मनरेगा

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जलागम प्रबन्धन प्रशिक्षण कार्यक्रम अद्ययन सामग्री
पाठ-10
.महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम का उद्देश्य

महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम एक ऐसा कानून है, जिसमें ग्रामीण परिवारों के व्यस्क सदस्यों को, जो अकुशल कार्य करने के इच्छुक हों, वित्तीय वर्ष में 100 दिन का रोजगार सुनिश्चित किया गया है।

हिमाचल प्रदेश में महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना का शुभारम्भ

(क) प्रथम चरण
प्रथम चरण में महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना का शुभारम्भ 2 फरवरी, 2006 को हिमाचल प्रदेश के दो जिलों- चम्बा और सिरमौर में हुआ।

(ख) द्वितीय चरण
द्वितीय चरण में दिनांक 1.4.2007 को दो अन्य जिले कांगड़ा एवं मण्डी भी इस योजना के अन्तर्गत सम्मिलित किये गये।

(ग) तृतीय चरण
तृतीय चरण में दिनांक 1.4.2007 को अन्य 8 जिलों बिलासपुर, हमीरपुर, किन्नौर, कुल्लू, लाहौल व स्पिति, शिमला सोलन तथा उनमें भी इस योजना को शुरू किया जा चुका है।

योजना के कार्यान्वयन हेतु प्रक्रिया


मनरेगा के श्रेष्ठ क्रियान्वयन के लिए यह आवश्यक है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले सभी परिवारों तक, इस अधिनियम का वांछित लाभ पहुँचे। इसके अन्तर्गत वही परिवार आ सकते हैं, जिनके व्यस्क सदस्य अकुशल शारीरिक श्रम करना चाहते हों, इसलिए ग्राम पंचायत प्रधानों को निम्नलिखित बिन्दुओं को ध्यान में रखना चाहिए -

ग्राम पंचायत प्रधानों द्वारा नियमित ग्राम सभाओं का आयोजन करवाना कानूनी रूप से अनिवार्य है। यथा सम्भव सभी ग्राम सभाओं की समस्त कार्यवाही की वीडियो फिल्म भी तैयार करनी चाहिए। फिल्म को टेप, सीडी, अथवा अन्य किसी संचार माध्यम के रूप में उचित कोड देकर जिले में ग्राम पंचायत, जिला कार्यक्रम समन्वयक और खण्ड कार्यक्रम अधिकारी के पास रखा जाना चाहिए। फिल्म का सदुपयोग जिला कार्यक्रम समन्वयक, खण्ड कार्यक्रम अधिकारी और ग्राम पंचायत/ग्राम सभा द्वारा लिए गए निर्णयों को लागू करने और मनरेगा के सुचारू क्रियान्वयन के लिए किया जा सकेगा।

ग्राम पंचायत प्रधानों को यह ध्यान देना चाहिए कि प्रक्रिया के महत्त्वपूर्ण चरणों का पालन हुआ या नहीं। ये चरण निम्नलिखित हैं।

1. पंजीकरण: ऐसे सभी ग्रामीण परिवारों के व्यस्क सदस्यों का उनकी पंचायत में पंजीकरण हो गया हो, जो अकुशल शारीरिक श्रम करना चाहते हों, पंजीकरण हेतु एकल परिवार पात्र है। एकल परिवार का आशय माता, पिता और उनके बच्चों से है। किसी ऐसे व्यक्ति को भी परिवार में शामिल माना जा सकती है जो पूरी तरह या आंशिक रूप से परिवार के मुखिया पर आश्रित है। अगर किसी परिवार में केवल एक सदस्य हैं, तो उसे भी एक परिपूर्ण परिवार की श्रेणी में रखा जाएगा।

2. विवरण: ऐसे सभी ग्रामीण परिवारों ने पंजीकरण के लिए ग्राम पंचायत में अपने नाम, आयु और पते का विवरण जमा किया हो।

3. जाँच: ग्राम पंचायत का काम होगा कि वह यह जाँच करें कि, जिन परिवारों ने पंजीकरण के लिए विवरण जमा किया है, वे इसी पंचायत के निवासी हैं और उनकी आयु अभिलेखानुसार सही है। वे काम करने के लिए इच्छुक होने चाहिए।

4. जॉब कार्ड: जाँच पूरी करने के बाद ग्राम पंचायत, पन्द्रह दिनों के अन्दर, परिवार को जॉब कार्ड जारी करेगी। इस जॉब कार्ड पर सभी व्यस्क सदस्यों के नाम, आयु और फोटो लगाना अनिवार्य है। यह जॉब कार्ड राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए विवरण के अनुसार भी बनाया जा सकता है।

5. समानताः परिवारों के पंजीकरण में जाति, लिंग अथवा अन्य किसी भी प्रकार का भेद-भाव नहीं होना चाहिए। पंजीकरण करने हेतु सभी ग्रामीण जो कि अकुशल श्रम करने के इच्छुक हो, समरूप हैं।

6. पंजीकरण की वैधताः यह पंजीकरण पाँच वर्षों के लिए वैध होगा।

उपरोक्त प्रक्रिया हेतु निम्नलिखित पहलुओं पर विशेष ध्यान दें।

1. जॉब कार्ड में पंजीकृत व्यस्क सदस्यों का विवरण होना चाहिए। जॉब कार्ड पर सही संख्या, परिवार द्वारा माँगे गए कामों का विवरण और रोजगार प्राप्ति, किए गए कामों का विवरण, तिथि और कार्य दिवसों का विवरण, जिन मस्टर रोलों से भुगतान किया गया हो, उनकी संख्या, मजदूरी भुगतान की राशि तथा अगर बेरोजगारी भत्ता गया हो तो उसका विवरण जॉब कार्ड पर पोस्ट ऑफिस/बैंक खाते की संख्या, बीमा पॉलिसी की संख्या तथा मतदाता पहचान पत्र की संख्या भी दी जा सकती है।

2. सभी सूचनाओं का सत्यापन प्राधिकृत अधिकारी के द्वारा किया जाना चाहिए। जॉब कार्ड में केवल व्यस्यक पंजीकृत सदस्यों की फोटो लगानी चाहिए, जिनके लिए जॉब कार्ड जारी किया गया हो।

3. जॉब कार्ड पर ऐसे किसी भी व्यक्ति का फोटो, नाम और विवरण नहीं दिया जाना चाहिए, जिसे जॉब कार्ड जारी न किया गया हो। पूर्व में जारी जॉब कार्ड में आवश्यक संशोधन किया जा सकता है। परन्तु ऐसा करते समय यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि काम में बाधा न पहुँचे।

4. यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि जॉब कार्ड सम्बन्धित व्यक्ति के पास ही रहे तथा उसमें अनिवार्य सूचना के अतिरिक्त अन्य कोई सूचना न लिखी गयी हो।

रोजगार का अधिकार


पंजीकृत परिवारों के सभी व्यस्क सदस्य, जिनके नाम जॉब कार्ड में लिखे गए हों, अकुशल शारीरिक श्रम करने के पात्र हैं। उनको अधिकार है, कि वे जितने दिनों का काम करना चाहते हैं, उतने दिनों का काम उन्हें दिया जाए जिससे कि एक वित्तीय वर्ष में 100 दिन पूरे हो सकें। रोजगार प्राप्ति हेतु जॉब कार्ड धारकों को ग्राम पंचायत में लिखित/मौखिक आवेदन करना चाहिए। काम का समय और अवधि अंकित करनी चाहिए। तत्पश्चात ग्राम पंचायत आवेदकों को तिथि सहित रसीद देगी।

श्रमिकों के अधिकार


जैसा कि कहा जा चुका है कि महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम ‘श्रमिकों के अधिकार’ को सुनिश्चित करने का कानून है, इसलिए सभी को यह जानना आवश्यक है कि, श्रमिकों के अधिकार क्या हैं, विशेषतः ग्राम पंचायत प्रधानों को इन अधिकारों की जानकारी होनी ही चाहिए, क्योंकि वे ही ग्रामीण श्रमिकों के सबसे निकट है। महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम, श्रमिकों को निम्न अधिकार देता है-

