केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बताया कि गंगा का पानी दूषित होता जा रहा है और पीने के लिए गंगा नदी का पानी स्वच्छ नहीं है। गोमुख से निकलने वाली गंगा, बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले पूरे देश में 2,225 किलोमीटर की यात्रा करती है। 22 राज्यों से होकर गुजरने वाली गंगा की सिर्फ 7 जगह ऐसी हैं जहां पर पानी को कीटाणु शोधन करके पिया जा सकता है। सीपीसीबी के हाल में आई रिपोर्ट का आंकड़ा बताता है कि उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल ऐसे राज्य हैं जहां गंगा नदी का पानी सबसे ज्यादा दूषित है और जहां गंगा का पानी न पीने लायक है और न ये पानी नहाने लायक है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कर नक्शा ने बताया कि नदी में बहुत ज्यादा कैलिफाॅर्म बैक्टीरिया है।
गंगा नदी के क्षेत्र में सीपीसीबी ने पानी की गुणवत्ता के लिए 86 लाइव मोनिटरिंग स्टेशन बनाए हुए हैं। इन स्टेशनों ने पाया कि 7 जगह ऐसी हैं जहां नदी के पानी को शोधन करके पीने और नहाने योग्य बनाया जा सकता है। चौंकाने वाली बात ये रही कि 78 जगहें ऐसी पाई गई, जहां पानी को शोधन करने के बाद भी पीने लायक नहीं बनाया जा सकता है। जिस देश में गंगा को जीवन रेखा माना जाता है और गंगा में डुबकी लगाने से जीवन की आयु बढ़ जाती है। उसी गंगा के बारे में सीपीसीबी का कहना है कि गंगा नदी का पानी इतना प्रदूषित हो गया है कि वह नहाने और पीने के लिए सही नहीं है।
गंगा नदी में साफ पानी से स्नान करने वाले सिर्फ 10 स्थान सही हैं जबकि 62 ऐसे स्थान पाए गए हैं जहां लोग गंगा में स्नान करते हैं लेकिन वो पूरी तरह से गंदा और स्नान करने योग्य नहीं है। उत्तराखंड के कुछ जगह हैं और पश्चिम बंगाल के दो स्थानों को हरे रंग से चिन्हित किया गया है। जहां पानी को शुद्ध करके पीने योग्य और नहाने लायक बनाया जा सकता है। जबकि बाकी जगह पर गंगा नदी का पानी पीने या स्नान करने के लिए पूरी तरह से बेकार है। जिन 78 निगरानी स्टेशनों पर नदी का पानी पीने और नहाने के लिए अयोग्य पाया गया है। उनमें भुसुला-बिहार, कानपुर, वाराणसी, रायबरेली में डलमऊ, इलाहाबाद में संगम, गाजीपुर, बक्सर, पटना, भागलपुर, हावड़ा-शिवपुर में गोमती नदी, पश्चिम बंगाल और अन्य शामिल हैं। सिर्फ छह जगहें ऐसी हैं जहां पानी पूरी तरह से साफ है। वो जगहें हैं, गंगोत्री, रुद्रप्रयाग, देवप्रयाग, रायवाला-उत्तराखंड, ऋषिकेश, बिजनौर और डायमंड हाॅर्बर में भागीरथी है।
गंगा किस जगह पर कितनी साफ है इसके लिए कैटेगरी बनाई गई है। इसमें कैटेगेरी ‘ब’ में स्नान के लिए जगह शामिल हैं। वे जगहें हैं, गंगोत्री, रुद्रप्रयाग, देवप्रयाग, रायवाला-उत्तराखंड, भागुखेश्वर, ऋषिकेश, बिजनौर, अलीगढ़ और पश्चिम बंगाल। नदी को साफ करने की दिशा में कई योजनाओं के बावजूद और नदी के प्रदूषण से निपटने के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण के निर्देशों के बावजूद, गंगा का साफ होना वास्तिवकता से दूर प्रतीत हो रहा है। पर्यावरण मंत्रालय, जो जल संसाधन मंत्रालय के साथ नदी की सफाई भी करवाता है। इस मंत्रालय ये सफाई के बारे में बताया कि औद्योगिक प्रदूषण की जांच की जा चुकी है और औद्योगिक इकाइयां अब नदी में निर्वहन नहीं कर रही हैं। ‘नमामि गंगे’ जल संसाधन मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया एक बहुत ही महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है। जिसके अंतर्गत ही उद्योगों को नदियों से दूर किया जा रहा है। गंगा को गंदा करने के लिए दो बड़ी वजहें हैं, औद्योगिक अपशिष्ट और सीवेज कचरा। नदी में 30 प्रतिशत कचरा उद्योगों का होता है, जिससे नदी प्रदूषित होती जा रही हैं।
केन्द्रीय पर्यावरण के सचिव सीके मिश्रा ने बताया, गंगा नदी के किनारे 1100 से अधिक उद्योग लगे हुए हैं जो अपना पूरा कचरा गंगा में डालते थे। आज एक भी उद्योग ऐसा नहीं है जो अपना कचरा नदी में डालता हो। मिश्रा कहते हैं कि गंगा को साफ करने के उपाय अभी तक कारगर नहीं रहे हैं, लेकिन आगे जरूर अच्छे कदम उठाये जा सकते हैं। सीवेज एक बड़ा मुद्दा है। इस पर काम चल रहा है और इसमें थोड़ा समय लगेगा। हम हर दिन हम पानी की गुणवत्ता की निगरानी करेंगे। मुझे यकीन है कि कोई भी इस स्थिति से खुश नहीं है लेकिन नदी की सफाई पर प्रयास जारी है। पर्यावरण कार्यकर्ता और वकील विक्रांत तोंगड़ ने नदी की स्थिति के बारे में एक आरटीआई भी दायर की है। उन्होंने बताया कि सरकार के प्रयास सराहनीय थे, लेकिन वे समस्या से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं थे। सरकार ने 2020 तक नदी को साफ करने की योजना बनाई थी, लेकिन इसे 2025 तक हासिल नहीं किया जा सकता है।