा होने के बाद भी रखने के उद्देश्य से रख-रखाव करना।
2. जलागम समिति को कार्यालय हेतु स्थान मुहैया कराना तथा अन्य आवश्यकतायें पूरी करना।
3. पात्र प्रयोक्ता समूहों/स्वयं सहायता समूहों को सृजित की गई परिसम्पतित्तयों के सम्बन्ध में भोगाधिकार प्रदान करना।
1. वातावरण निर्माण
2. जागरूकता अभियान
3. सामुदायिक गतिशीलन
4. प्रारम्भिक कार्यों के अन्तर्गत निम्नलिखित प्रवेश बिन्दु गतिविधियाँ की जा सकती हैं : (Entry Point Activities)
- पेयजल एवं सिंचाई आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्राकृतिक जल संसाधनों का पुनरूद्धार
- तालाब/चैकडैम निर्माण के द्वारा भू-जल पुनः भराई सम्बन्धी कार्य
- सामुदायिक टैंकों का निर्माण
- सामुदायिक कूहलों का निर्माण
- मत्स्य पालन विभाग द्वारा अनुमोदित सम्भव रिपोर्ट के आधार पर मछली पालन के लिए तालाबों का निर्माण
- विभिन्न, सम्बद्ध विभागों के परामर्श से जीविकोपार्जन सम्बन्धित अन्य गतिविधियाँ
1. आधारभूत सर्वेक्षण
2. तकनीकी सहायता प्रदाता संस्थाओं की नेटवर्किंग
3. विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डी.पी.आर.) तैयार करना
4. संगठनों का निर्माण एवं विकास
5. संसाधन उपयोग सम्बन्धित विस्तृत करार
6. प्रगति एवं प्रक्रियाओं की सहभागी निगरानी
मुख्य उद्देश्य - सहभागी पद्धति का विकास एवं संगठनों का निर्माण (जलागम विकास दल की मुख्य भूमिका)
विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डी.पी.आर.) का क्रियान्वयन
शिखर क्षेत्र का विकास - वन और सामन्य भूमि में वानस्पतिक आच्छादन को पुनः सृजित करने, वनीकरण, अलग-अलग स्थान पर खाइयाँ खोदने, समोच्च और क्रमिक पुश्ते लगाने, भूमि को सीढ़ीनुमा बनाने आदि सहित सतही जमाव की प्रबलता और गति को कम करके जल ग्रहण क्षेत्र की उर्वरता को बनाए रखने हेतु अपेक्षित सभी कार्यकलाप।
नालों एवं खड्डों का उपचार - मिट्टी की बनी रोकों, झाड़ीनुमा पेड़ों के अवरोधों, अवनलिकाओं को बंद करने, शिलाखण्डों के द्वारा रोक लगाने, बेलनकार संरचनाओं का निर्माण करने, भूमिगत नालियाँ खोदने आदि जैसे वानस्पतिक और इंजीनियरिंग संरचनाओं के सम्मिश्रण द्वारा जल निकास स्वरूप में उपचार। क्रमशः
जल संग्रहण संरचनाओं का विकास - कम कीमत से निर्मित कृषि तालाबों, नालों पर बाँधों, रोक बाँधों, रिसने वाले टैंकों और कुँओं, बोर वेलों तथा अन्य उपायों के जरिए भू-जल की पुनः भराई।
चारा विकास - चारा, ईंधन, इमारती लकड़ी और बागवानी प्रजातियों के लिए नर्सरियाँ तैयार करना। जहाँ एक तक सम्भव हो, स्थानीय प्रजातियों को प्राथमिकता दी जाए।
भूमि विकास - यथा स्थान मृदा और नमी संरक्षण और बाँधों, समोच्च और क्रमिक बाँधों, जिन्हें पौधों को लगाकर मजबूत किया जा सकता है जैसे जल निकास प्रबंधन, उपायों, पर्वतीय भू-भागों में भूमि सीढ़ीनुमा बनाने सहित भूमि विकास। क्रमशः
फसल प्रदर्शन - नई फसलों/किस्मों को लोकप्रिय बनाने के लिए फसल प्रदर्शन करना तथा जल बचाव प्रौद्योगिकियों जैसे ड्रिप सिंचाई अथवा परिवर्तनकारी प्रबंधन प्रक्रियाओं का प्रचार करना। जहाँ तक सम्भव हो, स्थानीय जनन द्रव्य पर आधारित सम्भावित किस्मों को बढ़ावा दिया जाए।
लघु उद्यम - चारागाह विकास, रेशम उत्पादन, मधुमक्खी पालन, मुर्गी पालन, जुगाली करने वाले छोटे पशु, अन्य पशु पालन।
