देश की आईटी राजधानी कहे जाने वाले बंगलुुरु में पिछले दिनों एक दृश्य ने शहरवासियों समेत पूरे देश को चिन्ता में डाला है। यहाँ की बेल्लनदर (बेलंदूर) झील में आग लगने की घटनाएँ हुईं। ऐसा नजारा इस झील में कई बार उपस्थित हो चुका है। एक अन्य झील येमलूर में भी ऐसी ही घटना हुई थी।
झील से उठते धुएँ से शरहवासियों का जीना दूभर हो गया था। उस झील से भी गहरा धुआँ निकलने और छिटपुट आग लगने की घटनाओं के समाचार मिले थे। यही नहीं, इसी शहर की एक अन्य झील उल्सूर में एक ही दिन में हजारों मछलियों की मौत भयानक प्रदूषण की वजह से हो गई थी। झील में यह प्रदूषण नजदीक स्थित एक बाँध में आई दरार से रिसते पानी के जरिए फैला था। इस प्रदूषित पानी के मिलने से उल्सूर झील के पानी में अॉक्सीजन की मात्रा खतरनाक ढंग से कम हो गई, जिससे इसमें मौजूद जल-जीवों के लिये साँस लेना मुश्किल हो गया और वे मर गए।
बंगलुरु की झीलों की घटनाएँ ऊपर से छोटी अवश्य दिखती हैं पर ये घटनाएँ असल में उन जलस्रोतों की उपेक्षा दर्शाती हैं जो सदियों से हमारे बीच रहे हैं और पानी ही नहीं, जमीन को उपजाऊ बनाने और जलवायु परिवर्तन में उनकी एक निश्चित भूमिका है। कभी शहर-कस्बों की शान कहे जाने वाले तालाब, बावड़ी, झील और वेटलैंड कहे जाने वाले ऐसे ज्यादातर जलस्रोत लोगों की लापरवाही और सरकारी उपेक्षा के कारण दम तोड़ रहे हैं।
पिछले साल इससे सम्बन्धित एक आँकड़ा उत्तर प्रदेश के बारे में आया था, जहाँ आरटीआई से मिली सूचना में बताया गया कि बीते 60-70 वर्षों में 45 हजार तालाबों-झीलों पर अवैध कब्जा करके उनका वजूद ही खत्म कर दिया गया। आरटीआई सेे पता चला कि अकेले उत्तर प्रदेश में ही एक लाख 11 हजार 968 तालाबों पर अतिक्रमण करके लोगों ने जमीन पर तरह-तरह के निर्माण करके उनके अस्तित्व के लिये खतरा पैदा कर दिया, हालांकि इनमें से 66,561 तालाबों को बाद में कब्जे से मुक्त कराया गया। पर क्या कर्नाटक, क्या दिल्ली और क्या मध्य प्रदेश-हर जगह तालाब-झील रूपी जमीनों पर कब्जे की होड़ चलती रही है।
झीलों की नगरी का बुरा हाल
एक वक्त था, जब आईटी सिटी के रूप में विख्यात कर्नाटक की राजधानी बंगलुरु को बेहतरीन आबोहवा के सन्दर्भ में भी जाना जाता था। इस शहर को ‘झीलों की नगरी’ की पदवी दी गई थी, लेकिन आज हकीकत यह है कि बंगलुरु मरती हुई झीलों का सहर बन गया है। पिछले सदी में यहाँ एक दूसरे से जुड़ी करीब 400 झीलें-तालाब आदि थे जो औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के कारण लगभग खत्म हो गए हैं।
तीन-चार वर्ष पहले यहाँ करीब 15-20 झीलें या वेटलैंड्स (नम क्षेत्रों) को पुर्जीवित करने का अभियान चलाया गया था लेकिन उसके बाद भी यहाँ की झीलें सूख गई हैं। श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर) की प्रख्यात डल झील को हालांकि आज भी खूबसूरत माना जाता है, लेकिन सच्चाई यह है कि चार दशक पहले यह 30 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैली हुई थी। बाद में यह विकास कार्यों, शिकारों की मौजूदगी व उनसे छोड़े जाने वाले प्रदूषण और गाद व कचरे की समस्या के कारण सिकुड़कर आधी रह गई। यह हाल तब है जब इसकी सार-सम्भाल के लिये अब करीब सालाना 900 करोड़ रुपए खर्च किये जाते हैं।
क्यों सिकुड़ रही झीलें
