वर्षण का एक प्रकार जिसमें वायुमंडल में स्थित जलवाष्प के संघनन द्वारा निर्मित छोटी-छोटी जल सीकरों (droplets) के मिलने से उत्पन्न जल की बूँदे (water drops) भूतल पर गिरती हैं। वर्षा में जल की बूँदों का आकार अपेक्षाकृत् बड़ा (व्यास 0.5 मिलीमीटर से अधिक) होता है। शांत वातावरण में बूँदों के गिरने की गति 3 मीटर प्रति सेकंड से अधिक होती है।
अन्य स्रोतों से
वर्षा - स्रोत - भारत डिस्कवरी
वायु में मिला जलवाष्प शीतल पदार्थों के संपर्क में आने से संघनन के कारण ओसांक तक पहुँचता है। जब वायु का ताप ओसांक से नीचे गिर जाता है, तब जलवाष्प पानी की बूँदों अथवा ओलों के रूप में धरातल पर गिरने लगता है। इसी को वर्षा कहते हैं।
किसी भी स्थान पर किसी निश्चित समय में बरसे हुए जलकणों तथा हिमकणों से प्राप्त जल की मात्रा को वहाँ की वर्षा का माप कहते हैं। गरमी के कारण उत्पन्न जलवाष्प ऊपर आकाश में जाकर फैलता है एवं ठंडा होता है। अत: जैसे-जैसे वायु ऊपर उठती है, उसमें जलवाष्प धारण करने की क्षमता कम होती जाती है। यहाँ तक कि अधिक ऊपर उठने से वायु का ताप उस अंक तक पहुँच जाता है, जहाँ वायु जलवाष्प धारण कर सकती है। इससे भी कम ताप हो जाने पर, जलवाष्प जलकणों में परिवर्तित हो जाता है। इसी से बादलों का निर्माण होता है। फिर बादल जल के कारण धरातल पर बरस पड़ते हैं। जलकण बनने के उपरांत भी यदि वायु का ताप कम होते होते हिमांक से भी कम हो जाता है, तो जलकण हिमकणों का रूप धारण कर लेते हैं जिससे हिमवर्षा होती है। वर्षा के लिए दो बातें आवश्यक हैं:
1 - हवा में पर्याप्त मात्रा में जलवाष्प का होना
2 - वाष्प से भरी हवाओं का शीतल पदार्थों के संपर्क में आने से ठंडा होना और ओसांक तक पहुँचना
http://hi.bharatdiscovery.org/india/
वर्षा ऋतु: आत्मिक आनंद का उत्सव (दैनिक हिन्दुस्तान)
प्रो. शुकदेव चतुर्वेदी
आषाढ़ माह, जब प्रकृति खुद इंसान और भगवान को मिला रही होती है। वर्षा की बूंदें प्रकृति के रंग-रूप को बदलने के साथ-साथ जीवन में आनंद की बौछार करती हैं। विभिन्न धर्मों में यह समय आत्मिक साधना और प्रकृति व जीव रक्षा करने का बताया गया है। ऋषि-मुनि गण प्रकृति के इस सृजन काल को आत्मिक आनंद का उत्सव बनाने के लिए प्रेरित करते हैं।
वर्षा ऋतु आत्मा के उल्लास का अवसर है। इस समय साधक अपनी साधना द्वारा आत्म-बीज से परमात्मा बनने का अंकुरण करता है। यही कारण है कि साधक के लिए इस काल में बनाए गए नियम आंतरिक यात्रा और संयम की भावना से जुड़े हैं। इस समय धर्म शास्त्र दान, शील, तप और शुभ भावना रूपी चार तरह का धर्म विशेषतौर पर अपनाए जाने पर जोर देते हैं।
वैदिक ऋषियों ने भारतवर्ष के मौसम को बसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त एवं शिशिर- इन छ: ऋतुओं में विभाजित किया है। इस वर्ष 21 जून से 22 अगस्त तक वर्षा ऋतु रहेगी। 27 नक्षत्रों में से दो नक्षत्र हैं पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा। ये जिस मास की पूर्णिमा पर आते हैं, वह मास आषाढ़ कहलाता है। कोई भी एक नक्षत्र किसी एक पूर्णिमा पर आकर उसे आषाढ़ बना देता है। उस काल में गरमी अपने अंतिम चरण में होती है और मनमोहक वर्षा का प्रारंभ होना शुरू हो जाता है। गरमी से झुलसे फूल-पत्ते फिर से अंकुरित होते हैं और वर्षा काल का आनंद लेने के लिए मचल उठते हैं।
