लेखक: अरुण तिवारी
मातृ सदन (हरिद्वार) के गंगा तपस्वी निगमानंद को अस्पताल में ज़हर देकर मारा गया। पर्यावरण इंजीनियर स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद (सन्यास पूर्व प्रो. गुरुदास अग्रवाल) की मौत भी अस्पताल प्रशासन के षडयंत्र का ही परिणाम थी। वर्ष 2018 में ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद के साथ भी अस्पताल प्रशासन ने ऐसे ही षडयंत्र किया। किंतु वह डाॅक्टरी मर्जी के बगै़र बच निकले। मातृ सदन द्वारा लगाये जाने वाले आरोपों की इस कड़ी में ताज़ा प्रकरण, साध्वी पद्मावती का गंगा तप है।
गौर कीजिए कि गंगा संबंधी मांगों को लेकर कई वर्षों से संघर्षरत मातृसदन, अब कोई गुमनाम है। मां गंगा के प्रति अपने समर्पण के कारण मातृसदन, जहां एक ओर गंगा पर्यावरण सुरक्षा की सच्ची चाहत रखने वालों के लिए श्रृद्धा और प्रेरणा की स्थली बन गया है, वहीं दूसरी ओर शासन-पुलिस-प्रशासन के आंखों की किरकिरी बना हुआ है। स्वामी शिवानंद सरस्वती, मातृ सदन के अधिष्ठाता हैं। वह, इन आंखों की परवाह किए बगै़र गंगा तप की श्रृंखला को आज भी आगे बढ़ा रहे हैं।
गंगा रेती-पत्थर के अवैध खनन पर रोक, गंगा अविरलता, पर्यावरणीय प्रवाह की सुनिश्चितता, क्षेत्र विशेष को पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील घोषित कराना, गंगा संरक्षण एवम् प्रबंधन क़ानून, क़ानूनों की पालन सुनिश्चित कराने के लिए गंगा भक्त परिषद का गठन, हिमालय व वन सुरक्षा संबंधी मांगें इनमें प्रमुख रही है। गंगा संघर्ष के मातृसदन अब तक दो ही औजार आजमाता रहा हैं: व्रत रहते हुए तप करना तथा व्रत व तप में विघ्न डालने वालों के खिलाफ एफआईआर व मुक़दमा दर्ज कराना। गंगा तप करने वाले मातृसदन से सीधे संबद्ध तपस्वियों की सूची काफी लम्बी है; 61 सत्याग्रह, 17 सत्याग्रही।
विशेष ध्यान देने योग्य तथ्य है कि जिन गंगा हितैषी चार मांगों की पूर्ति हेतु स्वामी सानंद ने अपनी देह त्यागी; उन्हीं मागों को सामने रखते हुए संत गोपालदास और युवा साधु आत्मबोधानन्द तप पर रहे। अब साध्वी पद्मावती हैं। साध्वी, एक ब्रह्यचारिणी है।
स्वस्थ होने के बावजूद, ऐसी बीमारी बताना, जिसका इलाज जांच करने वाले वाले डाॅक्टर से ही कराने की बात कहना; मना करने पर रात में एकाएक उठाकर अस्पताल ले जाना; वहां पहुंचने पर चिकित्सक डाॅ. विजय सिंह भण्डारी द्वारा गर्भवती बता देना; तिस पर मुख्य चिकित्साधिकारी डा. मीनाक्षी जोशी यह कथन - ''तुम तो अपने को साध्वी और ब्रह्यचारिणी कहती हो और अगर तुम्हारा ऐसा चरित्र है तो तुम त्रिवेन्द्र सिंह रावत और कुश्म चैहान (उप जिला मजिस्ट्रेट, हरिद्वार) पर अपनी हत्या करने के लिए अपहरण करने का आरोप कैसे लगा रही हो ?''.....स्वामी शिवानंद प्रश्न करते हैं कि यह एक गंगा सत्याग्रही के खिलाफ षडयंत्र नहीं तो और क्या है ? जिस साध्वी की प्रतिदिन जांच हो रही हो, आखिरकार उसे एकाएक दो महीने का गर्भ कैसे हो सकता है ? आखिरकार, जांच रिपोर्ट में प्रमाणित हुआ ही कि चिकित्सक का कथन झूठ था। प्रश्न यह है कि क्या ऐसा झूठ कथन, क़ानूनन नारी उत्पीड़न नहीं है ? यदि हां, तो भारतीय धर्म, संस्कृति, नारी अस्मिता और सुरक्षा का नारा बुलन्द करने वाली आवाजें कहां हैं ?