सिर्फ भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में झीलें कचरे और प्रदूषण की मार से सिकुड़ रही हैं। वर्ष 2007 में राजस्थान की राजधानी जयपुर में आयोजित 12वें विश्व झील सम्मेलन में दुनिया के 40 से ज्यादा देशों के विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों ने झीलों के अतिक्रमण, उनमें बढ़ती गाद और पानी की निकासी आदि समस्याओं पर विचार किया था। सम्मेलन में उपस्थित विशेषज्ञों ने एकमत से कहा था कि पृथ्वी की आँखें कहलाने वाली झीलें अर्थात वेटलैंड्स बचाकर ही मानव जीवन का संरक्षण हो सकता है।
उल्लेखनीय है कि फिलहाल हमारे देश में 2700 प्राकृतिक और 65 हजार मानवनिर्मित छोटी-बड़ी झीलें हैं। लेकिन इनमें से ज्यादातर शहरीकरण के कारण प्रदूषण और कचरे की मार झेल रही हैं। इससे उनके खत्म हो जाने का खतरा है। विज्ञानियों का कहना है कि हमारी धरती पर नम क्षेत्रों यानी वेटलैंड्स शहरीकरण के कारण हुए हमले भी पानी की कमी और प्राकृतिक आपदाओं के लिये जिम्मेदार हैं।
झीलों, दलदली इलाकों और विशाल तालाबों आदि नम क्षेत्रों को विज्ञान की भाषा में ‘वेटलैंड्स’ कहा जाता है। वेटलैंड्स न सिर्फ अपने भीतर पानी की विशाल मात्रा सहेजते हैं, बल्कि जरूरत पड़ने पर आस-पास की शुष्क जमीन के लिये पानी भी छोड़ते हैं। यहाँ तक की वातावरण की नमी कायम रखने में भी वेटलैंड सहायक साबित होते हैं। इसके अलावा ये जमा हो चुकी गन्दगी को छानते हैं और अनेक जलीय तथा पशु व पक्षी प्रजातियों के लिये भोजन उपलब्ध कराते हैं। गन्दगी को अपने भीतर समा लेने और उसका संशोधन करने के लिहाज से वेटलैंड आस-पास के पर्यावरण के लिये फेफड़े का काम करते हैं।
ध्यान रहे कि तालाब या झील के रूप में मौजूद वेटलैंड प्रायः जलीय वनस्पतियों, कुछ वृक्ष प्रजातियों, जलीय घासों और कमल पुष्पों जैसी लम्बी नाल रखने वाली विशेष वनस्पतियों से घिरे होते हैं, इसलिये कई बार मैदानी इलाकों में आने वाली बाढ़ की रफ्तार इनकी मौजूदगी में मन्द पड़ जाती है और बाढ़ का पानी वेटलैंड में ठहरकर कुछ समय बाद धीमी गति से आगे बढ़ता है। इससे बाढ़ की संहारक क्षमता खत्म हो जाती है। बाढ़ की मन्द गति के कारण भूक्षरण भी नहीं हो पाता है। वेटलैंड भारी मात्रा में पानी अपने में सोख लेते हैं, इसलिये आस-पास के क्षेत्रों में लगाई गई फसलों में पानी जरूरत से ज्यादा नहीं जमा हो पाता है।
वेटलैंड्स भूजल को किस मात्रा में और धरती की कितनी अतल गहराई पर संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं, इसका एक प्रमाण वर्ष 1999 में गंगा बेसिन के उत्तरी इलाकों में तेल की खोज के लिये बनाए गए ड्रिलिंग कूपों के जरिए मिला था। गंगा बेसिन के इस क्षेत्र में उत्तर प्रदेश के लाल कुआँ (काशीपुर) पूरनपुर (पीलीभीत) तथा बिहार के गनौली-रक्सौल आदि स्थानों को चिन्हित किया गया, जहाँ हिमालय की तलहटी व तराई-भांभर बेल्ट के लगभग 70 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में करीब दो हजार मीटर की गहराई पर पानी के अपार भण्डार होने का पता चला।
इस भण्डार की जानकारी मिलने पर केन्द्रीय भूजल परिषद ने ‘डीप ड्रिलिंग फॉर ग्राउंड वाटर एक्सप्लोसेशन इन गंगा बेसिन’ विषय पर आयोजित एक संगोष्ठी में साफ किया था कि जब गंगा बेसिन इलाके में पेयजल का संकट गहराने लगेगा, तो ऐसे में यही भूजल काम आएगा। योजना बनाई गई कि इन इलाकों में फ्लोइंग कूप बनाए जाएँ, जिनसे बड़े पैमाने पर पानी मिल सकेगा, साथ ही ऊर्जा की भारी बचत होगी।
