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नेशनल दुनिया, 22 जुलाई 2012
उत्तराखंड में कमजोर मानसून के चलते सूखे की ओर इशारा कर रहा है। राज्य सरकार ने जिलों से फसलों का ब्यौरा मांगा है। इसके बाद ही कोई कदम उठाया जाएगा। औद्योगिक क्षेत्र में भी यह सूखा अपना प्रभाव दिखा चुका है। सूखे से जहां लीची की फसल इस बार देहरादून में चौपट हुई वहीं आम की फसल भी चौपट हुई है। आलू उत्पादक भी सूखे से प्रभावित हुए हैं।
उत्तराखंड में सूखे की आहट से सरकार चिंतित है। सरकार ने सूखे से किसानों की फसलों के चौपट होने का ब्यौरा तलब किया है। राज्य के दस जिले सूखे से ज्यादा प्रभावित बताए जा रहे हैं। कमजोर मानसून के चलते धान की फसल सबसे प्रभावित हो रही है। राज्य के कृषि मंत्री हरक सिंह रावत ने प्रदेश में सूखे जैसे हालात पर मुख्यमंत्री का ध्यान आकर्षित कर उचित कदम उठाने की सलाह दी है। रावत ने मांग की है कि केंद्र राज्य को सूखाग्रस्त घोषित कर विशेष सहायता देने का ऐलान करे।कृषि मंत्रालय के अनुसार औसत से कम एवं रुक-रुक कर हो रही वर्षा ने तीस फीसदी फसल चौपट हो जाने का इशारा किया है। उद्यान और फसलों की बर्बादी की खबरें आ रही हैं। प्रदेश के पर्वतीय जिलों में मात्र 14 प्रतिशत खेती योग्य क्षेत्र ही सिंचित है। इससे स्पष्ट है कि यहां पर खेती-बाड़ी पूरी तरह से वर्षा पर ही निर्भर है। सूखे का असर मात्र खेती पर ही पड़ रहा हो ऐसा नहीं है। बिजली परियोजनाओं पर भी इसका विपरीत असर पड़ रहा है। पानी की कमी से कई जल विद्युत परियोजनाओं में उत्पादन प्रभावित हुआ है।
पानी की कमी से कई जगह धान की रोपाई नहीं हुई हैं। यदि पिछले वर्ष से तुलना की जाए तो देहरादून में 34 फीसदी कम बारिश, हरिद्वार में 62 प्रतिशत, पौड़ी में 32 प्रतिशत और टिहरी में 17 प्रतिशत कम बारिश हुई है। जमीन में नमी दिनों-दिन कम होने से फसलों का चौपट होना तय माना जा रहा है। यह कमजोर मानसून के चलते सूखे की ओर इशारा कर रहा है।
राज्य सरकार ने जिलों से फसलों का ब्यौरा मांगा है। इसके बाद ही कोई कदम उठाया जाएगा। औद्योगिक क्षेत्र में भी यह सूखा अपना प्रभाव दिखा चुका है। सूखे से जहां लीची की फसल इस बार देहरादून में चौपट हुई वहीं आम की फसल भी चौपट हुई है। आलू उत्पादक भी सूखे से प्रभावित हुए हैं।