क्रोस्थवेट अस्पताल नैनीताल

Submitted by Shivendra on Wed, 02/12/2020 - 16:06
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नैनीताल एक धरोहर

17 अक्टूबर, 1894 को नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध के लेफ्टिनेंट गवर्नर एंव चीफ कमिश्नर सर चार्ल्स एच.टी.क्रोस्थवेट ने मल्लीताल में क्रोस्थवेट अस्पताल का शिलान्यास किया। अस्पताल के लिए यह जगह दुर्गालाल साह से खरीदी गई थी। इस जगह का पुराना नाम ‘वैलीव्यू’ था। अस्पताल के निर्माण में 33,733 रुपए खर्च हुए। इसमें से अधिकांश धनराशि रैमजे अस्पताल द्वारा दी गई। कुछ रकम चंदे से भी जुटाई गई। अस्पताल भवन में दो तल बने।

17 अक्टूबर, 1894 को नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध के लेफ्टिनेंट गवर्नर एंव चीफ कमिश्नर सर चार्ल्स एच.टी.क्रोस्थवेट ने मल्लीताल में क्रोस्थवेट अस्पताल का शिलान्यास किया। अस्पताल के लिए यह जगह दुर्गालाल साह से खरीदी गई थी। इस जगह का पुराना नाम ‘वैलीव्यू’ था। अस्पताल के निर्माण में 33,733 रुपए खर्च हुए। इसमें से अधिकांश धनराशि रैमजे अस्पताल द्वारा दी गई। कुछ रकम चंदे से भी जुटाई गई। अस्पताल भवन में दो तल बने। भू-तल में पुरुष और प्रथम तल में महिला अस्पताल बना। लेफ्टिनेंट गवर्नर के रूप में सर चार्ल्स क्रोस्थवेट का कार्यकाल समाप्त होने के एक साल बाद 1896 में अस्पताल बन कर तैयार हो गया। अस्पताल का उद्घाटन लेफ्टिनेंट गवर्नर सर एंटोनी पेट्रिक मैकडॉनल ने 1896 में किया। अस्पताल की व्यवस्थाओं, देख-रेख और संचालन के लिए इसे नगर पालिका बोर्ड को सौंप दिया गया। इसे ‘काले लोगों’ (नेटिव) का अस्पताल कहा जाता था।

 7 जनवरी, 1895 को सरकार ने नगर पालिका बोर्ड से तल्लीताल में बने तीन कुली ब्लॉकों में से एक ब्लाक सचिवालय के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के आवास के लिए माँगा। सरकार ने कहा कि वह इस कुली ब्लॉक की वास्तविक लागत 9.609 रुपए नगर पालिका को अदा करने के लिए तैयार है। इससे स्पष्ट होता है कि उस दौर में नगर पालिका बोर्ड के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद पर सहायक आयुक्त स्तर के अधिकारियों के पदस्थ होने के बावजूद नगर पालिका बोर्ड पूरी तरह स्वायत्त एवं स्वतंत्र थी। पालिका का ‘स्थानीय सरकार’ का स्वरूप बरकरार था। नगर पालिका भी अपने दायित्वों के प्रति ईमानदार और सजग थी।

 जनवरी, 1895 को म्युनिसिपल कमेटी के अध्यक्ष ने शेर-का-डांडा पहाड़ी के ढलान की जाँच को कमेटी बनाई। पी.डब्ल्यू.डी. के अधिशासी अभियंता जे.पी.वाइल्डब्लड को स पहाड़ी की जाँच और सुरक्षा के उपाय सुझाने के लिए नियुक्त किया गया। इन्हीं दिनों मिस्टर एफ.गिल्स ने ग्राण्ड होटल तथा बैंक हाउस के पीछे स्थित दीवारों पर आई दरारों पर अपनी रिपोर्ट दी।

