एक समय था जब जलवायु परिवर्तन की बात यदा-कदा ही सुनने को मिलती थी, लेकिन अब जलवायु परिवर्तन लोगों के लिए कोई नया शब्द नहीं है। इसके प्रभावों से हर वर्ग और लगभग हर आयु का व्यक्ति भलिभांति वाकिफ है। विश्व के हर देश में जलवायु परिवर्तन का असर बाढ़, जंगल की आग, चक्रवात, तूफान, सुनामी, भूकंप, सूखा, अधिक और बेमौसम बर्फबारी व बारिश आदि के रूप में बड़े पैमाने पर दिख भी रहा है। जिसमें खरबों रुपयों की संपत्ति तबाह हो जाती है। हजारों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है, जबकि लाखों लोग बेघर हो जाते हैं। पर्यावरण चक्र का हिस्सा रहने वाले जीव-जंतुओं की भी बड़े पैमाने पर मौत होती है, लेकिन अब जलवायु परिवर्तन का असर पर्यटन पर भी पड़ सकता है, जिससे पर्यटन उद्योग (टूरिज़्म इंडस्ट्री) से विश्व भर में जुड़े 31.9 करोड़ लोगों का भी रोजगार भी प्रभावित होगा।
हाल के कुछ वर्षों में खाली समय मिलते ही लोग घूमने में काफी रूचि लेने लगे हैं। नए नए पर्यटन स्थलों विशेषकर प्रकृति की गोद में पहाड़ी वादियों में घूमना लोगों को खूब भाता है। गोवा जैसे समुद्री बीच पर मानो पर्यटकों का दिल और जम्मू कश्मीर, लद्दाख, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, केरल, मेघालय मन बसता हो। तो वहीं स्विट्जरलैंड, मालदीव, वियतनाम, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रिया आदि देशों में घूमकर पर्यटक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। इसका एक कारण दूरस्थ पहाड़ी इलाकों को सड़क से जोड़ना भी है और विमानन सेवाओं का लोगों तक पहुंचना भी। जिससे साल दल साल राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय पर्यटकों की संख्या में भारी इजाफा हो रहा है। पर्यटन से संबंधी नवीनतम कोर्स काॅलेज और विश्वविद्यालय में शुरू किए जाने लगे हैं। आॅनलाइन टूर एंड ट्रेवल साइट्स ने पर्यटन के क्षेत्र को एक नया आयाम दे दिया है। जिससे पर्यटन के क्षेत्र में रोजगार के काफी अवसर बढ़े हैं।
वर्ल्ड ट्रेवल एंड टूरिज्म काउंसिल द्वारा जारी 2019 की रिपोर्ट के अनुसार पर्यटन क्षेत्र विश्व की 10 प्रतिशत आबादी को रोजगार प्रदान करता है, यानी करीब विश्व के करीब 31.9 करोड़ लोगों का रोजगार टूरिज़्म इंडस्ट्री पर निर्भर करता है। टूरिज़्म इंडस्ट्री वैश्विक अर्थव्यवस्था में 10.4 प्रतिशत यानी 880000 करोड़ रुपये का योगदान करती है, लेकिन जलवायु परिवर्तन से पर्यटन स्थलों के साथ ही इससे जुड़ा कारोबार करने वाले 31.9 करोड़ लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट गहरा सकता है। इस बात की पुष्टि अंतर्राष्ट्रीय जर्नल एनल्स आॅफ टूरिज़्म में छपे एक अध्ययन में की गई है।
प्रोफेसर स्काॅट ने लिनियस विश्वविद्यालय, स्वीडन के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर पर्यटन सेक्टर के लिए क्लाइमेट चेंज वल्नेरेबिलिटी इंडेक्स बनाया है, जो विश्व के 181 देशों में पर्यटन पर पड़ने वाले जलवायु परिवर्तन के खतरे को बतलाता है। इस अध्ययन को अंतर्राष्ट्रीय जर्नल एनल्स ऑफ टूरिज्म रिसर्च में भी प्रकाशित किया गया है। इंडेक्स में दर्शाया गया है कि जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा खतरा दक्षिण एशिया, अफ्रीका, मिडिल ईस्ट, कैरिबियन, हिंद और प्रशांत महासागार के छोटे और विकासशील देशों के पर्यटन व्यावाय पर पड़ेगा। हालाकि न्यूजीलैंड, कनाडा, उत्तरी और पश्चिमी यूरोप तथा मध्य एश्यिा पर अपेक्षाकृत कम प्रभाव पड़ेगा। जलवायु परिवर्तन विशेषकर उन देशों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाएगा जो चारो ओर से समुद्र से घिरे हुए हैं और जिनकी अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से पर्यटन उद्योग पर आधारित है।
दरअसल विश्व में कई देश ऐसे हैं, जहां जीवन का आधार ही पर्यटन है। देश की अर्थव्यवस्था से लेकर लोगों के रोजगार तक या यूं कहें कि लोगों का जीवन-यापन पूरी तरह से पर्यटन पर ही निर्भर है। इसलिए जलवायु परिवर्तन से नुकसान होने से इन देशों में न केवल रोजगार और अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी, बल्कि इन देशों की अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। जिस कारण हर नागरिक के अपने साथ ही पृथ्वी का अस्तित्व बचाने के लिए पर्यावरण के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना अनिवार्य हो गया है।
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