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तरुण भारत संघ
वाराणसी 20 जुलाई 2014, काशी कुंभ में आज नौवें एवं आखिरी दिन महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के राजर्षि पुरूषोत्तमदास टण्डन सभागार में शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों, बुद्धजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, विषय विशेषज्ञों, नदी प्रेमियों, सैन्य अधिकारियों एवं राजनेताओं के भारी जमावड़े के बीच काशी कुंभ 2014 संकल्प पत्र पर सर्वसम्मति के साथ सम्पन्न हुआ।
संकल्प पत्र में गंगा को अविरल एवं निर्मल बनाए रखने के लिए तुरंत सभी गलत औद्योगिक, व्यवसायिक एवं तथाकथित विकासीय गतिविधियों को बंद करने तथा गंगा पर किए जा रहे अविरल धारा को बाधित करने वाले बांधों की पुर्नसमीक्षा करने और प्रस्तावित व संभावित नए बांधों या अवरोधों का निर्माण तत्काल रोकने का आह्वान किया गया। गंगाजल गंगा में गंगत्व (ब्रह्मद्रव्य) की तरह प्रवाहित होवे, मानवीय दोषों और औद्योगिक प्रदूषित जल की तरह नहीं। गंगा जी की मर्यादा और सम्मान पूर्ण रूप से सुरक्षित रहे। इस हेतु यह काशी कुंभ में अविरल संघर्ष की घोषणा की गई।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी ने काशी कुंभ में हुई कुंभ की भावना के अनुकूल सार्थक व अर्थपूर्ण चर्चा हर्ष व्यक्त करते हुए देश में होने वाले हर कुंभ के साथ भविष्य में काशी में भी ऐसे कुंभ मंथन का न्योता दिया। लोगों के व्यावसायिक व भौतिक दृष्टिकोण पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि इस देश में गंगा माई है कमाई नहीं, संसाधन नहीं संस्कृति है। पूर्ववर्ती केन्द्र सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में यह समझने में असफल रही जिसका फल जनादेश 2014 में उसने भुगता। आशा है कि अविरल व निर्मल गंगा का जनादेश लेकर आई नई सरकार गंगा के कोप का भाजन नहीं बनना चाहेेगी।
आयोजन के प्रेरणास्रोत मैगसेसे अवार्डी जल पुरूष राजेन्द्र सिंह ने जल और अमृत को अलग रखने की भारतीय दर्शन की विवेकपूर्ण परंपरा से सभा को अवगत कराया और नदी के स्वास्थ्य से मानव-जीव-जंतु, देश, समाज, संस्कृति के स्वास्थ्य के परस्पर संबंधों पर प्रकाश डाला। इस स्वास्थ्य को बनाए रखने में राज, समाज व संतों से जिम्मेदारी निभाने का आह्वान किया। पूर्व बिहार विधानसभा अध्यक्ष श्री सरयू राय ने कहा कि गंगा हमारी जीवनदायिनी हैं।
हमारे देश की सांस्कृतिक व धार्मिक धरोकर गंगा मैया को अपने मूल स्वरूप में लाने के लिए प्रयास करना होगा। रामबिहारी सिंह ने कहा कि जिस गंगा मैया को हरिद्वार के बैराज व टेहरी में बांध बनाकर रोक दिया गया हो ऐसे में गंगा के अविरल व निर्मल प्रवाहित होने की कल्पना कैसे कर सकते हैं।
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के हरिशंकर पाण्डेय ने कहा कि शास्त्रों में गंगा का अर्थ ही अविरल है यानि बिना रूके चलना है। यदि उसकी अविरलता को रोक दिया जाए तो वह निर्मल नहीं हो सकती। उन्होंने बताया कि गंगा की निर्मलता को बनाने के लिए हमारे विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना के छात्र-छात्राएं जागरूकता के काम कर रहे हैं।
अमेरिका से पधारे वैज्ञानिक डॉ. पेट्रिक मैकमारा ने कहा कि गंगा भारत ही को नहीं बल्कि समस्त विश्व को ईश्वर का वरदान है। डॉ. अशोक सिंह के साथ आए स्थानीय लोगों ने सिर्फ चर्चा तक सीमित न होकर असी नदी के उद्गम कंचनपुरा अमराखैरा में जमीनी मुहिम का आश्वासन दिया।
काशी विद्यापीठ के एनएसएस के समन्वयक डॉ. बंशीधर ने कहा कि गंगा के स्वास्थ्य के मुद्दे पर एनएसएस निरंतर चिंतिंत है। इसके लिए छात्रों व अधिकारियों ने एक साथ मिलकर कार्ययोजना बनाई है जिसे क्रियान्वित किया जाएगा।
