गंगा मां है, जीवनदायिनी, मोक्षप्रदायिनी, पापनाशिनी है। इसकी निर्मलता को लेकर सरकार भी सतर्क है। हाल ही में जलशक्ति मंत्रालय का भी गठन किया गया है। बीते दिनों कुंभों के लिए 4 साल और 40,000 करोड़ का बजट खर्च होने के बाद गंगा निर्मल हुई थी, लेकिन अब यह आंचल फिर मैला होने लगा है। कुछ शहरों के नाले की पूरी पड़ताल की गई है।
परमट नाला, कानपुर
इस नाले में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए, परमट नाले से सबसे ज्यादा सीवेज गंगा में बहाया जाता है। स्थानीय निवासियों ने भी खुद इसकी पुष्टि की। रोजाना लगभग 1 करोड़ लीटर सीवेज परमट नाला से गंगा बहाया जा रहा है। देर रात को नाला खोल दिया जाता है और सुबह तक बहता है।
म्योर मिल नाला
म्योर मिल नाले से सीवेज गंगा में जा रहा था। यहां गंगा का प्रवाह हालांकि कम था, लेकिन उसके किनारे नाले के मुहाने पर सीवेज का पानी नाला खुलने की पूरी गवाही दे रहा था।
बलुआघाट, प्रयागराज
यहां शहर सबसे बड़े नाले, चाचर नाले का अंतिम छोर है। चाचर नाला से दूषित जल की मोटी धारा बह रही थी। बिना उपचार किए ही सीधे यमुना नदी में बहाया जा रहा था।
राजापुर एसटीपी
एसटीपी की तरफ से काले पानी की जलधारा गंगा की तरफ जाती हुई दिखाई दी। एसटीपी से पानी उपचार किए बिना ही छोड़ा जा रहा है। बता दें कि गंगा और यमुना में गिरने वाले नालों की संख्या 80 से भी ज्यादा है।
नवगां नाला
रोजाना इस नाले से लगभग 5 एमएलडी से ज्यादा सीवेज गंगा में गिर रहा है। स्थानीय लोगों के मुताबिक इस नाले से अक्सर गंगा में सीवेज गिरता है।
असि नदी, वाराणसी
यहां के हालात तो काफी बदतर नजर आए, इस नदी में छोटे-छोटे नाले गिर रहे हैं। ये गंगा की एक धारा है, मौजूदा समय में यह नाले में बदल चुकी है।
मंदिरी नाला
कुर्जी नाला के बाद शहर का सबसे बड़ा नाला है। इस नाले को टैप किया जा चुका है, लेकिन यह दिन के मुकाबले रात में तेज बहाव के साथ गंगा में गिरता है।
कुर्जी नाला, पटना
इसमें औद्योगिक वेस्ट बड़ी मात्रा में छोड़ा जाता है। एसटीपी पुराना होने की वजह से सीवेज को उपचार करने में अक्षम है, लिहाजा रोजाना 3 करोड़ लीटर सीवेज गंगा में गिर रहा है।
आंकड़ों में गंगा
10 मई 2018 को रिवर डेवलेपमेंट एंड गंगा रिजेन्युवेशन मिनिस्टर नितिन गडकरी ने मई 2019 तक गंगा को 80 प्रतिशत तक साफ होने का दावा किया था। लेकिन नेशनल फोर क्लीन गंगा की रिपोर्ट के मुताबिक 30 अप्रैल 2019 तक गंगा पर चल रहे सीवेज के 150 प्रोजेक्ट में सिर्फ 42 ही पूरे हुए। जबकि 60 प्रोजेक्ट अंडर प्रोग्रेस और 47 प्रोजेक्ट टेंडर की प्रकिया में ही हैं। 23,230 करोड़ रुपए से यह सभी प्रोजेक्ट पूरे किए जाने हैं। नमामि गंगे के तहत अभी तक 28, 451 करोड़ के प्रोजेक्ट देश के 8 स्टेट्स में चल रहे हैं।
खतरनाक स्तर पर पहुंची स्थिति
टेनरी व टेक्सटाइल बंदी के बाद भी गंगाजल में खतरनाक स्तर पर साॅलिड पार्टिकल मिल रहे हैं। इसमें लेड, आर्सेनिक, क्रोमियम की मात्रा मानक से 2 गुने से भी ज्यादा है।जाजमउ व वाजिदपुर में इनकी मात्रा खतरनाक स्तर पर है। गंगा में पीएच का लेवल जहां 10 तक पहुंच गया है, वहीं डिजाल्वड आक्सीजन 6 एमजी प्रति लीटर तक घट गई है। कुंभ में इसकी मात्रा 10 तक पहुंच गई थी।