1. पंजीकृत ग्रामीण परिवार प्रत्येक व्यस्क सदस्य, जिनका नाम जॉब कार्ड में अंकित है, अकुशल शारीरिक श्रम करने के आवेदन का अधिकारी है।
2. सभी पंजीकृत श्रमिक जितने दिनों का काम चाहते हैं (एक वित्तीय वर्ष में अधिकतम 100 दिन), वे उसे पाने के अधिकारी हैं।
3. काम का आवंटन की सूचना लिखित में तथा ग्राम पंचायत कार्यालय में सार्वजनिक सूचना द्वारा दी जानी चाहिए।
4. सार्वजनिक सूचना ग्राम पंचायत और विकास खण्ड कार्यालय पर दी जानी चाहिए जिसमें काम शुरू होने की तिथि, स्थान, काम का नाम और रोजगार प्राप्त करने वाले श्रमिकों का विवरण होना चाहिए।
5. रोजगार, श्रमिक के निवास स्थान की पाँच किलोमीटर की परिधि में होना चाहिए।
6. अगर पाँच किलोमीटर के परिधि के बाहर हो, तब वह विकास खण्ड की सीमा के बाहर न हो। अगर पाँच किलोमीटर के दायरे के बाहर हो, तब श्रमिकों को मजदूरी का दस प्रतिशत अतिरिक्त पाने का अधिकार है।
7. अगर ग्राम पंचायत काम देने में असफल होती है तो, कार्यक्रम अधिकारी की भी जिम्मेदारी है कि वह श्रमिकों को काम दिलवाएँ।
8. यदि आवेदन करने के 15 दिन के भीतर अथवा जिस दिन से कार्य की माँग की गई हो, जो भी बाद में हो, आवेदक को कार्य उपलब्ध नहीं होता तो उसे अधिनियम के अन्तर्गत बेरोजगारी भत्ता प्रदान किया जायेगा, जो कि पहले एक महीने तक मजदूरी दैनिक दर का एक चौथाई एवं उसके उपरान्त मजदूरी दैनिक दर के आधे के बराबर होगा।

यह बात भी जानना आवश्यक है कि, किन परिस्थितियों में श्रमिकों को बेरोजगारी भत्ता नहीं मिलेगा।

1. अगर कोई श्रमिक, दिये गये काम के लिए स्वीकृति नहीं देता/देती है तो उसे बेरोजगारी भत्ता नहीं मिलेगा।
2. अगर 15 दिनों के अंदर काम मिलने पर भी आवेदक काम पर नहीं आता/आती तो उसे बेरोजगारी भत्ता नहीं मिलेगा।
3. अगर वह काम से एक सप्ताह अनुपस्थित रहता/रहती है तो उसे बेरोजगारी भत्ता नहीं मिलेगा। परन्तु ऐसे श्रमिक पुनः काम के लिए आवेदन कर सकते हैं।
4. अधिनियम के अनुसार चालू काम में एक तिहाई महिलाओं का होना आवश्यक है।
5. काम का आवंटन शारीरिक क्षमता के अनुसार ही होना चाहिए। शारीरिक विकलांगता से बाधित व्यक्तियों को भी काम दिया जाना चाहिए।
6. अनुसूचित जाति, जनजाति, गरीबी रेखा से नीचे के समुदाय और महिलाएँ सभी मनरेगा के अर्न्तगत पात्र लाभार्थी हैं।
7. श्रमिकों को कार्य स्थल पर काम के दौरान दी जाने वाली सुविधाएँ जैसे आराम के लिए छाया, पीने का पानी, प्राथमिक उपचार का बक्सा और छः साल से कम आयु के बच्चों की देखभाल के लिए समुचित व्यवस्था होना आवश्यक है।

श्रमिकों के अधिकारों में महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम में निःशुल्क चिकित्सा सहायता का भी प्रावधान है जिसका विवरण निम्न प्रकार से हैः-

1. यदि काम के दौरान श्रमिक को चोट लग जाए तो वे निःशुल्क चिकित्सा सहायता के अधिकारी हैं।
2. यदि काम के दौरान मृत्यु हो जाए या विकलांग हो जाए तो राज्य सरकार की राहत नियमावली के अनुसार भी उन्हें/उनके आश्रितों को भुगतान किया जाना चाहिए।
3. अगर अस्पताल में उन्हें भर्ती करना आवश्यक है, तो राज्य सरकार चिकित्सा का पूरा व्यय उठायेगी। इसमें भर्ती हेतु परिवहन व्यवस्था, अस्पताल में रहने, चिकित्सा, दवाओं और दैनिक भत्ता जोकि आधे दिन की मजदूरी के बराबर हो, का खर्च सम्मिलित है।
4. अगर काम के दौरान श्रमिक की मृत्यु या विकलांगता होती है, तो श्रमिक/आश्रितों को क्रियान्वयन संस्था द्वारा 25,000 रुपये की दर, या ऐसी धनराशि, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित की जाए, का भुगतान किया जाना चाहिए। यह भुगतान विकलांग व्यक्ति को या मृतक व्यक्ति के वैध उत्तराधिकारी को दिया जाना चाहिए।
5. यदि कोई ऐसा किसी श्रमिक जो काम पर अपने साथ बच्चों को लाता है और उस बच्चे को किसी प्रकार का शारीरिक नुकसान होता है तो वह श्रमिक उस बच्चे के लिए निःशुल्क चिकित्सा सहायता का अधिकारी है। अगर बच्चे की मृत्यु हो जाती है तो श्रमिक को राज्य सरकार द्वारा निर्धारित सहायता पाने का अधिकार है।
6. श्रमिकों का बीमा निम्न बीमा योजनाओं के माध्यम से किये जाने का प्रावधान है।
(i) जन श्री बीमा योजना
(ii) आम आदमी बीमा योजना

कार्य नियोजन एवं श्रम बजट
महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम में ग्राम पंचायत को नियोजन की ज़िम्मेदारी दी गई है। इसके अतिरिक्त पंचायत के जो काम अधूरे हैं, उनको प्राथमिकता के आधार पर पूर्ण करना चाहिए।

मनरेगा के अन्तर्गत प्राथमिकता के आधार पर निम्नलिखित स्वीकार्य किये जा सकते हैं :-

(1) जल संरक्षण एवं जल संचय।
(2) सूखे से बचाव के लिये वृक्षारोपण और वन संरक्षण
(3) सिंचाई के लिये सूक्ष्म एवं लघु सिंचाई परियोजनाओं सहित नहरों का निर्माण।
(4) अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जन जातियों या गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों या भूमि सुधार के हिताधिकारियों या भारत सरकार की इन्दिरा आवास योजना के अधीन हिताधिकारियों या लघु कृषक तथा सीमान्त कृषकों की गृहस्थी भूमि के लिये सिंचाई सुविधा, बागवानी, और भूमि विकास सुविधा का प्रबन्ध।
(5) परम्परागत जल स्रोतों के पुनर्नवीकरण हेतु, जलाशयों से गाद की निकासी।
(6) भूमि विकास, जिसमें खेल मैदान भी शामिल हैं। (7) बाढ़ नियन्त्रण एवं सुरक्षा परियोजनाएं, जिनमें जल भराव से ग्रस्त इलाकों से पानी की निकासी भी शामिल है।
(8) गाँवों में सड़कों का जाल बिछाना ताकि सभी गाँवों तक बारह महीनों सहज आवाजाही हो सके।
(9) ग्राम पंचायत तथा पंचायत समिति स्तर पर ग्राम ज्ञान संसाधन केन्द्र के रूप में भारत निर्माण राजीव गाँधी सेवा केन्द्र का निर्माण।
(10) कोई अन्य कार्य, जिसे राज्य सरकार के परामर्श से केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित किया जाए।

उपरोक्त सभी काम ग्राम सभा द्वारा पारित किए जाने चाहिए। कामों को पर्याप्त संख्या में शुरू किया जाना चाहिए जिससे कि काम करने के इच्छुक सभी श्रमिकों को काम मिल सके।

मनरेगा अधिनियम के अन्तर्गत लागत के अनुसार कम से कम 50 प्रतिशत कार्य पंचायती राज्य संस्थाओं के माध्यम से करवाने आवश्यक हैं। उपरोक्त स्वीकार्य कार्यों के निष्पादन हेतु पंचायती राज संस्थाओं के अतिरिक्त अन्य विभागों जैसे वन, लोक निर्माण, सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य, कृषि तथा उद्यान इत्यादि को भी निष्पादन एजेन्सी के रूप में शामिल किया गया है। क्योंकि अन्य विभागों द्वारा भी मनरेगा के अन्तर्गत कार्यों का निष्पादन ग्राम पंचायत क्षेत्र में किया जायेगा। अतः यह आवश्यक है कि अन्य विभागों द्वारा जिन कार्यों का निष्पादन जिस ग्राम पंचायत में किया जा रहा है, वह ग्राम पंचायत इन कार्यों के निष्पादन हेतु सम्बन्धित विभाग को योजना के अन्तर्गत पंजीकृत कामगार उपलब्ध करायें।

श्रम बजट तैयार करना


श्रम बजट एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है, जिसमें अगले वित्तीय वर्ष के दौरान रोजगार प्रदान करने का विवरण, किये जाने वाले कार्यों का विवरण तथा इस हेतु वांछित धनराशि का माह-बार ब्यौरा दर्शाया जाता है। क्योंकि चयनित काया का निष्पादन केवल ग्राम पंचायत में रोजगार चाहने वाले पंजीकृत परिवारों द्वारा ही किया जाएगा। अतः यह आवश्यक है, कि केवल उतनी ही संख्या व लागत के कार्यों हेतु श्रम बजट तैयार किया जाए। जिनके निष्पादन हेतु ग्राम पंचायत में काम करने वाले पंजीकृत परिवार उपलब्ध हों, ताकि एक वास्तविक और व्यावहारिक श्रम बजट तैयार हो सके। प्रत्येक वित्त वर्ष के लिए वास्तविक तथा व्यावहारिक परियोजनाओं का शैल्फ तथा श्रम बजट तैयार करने हेतु निम्न पग उठाने होंगे:-

1. प्रत्येक वर्ष 2 अक्टूबर को विशेष ग्राम सभा का आयोजन किया जाना चाहिए। ग्राम पंचायत प्रधान पंचायत सचिव या ग्राम रोजगार सेवक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस ग्राम सभा में सभी परिवार उपस्थित हों जिनके पास जॉब कार्ड हैं और उन्होंने मनरेगा में काम किय हो। इस ग्राम सभा में ग्राम पंचायत, आने वाले वर्ष के लिए श्रम बजट का आंकलन करेगी।
2. परियोजना अधिकारी अपने जिले के समस्त खण्ड विकास अधिकारियों के साथ सितम्बर माह से पहले बैठक का आयोजन करेंगे, जिसमें अगले वित्तीय वर्ष के लिए परियोजनाओं का शैल्फ तथा श्रम बजट तैयार करने के बारे में विस्तृत विचार विमर्श करेंगे तथा परियोजनाओं का शैल्फ तथा श्रम बजट तैयार करने हेतु प्राप्त दिशानिर्देशों के सम्बन्ध में भी चर्चा करेंगे।
3. विकास खण्ड अधिकारी, सितंबर माह के अन्त तक विकास खण्ड स्तर पर विकास खण्ड के समस्त ग्राम पंचायत प्रधानों, पंचायत सचिवों/सहायकों, ग्राम रोजगार सेवकों तथा कनिष्ठ अभियन्ताओं के साथ बैठक करेंगे तथा उनका परियोजनाओं का शैल्फ तथा श्रम बजट तैयार करने हेतु दिशानिर्देशों के अनुसार उचित मार्गदर्शन करेंगे।
4. 2 अक्टूबर को होनी वाली ग्राम सभा की बैठक में ग्राम सभा द्वारा अगले वित्तीय वर्ष में किये जाने वाले कार्यों का चयन किया जाएगा। क्योंकि महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के अर्न्तगत जल संरक्षण एवं जल संग्रहण के कार्यों को योजना के अर्न्तगत, स्वीकार्य कार्यों की सूची में प्राथमिकता दी गई है, तथा सड़कों इत्यादि के निर्माण को अन्तिम प्राथमिकता के रूप में दर्शाया गया है। अतः यह उचित होगा कि जल संरक्षण एवं जल संग्रहण के कार्यों का चयन प्राथमिकता के आधार पर किया जाए तथा इनके कार्यों को, किये जाने वाले कार्यों की सूची में सबसे ऊपर रखा जाए। यदि ग्राम सभा द्वारा मनरेगा के परियोजनाओं के शैल्फ में कार्यों का चयन पहले ही किया जा चुका है और उन कार्यों की इस वित्तीय वर्ष में निष्पादित होने की सम्भावना न हो, तो उन कार्यों को पुनः अगले वित्तीय वर्ष के परियोजनाओं के शैल्फ तथा श्रम बजट में सम्मिलित किया जा सकता है।
5. अगले वित्तीय वर्ष के लिए परियोजनाओं को शैल्फ तैयार करते समय ग्राम पंचायत में उपलब्ध काम करने वाले परिवारों की संख्या तथा गत वर्षों में अर्जित किये गये कार्य दिवसों को ध्यान में रखा जाए तथा यह सुनिश्चित किया जाए कि शैल्फ में समुचित परियोजनाएं सम्मिलित की जाएं ताकि ग्राम पंचायत में काम करने वाले परिवारों की रोजगार की माँग को पूर्ण कर सके।
6. ग्राम सभा जिन-जिन कार्यों के चयन की अनुशंसा की गई है, उनका प्रस्ताव (Resolution) पारित किया जाएगा तथा कार्यो की सूची ग्राम सभा द्वारा प्रस्तावित प्राथमिकता अनुसार प्रस्ताव में शामिल की जाएगी।
7. पंचायत सचिव/सहायक अक्टूबर माह के तीसरे सत्पाह तक ग्राम सभा द्वारा पारित परियोजनाओं के शैल्फ तथा श्रम बजट प्रस्तावों की प्रतियों को संकलित करके ग्राम पंचायत स्तर की विकास योजना तैयार करेगा तथा खण्ड कार्यक्रम अधिकारी को आवश्यक रूप से प्रेषित करेंगे, क्योंकि प्रस्तावों की प्रतियाँ मनरेगा मैनेजमेंट इनफारमेशन सिस्टम (एम आई एस) में अपलोड की जाएँगी।
8. खण्ड कार्यक्रम अधिकारी द्वारा ग्राम पंचायतों से प्राप्त प्रस्तावों की छानबीन की जायेगी, जिसमें यह देखा जाएगा कि प्रस्तावों में केवल स्वीकार्य परियोजनाओं की ही अनुशंसा की गई है, तथा जो परियोजनाएँ प्रस्तावित की गई है, उनकी संख्या व लागत ग्राम पंचायत में रोजगार चाहने वाले पंजीकृत परिवारों को रोजगार प्रदान करने के लिए पर्याप्त मात्रा में है।
9. खण्ड कार्यक्रम अधिकारी ग्राम पंचायत स्तर के परियोजनाओं के शैल्फ तथा श्रम बजट प्रस्तावों को संकलित करेंगे तथा नवम्बर माह के तीसरे सप्ताह तक इन्हें पंचायत समिति के अनुमोदनार्थ प्रस्तुत करेंगे।
10. पंचायत समिति 15 दिन के अन्दर-अन्दर परियोजनाओं के शैल्फ तथा श्रम बजट प्रस्तावों को स्वीकृति प्रदान करेगी, तथा ग्राम पंचायत द्वारा प्राथमिकताएं दर्शाई गई हैं, उनमें कोई भी परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
11. खण्ड कार्यक्रम अधिकारी दिसम्बर माह के प्रथम सप्ताह तक खण्ड स्तरीय परियोजनाओं के शैल्फ तथा श्रम बजट जिला कार्यक्रम समन्वयक (मनरेगा) को प्रेषित करेंगे।
12. जिला कार्यक्रम समन्वय (मनरेगा) खण्ड स्तरीय परियोजनाओं के शैल्फ तथा श्रम बजट की छानबीन करेंगे, जिसमें यह देखा जाएगा कि प्रस्तावों में केवल स्वीकार्य परियोजनाओं की ही अनुशंसा की गई है तथा जो परियोजनाएँ प्रस्तावित की गई है, उनकी संख्या व लागत रोजगार चाहने वाले पंजीकृत परिवारों को रोजगार प्रदान करने के लिए पर्याप्त मात्रा में हैं।
13. जिला कार्यक्रम समन्वयक (मनरेगा) अन्य विभागों से प्राप्त परियोजनाओं के शैल्फ तथा श्रम बजट की भी छानबीन करेंगे। 14. दिसम्बर के तीसरे सप्ताह तक जिला कार्यक्रम समन्वयक (मनरेगा) खण्ड स्तरीय परियोजनाओं के शैल्फ तथा बजट तथा अन्य विभागों से प्राप्त परियोजनाओं के शैल्फ तथा श्रम बजट जिला परिषद को अनुमोदनार्थ प्रस्तुत करेंगे। जिला परिषद 31 दिसम्बर तक परियोजनाओं के शैल्फ तथा श्रम बजट स्वीकृति प्रदान करेगी।
15. यदि किसी स्तर पर (पंचायत समिति तथा जिला परिषद) उपरोक्त निर्धारित समय अवधि भीतर परियोजनाओं के शैल्फ तथा श्रम बजट को स्वीकृति प्रदान नहीं की जाती है, तो इन्हें स्वीकृत ही माना जाएगा।
16. जिला परिषद द्वारा परियोजनाओं के शैल्फ तथा श्रम बजट को स्वीकृति प्रदान करने के उपरान्त श्रम बजट से सम्बन्धित सभी आँकड़ों तथा दस्तावेजों (ग्राम पंचायत के प्रस्ताव तथा चैक लिस्ट इत्यादि) को श्रम बजट मैनेजमेंट इन्फॉरमेशन सिस्टम (एमआईएस) में अपलोड किया जाएगा तथा यह कार्य 31 जनवरी तक पूर्ण किया जाएगा।
17. श्रम बजट परियोजनाएँ स्वीकृत की गई हैं, उन सभी परियोजनाओं के तकनीकी प्राक्कलन, माह फरवरी तक तैयार किये जाएँगे।
18. जिला कार्यक्रम समन्वयक (मनरेगा) श्रम बजट में स्वीकृत परियोजनाओं जिनका प्राक्कलन तकनीकी रूप से स्वीकृत हो गये हैं, उन सभी प्राक्कलनों की प्रशासनिक स्वीकृति प्रदान करेंगे।
19. खण्ड कार्यक्रम अधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि कोई भी परियोजना प्राक्कलन की तकनीकी व प्रशासनिक स्वीकृति के बिना आरम्भ न की जाए।

