रैमजे अस्पताल नैनीताल

Submitted by Shivendra on Mon, 02/10/2020 - 10:03
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नैनीताल एक धरोहर

 रैमजे अस्पताल नैनीताल

रैमजे अस्पताल नैनीताल

1892 में कुमाऊँ के पूर्व कमिश्नर जनरल सर हैनरी रैमजे की स्मृति में रैमजे अस्पताल की नींव रखी गई। अस्पताल के निर्माण में करीब सवा दो लाख रुपए खर्च हुए। यह धनराशि सरकारी अनुदान और चंदे से जुटाई गई। सर हैनरी रैमजे 16 वर्ष तक कुमाऊँ के सहायक आयुक्त फिर 20 फरवरी, 1856 से 1884 तक 28 साल कुमाऊँ के कमिश्नर रहे थे। ब्रिटिश राज में सर हैनरी रैमजे बेहद लोकप्रिय अधिकारी थे, उन्हें कुमाऊँ का बेताज बादशाह कहा जाता था। 

रैमजे अस्पताल साढ़े 17 एकड़ जमीन में बना। चिकित्सकीय सुविधाओं के लिहाज से तब रैमजे अस्पताल की गिनती एशिया के बेहतरीन अस्पतालों में होती थी। रैमजे अस्पताल यूरोपियन आला अफसरों के इलाज के लिए एशिया भर में मशहूर था। प्रथम और द्वितीय श्रेणी के सिविल और सैन्य अधिकारी दूर-दूर से इलाज कराने यहाँ आते थे। उस दौर में यहाँ ब्रिटिश सरकार के उच्चाधिकारियों का ही इलाज होता था। इस अस्पताल के लिए नर्सिंग स्टाफ भी इंग्लैंड से मंगाया जाता था। अस्पताल एक अप्रैल से 21 अक्टूबर तक साल में सिर्फ सात महीने खुलता था। ब्रिटिश राज में हिन्दुस्तानी रैमजे अस्पताल को ‘गोरों का अस्पताल’ कहा करते थे।

नैनीताल के जिला बनने के बाद यहाँ 1892 में कोषागार कार्यालय बना। कोषागार कार्यालय के निर्माण में रु. 2896 खर्च हुए। इसी साल कोषागार का स्ट्रांग रूम बना। इसके निर्माण में 5691 रुपए खर्च हुए। 1892 में ही कलक्ट्रेट की चपरासी लाइन का निर्माण हुआ, जिसकी निर्माण लागत 6885 रुपए थी। 1892 में नैनीताल में इलाहाबाद बैंक की शाखा खुली। इलाहाबाद बैंक, नैनीताल में खुलने वाला पहला बैंक था। शुरुआत में यह बैंक मालरोड में खुला। 1892 नैनीताल क्लब की मुख्य इमारत बन कर तैयार हुई। इसे भारतीय उच्च सैन्य अधिकारियों का क्लब बना दिया गया।

मेजर जनरल सी.एस.थॉमसन की एक रिपोर्ट के बाद 1893 में नैनीताल में रेल लाइन का मुद्दा फिर गर्मा गया। काठगोदाम से नैनीताल तक बिजली संचालित रेलवे की योजना पर मेजर जनरल थॉमसन की रिपोर्ट के आधार प नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध के पी.डब्ल्यू.डी.सचिव मिस्टर जे.जी.एच.ग्लास ने 7 जुलाई, 1893 को लेफ्टिनेंट गवर्नर को एक विस्तृत टिप्पणी भेजी। टिप्पणी में कहा गया कि रेलवे योजना के पीछे विचार है कि दार्जलिंग और शिमला की तर्ज पर यहाँ रेल लाइन बिछाई जाए। टिप्पणी में नैनीताल के लिए पानी की आपूर्ति, सीवर व्यवस्था, बिजली, रेलवे, लिफ्ट, प्रौद्योगिक शिक्षा एवं संचार साधनों के विकास और नैनीताल के विस्तार की योजनाएँ बनाए जाने की सख्त जरूरत बताई गई। साथ में कुमाऊँ में यूरोपियन की आबादी को बढ़ाने पर भी जोर दिया गया।