प्रश्न यह भी है कि ऐसे कहने के पीछे क्या कोई योजना थी ? साध्वी द्वारा व्यक्त आशंकानुसार, चिकित्सक कथन को सच सिद्ध करने के लिए उसके साथ बलात्कार भी कराया जा सकता था अथवा उसे मारा भी जा सकता था। साध्वी के मर जाने पर मातृसदन के चरित्र पर लांछन प्रमाणित करके गंगा आंदोलन की इस सिद्धपीठ को मटियामेट करना बेहद आसान हो जाता। स्वामी शिवानंद जी का कथन है कि सत्य हमारे लिए ईश्वरतुल्य है। मातृसदन, कभी झूठ नहीं बोलता। सवाल है कि यदि मातृ सदन के अब तक के आरोप और आशंकाएँ सच हैं, तो क्या इन्हे नीचकर्म की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए ? क्या इन सभी आरोपों की जांच करके सच को सामने नहीं आना चाहिए ? क्या दोषियों को सज़ा नहीं मिलनी चाहिए ?
सूत्रानुसार, उक्त दुर्घटना के बाद से साध्वी पद्मावती तनाव में है। यूं भी नींबू पानी, शहद और नमक पर शरीर कितने समय चल सकता है ? स्वामी शिवानंद के अनुसार, साध्वी जलत्याग का संकल्प लेने के बारे में विचार कर रही है। किंतु क्या किसी के कान पर जूं रेंग रही है ? नहीं; दुखद है कि सरकार और बाज़ार व्यस्त है पर्यावरणीय चुनौतियों को प्रोजेक्ट और प्रोडक्ट में तब्दील कर देने में। राजक्षेत्र-धर्मक्षेत्र का काकटेल बने योगी जी, मां (गंगा) को अर्थव्यवस्था कह ही चुके हैं। समाज भी गंगा रक्षा हेतु एक और मौत का जैसे एक और नाम का इंतज़ार कर रहा है... तो गंगा और पद्मावती की चुनौती की चिंता कौन करें ?
ज्ञात हो कि साध्वी पद्मावती, मूल रूप से बिहार राज्य के नालंदा ज़िले की रहने वाली है। बिहार में ग्राम स्तरीय न्याय की 'ग्राम कचहरी' नामक एक अनुकरणीय व्यवस्था है। किंतु साध्वी के पिता इतने उद्वेलित हैं कि इंसाफ न होने पर सीधे हाईकोर्ट में मामला दर्ज कराने की धमकी दे रहे हैं। नालंदा के सांसद कौलेन्द्र कुमार (जनता दल यूनाइटेड) ने लोकसभा के शून्यकाल में मसला उठाने की कोशिश की है। बिहार के मुख्यमंत्री ने गंगा अविरलता पर अपना पक्ष रखते हुए पद्मावती का अनशन सम्पन्न कराने का एक निवेदन पत्र पहले ही लिख दिया था। ऐसा करके नीतीश कुमार ने बिहार की बेटी और गंगा के प्रति कुछ संवेदना दिखाई ज़रूर, किंतु हुआ उलटा। उक्त षडयंत्रकारी दुर्घटना तो पत्र के बाद ही हुई।
04 फरवरी को दिल्ली मेें हुए गंगा सम्मेलन में गंगा पट्टी के अलावा केरल, महाराष्ट्र, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि प्रदेशों के वैज्ञानिक व कार्यकर्ता मौजू़द थे। बतौर मुख्य वक्ता, वरिष्ठ राजनेता मुरली मनोहर जोशी की मौजूदगी अहम थी। गौर कीजिए जोशी की अध्यक्षता में गठित संसदीय मूल्यांकन समिति की रिपोर्ट - 2016 नमामि गंगे के कार्यों से संतुष्ट नहीं थी। रिपोर्ट में गंगा हितैषी कई महत्वपूर्ण सिफारिशें की गईं थी। इस नाते जोशी से मांग की गई कि वह गंगा और साध्वी पद्मावती... दोनो के प्राण बचाने का मार्ग प्रशस्त करें। जोशी ने यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया - ’’मैं क्या मार्ग बताऊं ? मैं तो खुद ही मार्ग ढूंढ रहा हूं।’’ मौके पर मौजूद समाजवादी पार्टी के सांसद कुंवर रेवती रमण सिंह, उत्तराखण्ड प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके किशोर उपाध्याय और झारखण्ड में मुख्यमंत्री को हराकर चमकदार बने सरयू राय आदि भी कोई ठोस संकल्प नहीं पेश कर सके।
स्पष्ट है कि गंगा और साध्वी पद्मावती की प्राणरक्षा का मार्ग न नेताओं के भरोसे हो सकती है और न सरकार के। अब भरोसा तो संगठनों और नागरिकों को अपने खुद भीतर ही पैदा करना होगा। क्या हम करेंगे ?