ज्यादा कारगर साबित हुए हैं छोटे बांध

Submitted by Hindi on Wed, 01/04/2012 - 12:59
Source
नई दुनिया, 04 जनवरी 2012

बड़े बांधों से जुड़े विवादों की अंतहीन श्रृंखलाओं को देखते हुए इनकी जगह छोटे बांध प्रासंगिक बनकर उभरे हैं। जहां-जहां इस नीति को अपनाया गया वहां-वहां इस अभूतपूर्व सफलता मिली है। भले ही बड़े बांधों से बहुमुखी विकास का सब्जबाग दिखाया जाता रहा हो लेकिन सच्चाई यह है कि ये अपने साथ विवाद, भ्रष्टाचार, पर्यावरण विनाश, विस्थापन लेकर आते हैं।

देश का शायद ही कोई ऐसा बड़ा बांध होगा जिसके साथ विवाद परछाईं की भांति न रहा हो। इसका ज्वलंत उदाहरण है मुल्लापेरियार बांध जिसे लेकर तमिलनाडु और केरल के बीच विवाद का पुराना इतिहास रहा है। 116 साल पुराने इस बांध को लेकर दोनों राज्य उच्चतम न्यायालय तक पहुंच चुके हैं। इस बांध की विडंबना यह है कि यह केरल की जमीन पर बना है लेकिन इसका नियंत्रण और देखरेख तमिलनाडु के लोक निर्माण विभाग के हाथ में है। 1895 में बने इस बांध को त्रावणकोर के तत्कालीन राजा ने मद्रास प्रेसीडेंसी को 999 साल की लीज पर दिया था। यह बांध जहां तमिलनाडु के मदुरै, थेणी, शिवगंगा और रामनाथपुरम के लिए जीवन रेखा है, वहीं केरल के लोगों के लिए सिर पर लटकती तलवार। दरअसल, बांध के पुराना होने के चलते केरल के लोग इस बांध को लेकर वर्षों से आशंकित रहे हैं।

केरल सरकार का मानना है कि मौजूदा बांध वाटर बम की तरह है क्योंकि यह भूकंप का मामूली झटका भी सहन करने की स्थिति में नहीं है। इसीलिए केरल सरकार ने यह पेशकश की है कि वह अपने खर्चे से मुल्लापेरियार की जगह दूसरा बांध बनाने और यह सुनिश्चित करने को तैयार है कि अभी तमिलनाडु को जितना पानी मिल रहा है उसमें कमी नहीं आएगी। लेकिन तमिलनाडु सरकार इस बांध को तोड़कर नया बांध बनाए जाने के प्रस्ताव का विरोध कर रही है। अब इस मुद्दे पर राजनीतिक रोटियां भी सेंकी जाने लगी हैं। यदि समग्रता में देखें तो बड़े बांधों के निर्माण में दूरदर्शिता का घोर अभाव ही नजर आएगा। भले ही बड़े बांधों से बहुमुखी विकास का सब्जबाग दिखाया जाता रहा हो लेकिन सच्चाई यह है कि ये अपने साथ विवाद, भ्रष्टाचार, पर्यावरण विनाश, विस्थापन लेकर आते हैं।

फिर बांध निर्माण में जो उत्साह रहता है वह उसकी देख-रेख में नदारद हो जाता है। यही कारण है कि भूकंप, असामान्य बारिश, कटाव आदि झेलने की उनकी क्षमता पर गंभीर आशंकाएं पैदा हुई हैं। फिर बांधों के पानी से बड़ी मात्रा में मीथेन उत्सर्जन के कारण ये जलवायु परिवर्तन के ड्राइवर बनकर उभरे हैं। बड़े बांधों से जुड़े विवादों की अंतहीन श्रृंखलाओं को देखते हुए इनकी जगह छोटे बांध प्रासंगिक बनकर उभरे हैं। जहां-जहां इस नीति को अपनाया गया वहां-वहां इसे अभूतपूर्व सफलता मिली है।

उदाहरण के लिए पहले गुजरात में सिंचाई सुविधाओं के लिए बड़े बांधों को केंद्र में रखकर नीतियां बनाई जाती थीं जैसे सरदार सरोवर बांध। लेकिन इनकी भारी लागत, निर्माण का लंबा समय, विस्थापन आदि की तुलना में इनसे मिलने वाला लाभ बहुत कम था। इसे देखते हुए गुजरात सरकार ने जल संरक्षण और सिंचाई की आधुनिक विधियों के उपयोग की रणनीति अपनाई। पैदावार में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई और किसानों की खुशहाली भी बढ़ी।