मनरेगा निधि हेतु बैंक खाता खोलना


प्रत्येक ग्राम पंचायत के द्वारा मनरेगा का क्रियान्वयन के लिए अलग से बैंक में खाता खोलना चाहिए। इस खाते को संयुक्त रूप से ग्राम पंचायत प्रधान और पंचायत सचिव/ सहायक द्वारा संचालित किया जाएगा। मनरेगा के लिए उपलब्ध करवाई गई धनराशि का किसी भी परिस्थिति में अन्य कार्यों के लिए उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। ग्राम पंचायत केवल उन्हीं कामों पर धन को खर्च करेगी, जिन कार्याें को मनरेगा के तहत पारित किया गया हो। ग्राम पंचायत प्रधान और पंचायत सचिव/सहायक यह सुनिश्चित करेंगे, कि मनरेगा खातों से वही धन निकाला जाएगा, जो वैधानिक उद्देश्यों की पूर्ति करता हो। धन के दुरूपयोग को अवैध माना जाएगा और उस पर कानूनी कार्यवाही की जाएगी।

ग्राम पंचायत द्वारा जब 60 प्रतिशत धन का उपयोग कर लिया जाएगा तब वह खण्ड कार्यक्रम अधिकारी अथवा जिला कार्यक्रम समन्वयक को अतिरिक्त धन के लिए आवेदन करेगी। नियोजन की सम्पूर्ण प्रक्रिया को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है।

कार्यों तथा मस्टर रोल को विशष्टि संख्या प्रदान तथा कार्याें की सार्वजनिक जाँच।
1. सभी कामों को विशिष्ट संख्या दी जानी चाहिए। सभी कामों को उन्हीं श्रमिकों द्वारा करवाया जाना चाहिए। जिन्हें जॉब कार्ड जारी किये गये हैं और जिन्होंने काम की माँग की हो।
2. कार्यस्थल के लिए जारी किये मस्टर रोल पर भी विशिष्ट संख्या अंकित होनी चाहिए और वह कार्यक्रम अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित होनी चाहिए।
3. कोई भी मस्टर रोल, जिस पर जारीकर्ता अधिकारी के हस्ताक्षर एवं विशिष्ट संख्या नहीं होगी, वह अवैध माना जाएगा। इस प्रकार का मस्टर रोल कार्यक्रम स्थल पर नहीं रखा जाना चाहिए।
4. सभी श्रमिकों को कार्यस्थल पर ही मस्टर रोल पर नाम और मजदूरी के सामने हस्ताक्षर करने चाहिए। सभी मस्टर रोलों की विस्तृत जानकारी रजिस्टर में लिखी जानी चाहिए।
5. जब कार्य प्रगति पर हो तब उस कार्य में लगे श्रमिकों को अपने ही बीच से कम से कम पाँच कामगारों का एक समूह बनाना चाहिए, जो कम से कम सप्ताह में एक बार सभी बिलों और रसीदों की जाँच तथा उनको सत्यापित कर सकें। इस समूह के सदस्य एक सप्ताह में बदल जाने चाहिए।
6. सार्वजनिक जाँच के लिए सभी कार्यों के आदेश और प्रत्येक कार्य की माप पुस्तिका कार्यस्थल पर उपलब्ध होना चाहिए। कोई भी व्यक्ति मस्टर रोल को, कार्य के सम्पूर्ण काल के दौरान, देख सकता है।
7. जाँच एवं निगरानी समिति सभी कार्यों की जाँच करें और उनकी मूल्यांकन रिपोर्ट को कार्य रजिस्टर में दर्ज करें। इस रिपोर्ट को सामाजिक अंकेक्षण के समय ग्राम सभा में प्रस्तुत किया जाए।

मजदूरी का भुगतान


महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम के अनुसार हर श्रमिक, जिसने काम किया हो, प्रत्येक दिवस की मजदूरी के आधार पर किए गये काम की पूरी मजदूरी पाने का अधिकार है।

ग्राम पंचायत प्रधान को निम्नलिखित बिन्दुओं को सुनिश्चित करना चाहिए:-

1. मजदूरी का भुगतान काम समाप्त होने के एक सप्ताह के अन्दर और किसी भी स्थिति में एक पखवाड़े के अन्दर कर दिया जाना चाहिए।
2. महिला श्रमिक हो या पुरूष, सभी को लिंग भेद-भाव से परे, समान मजदूरी दी जानी चाहिए।
3. भुगतान का आधार काम का माप और प्रमाणित/समक्ष तकनीकी व्यक्ति के सतत निरीक्षण में होना चाहिए।
4. सभी मापों को माप पुस्तिका में दर्ज करना चाहिए और भुगतान के समय विवरणों को पढ़कर सुनाना चाहिए।
5. मजदूरी का भुगतान, बैंक या पोस्ट ऑफिस में खोले गये खातों से ही किया जाना चाहिए।
6. योजना में काम करने वाले सभी श्रमिकों का बैंक या डाकघर में व्यक्तिगत अथवा संयुक्त खाता होना चाहिए।
7. अदायगी का विवरण जॉब कार्ड में लिखा जाना चाहिए।

पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व


महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम के अन्तर्गत योजना के सभी पक्षों में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व स्थापित करने पर अत्याधिक अधिमान दिया गया है।

ग्राम पंचायातों को यह समझना होगा, कि अपनी ग्राम पंचायत के क्षेत्र में रहने वाले श्रमिकों के प्रति पारदर्शी होना उनकी जिम्मेदारी है। इससे ही, वे मनरेगा के क्रियान्वयन में श्रेष्ठता को प्राप्त कर सकेंगे।

