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जल चेतना तकनीकी पत्रिका, जुलाई 2012

पृथ्वी पर जल की विभिन्न रूपीय उपलब्धता के अध्ययन के आधार पर जलविज्ञान को विभिन्न मुख्य शाखाओं में विभाजित किया जा सकता है जोकि इस प्रकार हैं:
1. सतही जलविज्ञान 2. भूजल विज्ञान 3. जल मौसम विज्ञान 4. पर्यावरणीय जल विज्ञान 5. रासायनिक जल विज्ञान 6. समस्थानिक जल विज्ञान
जलविज्ञान की इन मुख्य पारम्परिक शाखाओं के अतिरिक्त जलविज्ञानीय अनुप्रयोगों के आधार पर जल सम्बन्धी अध्ययन को कुछ अन्य शाखाओं में भी विभाजित किया जा सकता है जोकि इस प्रकार हैं:
1. जल संसाधन प्रबन्धन 2. जल गुणवत्ता 3. हाइड्रोइन्फाॅर्मेटिक्स
जलविज्ञानीय अध्ययन की उपरोक्त शाखाओं के अतिरिक्त जल का अध्ययन ज्ञान की कुछ अन्य शाखाओं के अन्तर्गत भी किया जाता है जिनका जलविज्ञान से गहरा सम्बन्ध है, जैसे: कसार विज्ञान (Limnology) जोकि स्वच्छ जल का वैज्ञानिक अध्ययन है।
मौसम विज्ञान: वायुमण्डल, मौसम, वर्षा तथा हिम आदि का और अधिक सामान्य अध्ययन है।
समुद्रविज्ञान: समुद्र तथा खाड़ी जल के अध्ययन से सम्बन्धित है।
जलविज्ञानियों के कार्य
जलविज्ञान से जुड़ा व्यवसायी जलविज्ञानी या जल वैज्ञानिक कहलाता है जलविज्ञानी जल से सम्बन्धित विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे होते हैं। जलविज्ञानियों का कार्य केवल सैद्धान्तिक विज्ञान तक ही सीमित नहीं है बल्कि व्यावसायिक क्षेत्रों में भी इनका कार्य अत्यन्त व्यावहारिक होता है जोकि सामान्य जन के लिये सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होता है, जैसे कि जल के बारे में अपनी गहन जानकारी तथा मौसम विज्ञानीय आँकड़ों का विश्लेषण एवं अध्ययन कर वे आने वाली बाढ़ तथा सूखे के बारे में पूर्व सूचना दे सकते हैं जिससे इन प्राकृतिक आपदाओं से बचाव का यथासम्भव प्रयास किया जा सकता है।
जलविज्ञान में शिक्षा
जलविज्ञान एक ऐसा विषय है जिसमें विशिष्ट शिक्षा एवं प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। स्नातक स्तर पर एक महत्त्वपूर्ण कोर्स के रूप में जलविज्ञान का अध्ययन सिविल इंजीनियरी, कृषि इंजीनियरी, पर्यावरण इंजीनियरी, पर्यावरणीय विज्ञान एवं पर्यावरणीय प्रबन्धन आदि पाठ्यक्रमों में कराया जाता है। जलविज्ञान में अधिकतर विशिष्ट कोर्सेज स्नातकोत्तर स्तर से ही आरम्भ होते हैं जिनमें प्रवेश पाने हेतु शैक्षिक योग्यता सिविल, कृषि या पर्यावरण इंजीनियरी में स्नातक उपाधि अथवा भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, भूविज्ञान, भूगोल आदि में स्नातकोत्तर उपाधि का होना आवश्यक है।
जलविज्ञान के क्षेत्र में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम, प्रशिक्षण तथा अनुसंधान के लिये भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रुड़की अग्रणी रहा है। सन 1965 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) द्वारा अन्तरराष्ट्रीय जलविज्ञान दशक का शुभारम्भ किया गया जिसके द्वारा जलविज्ञान में बहुत से स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों की स्थापना की गयी। जलविज्ञान में शिक्षा एवं प्रशिक्षण उक्त कार्यक्रम का एक मुख्य अंग था। जलविज्ञान में अन्तरराष्ट्रीय स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम की शुरूआत के साथ ही 1972 में रुड़की विश्वविद्यालय (अब भा.प्रौ.संस्थान) के अधीन जलविज्ञान विभाग की स्थापना हुई। वर्तमान में इस विभाग द्वारा चलाये जा रहे पाठ्यक्रम भारत सरकार, यूनेस्को तथा अन्तरराष्ट्रीय मौसमविज्ञान संगठन द्वारा प्रायोजित हैं। उक्त पाठ्यक्रमों में अब तक कुल 752 सहभागी (जिनमें से 287 सहभागी अन्य 35 देशों से थे) भाग ले चुके हैं। वर्ष 2003 से गेट (GATE) अर्हता प्राप्त इंजीनियरी एवं विज्ञान स्नातकों को भी उक्त स्नातकोत्तर कार्यक्रम में प्रवेश दिया जाता है जो कि भारत से ही होते हैं। उक्त पाठ्यक्रम दो स्तरों पर आयोजित किया जाता है, पहला 24 महीने की अवधि का एम. टैक. (जलविज्ञान) कोर्स तथा दूसरा एक वर्षीय स्नातकोत्तर डिप्लोमा (जलविज्ञान) कोर्स। इस विभाग द्वारा जलविज्ञान में पी.एच.डी. कार्यक्रम भी चलाया जाता है।