पशु चिकित्सा सेवायें - पशुओं के लिए पशु चिकित्सा सेवायें और पशुधन सुधार सम्बन्धी अन्य उपाय।
मत्स्य विकास - गाँव के तालाबों/टैंकों, खेत तालाबों आदि में मत्स्य विकास।
अपारपरिक ऊर्जा बचाव - ऊर्जा संरक्षण उपायों, बायो-ईंधन, पौध-रोपण आदि को बढ़ावा देना तथा प्रचार करना।
1. संवर्द्धित संसाधनों तथा आर्थिक योजनाओं को सतत जीविका के साधनों का आधार बनाना।
2. विभिन्न कार्यों का समेकन और उन्हें पूर्ण करना।
3. परियोजनोत्तर अवधि के दौरान कार्यसूची की नई मदों को निष्पादित करने हेतु समुदाय आधारित संगठनों में क्षमता निर्माण करना।
4. विकसित प्राकृतिक संसाधनों का सतत प्रबन्धन।
5. कृषि उत्पादन प्रणालियों/कृषि से आजीविका के साधनों के सम्बन्ध में सफल अनुभवों में और वृद्धि करना।
1. प्रत्येक कार्य की स्थिति के सम्बन्ध में व्यौरों सहित परियोजना पूरा होने सम्बन्धी रिपोर्ट तैयार करना।
2. भविष्य में उपयोग के लिए सफल अनुभवों तथा प्राप्त किए गए ज्ञान के प्रलेख तैयार करना।
1. जलागम विकास हेतु मौजूदा इकाई लागत 6000/- रुपये हेक्टेयर है जो अप्रैल 2001 में निर्धारित की गई थी। तथापि 11 वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान इसे निम्नलिखित तीन पहलुओं को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त रूप से मौजूद किया जा रहा है।
2. कृषि प्रणालियों के जरिए उत्पादकता में सुधार सहित आजीविका साधनों को बढ़ावा देना।
3. सामान्य/वन भूमि सहित जलागम के अन्तर्गत क्षेत्र की पूर्ण कवरेज और ।
4. सामग्री की कीमत तथा श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी में सामान्य वृद्धि को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त रूप से संशोधित किया जा रहा है।
5. प्रस्तावित लागत - 15000/- रुपये प्रति हेक्टेयर।
1. प्रारम्भिक चरण के कार्यकलापों को शामिल करते हुए प्रथम किस्त (20 प्रतिशत) को राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी द्वारा परियोजना स्वीकृत किये जाने पर तुरन्त जारी कर दिया जाएगा।
2. परियोजना लागत की (50 प्रतिशत) दूसरी किस्त प्रारम्भिक चरण के पूरा होने के पश्चात और प्रथम किस्त के 60 प्रतिशत व्यय होने पर उचित प्रमाणीकरण और दस्तावेजों को प्रस्तुत किए जाने पर जारी की जाएगी।
3. 30 प्रतिशत की तीसरी किस्त जारी की गई कुल निधियों को 75 प्रतिशत व्यय के उचित प्रमाणीकरण और इसके समर्थन में संगत दस्तावेज प्रस्तुत किए जाने के बाद जारी की जाएगी।
1. जिला कार्यान्वयन एजेंसियों/राज्य सरकार को निधियाँ प्रत्येक जिले से प्राप्त हुए विशिष्ट प्रस्तावों के आधार पर उनकी चल रही वचनबद्धताओं और स्वीकृत की गई नई परियोजनाओं तथा जिले के लिए समग्र बजटीय प्रावधान को ध्यान में रखते हुए और राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी (एस.एल.एन.ए.) द्वारा उनकी कार्य योजना को अनुमोदित किये जाने पर सीधे जारी की जायेंगी।
2. जिला जलागम विकास इकाइयों (डी.डब्ल्यू.डी.यू.)/ एजेंसियों द्वारा परियोजना कार्यान्वयन एजेंसियों और जलागम समितियों (डब्ल्यू. सी.) को निधियाँ इन्हें करने के 15 दिनों के भीतर जारी की जाएगी।
1. जलागम परियोजनाओं के लिए गाँवों के चयन हेतु जलागम विकास निधि में लोगों द्वारा अंशदान किया जाना अनिवार्य शर्त है।
2. जलागम विकास निधि में अंशदान केवल निजी भूमि पर निष्पादित एन. आर. एम. कार्यों की लागत का न्यूनतम 10 प्रतिशत होगा।
3. अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, छोटे और सीमान्त किसानों के मामले में न्यूनतम अंशदान उनकी भूमि पर निष्पादित एन. आर. एम. कार्यों की लागत का 5 प्रतिशत होगा।
4. निजी भूमि पर मत्स्य पालन, बागवानी, कृषि-वानिकी, पशुपालन आदि जैसे अन्य लागत प्रधान कृषि कार्यकलापों, जिनसे किसानों को सीधे ही लाभ प्राप्त होता है, किसानों का अंशदान सामान्य श्रेणी के लिए 20 प्रतिशत तथा अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लाभार्थियों के लिए 10 प्रतिशत होगा।
1. परन्तु यह जलागम विकास परियोजना के लिए मानक इकाई लागत मानदण्ड से दोगुनी राशि के बराबर राशि की अधिकतम सीमा के अध्यधीन होगी।
2. यह अंशदान कार्य के निष्पादन के समय पर नकद रूप से अथवा स्वैच्छिक श्रम के रूप में स्वीकार किया जाएगा।
3. जलागम विकास निधि का बैंक खाता ग्राम प्रधान एवं ग्राम सभा द्वारा अनुमोदित स्वयं सहायता समूह की सदस्या के हस्ताक्षर द्वारा खोला जायेगा।
12 वीं पंचवर्षीय योजना में विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों (विशेष रूप से भारत निर्माण के तहत योजनाओं और कार्यक्रमों) तथा अन्य फ्लैगशिप योजनाओं के संसाधनों को जलागम विकास योजनाओं के साथ समेकित और सुमेलित करने हेतु एक अवसर का प्रस्ताव किया गया है। जिला स्तर पर योजनाओं को अनिवार्यतः तैयार किए जाने से बुनियादी स्तर पर समेकन और सहक्रियायें की जा सकेंगी।
1. राज्यों को शक्तियों का प्रत्यायोजन
2. समर्पित संस्थाएँ
3. समर्पित संस्थाओं को वित्तीय सहायता
4. जीविका अभिमुखीकरण
5. सामूहिक पद्धति (कलस्टर एप्रोच)
6. वैज्ञानिक आयोजन
7. बहु स्तरीय पद्धति
भारत सरकार 2008
सामुदायिक पहल- समुदाय द्वारा- समुदाय के लिए
ग्राम पंचायतों की भूमिका
1. जल एवं जलागम समिति का सहयोग करना व सुझाव देना।
2. जलागम विकास परियोजनाओं के निरूपम, क्रियान्वयन, अनुश्रवण एवं मूल्यांकन में सहयोग करना।
3. ग्राम स्तर पर क्रियान्वित की जा रही विभिन्न योजनाओं का आई.डब्ल्यू.एम.पी के साथ समन्वयन एवं समायोजन करना।
4. जलागम विकास निधि के बैंक खाते का संचालन।
5. जल एवं जलागम समिति के लिये कार्यालय व अन्य सुविधायें उपलब्ध करवाना।
6. आई.डब्ल्यू.एम.पी. की सम्पत्ति पंजिका का रख-रखाव।
7. उपभोक्ता समूह व स्वयं सहायता समूह को ग्राम सम्पत्ति का भोगाधिकार देना।
वर्षा सिंचित क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता को मद्देनजर रखते हुए नवम्बर, 2006 में राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण (एन. आर. ए. ए.) का गठन किया गया।
समान मार्गनिर्देशिका की भूमिका
1. जलागम विकास गरीबी उन्मूलन हेतु संसाधनों के प्रबन्धन का बेहतर उपाय है।
2. जलागम विकास हेतु यथोचित मात्रा में निवेश की व्यवस्था करने के लिए समेकन के उभरते हुए मुद्दों के सम्बन्ध में नव-परिवर्तनकारी समान मार्गनिर्देशिका की आवश्यकता महसूस की गई।
3. इस सन्दर्भ में सभी मंत्रालयों द्वारा एकीकृत पद्धति अपनाए जाने को मद्देनजर रखते हुए समान मार्गनिर्देशिका तैयार की गई हैं।
4. यह समान मार्गनिर्देशिका जलागम विकास परियोजनाओं हेतु भारत सरकार के सभी विभागों/मंत्रालयों की सभी जलागम विकास परियोजनाओं के लिए लागू हैं।
समान मार्गनिर्देशिका में नया क्या है?
