Source
राजस्थान पत्रिका, 04 अगस्त, 2017
किसान खुशहाल होगा तो पूरे देश के चेहरे पर मुस्कान दिखेगी। हमारे पूर्वजों ने इस बात को भलीभाँति समझ लिया था। इसीलिये आजादी के बाद नवनिर्माण के दौर में कृषि को केन्द्र में रखकर नीतियाँ बनाई गईं। पं. जवाहर लाल नेहरू ने पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत की तो उनके मन में गाँव और किसान थे। और जब पहली बार देश पर खाद्यान्न संकट आया तो लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान’ के साथ ‘जय किसान’ का उद्घोष किया। आज जब हम राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी द्वारा किए गए ऐतिहासिक ‘चम्पारण सत्याग्रह’ का शताब्दी वर्ष मना रहे हैं तब कुछ घटनाएँ किसानों के प्रति हमारी नीतियों के बारे में सोचने पर विवश कर रही हैं। मंदसौर में वह घटना भुलाई नहीं जा सकती जिसमें आन्दोलनरत 6 किसानों को जान से हाथ धोना पड़ा।
देश के अन्य भागों में किसानों की आत्महत्याओं की सूचनाएँ किसी भी सभ्य समाज को झकझोरने वाली हैं। आखिर क्यों सरकार किसान को उसकी मेहनत का उचित परिणाम दे पाने में विफल साबित हो रही है? सवाल यह है कि चुनाव के पहले बड़े-बड़े वादे करने वाली सरकारों की प्राथमिकताएँ सत्ता में आते ही क्यों बदल जाती है? क्यों खेती-किसानी का मसला सरकार की नीतियों में हाशिए पर चला गया? सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे हमारे अन्नदाताओं की परेशानियों को समझें और उन्हें तत्काल राहत दें।
फसल की लागत में 50 प्रतिशत मुनाफा जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करने एवं स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने की बात स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार कही। किसान की आय दोगुनी करना तो दूर, सरकार खेती की लागत की भरपाई भी सुनिश्चित नहीं कर सकी है। सच्चाई यह है कि देश भर में आज किसान दोनों तरफ से संकट झेल रहा है।
एक तरफ सामग्री की लागत बढ़ रही है, चाहे वह बीज हो या खाद, पानी हो या ऋण। दूसरी ओर न्यूनतम समर्थन मूल्य में कोई वृद्दि नहीं है। किसानों की लागत की भरपाई नहीं हो पा रही, मुनाफा छोड़िए, घाटे में जा रहे हैं किसान। तुअर दाल, का दाम 2017 में 6000 रुपए प्रति क्विंटल होना चाहिए था जबकि को किसान 5050 रुपए ही मिल पा रहे हैं। आलू-प्याज को सड़कों पर फेंका जा रहा है क्योंकि उसकी लागत भी नहीं निकल रही। मंडियों में अराजकता और भ्रष्टाचार ने किसान की कमर तोड़ दी है। ऐसे में किसान फसल किसे बेचेगा? किसान मंडी में धक्के खाएगा तो अगली फसल की बुआई कब करेगा? फिर भुगतान के लिये एक से डेढ़ महीने इन्तजार करना पड़ता है।
पहले ही नोटबन्दी ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है। चिन्ता की बात यह है कि कर्ज के दबाव के तले दबते जा रहे किसानों की पीड़ा को सिरे से अनदेखा किया जा रहा है। यदि सचमुच आज हर किसान फल-फूल रहा है तो क्यों 2015 में देश भर में 12602 किसानों ने आत्महत्या की? मध्य प्रदेश में ही पिछले डेढ़ महीने में 55 किसान अपनी जान दे चुके हैं जबकि प्रदेश में पिछले एक वर्ष में 1982 आत्महत्याएँ हुई हैं। क्या उनकी जान की कोई कीमत नहीं? अब तो केन्द्र सरकार ने भी सीधे तौर से कर्जमाफ करने से इनकार कर दिया है। उल्टा सरकार के नुमाइन्दे बेतुकी बयानबाजी कर किसानों का रोज अपमान करते हैं। कोई ऋणमाफी की माँग को ‘फैशन’ कहता है तो कोई उन किसानों को ‘सब्सिडी चाटने वाले’ कहता है।
हमारे अन्नदाता हमारे देश के गौरव हैं। आखिर सरकार कब तक अपनी जिम्मेदारी और जवाबदेही से भागती रहेगी? किसानों को बैंक से लोन नहीं मिलता, बीज-खाद की दुकान उधार नहीं देती, तो मजबूरन उसे साहूकारों के आगे हाथ पसारने पड़ते हैं। सरकार को इन किसानों को तुरन्त राहत प्रदान करने के साथ-साथ ऋण की सुविधाएँ आसानी से उपलब्ध कराने के प्रयास करने चाहिए। वर्तमान की लागत के आधार पर समर्थन मूल्य पुनः निर्धारित किया जाए और मंडी-खरीदारी, बीमा योजना में व्यापक अनियमितता का समाधान किया जाए। आलू, प्याज, टमाटर जैसी उपज को प्रोसेसिंग यूनिट्स से जोड़ने के प्रयास किए जाए।
पिछले तीन सालों में भण्डारण व्यवस्था की कमी के कारण लगभग 46,658 टन अनाज सड़ गया। यह अनाज 1 साल के लिये 8 लाख लोगों का पेट भर सकता था। किसानों के उत्पाद को किसी भी राज्य किसी भी मंडी में सुलभ रूप से खरीदने-बेचने के लिये इस प्रक्रिया को और मजबूत बनाने की आवश्यकता है। किसानों के नाम पर वोट लेकर सत्ता में आई केन्द्र सरकार चन्द उद्योगपतियों के ढाई लाख करोड़ के लोन तो माफ कर सकती है लेकिन देश के हजारों-लाखों किसान भाइयों के 5 लाख 32 हजार करोड़ के ऋण माफ करने से साफ इन्कार करती है।
यह स्थिति दुर्भाग्यजनक है। बात सिर्फ न्यूनतम समर्थन मूल्य या कर्जमाफी की नहीं बल्कि यह देश की आधी से ज्यादा आबादी के आत्मसम्मान और उसके अस्तित्व की है। कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था भारतवर्ष की असली पूँजी है। खेत, खलिहान कृषि क्षेत्र की अनदेखी और किसान का अनादर वास्तव में किसी दुर्भाग्यपूर्ण त्रासदी से कम नहीं होगा।