सरकार का मत था कि नैनीताल के आस-पास असीमित पानी उपलब्ध है, इसे बिजली के उत्पादन के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। भाप के बजाय नैनीताल के लिए विद्युत संचालित रेल चलाई जा सकती है। सुझाव दिया गया कि चड़ता गाँव में बिजली प्रौद्योगिकी का स्कूल खोला जा सकता है। चड़ता की जलवायु रुड़की से कहीं बेहतर है। योजना थी कि इस स्कूल को सहायता प्राप्त सरकारी स्कूल के रूप में थॉमसन कॉलेज से सम्बद्ध किया जाए। स्कूल की मुख्य शाखा नैनीताल में हो। चड़ता गाँव में विद्युत कार्यशाला खोली जाए। किताबी पढ़ाई नैनीताल में और तकनीकी एवं व्यवहारिक ज्ञान चड़ता की विद्युत कार्यशाला में दिया जाए।

नैनीताल के रेलवे की मीटर गेज लाइन में 10 लाख रुपए खर्च होने का अनुमान था। रेलवे लाइन में 30 हजार रुपए प्रति मील का खर्च आ रहा था, जबकि मोटर सड़क के निर्माण की लागत 12 हजार रुपए प्रति मील आ रही थी। नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध सरकार के आला अधिकारियों का भी मानना था कि नैनीताल के लिए विद्युत संचालित रेल सेवा ब्रिटिश सरकार की एक उपलब्धि होगी। प्रस्ताव था कि नैनीताल की झील को किसी किस्म की पर्यावरणीय हानी पहुँचाए बिना बिजली के उत्पादन के लिए झील से पानी लिया जाएगा। पानी के मूल्य का भुगतान रेलवे करेगी। यह भी कहा गया कि तेज गर्मियों के दौरान भीमताल और सातताल का पानी सिंचाई के लिए भाबर को दिया जाएगा। बाकी दिनों जरूरत पड़ने पर रेलवे भीमताल और सातताल की झीलों के पानी का भी उपयोग कर सकती है। नैनीताल की झील से एक सीमा तक ही पानी लिया जाना सम्भव था। कहा गया कि नैनी झील का जल स्तर एक सीमा से अधिक कम होना नैनीताल की पहाड़ियों की सुरक्षा के लिए गम्भीर खतरा उत्पन्न कर सकता है। जनरल थॉमसन की राय थी कि चड़ता गाँव में रेलवे के लिए आवासीय कॉलोनी बनाई जाए। नैनीताल रेलवे के लिए काठगोदाम के पास खालसा नदी में पुल बनाने का प्रस्ताव था। रूहेलखण्ड एण्ड कुमाऊँ रेलवे बोर्ड भी इस प्रस्ताव पर राजी हो गया था। कहा गया कि अगर यह प्रयोग में असफल भी हो गया तो नुकसान कुछ नहीं होना है।

फरवरी, 1893 में निदेशक, भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण ने अयारपाटा पहाड़ी के बारे में अपनी रिपोर्ट दी। 11 जुलाई, 1893 को जनरल सी.एस.थॉमसन ने नैनीताल रेलवे को लेकर अनुस्मारक पत्र दिया। कहा कि नैनीताल रेलवे की मूल योजना विद्युत संचालित रेल की है। योजना में 1डिग्री से 17 डिग्री ग्रेडेंट में बनाई गई है। तालाब से हजारों फीट नीचे स्थित बेलुवाखान गाँव में बिजली स्टेशन बनाना प्रस्तावित है। कहा गया कि नैनीताल के तालाब से पाँच घन फीट प्रति सेकेंड यानी तीन सौ घन फीट मिनट पानी का निकास होता है। रेलवे को आठ घण्टा काम करने के लिए प्रतिदिन साढ़े तीन सौ हार्स पावर बिजली की आवश्यकता होगी। इतनी बिजली इस पानी से आसानी से उत्पादित की जा सकती है।