1. पिछले 15 वर्षों के अनुभव पर आधारित
2. नई एवं सार्थक संस्थागत व्यवस्थायें
3. प्राकृतिक संसाधनों के प्रबन्धन, उत्पादकता, आजीविका विकास एवं आय अर्जन का समन्वय
4. पंचायतीराज संस्थाओं की यथोचित भूमिका
5. नीतियों, कार्यक्रमों योजनाओं में एकरूपता
समान मार्गनिर्देशिका के मुख्य सिद्धांत
1. विकेन्द्रीकरण
2. सुविधाप्रदाता संस्थाएं
3. सामुदायिक गतिशील हेतु प्रेरक संस्थाएं
4. सामुदायिक भागीदारी एवं पारदर्शिता - केन्द्र बिन्दु
5. क्षमता निर्माण एवं तकनीकी मदद
6. निगरानी, मूल्यांकन और ज्ञानार्जन
7. संगठनात्मक पुनर्सरचना
राष्ट्रीय, राज्य, जिला तथा ग्राम स्तरों पर संस्थागत व्यवस्थायें
1. राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण (एनआरएए)
2. राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी (एसएलएनए)
3. District watershed cell cum data centre (DWCDC)
4. जिला जलागम विकास इकाई/एजेंसी (DWDA/DWDU)
5. जिला तथा मध्यवर्ती स्तरों पर पंचायती राज संस्थाएं
6. परियोजना स्तर पर संस्थागत व्यवस्थायें
परियोजना कार्यान्वयन एजेंसी (पीआईएएस)
जलागम विकास दल
7. ग्राम स्तर पर संस्थागत व्यवस्थायें
क्रमशः
1. निगरानी, मूल्यांकन तथा ज्ञानार्जन का कार्य नियमित रूप से करना।
2. जलागम विकास परियोजनाओं की निधियाँ सुचारू रूप से जारी किए जाने को सुनिश्चित करना।
3. उत्पादकता तथा जीविका के साधनों में वृद्धि करने हेतु कृषि, बागवानी, ग्रामीण विकास, पशु पालन आदि के संगत कार्यक्रमों का जलागम विकास परियोजनाओं के साथ समन्वय को सुविधाजनक बनाना।
4. जलागम विकास परियोजनाओं/योजनाओं को जिला आयोजन समितियों की जिला योजनाओं के साथ समेकित करना।
5. जिला स्तरीय आँकड़ा प्रकोष्ठ को स्थापित करना तथा इसका रख-रखाव करना और इसे राज्य स्तरीय तथा राष्ट्र स्तरीय आँकड़ा केन्द्र के साथ जोड़ना।
जलागम विकास दल (डब्ल्यू डी टी)
1. जलागम विकास दल डब्ल्यूडीटी परियोजना कार्यान्वयन एजेंसी (पीआईए) द्वारा गठित किया जाएगा।
2. प्रत्येक जलागम विकास दल में मुख्यतः कृषि, मृदा, विज्ञान, जल प्रबन्धन, सामाजिक संघठन तथा संस्थागत निर्माण में व्यापक जानकारी और अनुभव रखने वाले कम से कम चार सदस्य शामिल होने चाहिए।
3. डब्ल्यू डी टी में कम से कम एक सदस्य महिला होनी चाहिए।
4. जलागम विकास दल के सदस्यों के वेतन सम्बन्धी व्यय को परियोजना कार्यान्वयन एजेंसी की प्रशासनिक सहायता में से प्रभारित किया जाएगा।
5. जिला जलागम विकास इकाई (डीडब्ल्यूडीयू) जलागम विकास दल के सदस्यों के प्रशिक्षण हेतु सुविधा उपलब्ध कराएगी।
ग्राम स्तर पर संस्थागत व्यवस्थायें तथा लोगों की भागीदारी
ग्राम पंचायत की भूमिका
1. समय-समय पर जलागम समिति का पर्यवेक्षण करना, उसे सहायता देना।
2. जलागम समिति तथा जलागम परियोजना की अन्य संस्थाओं के लेखों/व्यय विवरणों को प्रमाणित करना।
3. जलागम विकास परियोजना की संस्थाओं के लिए विभिन्न परियोजनाओं/योजनाओं के एकीकरण को सुविधाजनक बनाना।
ग्राम पंचायत की भूमिका
1. जलागम विकास परियोजनाओं के अन्तर्गत परिसम्पत्ति रजिस्टरों का जलागम विकास परियोजना के पूरा होने के बाद भी रखने के उद्देश्य से रख-रखाव करना।
