जलमेव जीवनम

Submitted by Hindi on Mon, 03/07/2016 - 15:38
Source
जल चेतना तकनीकी पत्रिका, जुलाई 2014

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बहुत हो चुकी हैं चर्चाएं, राजा की और रानी की।
एक नई कविता गाएं हम, इस धरती पर पानी की ।।

अंतरिक्ष के कोटि ग्रहों में, धरती ग्रह अलबेला है।
यहाँ देवता वरूण रूप धर, अविरल जल का खेला है ।।

अनुपम ग्रह धरती है यहाँ पँच तत्व का मेला है ।
जीवन मरण जहाँ दोनों हैं, ऐसा केन्द्र अकेला है ।।

पर हम समझ नहीं पाए, जाने क्यों मनमानी की ?
एक नई कविता गाएँ हम, इस धरती पर पानी की ।।

गंगा देवी नदी रूप धर, ताप मिटाती लोगों की ।
यही बदलती है यमुना में, प्यास बुझाती लोगों की ।।

सती नर्मदा नदी नर्मदा, बनकर हरीतिमा लायी ।
अनुसुइया ने मृत्युलोक के, हित में धारा प्रकटायी ।।

सतयुग त्रेता में भी नर ने, जल की महिमा जानी थी ।
एक नई कविता हम गाएँ, इस धरती पर पानी की ।।

लेकिन यह कलयुग का मानव, अंधा होता चला गया ।
जीवन के पर्याय नीर को, कदम–कदम पर छला गया ।।

कारखाना नदिया किनारे, जान बूझकर लगा दिया ।
हाय आदमी! तूने पानी, मिला गँदगी जहर किया ।।

दूषित कुल जलतंत्र बनाया, तस्वीर हुई गंदगानी की ।
एक नई कविता गाएँ हम, इस धरती पर पानी की ।।

दूषित रासायनिक तत्व से, जल की निर्मलता हर ली ।
बड़े गर्व से कहते हैं हम, प्रगति खूब हमने कर ली ।।

गिराते हैं मल–मूत्र के नाले, नदियों के पावन जल में ।
यह कैसी मानवी सभ्यता, स्वयं जा फंसी दलदल में ।।

कोई भी कानूनी बंदिश, लगी नहीं राजधानी की।
एक नई कविता गाएं हम, इस धरती पर पानी की ।।

भाग तिहाई स्थल का है, शेष भाग जल ही का है ।
पर वह सब का सब खारा है, प्रश्न यही हलचल का है ।।

पेय नीर बर्बाद कर रहे, यूं ही होड़ा–होड़ी में ।
पर कोई योजना न आई, किंचित् बुद्धि निगोड़ी में ।।

निज–सुधार की बात उठी तो, हमने आनाकानी की ।
एक नई कविता गाएँ हम, इस धरती पर पानी की ।।

बिन जल के कल कैसा होगा, आने वाली पीढ़ी का ।
धन्यवाद वें सभी देंगे, जाने वाली पीढी का।।

भागीरथ की चर्चा करते, लाखों सुमन चढ़ाएंगे ।
और हमारी करनी पर, सिर धुन–धुन कर पछताएंगे ।।

आगामी उस जन–जीवन को, ढूंढे राह सुहानी भी ।
एक नई कविता गाएँ हम, इस धरती पर पानी की ।।

जल घटता आबादी बढ़ती, योग बड़ा दुखदायी है ।
भरती उच्छवास धरती मां, नरता समझ न पायी है ।।

जागो–जागो धरावासियों! बोल रहा है नभ–मंडल ।
आने वाली है विभीषिका, कल को संचित कर लो जल ।।

जल बिनु यात्रा शून्य बनेगी, ज्ञानी की अज्ञानी की ।
एक नई कविता गाएँ हम, इस धरती पर पानी की ।।

सम्पर्क
श्री नंदलाल धाकरे ‘मधुर, ग्राम/पो– खाण्डा, पश्चिम चौंक, जनपद- आगरा–283 201, उ. प्र., मो– 9639867373