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जनसत्ता 20 मार्च, 2012
अनीता नर्रे को मिला सुलभ स्वच्छता पुरस्कार
पाठक ने विश्व बैंक के एक आंकड़े के हवाले से कहा कि शौचालयों और स्वच्छता संबंधी अन्य सुविधाओं के अभाव में भारत को स्वच्छता संबंधी बीमारियों पर न केवल हर साल 54 अरब डॉलर खर्च करना पड़ता है, बल्कि इसकी वजह से उत्पादकता और अन्य चीजों में भी कमी आती है।
नई दिल्ली, 19 मार्च। केंद्रीय ग्रामीण विकास, पेयजल व स्वच्छता मामलों के मंत्री जयराम रमेश ने सोमवार को कहा कि सरकार का लक्ष्य आने वाले एक दशक के भीतर देश के हर गांव को निर्मल गांव बनाने का है। रमेश ने कहा कि देश में करीब ढाई लाख ग्राम पंचायत हैं लेकिन यह काफी दुखद है कि फिलहाल मात्र 25 हजार पंचायत ही निर्मल ग्राम पंचायत है। वे शौचालय के अभाव में ससुराल छोड़ने वाली मध्य प्रदेश के बैतूल जिले की अनीता नर्रे को दिल्ली के मावलंकर हाल में आयोजित एक कार्यक्रम में ‘सुलभ स्वच्छता पुरस्कार’ देने के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे।देश में किफायती शौचालय आंदोलन को प्रोत्साहित करते हुए मंत्री रमेश मे जीतूढाणा गांव की अनीता को स्वच्छता का दूत की संज्ञा देते हुए देश की सभी महिलाओं को उनसे प्रेरणा लेने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि सरकार ने भी आगामी बजट में पेयजल और स्वच्छता के मद में चालू वित्त वर्ष की तुलना में 40 फीसद अधिक राशि आबंटित की है जो इस दिशा में सरकार की सकारात्मक सोच का प्रतीक है। जीतूढाणा गांव के शिवराम नर्रे से शादी करने वाली अनीता ससुराल में शौचालय सुविधा न होने के कारण अगले ही दिन मायके लौट आई थी और शौचालय बन जाने के बाद ही दोबारा ससुराल लौटी थी। शौचालय के प्रति अनीता की जागरूकता और उसके कड़े कदम को ध्यान में रखते हुए गैर-सरकारी संगठन सुलभ इंटरनेशनल ने उसे पांच लाख रुपए का स्वच्छता पुरस्कार देने की घोषणा की थी।
सुलभ के संस्थापक डॉ. बिंदेश्वर पाठक ने अनीता को स्वच्छता के प्रति लोगों में प्रेरणा जगाने वाली आइकन करार दिया। पाठक ने कहा कि शौचालय उपलब्ध होने की बात पर विद्रोह पर उतरने वाली इस ग्रामीण महिला ने इस देश के लिए क्रांतिकारी कदम उठाया है, जहां 66 करोड़ की आबादी खुले में शौच करती हैं, जिससे तमाम बीमारियां पैदा होती हैं। उन्होंने कहा कि शौचालय के अभाव का सबसे अधिक दंश महिलाओं को ही झेलना पड़ता है, क्योंकि उन्हें शौच के लिए सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त के बाद ही जाना पड़ता है।
इस बीच यदि महिलाओं को शौच लगती है तो उन्हें इस प्राकृतिक जरूरत को भी नजरंदाज करना पड़ता है, जिससे अनेक बीमारियां होती हैं। पाठक ने विश्व बैंक के एक आंकड़े के हवाले से कहा कि शौचालयों और स्वच्छता संबंधी अन्य सुविधाओं के अभाव में भारत को स्वच्छता संबंधी बीमारियों पर न केवल हर साल 54 अरब डॉलर खर्च करना पड़ता है, बल्कि इसकी वजह से उत्पादकता और अन्य चीजों में भी कमी आती है। उन्होंने कहा कि अनीता नर्रे ने ससुराल छोड़ने का बहुत बड़ा फैसला किया, क्योंकि किसी विवाहिता का ससुराल छोड़कर मायके आ जाना न केवल उसके परिवार बल्कि गांव समाज के लिए भी प्रतिष्ठा का विषय होता है। हमने इस घटना की जानकारी मिलने के तुरंत बाद पुरस्कार की घोषणा कर दी थी, क्योंकि देश की लड़कियों को हम अपनी समस्याओं के बारे में बोलने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं।