Source
राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान
हिमालय में वनों के विनाश से जो पर्यावरणीय दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं उनमें से एक मृदा क्षरण की बढ़ती दर है, जिसके अध्ययन के लिए कोसी नदी के खुलगाड जलागम क्षेत्र को चुना गया था। इस जलागम के विभिन्न परिस्थितिक दशाओं से होने वाला अपरदन दर्शाता है कि मानविक और विवर्तनिक क्रियाओं ने अपरदन की दर को बड़ी तेजी से त्वरित कर दिया है। ओक के जंगल क्षेत्र में कुल भार (निलम्बित भार + विलीन भार + तलावसाद) का उत्पाद दर सबसे कम है। जबकि इसकी तुलना में विवर्तनिक विक्षुब्ध भूमि में यह उत्पाद दर 12.5 गुना अधिक, (Tectonically Disturbed Land) बंजर भूमि में 8.6 गुना कृषि भूमि में 6.9 गुना और चीड़ के जंगल में 2.3 गुना अधिक है। इसी तरह एक दृष्टि यदि खुलगाड जलागम से होने वाले कुल अपरदन पर डालें तो विभिन्न पारिस्थितिक दशाओं में यह 0.018 मि.मी./ वर्ष से 0.226 मि.मी./वर्ष के बीच पायी गई है।
हिमालय के तीव्र ढाल वाली ऊँची-ऊँची पहाड़ियों में वृक्षों का घना आंचल और जमीन पर पड़ी घास-पात की चादरें वर्षा की बौछारों तथा हवा के थपेड़ों से धरती को घायल होने से बचाने में एक सुरक्षा कवच प्रदान करती रही है। इस क्षेत्र में बढ़ती जनसंख्या वनों को नष्ट करके उसे कृषि भूमि में परिवर्तित करता जा रहा है, जिससे जलविभाजकों के वनाच्छादित भाग में ह्रास होने से जो भयंकर दुष्प्रभाव उत्पन्न हुए हैं उनमें से जलस्रोतों का सूखना तथा मृदा अपरदन की बढ़ती दर चिंतन का विषय बन चुकी है। इव्स और मिजरेली (1989) के अनुसार यह स्थिति हिमालय की खराब भूमि-उपयोग, जंगलों के विनाश तथा त्रुटिपूर्ण प्रबंध के तरीकों से उत्पन्न हुई है। कुमायूँ के गौला बेसिन में बल्दिया और बर्तरया (1989) ने अपरदन की दर 1.7 मि.मी./ वर्ष आंका है। रावत और रावत (1994) ने कोसी बेसिन के नानाकोसी जलविभाजक में अपरदन की दर 0.1 मि.मी./ परिकलित किया है। प्रस्तुत शोध लेख में अपरदन दर को विभिन्न भूमि उपयोग एवं भू-संरचना की दशाओं में परिकलित किया गया है।
इस रिसर्च पेपर को पूरा पढ़ने के लिए अटैचमेंट देखें
हिमालय के तीव्र ढाल वाली ऊँची-ऊँची पहाड़ियों में वृक्षों का घना आंचल और जमीन पर पड़ी घास-पात की चादरें वर्षा की बौछारों तथा हवा के थपेड़ों से धरती को घायल होने से बचाने में एक सुरक्षा कवच प्रदान करती रही है। इस क्षेत्र में बढ़ती जनसंख्या वनों को नष्ट करके उसे कृषि भूमि में परिवर्तित करता जा रहा है, जिससे जलविभाजकों के वनाच्छादित भाग में ह्रास होने से जो भयंकर दुष्प्रभाव उत्पन्न हुए हैं उनमें से जलस्रोतों का सूखना तथा मृदा अपरदन की बढ़ती दर चिंतन का विषय बन चुकी है। इव्स और मिजरेली (1989) के अनुसार यह स्थिति हिमालय की खराब भूमि-उपयोग, जंगलों के विनाश तथा त्रुटिपूर्ण प्रबंध के तरीकों से उत्पन्न हुई है। कुमायूँ के गौला बेसिन में बल्दिया और बर्तरया (1989) ने अपरदन की दर 1.7 मि.मी./ वर्ष आंका है। रावत और रावत (1994) ने कोसी बेसिन के नानाकोसी जलविभाजक में अपरदन की दर 0.1 मि.मी./ परिकलित किया है। प्रस्तुत शोध लेख में अपरदन दर को विभिन्न भूमि उपयोग एवं भू-संरचना की दशाओं में परिकलित किया गया है।
इस रिसर्च पेपर को पूरा पढ़ने के लिए अटैचमेंट देखें