डॉ. एसबी सिंह ने कहा कि हम जैसे-जैसे विकास की ओर बढ़ रहे हैं हमारी पीड़ी नदी, तालाब, कुआ व बावड़ी आदि के बारे में भूलते जा रहे है। जो चिंता का विषय है।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के डीन वीपी सिंह ने कहा कि पानी, प्रदूषण की समस्या एवं उसके उपाय की जानकारी के विषय प्राथमिक स्तर पर कोर्स शुरू किए जाए। कहा कि नदी के संरक्षण के लिए गांवों में जनजागरण की आवश्यकता है। नदी के किनारे स्थित विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों की एक समिति बनाकर उनकों जिम्मेदारियां सौंपी जाए।
डॉ. हेमंत द्वारा नदियों पर किए गए एक अध्ययन को प्रस्तुत करते हुए कहा कि हमारी नदियां आज इतनी प्रदूषित हो गई हैं कि इसका पानी नहाने लायक भी नहीं बचा। बताया कि 100 मिली में 500 से 2500 बैक्टीरिया शुद्ध पानी में पाए जाते हैं। जबकि गंगा जी के पानी में 5 लाख से लेकर 12 लाख तक बैक्टीरिया मौजूद है जिस कारण कोलरा, कैंसर, डायरिया जैसी बीमारियों से हजारों लोगों की जान जा रही है।
प्रो. अनिल अग्रवाल ने कहा कि गंगा क्षेत्र का सीमांकन कर उसके दोनों तरफ 100-100 मीटर पर फलदार वृक्षों का रोपण किया जाना चाहिए। डॉ. अभय सिंह ने कहा कि गंगा को अविरल व निर्मल करने के लिए हमें सर्वप्रथम गंगा भक्तों को ढूंढना होगा। संगोष्ठी में संदीप पाण्डेय, लेनिन रघुवंशी, रामधीरज, विजय, प्रो. प्रदीप शर्मा, विवेक, डॉ. अंशुमाली शर्मा, रश्मि सहगल, एमएन पणिकर, डॉ. विभूति राय ने भी अपने विचार रखे।
कार्यक्रम के अंत में देशभर से आए शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों, बुद्धजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, विषय विशेषज्ञों, नदी प्रेमियों, सैन्य अधिकारियों एवं राजनेताओं राजेन्द्र सिंह ने आभार व्यक्त किया गया। मेहमान नबाजी के लिए सक्रिय रहे आईआईटी के वैज्ञानिकों और विशेष तौर पर आकस्मिक स्थितियों में कार्यक्रम को सफल बनाने में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की विशिष्ट भूमिका की प्रशंसा की। कार्यक्रम का संचालन गंगाजल बिरादरी के संयोजक डॉ. (मेजर) हिमांशु ने किया। इस मौके पर डॉ. एके सिंह, डॉ. सत्यपाल सिंह कृष्णपाल सिह, डॉ. आरएन रमेश, मुख्य रूप से उपस्थित रहे।
संकल्प पत्र में गंगा को अविरल एवं निर्मल बनाए रखने के लिए तुरंत सभी गलत औद्योगिक, व्यवसायिक एवं तथाकथित विकासीय गतिविधियों को बंद करने तथा गंगा पर किए जा रहे अविरल धारा को बाधित करने वाले बांधों की पुर्नसमीक्षा करने और प्रस्तावित व संभावित नए बांधों या अवरोधों का निर्माण तत्काल रोकने का आह्वान किया गया। गंगाजल गंगा में गंगत्व (ब्रह्मद्रव्य) की तरह प्रवाहित होवे, मानवीय दोषों और औद्योगिक प्रदूषित जल की तरह नहीं। गंगा जी की मर्यादा और सम्मान पूर्ण रूप से सुरक्षित रहे। इस हेतु यह काशी कुंभ में अविरल संघर्ष की घोषणा की गई।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी ने काशी कुंभ में हुई कुंभ की भावना के अनुकूल सार्थक व अर्थपूर्ण चर्चा हर्ष व्यक्त करते हुए देश में होने वाले हर कुंभ के साथ भविष्य में काशी में भी ऐसे कुंभ मंथन का न्योता दिया। लोगों के व्यावसायिक व भौतिक दृष्टिकोण पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि इस देश में गंगा माई है कमाई नहीं, संसाधन नहीं संस्कृति है। पूर्ववर्ती केन्द्र सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में यह समझने में असफल रही जिसका फल जनादेश 2014 में उसने भुगता। आशा है कि अविरल व निर्मल गंगा का जनादेश लेकर आई नई सरकार गंगा के कोप का भाजन नहीं बनना चाहेेगी।
आयोजन के प्रेरणास्रोत मैगसेसे अवार्डी जल पुरूष राजेन्द्र सिंह ने जल और अमृत को अलग रखने की भारतीय दर्शन की विवेकपूर्ण परंपरा से सभा को अवगत कराया और नदी के स्वास्थ्य से मानव-जीव-जंतु, देश, समाज, संस्कृति के स्वास्थ्य के परस्पर संबंधों पर प्रकाश डाला। इस स्वास्थ्य को बनाए रखने में राज, समाज व संतों से जिम्मेदारी निभाने का आह्वान किया। पूर्व बिहार विधानसभा अध्यक्ष श्री सरयू राय ने कहा कि गंगा हमारी जीवनदायिनी हैं।