बायो साइंस एंड बायो इंजीनियरिंग, सीएसजेएम यूनिवर्सिटी कानपुर के डायरेक्टर डा. शाश्वत कटियार का कहना है, गंगा के पानी के सैंपल लगातार लिए जाते हैं। पिछले दिनों में की गई जांच में गंगा को फिर प्रदूषित पाया गया है। गंगा में साॅलिड पार्टिकल के मिलने का मतलब यही है कि टेनरी और टेक्सटाइल उद्योग का कचरा गंगा में जा रहा है। प्रयागराज के प्रयागवाल सभा के पदाधिकारी राजेन्द्र पालीवाल बताते हैं, नालों को सीधे गंगा में गिराए जाने व केमिकल छोड़े जाने से भी गंगा मैली रह जा रही है। अगर फ्लों के साथ उत्तराखंड से पानी आता रहेगा तो गंगा इतनी प्रदूषित नहीं होगी। गंगा प्रदूषण मामलों के जानकार पटना के आरके सिन्हा का कहना है, पटना में फीकल काॅलीफार्म और अन्य प्रदूषक तत्वों की मात्रा तय मानक से लाखों गुणा अधिक है। जो दिन प्रतिदिन बढ़ ही रही है। यह बेहद खतरनाक स्थिति है।
डराते हैं ये आंकड़े
- 97 शहर ऐसे हैं जो हर दिन 2.9 अरब लीटर प्रदूषित जल गंगा में छोड़ते हैं।
- गंगा में फिलहाल 1.6 अरब लीटर पानी साफ करने की क्षमता है।
- 1 अरब लीटर से अधिक प्रदूषित जल गंगा में मिल रहा है।
- 2035 तक हर दिन 3.6 अरब लीटर प्रदूषित जल गंगा में छोड़ा जाएगा।
- 46 शहरों के 84 उपचार प्लांट में से 31 काम नहीं कर रहे हैं।
- एशिया का सबसे बड़ा नाला टैप नहीं
कानपुर स्थित सीसामउ नाला अब भी गंगा में गिर रहा है। 126 साल से गंगा को यह नाला प्रदूषित कर रहा है। ये नाला इस कदर विशाल है कि गंगा को गंदा करने में इसकी 40 प्रतिशत की हिस्सेदारी थी। नाले का 4.6 करोड़ लीटर डबका नाले से गंगा में छोड़ा जा रहा है। भैरवघाट चैराहे पर बने पंपिंग स्टेशन से नाला डायवर्ट कर दिया जाता है। लेकिन यह सीवेज एसटीपी न भेजकर डबका नाला से गंगा में छोड़ दिया जाता है। वहीं स्थानीय लोगों के मुताबिक भी डबका नाले में फ्लो अब काफी ज्यादा है।
बायोरेमिडिएशन भी फेल
प्रदेश में जो नाले टैप नहीं हुए। कुंभ के दौरान जिन नालों को टैप नहीं किया गया, उनमें 242 करोड़ रुपए की लागत से बायोरेमिडिएशन प्रोसेस शुरू किया गया। 113 नालों पर यह प्रोसेस किया गया। लेकिन यह भी सिर्फ दिखावा बनकर रह गया। नालों में फ्लों अधिक होने से सीवेज में आक्सीजन बढ़ाने वाले बैक्टीरिया ही डेवलेप नहीं हो पा रहे हैं। जून तक अब इस प्रोसेस को बढ़ा दिया गया है। इसके लिए लगभग 13 करोड़ का अतिरिक्त बजट गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई को दिया गया है।
जलशक्ति मंत्रालय से उम्मीदें
गंगा सफाई्र के अलावा जल संकट से निपटने के लिए केन्द्र में शपथ लेने वाली मोदी सरकार-2 ने जलशक्ति मंत्रालय का गठन किया है, जिससे काफी उम्मीदें हैं। इसकी जिम्मेदारी कैबिनेट मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को सौंपी गई है। जल शक्ति मंत्रालय पहले के जल संसाधन, नदी विकास और गंगा कायाकल्प मंत्रालय को पुनर्गठित करके बनाया गया है।