2. जलागम समिति को कार्यालय हेतु स्थान मुहैया कराना तथा अन्य आवश्यकतायें पूरी करना।
3. पात्र प्रयोक्ता समूहों/स्वयं सहायता समूहों को सृजित की गई परिसम्पतित्तयों के सम्बन्ध में भोगाधिकार प्रदान करना।
परियोजना प्रबन्धन
चरण | नाम | अवधि |
1 | प्रारम्भिक चरण Preparatory Phase | 1-2 वर्ष |
2 | जलागम कार्य चरण Watershed Works Phase | 2-3 वर्ष |
3 | समेकन और निवर्तन चरण Consolidation and Withdrawal Phase | 1-2 वर्ष |
प्रारम्भिक चरण
1. वातावरण निर्माण
2. जागरूकता अभियान
3. सामुदायिक गतिशीलन
4. प्रारम्भिक कार्यों के अन्तर्गत निम्नलिखित प्रवेश बिन्दु गतिविधियाँ की जा सकती हैं : (Entry Point Activities)
- पेयजल एवं सिंचाई आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्राकृतिक जल संसाधनों का पुनरूद्धार
- तालाब/चैकडैम निर्माण के द्वारा भू-जल पुनः भराई सम्बन्धी कार्य
- सामुदायिक टैंकों का निर्माण
- सामुदायिक कूहलों का निर्माण
- मत्स्य पालन विभाग द्वारा अनुमोदित सम्भव रिपोर्ट के आधार पर मछली पालन के लिए तालाबों का निर्माण
- विभिन्न, सम्बद्ध विभागों के परामर्श से जीविकोपार्जन सम्बन्धित अन्य गतिविधियाँ
प्रारम्भिक चरण
1. आधारभूत सर्वेक्षण
2. तकनीकी सहायता प्रदाता संस्थाओं की नेटवर्किंग
3. विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डी.पी.आर.) तैयार करना
4. संगठनों का निर्माण एवं विकास
5. संसाधन उपयोग सम्बन्धित विस्तृत करार
6. प्रगति एवं प्रक्रियाओं की सहभागी निगरानी
मुख्य उद्देश्य - सहभागी पद्धति का विकास एवं संगठनों का निर्माण (जलागम विकास दल की मुख्य भूमिका)
जलागम कार्य चरण
विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डी.पी.आर.) का क्रियान्वयन
शिखर क्षेत्र का विकास - वन और सामन्य भूमि में वानस्पतिक आच्छादन को पुनः सृजित करने, वनीकरण, अलग-अलग स्थान पर खाइयाँ खोदने, समोच्च और क्रमिक पुश्ते लगाने, भूमि को सीढ़ीनुमा बनाने आदि सहित सतही जमाव की प्रबलता और गति को कम करके जल ग्रहण क्षेत्र की उर्वरता को बनाए रखने हेतु अपेक्षित सभी कार्यकलाप।
नालों एवं खड्डों का उपचार - मिट्टी की बनी रोकों, झाड़ीनुमा पेड़ों के अवरोधों, अवनलिकाओं को बंद करने, शिलाखण्डों के द्वारा रोक लगाने, बेलनकार संरचनाओं का निर्माण करने, भूमिगत नालियाँ खोदने आदि जैसे वानस्पतिक और इंजीनियरिंग संरचनाओं के सम्मिश्रण द्वारा जल निकास स्वरूप में उपचार। क्रमशः
जलागम कार्य चरण
जल संग्रहण संरचनाओं का विकास - कम कीमत से निर्मित कृषि तालाबों, नालों पर बाँधों, रोक बाँधों, रिसने वाले टैंकों और कुँओं, बोर वेलों तथा अन्य उपायों के जरिए भू-जल की पुनः भराई।
चारा विकास - चारा, ईंधन, इमारती लकड़ी और बागवानी प्रजातियों के लिए नर्सरियाँ तैयार करना। जहाँ एक तक सम्भव हो, स्थानीय प्रजातियों को प्राथमिकता दी जाए।
भूमि विकास - यथा स्थान मृदा और नमी संरक्षण और बाँधों, समोच्च और क्रमिक बाँधों, जिन्हें पौधों को लगाकर मजबूत किया जा सकता है जैसे जल निकास प्रबंधन, उपायों, पर्वतीय भू-भागों में भूमि सीढ़ीनुमा बनाने सहित भूमि विकास। क्रमशः
जलागम कार्य चरण