पारदर्शिता रखने के लिए सूचना को स्वैच्छिक रूप से जारी करना चाहिए जिस हेतु निम्न पग उठाने होंगें-

1. कार्य स्थल पर नागरिक सूचना पट्ट लगाना चाहिए।
2. प्रत्येक कार्य दिवस की संध्या पर, सभी श्रमिकों के समक्ष मस्टर रोलों को पढ़कर सुनाया जाना चाहिए जिसमें उपस्थिति, कार्य तथा मजदूरी भुगतान का विवरण हो।
3. इसी प्रकार कार्यों के माप को भी माप पुस्तिका से पढ़कर सुनाना चाहिए।
4. ग्राम पंचायत और विकास खण्ड स्तर पर सूचनाओं को सूचना पट्ट पर दर्शाया जाना चाहिए।
5. इन सूचना पट्टों पर कार्यों के आवंटन, प्राप्त राशि और व्यय की गई राशि तथा कार्यों की सूची अंकित की जानी चाहिए।
6. ग्राम सभा द्वारा सामाजिक अंकेक्षण।

सामाजिक अंकेक्षण


सामाजिक अंकेक्षण एक विधि है जिसका उद्देश्य सामाजिक प्रगति को समझना, मापना, जाँचना और रिपोर्ट कार्यवाही करके संस्था की प्रगति के लिए प्रयासरत रहना। सामाजिक अंकेक्षण का प्रभाव शासन में शक्तिशाली एवं शक्ति विहीन लोगों के परस्पर सम्बन्धों को मधुर एवं प्रगाढ़ बनाने के लिए उपयुक्त विधि है। सामाजिक अंकेक्षण का उद्देश्य निरन्तर समाजिक दायित्व आधार पर संस्थाओं एवं समुदायों की सभ्यता में सामाजिक अंकेक्षण को अंतः स्थापित (सन्निहित) करना है, की प्रक्रिया है।

-विभिन्न दृष्टिकोणों में सभी हिस्सेदारों द्वारा विचार एवं मूल्यों को बाँटने तथा उस पर जानकारी देने की प्रक्रिया है।

मनरेगा एवं सामाजिक अंकेक्षण (Social Audit)


मनरेगामहात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम ग्रामीण क्षेत्रों में अकुशल रोजगार उपलब्ध करवाने की दिशा में एक कारगर पहल है। यह पहला कार्यक्रम है जिसमें सामाजिक अंकेक्षण का कानूनी प्रावधान जिम्मेदारी निर्धारण तथा पारदर्शिता की परिदृष्टि से किया गया है। सामाजिक अंकेक्षण की जिम्मेवारी ग्राम सभा को सौंपी गई है, जो कि एक समिति के माध्यम से इस कार्य को अंजाम देती है।

सामाजिक अंकेक्षण (सोशल आडिट) का मनरेगा के अंर्तगत क्या प्रावधान है ?
महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है कि स्कीम के कार्यान्वयन में ग्राम पंचायत में करवाये जा रहे सभी कार्यों का सोशल आडिट ग्राम सभा के द्वारा किया जायेगा।

ग्राम सभा द्वारा ग्राम पंचायत क्षेत्र में होने वाले विकास कार्यों की गुणवत्ता एवं उनपर हुए खर्चे की जाँच-परख करने एवं सुझाव देने की प्रक्रिया को सोशल आडिट या सामाजिक अंकेक्षण कहते हैं। ग्राम सभा द्वारा ग्राम पंचायत में चल रहे विकास के मुद्दों एवं योजनाओं को समझने, योजना के नियोजन से लेकर काम के पूरा होने तक की जाँच, गुणवत्ता, उनपर हुए खर्चे की स्थानीय समुदाय द्वारा जाँच-परख करना सोशल आडिट है।

सोशल आडिट एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें स्कीम को लागू करते समय समक्ष आई कमियों से सीख लेकर भविष्य में स्कीम को प्रभावी रूप से लागू किया जाए।

सोशल आडिट से बनी समक्ष और सीख के आधार पर कार्यक्रम में विकास से सम्बन्धित सभी पहलुओं को दिशा देने को सोशल आडिट कहते हैं।

सोशल आडिट के क्या उद्देश्य हैं?


लोगों की भागीदारी बढ़ाना, एवं समुदाय को अपने अधिकारों के उपयोग के प्रति जागरूक करना।

बहुआयामी बनाना।
1. सामाजिक अंकेक्षण प्रक्रिया को लगातार जारी रखना।
2. सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं में लोगों के प्रति जवाबदेही बढ़ाना।
3. सत्यापन एवं आँकड़ों को लोगों के लिए सूचना पट्ट पर लगाना।
4. कार्यक्रमों का प्रभावी नियोजन, क्रियान्वयन एवं मूल्यांकन करना।
5. योजना के अंतर्गत कार्यों में निर्णय लेने एवं क्रियान्वयन में पारदर्शिता एवं सहभागिता को सुनिश्चित करना।

कार्यों में हो रही अनियमितताओं और कमियों को दूर करना।

सोशल आडिट क्यों जरूरी है?


i. पारदर्शिता को बरकरार रखना।
ii. जवाबदेही को बढ़ावा देना।
iii. लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना।
iv. समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित बनाना।
v. कुछ अन्य कारण

1. ग्राम सभा के सदस्यों को विकास कार्यों से सम्बन्धित जानकारी मिलती है, जिससे ग्राम पंचायत में पारदर्शिता आती है।

2. गाँव के लोग गाँव के विकास के काम करने वाली पंचायती राज संस्थाओं के सदस्यों से प्रश्न कर सकते हैं, जिससे जवाबदेही बढ़ती है।

3. सोशल आडिट में हितभागियों विशेषकर गरीब एवं हाशिये पर पड़े हुए लोगों की आवाज एवं राय को सर्वोच्च मान्यता दी जाती है।

4. विकास कार्यों में गाँव के लोगों की भागीदारी को बढ़ावा मिलता है।

5. यदि कार्यों में कहीं गड़बड़ी या कमियाँ पाई जाती हैं या किसी को कोई शिकायत है तो उसका निपटारा होता है।

6. ग्राम पंचायत अन्य कार्यकारी संस्थाएं भी ग्राम सभा के सामने अपनी समस्याओं को रख सकती है, एवं सरकारी अधिकारियों और लोगों को सहयोग कर सकती है।

7. विकास के कार्यों के नियोजन, गुणवत्ता खर्चे आदि पहलुओं पर चर्चा एवं महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए जाते हैं।

सोशल आडिट के प्रमुख हितधारक कौन है:-


प्राथमिक हितधारक (Primary Stakeholders)
i. संस्थान/विभाग/लागू करने वाली एजेंसी
ii. प्रमुख पदाधिकारी
iii. पंचायत प्रतिनिधि-प्रधान, उप-प्रधान एवं वार्ड के सदस्य
iv. फील्ड अधिकारी
v. समुदाय
vi. ग्राम सभा सदस्य, अल्पसंख्यक, दलित, मजदूर इत्यादि।
vii. अन्य समूह- महिलाएँ, विधवाएँ, अक्षम/विकलांग तथा वरिष्ठ नागरिक।
viii. समुदाय आधारित संगठन- महिला मंडल एवं युवक मंडल।
ix. अन्य लाभार्थी समूह

अन्य हितधारक (Secondary Stakeholders)


i. विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत सरकारी अभिकरण।
ii. विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत सामाजिक संगठन।
iii. विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत शैक्षणिक एवं धार्मिक संस्थान।

सामाजिक अंकेक्षण की प्रक्रिया में विभिन्न हितभागियों की भूमिका:-


1. पंचायत प्रतिनिधि:- प्रधान, उपप्रधान एवं वार्ड के सदस्य- सामाजिक अंकेक्षण प्रक्रिया के दौरान सामाजिक अंकेक्षण समिति के सदस्यों को पूर्ण सहयोग प्रदान करना।

2. पंचायत में कार्यरत अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा सामाजिक अंकेक्षण समिति के सदस्यों को पूर्ण सहयोग करना।