हमारे देश की सांस्कृतिक व धार्मिक धरोकर गंगा मैया को अपने मूल स्वरूप में लाने के लिए प्रयास करना होगा। रामबिहारी सिंह ने कहा कि जिस गंगा मैया को हरिद्वार के बैराज व टेहरी में बांध बनाकर रोक दिया गया हो ऐसे में गंगा के अविरल व निर्मल प्रवाहित होने की कल्पना कैसे कर सकते हैं।
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के हरिशंकर पाण्डेय ने कहा कि शास्त्रों में गंगा का अर्थ ही अविरल है यानि बिना रूके चलना है। यदि उसकी अविरलता को रोक दिया जाए तो वह निर्मल नहीं हो सकती। उन्होंने बताया कि गंगा की निर्मलता को बनाने के लिए हमारे विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना के छात्र-छात्राएं जागरूकता के काम कर रहे हैं।
अमेरिका से पधारे वैज्ञानिक डॉ. पेट्रिक मैकमारा ने कहा कि गंगा भारत ही को नहीं बल्कि समस्त विश्व को ईश्वर का वरदान है। डॉ. अशोक सिंह के साथ आए स्थानीय लोगों ने सिर्फ चर्चा तक सीमित न होकर असी नदी के उद्गम कंचनपुरा अमराखैरा में जमीनी मुहिम का आश्वासन दिया।
काशी विद्यापीठ के एनएसएस के समन्वयक डॉ. बंशीधर ने कहा कि गंगा के स्वास्थ्य के मुद्दे पर एनएसएस निरंतर चिंतिंत है। इसके लिए छात्रों व अधिकारियों ने एक साथ मिलकर कार्ययोजना बनाई है जिसे क्रियान्वित किया जाएगा।
डॉ. एसबी सिंह ने कहा कि हम जैसे-जैसे विकास की ओर बढ़ रहे हैं हमारी पीड़ी नदी, तालाब, कुआ व बावड़ी आदि के बारे में भूलते जा रहे है। जो चिंता का विषय है।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के डीन वीपी सिंह ने कहा कि पानी, प्रदूषण की समस्या एवं उसके उपाय की जानकारी के विषय प्राथमिक स्तर पर कोर्स शुरू किए जाए। कहा कि नदी के संरक्षण के लिए गांवों में जनजागरण की आवश्यकता है। नदी के किनारे स्थित विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों की एक समिति बनाकर उनकों जिम्मेदारियां सौंपी जाए।
डॉ. हेमंत द्वारा नदियों पर किए गए एक अध्ययन को प्रस्तुत करते हुए कहा कि हमारी नदियां आज इतनी प्रदूषित हो गई हैं कि इसका पानी नहाने लायक भी नहीं बचा। बताया कि 100 मिली में 500 से 2500 बैक्टीरिया शुद्ध पानी में पाए जाते हैं। जबकि गंगा जी के पानी में 5 लाख से लेकर 12 लाख तक बैक्टीरिया मौजूद है जिस कारण कोलरा, कैंसर, डायरिया जैसी बीमारियों से हजारों लोगों की जान जा रही है।
प्रो. अनिल अग्रवाल ने कहा कि गंगा क्षेत्र का सीमांकन कर उसके दोनों तरफ 100-100 मीटर पर फलदार वृक्षों का रोपण किया जाना चाहिए। डॉ. अभय सिंह ने कहा कि गंगा को अविरल व निर्मल करने के लिए हमें सर्वप्रथम गंगा भक्तों को ढूंढना होगा। संगोष्ठी में संदीप पाण्डेय, लेनिन रघुवंशी, रामधीरज, विजय, प्रो. प्रदीप शर्मा, विवेक, डॉ. अंशुमाली शर्मा, रश्मि सहगल, एमएन पणिकर, डॉ. विभूति राय ने भी अपने विचार रखे।
कार्यक्रम के अंत में देशभर से आए शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों, बुद्धजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, विषय विशेषज्ञों, नदी प्रेमियों, सैन्य अधिकारियों एवं राजनेताओं राजेन्द्र सिंह ने आभार व्यक्त किया गया। मेहमान नबाजी के लिए सक्रिय रहे आईआईटी के वैज्ञानिकों और विशेष तौर पर आकस्मिक स्थितियों में कार्यक्रम को सफल बनाने में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की विशिष्ट भूमिका की प्रशंसा की। कार्यक्रम का संचालन गंगाजल बिरादरी के संयोजक डॉ. (मेजर) हिमांशु ने किया। इस मौके पर डॉ. एके सिंह, डॉ. सत्यपाल सिंह कृष्णपाल सिह, डॉ. आरएन रमेश, मुख्य रूप से उपस्थित रहे।