फसल प्रदर्शन - नई फसलों/किस्मों को लोकप्रिय बनाने के लिए फसल प्रदर्शन करना तथा जल बचाव प्रौद्योगिकियों जैसे ड्रिप सिंचाई अथवा परिवर्तनकारी प्रबंधन प्रक्रियाओं का प्रचार करना। जहाँ तक सम्भव हो, स्थानीय जनन द्रव्य पर आधारित सम्भावित किस्मों को बढ़ावा दिया जाए।
लघु उद्यम - चारागाह विकास, रेशम उत्पादन, मधुमक्खी पालन, मुर्गी पालन, जुगाली करने वाले छोटे पशु, अन्य पशु पालन।
पशु चिकित्सा सेवायें - पशुओं के लिए पशु चिकित्सा सेवायें और पशुधन सुधार सम्बन्धी अन्य उपाय।
मत्स्य विकास - गाँव के तालाबों/टैंकों, खेत तालाबों आदि में मत्स्य विकास।
अपारपरिक ऊर्जा बचाव - ऊर्जा संरक्षण उपायों, बायो-ईंधन, पौध-रोपण आदि को बढ़ावा देना तथा प्रचार करना।
समेकन तथा निर्वतन चरण
1. संवर्द्धित संसाधनों तथा आर्थिक योजनाओं को सतत जीविका के साधनों का आधार बनाना।
2. विभिन्न कार्यों का समेकन और उन्हें पूर्ण करना।
3. परियोजनोत्तर अवधि के दौरान कार्यसूची की नई मदों को निष्पादित करने हेतु समुदाय आधारित संगठनों में क्षमता निर्माण करना।
4. विकसित प्राकृतिक संसाधनों का सतत प्रबन्धन।
5. कृषि उत्पादन प्रणालियों/कृषि से आजीविका के साधनों के सम्बन्ध में सफल अनुभवों में और वृद्धि करना।
विभिन्न कार्यों को समेकित करना
1. प्रत्येक कार्य की स्थिति के सम्बन्ध में व्यौरों सहित परियोजना पूरा होने सम्बन्धी रिपोर्ट तैयार करना।
2. भविष्य में उपयोग के लिए सफल अनुभवों तथा प्राप्त किए गए ज्ञान के प्रलेख तैयार करना।
जलागम विकास परियोजना हेतु बजट
बजट संघटक | बजट प्रतिशत में |
प्रशासनिक लागत | 10 |
निगरानी | 1 |
मूल्यांकन | 1 |
प्रारम्भिक चरण | |
प्रारम्भिक कार्यकलाप (Entry Point Activity) | 4 |
संस्थापन तथा क्षमता निर्माण (Training) | 5 |
विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) | 1 |
जलागम कार्यचरण | |
जलागम विकास कार्य | 56 |
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, सीमान्त किसान | 9 |
उत्पादन प्रणाली तथा अतिलघु (माइक्रो) उद्यम | 10 |
समेकन चरण | 3 |
योग | 100 |
जलागम विकास हेतु इकाई लागत
1. जलागम विकास हेतु मौजूदा इकाई लागत 6000/- रुपये हेक्टेयर है जो अप्रैल 2001 में निर्धारित की गई थी। तथापि 11 वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान इसे निम्नलिखित तीन पहलुओं को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त रूप से मौजूद किया जा रहा है।
2. कृषि प्रणालियों के जरिए उत्पादकता में सुधार सहित आजीविका साधनों को बढ़ावा देना।
3. सामान्य/वन भूमि सहित जलागम के अन्तर्गत क्षेत्र की पूर्ण कवरेज और ।
4. सामग्री की कीमत तथा श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी में सामान्य वृद्धि को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त रूप से संशोधित किया जा रहा है।
5. प्रस्तावित लागत - 15000/- रुपये प्रति हेक्टेयर।
किस्ते जारी करने के लिए प्रक्रिया
1. प्रारम्भिक चरण के कार्यकलापों को शामिल करते हुए प्रथम किस्त (20 प्रतिशत) को राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी द्वारा परियोजना स्वीकृत किये जाने पर तुरन्त जारी कर दिया जाएगा।
