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राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, चतुर्थ राष्ट्रीय जल संगोष्ठी, 16-17 दिसम्बर 2011

प्रस्तुत आलेख में भी जलवायु परिवर्तन के कारण मानसूनी वर्षा की कमी से अगरतला शहर के भूजल पर पड़ने वाले प्रभाव की विवेचना की कोशिश की गयी है।
अगरतला शहर को उत्तरपूर्वी भारत में स्थित त्रिपुरा राज्य की राजधानी के रूप में जाना जाता है। इस शहर का अपना ऐतिहासिक तथा धार्मिक महत्व तो है ही, वर्तमान में यह एक समृद्ध व्यवसायिक नगरी के रूप में भी विस्तृत होता जा रहा है। बंग्लादेश के साथ अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगे होने के कारण तथा भारतीय रेल मानचित्र में आने के बाद इस शहर का महत्व उत्तरपूर्वी भारत के अन्य शहरों के मुकाबले ज्यादा ही बढ़ गया है। एक आश्चर्यजनक तथ्य अगरतला के बारे में यह भी है कि इस शहर का जनसंख्या घनत्व विश्व के कुछ सर्वाधिक विकसित माने जाने वाले शहरों से भी ज्यादा है। अगरतला शहर की भौगोलिक संरचना ऐसी है कि शहर के दक्षिणी भाग में बहने वाली हावड़ा नदी के अलावा अन्य कोई नदी स्रोत नहीं है। हालांकि उत्तरी दिशा में कटकल नदी का बहाव क्षेत्र है लेकिन इसका अस्तित्व गंदे नाले वाले पानी से ज्यादा नहीं कहा जा सकता है। हावड़ा नदी भी केवल मानसून अवधि तक ही जल से परिपूर्ण रहती है और मानसून के बाद यह भी सूख जाती है।
वर्तमान में संपूर्ण अगरतला शहर के निवासियों को अपने दैनिक उपयोग तथा पीने के पानी के लिए पूर्णतः भूजल पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है। इसके फलस्वरूप दिनों-दिन हैंडपम्पों तथा ट्यूबवेलों की संख्या में बेतहासा वृद्धि होती जा रही है। जिसका दबाव उपलब्ध भूजल संपदा पर साफ-साफ देखा जा सकता है। 2001 में किए गए सर्वेक्षण में पाया गया था कि भूजल स्तर 18 से 72 फीट तक था वहीं 2011 के सर्वेक्षण में पाया गया कि भूजल स्तर 30 से 120 फीट तक नीचे गिर गया है। अगरतला शहर की एक खासियत और है कि यहां यत्र-तत्र छोटे-बड़े ताल तलैया (लगभग 97,000,00 Sq. ft. में, स्रोत : ASPCB) बड़ी संख्या में स्थित हैं जो कि भूजल के रिचार्ज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहे हैं। इन ताल-तलैया में लगभग 51% की हिस्सेदारी निजी मालिकों के कब्जे में है और 49% सरकारी अधिपत्य में है।
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