यह भूजल गंगा बेसिन के अलावा उत्तर प्रदेश, बिहार सहित राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली परिक्षेत्र का पेयजल संकट दूर करने में खास भूमिका निभा सकता है। इससे सम्बन्धित एक बड़ा उदाहरण मिसीसिपी नदी से सटा हुआ रिपैरियन वेटलैंड है, जो एकाध दशक पहले तक बाढ़ के पानी की विशाल मात्रा 60 दिनों तक रोके रखता था। जब उसका बड़ा हिस्सा निर्माण गतिविधियों की चपेट में आया तो वह वेटलैंड मुश्किल से 12 दिनों तक ही बाढ़ का पानी रोक पाया।
खतरे तरह-तरह के
सवाल यह है कि क्या ये वेटलैंड्स आगे बचे रहेंगे। लगातार बढ़ती आबादी के चलते उत्पन्न आवासीय संकट के समाधान के लिये प्रायः लोगों की नजर ऐसी ही वेटलैंड्स पर जाती है, जो ऊपरी तौर पर अनुपयोगी प्रतीत होते हैं। देश में दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, बंगलुरु और कोलकाता जैसे बड़े शहर बड़ी तेजी से हुए आवासीय निर्माणों की वजह से वेटलैंड्स गँवा चुके हैं।
दिल्ली के इर्द-गिर्द अनेक गाँवों में कभी तालाब रूपी वेटलैंट्स की भरमार हुआ करती थी, लेकिन जब ये गाँव राजधानी के सम्पर्क में आकर शहरीकरण का हिस्सा बने, तो वेटलैंड्स से हाथ धो बैठे। कोलकाता से कुछ ही दूरी पर सुन्दरवन मुहाने के इलाके के दलदलों पर निर्माण-माफिया का डाका ही पड़ चुका है। इस मुहाने के दलदली क्षेत्रों में निर्माण कार्य सन 1953 से जारी है।
जब हॉलैंड के विशेषज्ञों की देख-रेख में यहाँ कोलकाता के उपनगरों की स्थापना का काम शुरू हुआ था। मुम्बई, चेन्नई और बंगलुरु के दलदली इलाके की मिट्टी से पाटकर किस तरह रातोंरात गगनचुम्बी इमारतों में तब्दील कर दिये गए, यह कहानी हर कोई जानता है। बंगलुरु व उसके आस-पास के तालाबों व झीलों के गायब होने का एक कारण मैसूर-बंगलुरु के बीच बनाया गया वह सुपर एक्सप्रेस-वे है, जो इन तालाबों को पी गया है।
उल्लेखनीय है कि दुनिया झीलों, तालाबों और दलदली भूमि के संरक्षण के लिये एक अन्तरराष्ट्रीय समझौते पर हस्ताक्षर कर चुकी है। सन 1975 में लागू किये गए रामसर समझौता-1971 के तहत पूरी दुनिया में 500 ऐसे दलदली इलाकों को पूर्ण संरक्षण के लिये चिन्हित किया गया था, जिसमें से 16 दलदली क्षेत्र हमारे देश में थे।
समझौते में भारत के अलावा अमेरिका के एवरग्लेड्सस चेसपियक खाड़ी तथा ओकफेनोकी क्षेत्रों के दलदलों को बनाए रखने की सख्त हिदायत दी गई थी। समझौते को पूरे हुए 40 साल से ज्यादा हो चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद पूरी दुनिया में वेटलैंड्स बचाने को लेकर कोई खास सुगबुगाहट देखने को नहीं मिली।
हमारे देश में कुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने बेकार हो गए या काम में नहीं लाये जा रहे तालाबों का अधिग्रहण कर उन्हें मिट्टी से पाटने और उन पर मकान बनाने आदि की गतिविधियों पर एक फैसले के तहत रोक लगाकर पर्यावरण संरक्षण के विषय में अपनी इसी सजगता का परिचय दिया था। इस फैसले से आनेे वाली पीढ़ियों के लिये प्रकृति के तोहफों के बचे रहने की सम्भावना बरकरार रहती है और यह उम्मीद जागती है कि सूखे तालाबों को पुनर्जीवन मिलेगा और उनके सतत संरक्षण का प्रयास होगा। बहरहाल, यह उम्मीद तो कायम है कि इच्छाशक्ति के बलबूते इन्हें न सिर्फ बचाया जा सकता है, बल्कि जो तालाब या झीलें खत्म हो चुकी हैं, उन्हें फिर से जीवित किया जा सकता है।