2. परियोजना लागत की (50 प्रतिशत) दूसरी किस्त प्रारम्भिक चरण के पूरा होने के पश्चात और प्रथम किस्त के 60 प्रतिशत व्यय होने पर उचित प्रमाणीकरण और दस्तावेजों को प्रस्तुत किए जाने पर जारी की जाएगी।
3. 30 प्रतिशत की तीसरी किस्त जारी की गई कुल निधियों को 75 प्रतिशत व्यय के उचित प्रमाणीकरण और इसके समर्थन में संगत दस्तावेज प्रस्तुत किए जाने के बाद जारी की जाएगी।
क्रमशः
1. जिला कार्यान्वयन एजेंसियों/राज्य सरकार को निधियाँ प्रत्येक जिले से प्राप्त हुए विशिष्ट प्रस्तावों के आधार पर उनकी चल रही वचनबद्धताओं और स्वीकृत की गई नई परियोजनाओं तथा जिले के लिए समग्र बजटीय प्रावधान को ध्यान में रखते हुए और राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी (एस.एल.एन.ए.) द्वारा उनकी कार्य योजना को अनुमोदित किये जाने पर सीधे जारी की जायेंगी।
2. जिला जलागम विकास इकाइयों (डी.डब्ल्यू.डी.यू.)/ एजेंसियों द्वारा परियोजना कार्यान्वयन एजेंसियों और जलागम समितियों (डब्ल्यू. सी.) को निधियाँ इन्हें करने के 15 दिनों के भीतर जारी की जाएगी।
जलागम विकास निधि
1. जलागम परियोजनाओं के लिए गाँवों के चयन हेतु जलागम विकास निधि में लोगों द्वारा अंशदान किया जाना अनिवार्य शर्त है।
2. जलागम विकास निधि में अंशदान केवल निजी भूमि पर निष्पादित एन. आर. एम. कार्यों की लागत का न्यूनतम 10 प्रतिशत होगा।
3. अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, छोटे और सीमान्त किसानों के मामले में न्यूनतम अंशदान उनकी भूमि पर निष्पादित एन. आर. एम. कार्यों की लागत का 5 प्रतिशत होगा।
4. निजी भूमि पर मत्स्य पालन, बागवानी, कृषि-वानिकी, पशुपालन आदि जैसे अन्य लागत प्रधान कृषि कार्यकलापों, जिनसे किसानों को सीधे ही लाभ प्राप्त होता है, किसानों का अंशदान सामान्य श्रेणी के लिए 20 प्रतिशत तथा अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लाभार्थियों के लिए 10 प्रतिशत होगा।
क्रमशः
1. परन्तु यह जलागम विकास परियोजना के लिए मानक इकाई लागत मानदण्ड से दोगुनी राशि के बराबर राशि की अधिकतम सीमा के अध्यधीन होगी।
2. यह अंशदान कार्य के निष्पादन के समय पर नकद रूप से अथवा स्वैच्छिक श्रम के रूप में स्वीकार किया जाएगा।
3. जलागम विकास निधि का बैंक खाता ग्राम प्रधान एवं ग्राम सभा द्वारा अनुमोदित स्वयं सहायता समूह की सदस्या के हस्ताक्षर द्वारा खोला जायेगा।
अन्य योजनाओं/परियोजनाओं के साथ समन्वय
12 वीं पंचवर्षीय योजना में विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों (विशेष रूप से भारत निर्माण के तहत योजनाओं और कार्यक्रमों) तथा अन्य फ्लैगशिप योजनाओं के संसाधनों को जलागम विकास योजनाओं के साथ समेकित और सुमेलित करने हेतु एक अवसर का प्रस्ताव किया गया है। जिला स्तर पर योजनाओं को अनिवार्यतः तैयार किए जाने से बुनियादी स्तर पर समेकन और सहक्रियायें की जा सकेंगी।
समान मार्गदर्शिका की मुख्य विशेषताएँ
1. राज्यों को शक्तियों का प्रत्यायोजन
2. समर्पित संस्थाएँ
3. समर्पित संस्थाओं को वित्तीय सहायता
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5. सामूहिक पद्धति (कलस्टर एप्रोच)
6. वैज्ञानिक आयोजन
7. बहु स्तरीय पद्धति