Source
डॉ. दिनेश कुमार मिश्र की पुस्तक 'दुइ पाटन के बीच में'
दोनों इंजीनियरों के चीन से लौटने के बाद इनकी रिपोर्ट के कुछ हिस्सों को सितम्बर 1954 में लोकसभा में पढ़ कर सुनाया गया था और लोकसभा सदस्यों से उम्मीद की गई थी कि वह कोसी तटबन्धों की भूमिका पर बेवजह परेशान न हों। जाहिर तौर पर यह विशेषज्ञ ह्नांग हो नदी के तटबन्धों की भूमिका से सन्तुष्ट थे और उन्होंने कोसी नदी पर तटबन्धों की सिफारिश की क्योंकि कोसी किसी भी मायने में ह्नांग हो जितनी खतरनाक नदी नहीं थी।
अंग्रेजी में एक कहावत है गाड़ी को घोड़े के आगे जोतना और कुछ ऐसा ही किया गया जब कँवर सेन, तत्कालीन अध्यक्ष-केन्द्रीय जल एवं विद्युत आयोग और डॉ. के.एल. राव, तत्कालीन निदेशक, केन्द्रीय जल एवं विद्युत आयोग, ह्नाँग हो नदी (पीली नदी) के तटबन्धों का अध्ययन करने के लिए मई 1954 में चीन भेजे गये जिससे कि वे कोसी तटबन्धों पर अपनी सिफारिश कर सकें। मजा यह था कि योजना 1953 में स्वीकृत हो चुकी थी और इसकी विधिवत घोषणा भी लोकसभा में हो चुकी थी। गुलजारी लाल नन्दा ने दो-दो बार योजना के पक्ष में बयान भी दिये। इतना हो जाने के बाद यह दोनों विशेषज्ञ चीन भेजे गये और इन्होंने वापस आकर ठीक वही रिपोर्ट पेश की जिसके लिए सरकार ने इन्हें वहाँ भेजा था। इन लोगों ने ह्नाँग हो नदी योजना के प्रबन्धन और जन सहयोग के पहलू पर तो जरूर कसीदे कहे पर इसके तकनीकी और विध्वंसकारी पक्ष को एकदम दबा गये।कँवर सेन और डॉ. के.एल. राव ने चीन से वापस आने पर अपनी रिपोर्ट में लिखा है- “...जहाँ पीली नदी में बहती हुई अधिकांश सिल्ट महीन है वहीं कोसी में महीन सिल्ट से लेकर मोटा बालू तक पाया जाता है। यदि पीली नदी अपने सिल्ट भार को आसानी से समुद्र तक ले जा सकती है तब यदि कोसी के पानी से मोटे बालू के कणों को अलग कर लेने की व्यवस्था कर ली जाये तो कोई वजह नहीं है कि कोसी को क्यों इस तरह काबू में नहीं लाया जा सकता कि वह अपनी सिल्ट, जिसके कारण नदी की धारा बदलती है, बहा न ले जाये।”
रिपोर्ट में सिफारिशें देते हुए लिखा गया है कि- “...क्योंकि पीली नदी के तटबंध सदियों से सक्षम माने गये हैं, यद्यपि उनमें रख-रखाव तथा किनारों की निगरानी की समस्या के कारण समय-समय पर दरारें पड़ी हैं, कोसी तटबंध का निर्माण, बराज के निर्माण से भी पहले, तुरन्त शुरू करना चाहिये। स्थानीय जनता को अभी निर्माण के लिए तथा बाद में रख-रखाव के लिए प्रोत्साहित करना चाहिये। खतरनाक जगहों पर पत्थरों का जमाव तथा जहाँ जरूरत हो नदी की तलहटी की खुदाई करके धारा को स्थिर रखा जा सकता है।” तथा “...कोसी के मुकाबले पीली नदी कहीं ज्यादा सिल्ट को बहुत आसानी से बहा ले जाती है। अतः कोसी में मौजूद सिल्ट बहुत ज्यादा परेशानी प्रस्तुत नहीं करेगी। केवल मोटे बालू को अलग करना होगा। महीन और मध्यम आकार के सिल्ट कण, यदि इनका परिमाण वर्तमान के मुकाबले बढ़ भी जाये तब भी, वह कोसी के प्रवाह में बह जायेंगे जैसा कि पीली नदी के सन्दर्भ में हो रहा है।”
इन दोनों इंजीनियरों के चीन से लौटने के बाद इनकी रिपोर्ट के कुछ हिस्सों को सितम्बर 1954 में लोकसभा में पढ़ कर सुनाया गया था और लोकसभा सदस्यों से उम्मीद की गई थी कि वह कोसी तटबन्धों की भूमिका पर बेवजह परेशान न हों। जाहिर तौर पर यह विशेषज्ञ ह्नांग हो नदी के तटबन्धों की भूमिका से सन्तुष्ट थे और उन्होंने कोसी नदी पर तटबन्धों की सिफारिश की क्योंकि कोसी किसी भी मायने में ह्नांग हो जितनी खतरनाक नदी नहीं थी।
मगर न तो ह्नाँग हो नदी अपना सारा पानी बड़ी सरलता से समुद्र में ढाल पा रही थी और न ही उस पर बने तटबंध किसी भी प्रकार से पूरी तरह सुरक्षित और कारगर थे और जिस समय हमारे विशेषज्ञ चीन में घूम रहे थे उसके काफी पहले से वहाँ के लोग और वहाँ की सरकार अपनी नदियों के बारे में एक दम अलग तरीके से सोच रही थी।