डल झील की खूबसूरती में भी लगे दाग
धरती की जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर में श्रीनगर स्थित डल झील इस खूबसूरत जगह का जैसे प्राण है। कश्मीर की कल्पना डल झील के बगैर नहीं हो सकती। कश्मीर पहुँचने वाला हर पर्यटक डल झील देखना चाहता है, उसमें तैरते शिकारों (हाउसबोट्स) में ठहरना चाहता है। पर डल की खूबसूरती पर भी कचरे और अन्य प्रदूषण की मार पड़ती रही है।
दावा है कि 4 दशक पहले इस झील का विस्तार श्रीनगर के 30 वर्ग किलोमीटर के दायरे में था, लेकिन इसके आस-पास हुए विकास कार्यों, झील में शिकारों की मौजूदगी, झील में लगातार जमा होने वाली गाद व गन्दगी और जलीय वनस्पतियों (खरपतवार-वीड्स आदि) के कारण इसका क्षेत्रफल आधा रह गया। इसके बावजूद डल झील की साफ-सफाई आसान नहीं है। वैसे तो कहा जाता रहा है कि इस झील में मौजूद मछलियाँ इसमें आने वाली गन्दगी को साफ करती रहती हैं, लेकिन प्रदूषण इतना ज्यादा है कि सिर्फ मछलियों के बल पर झील साफ करना आसान नहीं रह गया है।
इस झील में लगभग 25 प्रजातियों की खरपतवार (वीड्स और वाटर प्लांट्स) पाई जाती हैं। झील की अहम मछली-ग्रास कार्प इन सभी प्रजातियों की खरपतवार को नहीं खाती है। बल्कि ये मछलियाँ सिर्फ नरम खरतपतवार (सॉफ्ट वीड्स) को ही अपना आहार बनाती हैं। ऐसे में काफी ज्यादा मात्रा में खरपतवार झील में ही जमा रह जाती हैं। हालांकि सफाई अभियानों के जरिए हर साल करीब 6500 मीट्रिक टन वीड्स को झील से निकाल लिया जाता है, लेकिन तब भी काफी खरपतवार इसमें बची रह जाती है।
उल्लेखनीय है कि शिकारों (हाउसबो्टस) से निकलने वाली गन्दगी और खरपतवार की समस्या से निपटने के लिये राज्य सरकार ने वर्ष 2004 में विशेष अभियान के तहत चीन से खास प्रजाति की मछली यानी ग्रास कार्प को मँगाया था। ग्रास कार्प का एक ब्रीडिंग सेंटर भी कश्मीर में बनाया गया था।
ग्रास कार्प की खूबी यह है कि यह अपने भोजन के लिये मुख्य रूप से झीलों और तालाबों में मौजूद जलीय वनस्पतियों और खरपतवार पर निर्भर होती हैं। अध्ययनों में स्पष्ट हुआ है कि अमेरिका और यूरोप में ग्रास कार्प की सहायता से कई झीलों की गन्दगी को हमेशा के लिये खत्म कर दिया गया। लेकिन डल झील की गन्दगी और खरपतवार इतनी ज्यादा है कि ग्रास कार्प के अलावा मशीनों और शिकारों की मदद लेने के बाद भी झील पूरी तरह साफ नहीं हो पाती है।
सम्भवतः इसकी एक बड़ी वजह इस झील में मौजूद 1500 से ज्यादा शिकारें हैं जो पर्यटकों का आकर्षण का केन्द्र होते हैं और जिनसे यहाँ के हजारों लोगों की रोजी रोटी चलती है। यही वजह है कि इनसे निकलने वाली गन्दगी में हर साल करीब 900 करोड़ के खर्च और तमाम प्रयासों के बावजूद कोई कमी नहीं लाई जा सकी है। हालांकि वर्ष 2013 में डल झील की साफ-सफाई का एक जिम्मा सीएसआईआर ने भी उठाने का निर्णय लिया था। सीएसआईआर ने इसके लिये मौजूद सभी उन्नत तकनीकों का सहारा लेना शुरू किया है। सीएसआईआर की कोशिशों का असर डल झील पर दिखना शुरू हो गया है।
श्री अभिषेक कुमार सिंह
आई-201, इरवो पाम कोर्ट (रेल विहार) अल्फा-1
निकट-रेयॉन इंटरनेशनल स्कूल, ग्रेटर नोएडा 201 308 (उ.प्र)
TAGS |
drying lakes, ponds, wetlands, bangluru, city of lakes, karnataka, uttar pradesh, lakes in india, important lakes in india upsc, lakes in india map, list of lakes in india pdf, list of natural lakes in india, list of artificial lakes in india, list of lakes in india state wise, lakes in india gk, salt water lakes in india, bellandur lake, bellandur lake bangalore, bellandur lake fire, bellandur lake pollution, bellandur lake problems, bellandur lake foam, bellandur lake location, bellandur lake history, bellandur lake foam reason, water conservation in wetlands, how to conserve wetlands, wetland conservation methods, importance of conservation of wetlands, wetland conservation in india, how can we conserve our wetlands, wetland conservation pdf, wetland conservation ppt, wetland conservation introduction, water storage in wetlands, what are wetlands, wetlands and groundwater, functions of wetlands, roles of wetlands, wildlife in wetlands, uses of wetlands, vermont wetland functions and values, benefits of wetlands, water storage in wetlands, Wetlands assist in preventing floods, how do wetlands offer flood protection, how do wetlands provide habitat for wildlife, uses of wetlands, how do wetlands protect shorelines from erosion, why are wetlands important, how do wetlands reduce flooding and erosion?, wetlands flood control, wetlands flood prevention, lakes and ponds in uttar pradesh, list of lakes in india, famous lakes in india, devtal lake wiki, fish production in uttar pradesh, important lakes in india upsc, largest lakes in india, list of lakes in india pdf, list of lakes in india state wise, natural freshwater in wetlands, freshwater wetlands definition, why are wetlands important, wetlands ecosystem, importance of wetlands, wetlands movie, wetlands animals, facts about wetlands, types of wetlands, east kolkata wetlands, east kolkata wetlands problems, east kolkata wetlands/pdf, east kolkata wetlands ramsar site, east kolkata wetlands map, east kolkata wetlands location, east kolkata wetlands mouza, east kolkata wetlands case study, east kolkata wetlands area, Encroachment on wetlands, habitat encroachment definition, article on encroachment of nature, encroachment of river basin meaning, river encroachment, dying wetlands of kashmir, dying wetlands in India, status of wetlands in india, total geographical area of wetlands in india, conservation of wetlands in india, conservation of wetlands in india pdf, wetlands in india wiki, conservation of wetlands of india – a review, wetlands in india ppt, list of wetlands in india pdf, drying lakes and ponds, dried up lakes before and after, what causes lakes to disappear, disappearing lakes, lakes drying up in the world, ponds and lakes geographic distribution, lakes and ponds biome, dried up lake bed, ponds and lakes are quizlet. |