इसके अतिरिक्त भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की का जल संसाधन विकास एवं प्रबन्धन विभाग भी सेवारत सिविल, विद्युत, यान्त्रिक, कृषि इंजीनियरों तथा कृषि वैज्ञानिकों के लिये अलग से ‘जल संसाधन विकास’ तथा सिंचाई जल प्रबन्धन में एक वर्षीय प्रशिक्षण, दो सैमिस्टर स्नातकोत्तर डिप्लोमा तथा चार सैमिस्टर एम.टैक. कार्यक्रम आयोजित करता है। यह विभाग इस दिशा में सन 1955 से कार्यरत है तथा पिछले 55 वर्ष में 48 देशों के 2469 सेवारत जल व्यवसायियों को प्रशिक्षण प्रदान कर चुका है। इस विभाग में भी जल संसाधन सम्बन्धी विषयों में पी.एच.डी. की सुविधा उपलब्ध है।
जलविज्ञान के क्षेत्र में रोजगार
सम्पूर्ण विश्व में स्वच्छ जल की बढ़ती माँग, विकराल रूप धारण कर रही जल सम्बन्धी समस्याएँ तथा जल संसाधनों के विकास एवं बेहतर प्रबन्धन हेतु उच्च कौशल प्राप्त तथा दक्ष जलविज्ञानियों की माँग भी निरन्तर बढ़ रही है। जलविज्ञानीय ज्ञान के अनुप्रयोग की दृष्टि से देश तथा विदेशों में बहुत सारे रोजगार हैं जो जलविज्ञानियों के लिये उपलब्ध हैं। सरकारी, गैर-सरकारी तथा निजी कई स्तरों पर जलविज्ञानी अपने कौशल तथा दक्षता अनुसार रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। केन्द्र तथा राज्य सरकारी संगठनों में विभिन्न जलविज्ञानीय कार्यों हेतु योग्य जलविज्ञानियों का चयन किया जाता है जोकि जल प्रबन्धन, सिंचाई प्रणाली विकास, बाँधोें का रख-रखाव तथा प्रबन्धन, जल विश्लेषण, भूजल प्राक्कलन, बाढ़ व सूखा प्रबन्धन, जल सम्बन्धी आँकड़ों का एकत्रीकरण एवं विधायन आदि कार्यों को कुशलतापूर्वक कर सकें।
गैर-सरकारी एवं निजी क्षेत्र में जलविज्ञानी विभिन्न संस्थाओं, संगठनों तथा औद्योगिक इकाइयों द्वारा चलाई जा रही विभिन्न परियोजनाओं तथा छोटी-बड़ी निजी कम्पनियों के लिये कार्य करते हैं जो जल प्रौद्योगिकी का विकास तथा मार्केटिंग का कार्य करती है।
उच्च शिक्षा तथा अनुसंधान संस्थानों में जलविज्ञानी पठन-पाठन तथा अनुसंधान प्रबन्धन का कार्य भी कर सकते हैं जिसके लिये उच्च शिक्षा तथा अनुभव की आवश्यकता होती है। वह निजी, अर्ध-सरकारी एवं सरकारी संस्थाओं तथा संगठनों के लिये परामर्श कार्य, नई परियोजनाओं का प्रस्ताव तथा रूपरेखा तैयार करना आदि कार्य भी कर सकते हैं तथा सरकारी नीति निर्धारण में विशेषज्ञों की भूमिका निभा सकते हैं।
कुछ संगठनों तथा संस्थाओं की सूची नीचे दी जा रही है, जिनमें जलविज्ञानी रोजगार प्राप्त कर सकते हैं।
(क). भारत सरकार, जल संसाधन मन्त्रालय के अधीन संस्थान, उपक्रम तथा संगठन
(ख). भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के अधीन जल सम्बन्धी संस्थान तथा प्रभाग।
(ग). वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के अधीन जल सम्बन्धी संस्थान एवं उनके प्रभाग,
(घ). केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दिल्ली
(च). भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, कोलकाता
(छ). राज्य सिंचाई विभाग
(ज). राज्य सरकारों के अधीन जल सम्बन्धी मन्त्रालय एवं उनके विभाग
(झ). नगरीय स्तर पर कार्यरत म्यूनीसिपल काॅर्पोरेशन्स
(ट). गैर-सरकारी संस्थाएं एवं उद्योग
मुहम्मद फुरकान उल्लाह, राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की
