कुएँ को पाटने की तैयारी

Submitted by Hindi on Tue, 07/28/2015 - 14:09
. इन दिनों मध्यप्रदेश का एक गाँव अपने कुएँ की लड़ाई लड़ रहा है। जिस कुएँ से सारे गाँव की प्यास बुझती है उसे ही सरकारी कम्पनी के लोग पाटने की तैयारी कर रहे हैं। गाँव वाले भी आर–पार की लड़ाई के लिए कमर कस चुके हैं। उन्होंने दावा किया है कि वे किसी भी कीमत पर अपने गाँव का कुआँ पाटने नहीं देंगे। उधर सरकारी कम्पनी ने भी गाँव वालों को एक महीने की मोहलत देकर साफ़ चेतावनी दे दी है कि एक महीने में वे अपने लिए पानी का खुद इंतजाम करें। एक महीने बाद कुआँ पाट दिया जायेगा।

यह है खंडवा जिले के पुनासा विकासखंड का गोराडिया गाँव। करीब चार हजार की आबादी वाला छोटा सा गाँव इन दिनों एक बड़ी समस्या से गुजर रहा है। इस गाँव में पीने के पानी का बड़ा संकट सन 2000 के आस-पास से ही शुरू हो गया था। यहाँ की भौगोलिक परिस्थितियाँ ऐसी है कि यहाँ जमीन में पानी बहुत गहराई तक चला गया है इसलिए यहाँ बोरिंग सफल नहीं हो पाते हैं। साल दर साल पीने के पानी की कमी होती गई और 2005 आते–आते तो हालात बहुत ही बिगड़ गए। मुश्किल यहाँ तक आ पहुँची कि लोगों को 2–3 किमी दूर अपने खेतों से बैलगाड़ियों पर ढोकर पानी लाना पड़ा। बड़े काश्तकार, जिनके पास बैलगाड़ियों जैसे संसाधन थे उनके लिए तो फिर भी पानी का इंतजाम हो जाया करता पर छोटे काश्तकार और बाकी लोगों के लिए क्या...? पानी की जरूरत तो सभी लोगों को होती है न। हालात बिगड़ने लगे तो लोगों ने पंचायत में अपनी बात रखी।

पंचायत ने पेयजल संकट के लिए प्रस्ताव पारित कर जनपद और जिला अधिकारियों को भेजे, कई महीनों की मशक्कत के बाद गाँव में जल संकट से निबटने के लिए सरकार ने कई जगह ट्यूबवेल खनन कराए पर कोई भी सफल नहीं रहा। इससे गाँव वालों की पानी को लेकर चिन्ता बढ़ गई पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। पंचायत ने भी अपनी गलती मानी और तय किया कि यहाँ ट्यूबवेल सफल नहीं हो पा रहे हैं तो ग्राम पंचायत अपने मद से यहाँ एक कुआँ बनाएगी। आखिरकार गोराडिया के आदिवासी मोहल्ले में शिव मंदिर के पास पंचायत की ओर से करीब पाँच लाख रूपये की लागत से कुएँ की खुदाई शुरू हुई और कुछ ही महीनों में कुएँ से पानी आने लगा। लोगों की ख़ुशी का ठिकाना न रहा।

पहली बारिश के बाद तो कुएँ में इतना पानी भर गया कि लोग आसानी से हाथ भर रस्सी से ही पानी भर लिया करते। गाँव वालों के लिए तो यह कुआँ खुशियों की सौगात की तरह बन गया। अब वे पानी के लिए भटकते नहीं थे। इस तरह ख़ुशी–ख़ुशी दस साल कब बीत गए, खुद उन्हें भी पता नहीं चला पर वर्ष 2015 उनके लिए एक बुरी खबर लेकर आया। यहाँ प्रदेश के लिए बिजली बनाने वाली एक कम्पनी के अधिकारी पहुँचे और उन्होंने गाँव वालों को फरमान सुना डाला कि एक महीने बाद उनके गाँव का यह कुआँ पाट दिया जायेगा। वे अपने पानी के लिए एक महीने में कोई दूसरा विकल्प खोज लें। इस बात से पूरे गाँव में सन्नाटा छा गया। बमुश्किल लम्बे इन्तजार और मशक्कत के बाद उन्हें पानी मिला था और अब उसे भी छिना जा रहा है। गाँव के लोग मन्दिर में इकट्ठा हुए और सबने इस पर भारी ऐतराज जताया।