 26 जनवरी, 1895 को कुमाऊँ के तत्कालीन कमिशअनर लेफ्टिनेंट कर्नल ई.ई.ग्रिज ने अपनी टिप्पणी में कहा कि उन्होंने अपने मुआयने के दौरान ग्राण्ड होटल से इलाहाबाद बैंक परिसर तक कई स्थानों पर दरारें देखी है। ग्राण्ड होटल के पिछले हिस्से में स्थित सुरक्षा दीवारों में दरारें हैं। इलाहाबाद बैंक परिसर की जमीन सभी दिशाओं में धंस रही है। कमिश्नर की इस टिप्पणी के फौरन बाद सुपरिंटेंडेट इंजीनियर कर्नल पुलफोर्ड ने 16 फरवरी, 1895 को इन दरारों का मुआयना किया। इस बारे में 21 मार्च, 1895 को उन्होंने चीफ इंजीनियर को अपनी रिपोर्ट दी।

 13 फरवरी, 1895 को जिला इंजीनियर एफ.ओ.ऑएरटेल ने स्नोव्यू पहाड़ी पर बने राजभवन के बारे में अपनी जाँच रिपोर्ट जारी की। उन्होंने रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया कि सेंट-लू गॉर्ज स्थित अपर बैडमिंटन कोर्ट की दरारें फिर खुलने लगी हैं और राजभवन के नीचे की सड़क में भी दरारें आ रही है। 15 मार्च, 1895 को ही नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस की सरकार के सचिव डब्ल्यू.एच.एल.इम्पे ने फ्लैट्स के रख-रखाव और नई सड़कों के निर्माण के लिए नगर पालिका को 15 हजार रुपए दिए। 15 मार्च, 1895 को ही नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध सरकार ने नगर पालिका बोर्ड के पशुवध स्थल उपविधि को स्वीकृति प्रदान की। इस उपविधि के लागू होने के बाद किसी भी जानवर को पालिका द्वारा निश्चित पशुधन स्थल के अलावा कहीं अन्यत्र नहीं मारा जा सकता था। 27 मार्च, 1895 को ले.कर्नल एफ.वी.कार्बेट एवं ले.कर्नल आर.आर.पुलफोर्ड ने राजभवन को लेकर अपनी रिपोर्ट दी। 29 मार्च, 1895 को नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस ने लखनऊ से कलकत्ता तार भेजकर राजभवन की सुरक्षा की जाँच भू-गर्भ विभाग के किसी अनुभवी भू-वैज्ञानिक द्वारा कराए जाने का अनुरोध किया। 1 अप्रैल, 1895 को नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध के लोक निर्माण विभाग के सचिव जे.जी.एच.ग्लास ने भारत सरकार के पी.डब्ल्यू.डी. सचिव को पत्र भेजकर राजभवन के बारे में वैज्ञानिकों की रिपोर्ट के मद्देनजर 1896 से लेफ्टिनेंट गवर्नर के लिए नैनीताल में वैकल्पिक आवास की व्यवस्था करने का अनुरोध किया।

 ब्रिटिश सरकार नैनीताल में नाला एवं सीवर व्यवस्था के प्रति बेहद गम्भीर थी। पर नगर पालिका के स्तर पर इस मामले में कोताही बरती जा रही थी। सरकार इस मुद्दे पर नगर पालिका को कई बार लताड़ चुकी थी। सरकार की तगड़ी डांठ के बाद आखिरकार 25 अप्रैल, 1895 को नगर पालिका को इस मामले में विशेष बैठक बुलानी पड़ी। इस बैठक में नगर पालिका ने प्रस्ताव संख्या-तीन द्वारा ‘सीवरेज एण्ड ड्रेनेज एक्ट-III ऑफ 1894’ के तहत उपविधियों का प्रस्ताव स्वीकार कर सरकार के पास भेजा। सरकार ने नगर पालिका द्वारा भेजे गए उपविधियों के प्रारूप को तकनीक परीक्षण के लिए नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध के स्वास्थ्य इंजीनियर के पास भेज दिया।