यह भी देखें
http://www.hindi.indiawaterportal.org/
विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)
वर्षा एक प्रकार का संघनन है। पृथ्वी के सतह से पानी वाष्पित होकर ऊपर उठता है और ठण्डा होकर पानी की बूंदों के रूप में पुनः धरती पर गिरता है। इसे वर्षा कहते है।
वर्षा एक बहुत सामान्य, किंतु अत्यंत शक्तिमान कारक है। इसके कार्य की विधि कुछ रासायनिक और कुछ बलकृत (mechanical) होती है। पूर्णतया शुद्ध जल में रासायनिक क्रिया करने की क्षमता प्राय: बिल्कुल नहीं होती। यद्यपि वर्षाजल पृथ्वी पर पहुँचने से पूर्व अधिकांश शुद्ध होता है, फिर भी आकाशमार्ग से आते समय उसमें वायुमंडलीय ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड दोनों ही पर्याप्त मात्रा में विलीन हो जाते हैं। आक्सीकृत और कार्बनीकृत वर्षाजल की अभिक्रिया से पृष्ठीय शैलों के अनेकानेक खनिज अपनी अपनी प्रकृति के अनुसार ऑक्साइडों और कार्बनेटों में परिवर्तित हो जाते हैं। कुछ खनिज, अथवा अनके अणु, जल के साथ रासायनिक यौगिक हाइड्रेट भी बना लेते हैं। इस प्रकार वर्षालय की रासायनिक क्रिया द्वारा शिलाएँ अपघटित (decomposed) हो जाती हैं। नए बने हुए पदार्थों में कुछ विलेय होते हैं और कुछ अविलेय। विलेय अंश बनने के साथ ही जल में विलीन होकर बह जाते हैं और अविलेय अंश जहाँ के तहाँ छूट जाते हैं। अविलेय भाग में मिट्टी के अणु और बालू इत्यादि होते हैं, जो कालांतर में संचित होकर विविध भाँति की मिट्टी के स्तर बनाते हैं।
कभी कभी अविलेय पदार्थ को संचित होने का अवसर ही नहीं मिल पाता, अपितु वर्षा का जल धरातल पर बहते हुए उसे भी पूर्णतया अथवा अंशत:, अपने साथ बहाकर ले जाता है। जब तक जल में पदार्थ को बहा ले जाने की शक्ति रहती है, तब तक वह बहता चला जाता है और शक्ति के क्षीण होने पर वह जहाँ तहाँ बैठ जाता है। इस प्रकार वर्षा के जल द्वारा बहाए हुए पदार्थ को (rain wash) कहते हैं। इसकी मात्रा धरातल की ढाल और वर्षा की गति पर निर्भर होती है। ढाल की प्रवणता और वर्षा की तीव्रता दोनों ही वर्षा के जल के बहाने की शक्ति को वर्द्धित करती हैं।
वर्षा की क्रिया के परिणामों पर स्थानीय जलवायु का भी बहुत प्रभाव पड़ता है, यदि दो प्रदेशों में वार्षिक वर्षा की मात्रा प्राय: समान हो, किंतु एक में हलके हलके छींटे बार बार पड़ते हों और दूसरे में कभी कभी किंतु बहुत तीव्र वर्षा होती हो, तो इन दोनों प्रदेशों में वर्षा का प्रभाव भिन्न भिन्न होगा। इसी प्रकार सूखे और बरसाती मौसमों के एकांतरणवाले प्रदेशों में भी वर्षा का प्रभाव एकदम भिन्न हो जाता है। ताप की विभिन्नता का भी वर्षा की क्रियाशीलता पर प्रभाव पड़ता है। उष्णताप्रधान देशों में वर्षा के जल में अपघटन करने की शक्ति, शीतप्रधान देशों की अपेक्षा, कहीं अधिक होती हैं।
वर्षा ऋतु, वर्ष की एक ऋतु है, जिसमें वातावरण का तापमान तथा आर्द्रता प्रायः उच्च रहते हैं ।