दरअसल खंडवा जिले में इंदिरा सागर बाँध के बेकवाटर क्षेत्र में सरकार ने संत सिंगाजी ताप विद्युत परियोजना प्रारम्भ की है। इस परियोजना के लिए कच्चे माल के रूप में कोयले की बहुत ज्यादा जरूरत होती है। कोयले की बड़ी तादाद में पूर्ती के लिए यहाँ सुरगाँव बंजारी से बीड तक रेलवे लाइन डाली जा रही है ताकि कोयले की रैक निर्बाध रूप से ताप परियोजना को मिलती रहे। इसके लिए सर्वे का काम भी पूरा कर लिया गया है और सरकार ने इस सर्वे के मुताबिक़ माँगी गई जमीन भी म.प्र पॉवर जनरेटिंग कम्पनी (एमपीपीजीसीएल) को उपलब्ध करा दी है।

अब समस्या यह है कि इस कम्पनी को सरकार ने रेलवे पटरी बिछाने के लिए जो जमीन आबंटित की है, उसी में गोराडिया गाँव का वह कुआँ और उसके आस-पास की जमीन भी आ रही है। अब गाँव वाले परेशान हैं कि करें तो क्या। फिलहाल तो उन्होंने कुएँ के लिए अपनी लड़ाई लड़ने का फैसला किया है।

गाँव की सरपंच फूलवंतीबाई बताती हैं कि हम मानते हैं कि कोयले की रैक पहुँचाने के लिए रेलवे ट्रैक की जरूरत है, हमें गाँव की जमीन देने से भी कोई ऐतराज नहीं है पर हमारा कहना है कि सिर्फ हमारे कुएँ भर जगह छोड़ दो या हमें दूसरी जगह कुआँ बना कर दे दो लेकिन कम्पनी के अधिकारी फिलहाल दोनों ही बात नहीं मान रहे हैं। यदि यही अरियल रवैया रहा तो हम यहाँ से कोयला आगे नहीं जाने देंगे। हमें बमुश्किल पानी का एक सहारा मिला है, उसे हम खोना नहीं चाहते। ग्रामीण अनार सिंह बताते हैं कि बिजली के बिना तो फिर भी रहा जा सकता है पर पानी के बिना हम ज़िंदा ही कैसे रहेंगे। हम पहले ही दस साल तक पानी का संकट झेल चुके हैं अब और संकट में नहीं पड़ना चाहते। सरकार बिना वैकल्पिक सुविधा दिए हमारी सुविधा कैसे छीन सकती है। यह पूरे गाँव की प्यास बुझाने वाला ज़िंदा कुआँ है। रेलवे ट्रैक को यदि हल्का सा भी मोड़ दिया जाये तो कुआँ बच सकता है। कई जगह ऐसा होता भी है। हमने जिला अधिकारीयों को भी इसके लिए सूचित किया है पर अभी तक हमारे हक़ में कोई सामने नहीं आया है।

इलाके के जनपद सदस्य आशीष चौरे ने बताया कि इस सम्बन्ध में मैंने खुद गोरडिया जाकर मुआयना किया है। ग्रामीणों की बात सही है। पूरा गाँव पीने के पानी के लिए इसी पर आश्रित है। ऐसे में यदि यह कुआँ भी पाट दिया गया तो गाँव में जल संकट के हालात बन जायेंगे। यदि कम्पनी इस कुएँ को बंद करना चाहती है तो वह पहले गाँव के लिए पानी की वैकल्पिक अन्य कोई व्यवस्था करें। श्री चौरे ने बताया कि उन्होंने ग्रामीणों के साथ खुद जाकर पुनासा के एसडीएम को ज्ञापन देकर इससे अवगत कराया है।

पुनासा एसडीएम पी. कार्तिकेयन ने बताया कि ग्रामीणों की ओर से इस आशय का ज्ञापन मिला है। हम इस मामले में एमपीपीजीसीएल के अधिकारियों से चर्चा करेंगे कि गाँव वालों को पीने के पानी की किल्लत न हो सके। यदि गाँव में इसके अतिरिक्त पानी की कोई सुविधा नहीं होगी तो ज़रुर वैकल्पिक सुविधा पर चर्चा करेंगे। उधर एमपीपीजीसीएल के एसी आरके मल्होत्रा ने बताया कि हमें ट्रैक के लिए जो जमीन उपलब्ध कराई गई है उसमें फिलहाल उन्हें कुआँ होने की कोई जानकारी नहीं दी गई है। यदि शासन स्तर पर हमें कुएँ का मुआवजा देने के आदेश मिलेंगे तो हम तैयार हैं। ग्रामीण अनिल हरि सिंह ने बताया कि सरकार लोगों को पीने के पानी की व्यवस्थाएँ करती है फिर हमारे गाँव से पीने के पानी की सुविधा को क्यों छिना जा रहा है। नंदलाल भाई बताते हैं कि यदि अधिकारियों ने जबरदस्ती कुएँ को पाटने की कोशिश की तो गाँव के लोग चुप नहीं बैठेंगे। हम सरकार के खिलाफ उग्र आन्दोलन भी करने से नहीं हटेंगे।