3. समुदाय द्वारा सामाजिक अंकेक्षण समिति के सदस्यों को सही जानकारी देना।

4. ग्राम सभा में समुदाय के सभी हितभागियों - महिलाएँ, विधवाएँ, अक्षम/विकलांग तथा वरिष्ठ नागरिक, समुदाय आधारित संगठन महिला मंडल एवं युवक मंडल एवं अन्य लाभार्थी समूह विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत सरकारी अभीकरण, विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत शैक्षणिक एवं धार्मिक संस्थान के लोगों द्वारा हाजिरी देना।

सामाजिक अंकेक्षण की प्रक्रिया कब करनी चाहिए:-


सामाजिक अंकेक्षण जनवरी तथा जुलाई माह में किया जाएगा, अतः जनवरी महीने में होने वाले सामाजिक अंकेक्षण हेतु सामाजिक अंकेक्षण समिति का गठन ग्रामसभा द्वारा अक्टूबर में किया जाएगा। जुलाई महीने में होने वाले सामाजिक अंकेक्षण हेतु सामाजिक अंकेक्षण समिति का गठन ग्रामसभा द्वारा जनवरी में किया जाएगा।

कौन करेगा सामाजिक अंकेक्षण:-


सामाजिक अंकेक्षण की जिम्मेवारी ग्राम सभा को सौंपी गR है, जो कि समिति के माध्यम से इस कार्य को अंजाम देती है।

कैसे बनाई जाएगी सामाजिक अंकेक्षण समिति:-


प्रत्येक सामाजिक अंकेक्षण के लिए
1. एक सामाजिक अंकेक्षण समिति (सोशल आडिट कमेटी) का गठन किया जाएगा।
2. सामाजिक अंकेक्षण जनवरी तथा जुलाई माह में किया जाएगा अतः जनवरी महीने में होने वाले सामाजिक अंकेक्षण हेतु सामाजिक अंकेक्षण समिति का गठन ग्राम सभा द्वारा अक्टूबर में किया जाएगा तथा जुलाई में होने वाले सामाजिक अंकेक्षण हेतु सामाजिक अंकेक्षण समिति का गठन ग्राम सभा द्वारा जनवरी माह में किया जाएगा।

2. ग्राम सभा हर सामाजिक अंकेक्षण के लिए अलग अंकेक्षण समिति का गठन करेगी।

3. नई गठित की जानेवाली अंकेक्षण समिति में गत अंकेक्षण समिति के 25 प्रतिशत से अधिक सदस्य पुनः नई अंकेक्षण समिति में शामिल नहीं किए जाएँगे।

4. सामाजिक अंकेक्षण समिति में केवल ऐसे कामगार शामिल होंगे जिन्होंने उस ग्राम पंचायत क्षेत्र में मनरेगा के अन्तर्गत कार्य किया हो या कर रहे हों।

5. सामाजिक अंकेक्षण समिति में 6 से 9 सदस्य होने चाहिए जिनमें कम से कम 50 प्रतिशत महिला सदस्य होना आवश्यक है।

6. सामाजिक अंकेक्षण समिति के सदस्य अपने में से एक सदस्य को आम सहमति से सामाजिक अंकेक्षण समिति का अध्यक्ष नियुक्त करेंगे।

7. सामाजिक अंकेक्षण समिति के सदस्यों का चयन करते समय ग्राम सभा इस बात का ध्यान रखे कि अंकेक्षण समिति के सदस्य कम से कम इतने शिक्षित हों कि वह सामाजिक अंकेक्षण करने हेतु सक्षम हों।

8. अंकेक्षण समिति के प्रत्येक सदस्य को मनरेगा अंकेक्षण की प्रक्रिया पूर्ण करने हेतु 150 रु. यह मानदेया दिया जाएगा।

9. यह मानदेय मनरेगा अंकेक्षण रिपोर्ट को ग्राम सभा में प्रस्तुत करने के पश्चात ही दिया जाएगा।

10. यह मानदेय पंचायत द्वारा ग्राम सभा की बैठक में सम्बन्धित सदस्यों को दिया जाएगा तथा इस मानदेय की प्रतिपूर्ति सम्बन्धित विकास खण्ड से मनरेगा प्रशासनिक व्यय में से की जाएगी।

सामाजिक अंकेक्षण के लिए अत्यावश्यक तथ्य


-जाति, धर्म, रंग, लिंग, धर्म, सम्प्रदाय से भेदभाव मुक्त वातावरण बनाना।
- इस प्रक्रिया के दौरान कोई भी अभद्र भाषा एवं शारीरिक हिंसा न करना।
- स्कीम के सभी पहलुओं को सामाजिक अंकेक्षण की प्रक्रिया के दौरान सम्मिलित करना।
- सरकार / प्रशासन / सामाजिक अंकेक्षण समिति के सदस्यों की भूमिका को साफ तौर पर सुनिश्चित करना।
- कोई भी सरकारी / राजनैतिक दबाव किसी भी रूप में सामाजिक अंकेक्षण पर न पड़ने देना।
- दस्तावेजों की जाँच के आधार पर पाए गए परिणाम एवं निष्कर्ष को रिपोर्ट के साथ ग्राम सभा में सभी हिस्सेदारों के समक्ष प्रस्तुत करना।
- किसी को भी सामाजिक अंकेक्षण के दौरान निर्णय नहीं लेना चाहिए जब तक कि सभी पक्षों की बात न सुन ली जाए।
- हिस्सेदारों के विचारों को निष्पक्ष रूप से स्वीकारना चाहिए।

आँकड़ों एवं अभिलेखों का एकत्रण


- कार्य की योजना
- जॉब कार्ड धारकों की लिस्ट
- स्वीकृत बजट
- तकनीकी स्वीकृति
-तकनीकी अनुमान की प्रति
- (मेजरमेंट बुक) M.B प्रविष्टियों की सही जाँच के लिए।
- बैंक / डाकखाना के अकाउंटस
- मस्टर रोल
- भुगतान विवरण
- बिल एवं वाउचर
-अन्य कोई दस्तावेज जो सामाजिक अंकेक्षण के लिए आवश्यक हो।

सामाजिक अंकेक्षण जन निरीक्षण की एक सतत प्रक्रिया है। सूचना की स्वैच्छिक घोषणा का एक प्रभावकारी माध्यम है। सामाजिक अंकेक्षण द्वारा महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम क्रियान्वयन के सभी चरणों की जाँच की जा सकती है।

सामाजिक अंकेक्षण का मूल उद्देश्य, जनता के प्रति जवाबदेही मनरेगा के क्रियान्वन में सुनिश्चित करना है। अतः ग्राम सभा को ग्राम पंचायत के सभी कार्यों की जाँच करनी चाहिए।

सामाजिक अंकेक्षण के माध्यम से जनता के प्रति उत्तरदायित्व को निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं से समझा जा सकता है-

पारदर्शिता: प्रशासनिक और निर्णयों की प्रक्रिया में पूर्ण पारदर्शिता।

भागीदारी: सभी भागीदारों की निर्णय प्रक्रिया और अनुमादेन में भागीदारी।

चर्चा एवं निर्णय: पूर्व में ही आवश्यकतानुसार निर्णयों को सामूहिक अथवा व्यक्तिगत रूप में सूचित करना।

जवाबदेही: प्रभावित एवं सम्बन्धित व्यक्तियों को चयनित प्रतिनिधि और सरकारी अधिकारियों द्वारा सार्थक कार्रवाई कर उनके प्रश्नों के उत्तर और विवरण देने की जवाबदेही है।

शिकायत निवारण: सामाजिक अंकेक्षण तथा अन्य जन निरीक्षणों से प्राप्त शिकायतों पर लिए गए निर्णयों की जानकारी लोगों को देना।