वर्षा एक बहुत सामान्य, किंतु अत्यंत शक्तिमान कारक है। इसके कार्य की विधि कुछ रासायनिक और कुछ बलकृत (mechanical) होती है। पूर्णतया शुद्ध जल में रासायनिक क्रिया करने की क्षमता प्राय: बिल्कुल नहीं होती। यद्यपि वर्षाजल पृथ्वी पर पहुँचने से पूर्व अधिकांश शुद्ध होता है, फिर भी आकाशमार्ग से आते समय उसमें वायुमंडलीय ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड दोनों ही पर्याप्त मात्रा में विलीन हो जाते हैं। आक्सीकृत और कार्बनीकृत वर्षाजल की अभिक्रिया से पृष्ठीय शैलों के अनेकानेक खनिज अपनी अपनी प्रकृति के अनुसार ऑक्साइडों और कार्बनेटों में परिवर्तित हो जाते हैं। कुछ खनिज, अथवा अनके अणु, जल के साथ रासायनिक यौगिक हाइड्रेट भी बना लेते हैं। इस प्रकार वर्षालय की रासायनिक क्रिया द्वारा शिलाएँ अपघटित (decomposed) हो जाती हैं। नए बने हुए पदार्थों में कुछ विलेय होते हैं और कुछ अविलेय। विलेय अंश बनने के साथ ही जल में विलीन होकर बह जाते हैं और अविलेय अंश जहाँ के तहाँ छूट जाते हैं। अविलेय भाग में मिट्टी के अणु और बालू इत्यादि होते हैं, जो कालांतर में संचित होकर विविध भाँति की मिट्टी के स्तर बनाते हैं।
कभी कभी अविलेय पदार्थ को संचित होने का अवसर ही नहीं मिल पाता, अपितु वर्षा का जल धरातल पर बहते हुए उसे भी पूर्णतया अथवा अंशत:, अपने साथ बहाकर ले जाता है। जब तक जल में पदार्थ को बहा ले जाने की शक्ति रहती है, तब तक वह बहता चला जाता है और शक्ति के क्षीण होने पर वह जहाँ तहाँ बैठ जाता है। इस प्रकार वर्षा के जल द्वारा बहाए हुए पदार्थ को (rain wash) कहते हैं। इसकी मात्रा धरातल की ढाल और वर्षा की गति पर निर्भर होती है। ढाल की प्रवणता और वर्षा की तीव्रता दोनों ही वर्षा के जल के बहाने की शक्ति को वर्द्धित करती हैं।
वर्षा की क्रिया के परिणामों पर स्थानीय जलवायु का भी बहुत प्रभाव पड़ता है, यदि दो प्रदेशों में वार्षिक वर्षा की मात्रा प्राय: समान हो, किंतु एक में हलके हलके छींटे बार बार पड़ते हों और दूसरे में कभी कभी किंतु बहुत तीव्र वर्षा होती हो, तो इन दोनों प्रदेशों में वर्षा का प्रभाव भिन्न भिन्न होगा। इसी प्रकार सूखे और बरसाती मौसमों के एकांतरणवाले प्रदेशों में भी वर्षा का प्रभाव एकदम भिन्न हो जाता है। ताप की विभिन्नता का भी वर्षा की क्रियाशीलता पर प्रभाव पड़ता है। उष्णताप्रधान देशों में वर्षा के जल में अपघटन करने की शक्ति, शीतप्रधान देशों की अपेक्षा, कहीं अधिक होती हैं।
वर्षा ऋतु, वर्ष की एक ऋतु है, जिसमें वातावरण का तापमान तथा आर्द्रता प्रायः उच्च रहते हैं ।
वेबस्टर शब्दकोश ( Meaning With Webster's Online Dictionary )
हिन्दी में - वर्षा, बरसना, बारिश होना, बरसात, बारिश, बौछार,
मेह,
Bengali: বৃষ্টি, বৃষ্টি পড়.
Telugu: కురియు వర్షించు, వాన వర్షం.
Marathi: वृष्टि, पाऊस.
Tamil: மழை, பெய்.
Urdu: بارش, بارِش.
Gujarati: વરસાદ, વરસાદના જેવી બીજા કશાકની વૃષ્ટિ.
Kannada: ಮಳೆ, ವೃಷ್ಟಿ.
Malayalam: മഴ, പെയ്യുക.
Assamese: বৰষুণ, বৰষা.
Maithili: वृष्टि, बरसब.
Bengali: বৃষ্টি, বৃষ্টি পড়.
Telugu: కురియు వర్షించు, వాన వర్షం.
Marathi: वृष्टि, पाऊस.
Tamil: மழை, பெய்.
Urdu: بارش, بارِش.
Gujarati: વરસાદ, વરસાદના જેવી બીજા કશાકની વૃષ્ટિ.
Kannada: ಮಳೆ, ವೃಷ್ಟಿ.
Malayalam: മഴ, പെയ്യുക.
Assamese: বৰষুণ, বৰষা.
Maithili: वृष्टि, बरसब.