शिकायत निवारण


महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम में शिकायतों के पंजीकरण और निवारण को विशेष महत्व दिया गया है। प्राप्त शिकायतों को तुरन्त शिकायत रजिस्टर में दर्ज किया जाना चाहिए। ऐसे मुद्दों पर जिनसे कामगारों के अधिकारों का हनन हो रहा हो, शिकायत दर्ज की जा सकती है। ये मुद्दे हैं- जॉब कार्ड जारी करने से मना करना, जॉब कार्डों को सम्बन्धित परिवारों को न देना, रोज़गार आवेदन के पन्द्रह दिनों के अन्दर काम न देना, कम मजदूरी का भुगतान करना, दस्तावेजों का और रजिस्टरों का यथा निर्देशित रख-रखाव न होना, मशीनों का उपयोग और ठेकेदारों से काम करवाना इत्यादि। शिकायतें दर्ज करने का एक माध्यम निःशुल्क टेलीफोन हेल्प लाइन है। ग्रामीण विकास विभाग हिमाचल प्रदेश शिमला में निःशुल्क टेलीफोन हेल्प लाइन है जिसका नम्बर 18001808005 है। सभी शिकायतों को शिकायत दर्ज किये जाने के सात दिनों के अन्दर निपटाया जाना चाहिए। श्रमिकों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए मनरेगा शिकायत निवारण की विशिष्ट विधि का प्रावधान करता है। विकास खण्ड के अंदर मनरेगा के क्रियान्वयन से सम्बन्धित शिकायतों पर कार्यक्रम अधिकारी तुरन्त ध्यान देंगे। वे शिकायत को शिकायत रजिस्टर में दर्ज करेंगे और सात दिनों के अंदर उनका निपटारा सुनिश्चित करेंगे। यदि शिकायतों को निपटारा किसी अन्य अधिकारी द्वारा किया जाना है तो कार्यक्रम अधिकारी, शिकायतों को उस अधिकारी को प्रेषित करेंगे और शिकायतकर्ता को तदानुसार सूचित करेंगे।

1. शिकायतें मौखिक अथवा लिखित रूप में दर्ज की जा सकती है।

2. खण्ड कार्यक्रम अधिकारी और जिला कार्यक्रम समन्वयक के कार्यालयों में महत्त्वपूर्ण स्थानों पर शिकायत पेटी को रखा जाए।

3. शिकायतों को शिकायत रजिस्टर में दर्ज किया जाए और निर्धारित समय में निपटाया जाए।

4. शिकायतकर्ता को कारवाई की लिखित जानकारी दी जाए।

5. शिकायत निवारण का निरीक्षण प्रत्येक माह वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा किया जाए।

6. प्रत्येक माह क्षेत्रीय समाचार पत्रों में शिकायतों का खुलासा किया जाए।

7. प्रत्येक स्तर पर शिकायत निवारण का विस्तृत प्रचार प्रसार किया जाए।

8. शिकायतों की प्राप्ति और निपटारे की मासिक रिपोर्ट ग्राम पंचायत, कार्यक्रम अधिकारी और जिला कार्यक्रम समन्वयक, राज्य और केन्द्रीय सरकार को भेजी जाए तथा मन्त्रालय के पूर्व निर्धारित प्रारूप में ऑनलाईन भी दर्ज की जाए।

9. मनरेगा से सम्बन्धित शिकायतों की छानबीन एवं निपटारे हेतु प्रत्येक जिलास्तर पर लोकपाल नियुक्त किये गये हैं। अतः मनरेगा से सम्बन्धित शिकायतें जिला के मनरेगा लोकपाल को प्रेषित की जा सकती है।

10. ग्राम पंचायत के आदेशों के विरूद्ध कोई अपील खण्ड कार्यक्रम अधिकारी (बी. डी. ओ.) को की जाएगी और वे, जो कार्यक्रम अधिकारी के आदेशों के विरूद्ध हैं। जिला कार्यक्रम समन्वयक (उपायुक्त) को की जाएगी और जो जिला कार्यक्रम समन्वयक के विरूद्ध है, वे राज्य आयुक्त (मनरेगा) निदेशक, ग्रामीण विकास विभाग को की जाएगी।

दस्तावेज एम. आई. एस और मासिक रिपोर्ट


महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम में ग्राम पंचायत ही मुख्य कार्यान्वयन संस्था है, इसलिए उसके स्तर पर ही सभी महत्त्वपूर्ण आँकड़ों को संकलित किया जाना चाहिए। इन्हीं आँकड़ों से राष्ट्रीय स्तर पर ही मनरेगा की प्रगति का आंकलन किया जाता है। इन आँकड़ों में जारी किए गए जॉब कार्डों की संख्या, मस्टर रोलों की सम्पूर्ण जानकारी, पूर्ण कार्यों की सूचना, मजदूरी भुगतान तथा डाकघर एवं बैंक खातों की सूचना होती है। जिन दस्तावेजों को एक ग्राम पंचायत में भरा और सुरक्षित रखा जाना चाहिए वे हैं -

i. पंजीकरण हेतु आवेदन पत्र
ii. जॉब कार्ड
iii. काम का आवेदन
iv. वरिष्ट संख्याओं वाले मस्टर रोल
v. पंजीकरण पंजिका
vi. जॉब कार्ड जारी पंजिका
vii. रोजगार पंजिका
viii. परिसम्पत्ति पंजिका
ix. वित्त सम्बन्धित पंजिका
x. शिकायत पंजिका

ये सभी दस्तावेज महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि इनमें सभी आँकड़े हैं, जो मनरेगा की वेबसाइट पर दर्ज किये जाते हैं।

कम्प्यूटर आधारित सूचना एवं अनुश्रवण प्रणाली (एम.आई.एस.) में अभिलेख से किसी भी ग्राम पंचायत की प्रगति का आंकलन किया जा सकता है। अतः यह दस्तावेज ग्राम पंचायत की तैयारी और उसके द्वारा अधिनियम की पालना के साक्षी होते हैं। इन दस्तावेजों को इसलिए भी सम्भाल कर रखना चाहिए क्योंकि वे किसी भी समय ऑडिट अथवा निरीक्षण टीम को प्रस्तुत करने पड़ सकते हैं। सभी आँकड़ों, जैसे मस्टर रोल वित्त की स्थिति, प्राप्त राशि एवं खर्च की गई राशि, पूर्ण एवं अपूर्ण काम, बैंक तथा पोस्ट ऑफिस से भुगतान की गई मजदूरी, रोजगार सृजन को कम्प्यूटर आधारित सूचना एवं अनुश्रवण प्रणाली (एम.आई.एस.) में दर्ज किया जाना चाहिए। सभी आँकड़ों को विकास खण्ड के कम्प्यूटर केन्द्र तक पहुँचाने की जिम्मेवारी सम्बन्धित ग्राम रोजगार सेवक की होती है।

उत्तरदायित्व विवरणी


नीचे दिए गए विवरण में आँकड़ों का संकलन और उसके लिए जिम्मेवार व्यक्तियों तथा संस्थाओं की जानकारी प्रस्तुत की गई है:-

ग्राम पंचायत = ग्राम पंचायत प्रधान
कार्यक्रम अधिकारी से विशिष्ट संख्या वाले मस्टर रोल और नाप पुस्तिका प्राप्त की जाती है।

कार्यस्थल = वार्ड पंच
मस्टर रोल और माप पुस्तिका को कार्यस्थल पर सम्भालते हैं।

ग्राम = निगरानी एवं सतर्कता समितिः सभी दस्तावेजों की जाँच करती है।

ग्राम पंचायत = ग्राम रोजगार सेवक/पंचायत सचिव/ तकनीकी सहायकसभी दस्तावेजों और पंजियों में आँकड़ों को दर्ज करते हैं। ये आँकड़े मस्टर रोल, माप पुस्तिका तथा अन्य दस्तावेजों से मिलते हैं।

ग्राम रोजगार सेवक: मस्टर रोल और माप पुस्तिका और पंजियों के आँकड़ों को ब्लॉक में जमा करता है/करती है।

ब्लॉक = कार्यक्रम अधिकारी (बी.डी.ओ.) सभी दस्तावेजों और आंकड़ों की जाँच करते हैं। कम्प्यूटर आधारित मासिक प्रगति रिपोर्ट में डालते हैं।

जिला = जिला कार्यक्रम समन्वयक (उपायुक्त) सभी आँकड़ों को सम्मिलित करते हैं। महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम की वेबसाइट पर आँकड़ों को डाला जाता है। आँकड़े जन सामान्य के लिए उपलब्ध होते हैं। राज्य वेबसाइट तथा राष्ट्रीय वेबसाइट का पता निम्न प्रकार से है:-

राज्य वेबसाइट:- www.hprural.nic.in
राष्ट्रीय वेबसाइट:- www.nrega.nic.in

पंचायत स्तर पर दस्तावेजों का सही रख-रखाव


प्रायः देखा गया है कि पंचायत स्तर पर कार्यों से सम्बन्धित दस्तावेजों का सही ढंग से रख-रखाव नहीं किया जाता है, जिसके फलस्वरूप आडिट या निरीक्षण के समय विभिन्न विकासात्मक कार्यों से सम्बन्धित पूर्ण दस्तावेज उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। अतः यह सुनिश्चित किया जाए कि पंचायत सचिव/ पंचायत सहायक द्वारा प्रत्येक कार्य के लिए अलग से दस्तावेजों की व्यवस्था की जाए, जिसमें कम से कम निम्नलिखित दस्तावेज आवश्यक रूप से हों:-

i. कार्य की स्वीकृति
ii. वित्तीय/प्रशासनिक स्वीकृत
iii. तकनीकी स्वीकृत
iv. कार्य के डिजाईन, ड्राईंग तथा प्लान
v. विस्तृत प्राक्कलन
vi. माप
vii. भुगतान किये गये मस्टर रोल
viii. सामग्री तथा अन्य खरीदों से सम्बन्धित बिल बाउचर
ix. कार्य के माप का संक्षिप्त विवरण
x. कार्य के विभिन्न स्तरों पर लिए गये फोटोग्राफ
xi. पूर्ति/पूर्णता प्रमाण पत्र तथा उपयोगिता प्रमाण पत्र इत्यादि

सूचना, शिक्षा एवं संचार


मनरेगा के तहत लोगों के क्या अधिकार हैं, उन्हें इस अधिनियम के बारे में बताने के लिए तथा इस योजना से सम्बन्धित जानकारियों का अधिकाधिक प्रचार प्रसार करना आवश्यक है। अधिनियम के अन्तर्गत पंजीकरण व आवेदन की प्रक्रिया क्या है, मनरेगा के तहत काम करने वाले मजदूरों के अधिकार क्या-क्या हैं, सामाजिक अंकेक्षण, शिकायत निवारण तथा विभिन्न निकायों की भूमिकाओं जैसी महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ स्पष्ट व सरल भाषा में जनमानस तक पहुँचानी चाहिए। मनरेगा का प्रचार-प्रसार दीवार लेखन, विज्ञापन, नुक्कड़नाटक, कलाजत्था, स्वयं सहायता समूह, महिला मण्डल, युवक मण्डल तथा ग्राम सभा इत्यादि के माध्यम से किया जा सकता है।

मनरेगा के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु ध्यान रखने योग्य बातें।
महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम एक कानून है और उसका पालन किया जाना अनिवार्य है, जिस हेतु निम्नलिखित पहलुओं का विशेष ध्यान रखा जाए:-

1. कार्य हेतु मौखिक आवेदनों को अस्वीकृत नहीं करना है।

2. पंजीकरण उन सभी स्थानीय निवासियों का करना है, जो अकुशल श्रम करने के इच्छुक हों। ऐसा न हो कि केवल गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों का पंजीकरण किया गया हो।

3. स्थानीय परन्तु पलायन करने वाले परिवारों का पंजीयन हेतु मना नहीं करना है।

4. जाति, शारीरिक क्षमता तथा लिंग भेद के आधार पर पंजीयन के लिए मना नहीं करना है।

5. पंजीयन हेतु आवेदनों की जाँच में विलम्ब नहीं करना है।

6. परिवार के प्रत्येक व्यक्ति को अलग-अलग जॉब कार्ड जारी नहीं करना है। पंजीकरण हेतु एकल परिवार पात्र है अतः ऐसे एकल परिवार को अलग-अलग जॉब कार्ड जारी किया/किये जा सकते हैं।

7. जॉब कार्ड में अव्यस्कों के नाम दर्ज नहीं करने हैं।

8. अव्यस्कों को काम पर नहीं लगाना है।

9. जॉब कार्ड के लिए कोई भी शुल्क नहीं लेना है।

10. लाभार्थियों से जॉब कार्ड पर लगने वाली फोटो का शुल्क भी नहीं लेना है।

11. जॉब कार्ड, जॉब कार्ड धारक की अभिरक्षा में रहेंगे।

12. ठेकेदार के द्वारा काम नहीं करवाना है।

13. रोजगार के लिए आवेदन पत्र को लेने से मना नहीं करना है।

14. ऐसी मशीनों का उपयोग नहीं करना है, जिनसे श्रमिकों की उपेक्षा हो।

15. चालीस प्रतिशत से अधिक सामग्री पर व्यय नहीं करना है। जिसमें अर्धकुशल एवं कुशल श्रमिकों की मजदूरी भी शामिल है।

16. अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/ बीपीएल परिवारों/लघु तथा सीमान्त किसानों की निजी भूमि पर पौध रोपण, बागवानी बागान, लघु सिंचाई कार्यों तथा भूमि विकास एवं कुशल श्रमिकों की मजदूरी भी शामिल है 40 प्रतिशत से अधिक होता है तो अतिरिक्त व्यय सम्बन्धित लाभार्थी द्वारा वहन किया जाएगा।

17. मनरेगा के अनर्तगत केवल स्वीकार्य कार्य ही किये जाऐंगे।

18. जाली नामों को मस्टर- रोलों में दर्ज नहीं करना है।

19. कच्चे मस्टर - रोलों में दर्ज नहीं करना है।

20. कोई भी कार्य तकनीकी व प्रशासनिक स्वीकृति के बिना आरम्भ न किया जाए।

लोक विज्ञान संस्थान


लोक विज्ञान संस्थान (पी.एस.आई.) एक गैर-सरकारी जनहित एवं विकास संस्थान है। आम लोगों को तकनीकी सेवाएं उपलब्ध कराना इसका मुख्य लक्ष्य है।

(पी.एस.आई.) जल संसाधन प्रबन्धन, नदी संरक्षण, आपदा उपरान्त पुनः निर्माण एवं पर्यावरणीय गुणवत्ता में सक्रिय अनुसंधान एवं तकनीकी कार्यक्रम संचालित करता है। संस्थान के पास सक्षम इंजिनियर, शोध वैज्ञानिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता उपलब्ध है। पी.एस.आई. में सुसज्जित प्रयोगशाला है जोकि सरकारी अनुसंधान संस्थानों और देश विदेश में फैले अनेक गैरसरकारी संगठनों के सम्पर्क में है।

(पी.एस.आई.) में सहभागी जलागम विकास केन्द्र की स्थापना कपार्ट, नई दिल्ली के सहयोग से 1996 में हुई। केन्द्र द्वारा उत्तर भारत में जल, जंगल, जमीन, कृषि एवं चारा विकास के प्रबन्धन के लिए जलागम विकास की अनेक परियोजनाएँ क्रियाविन्वत की गईं। इनके अतिरिक्त, भारत सरकार द्वारा प्रायोजित अनेक लघु जलागम क्षेत्रों के लिए विकास योजनाओं की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार की गई, तथा जलागम विकास की परियोजनाओं में संस्थान द्वारा निगरानी एवं मूल्यांकन का कार्य भी सम्पन्न किया गया। पी.एस.आई जलागम प्रबंधन के लिए विभिन्न स्तरों के हितधारकों के लिए, जैसे सरकारी कर्मचारी, अधिकारीगणों, त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली के प्रतिनिधियों, ग्राम स्तर की संस्थाओं के प्रतिनिधियों जैसे उपभोक्ता समूह, स्वयं सहायता समूह, ग्राम सभा सदस्यों के लिए कार्यशालाओं एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों का भी आयोजन करता है।

लोक विज्ञान संस्थान (पी.एस.आई.) का यह प्रयास रहता है कि शोध कार्यों के समापन पर उसके निष्कर्ष, ग्रामीण समुदायों के विभिन्न हितधारकों को सरल और आकर्षक ढँग से उपलब्ध कराया जाये। अतः इस पुस्तिका के माध्यम से एकीकृत जलागम प्रबंधन कार्यक्रम के तहत सहभागी जलागम प्रबंधन के विषयों को सरलता से प्रस्तुत करने का प्रयास है।