कूरील द्वीपपुंज

Submitted by Hindi on Sat, 12/25/2010 - 11:33
कूरील द्वीपपुंज उत्तरी प्रशांत महासागर में 32 द्वीपों की एक श्रृंखला जो कैमचैटका प्रायद्वीप से जापान के होकैडो द्वीप तक फैली है। यह उत्तर में कुरील जलसंयोजक द्वारा कैमचैट्का से और दक्षिण में नेमूरो जलसंयोजक द्वारा होकैडो से तथा पश्चिम में ओरवाटसक सागर द्वारा साइबेरिया से पृथक है। कूरील द्वीपपुंज लगभग 650 मील तक फैले हैं। इनका संपूर्ण क्षेत्रफल 2,900 वर्गमील है। इसके बड़े द्वीपों के नाम हैं-पारामूशीरो, शीमूशीरो उरु प्पू, ऐटोरोफू शिकोटन तथा कुनाशीर। इन द्वीपों का निर्माण ज्वालामुखियों के उद्गार द्वारा तुरीय (क्वाटरनरी ) युग में हुआ था। यहाँ 40 ज्वालामुखी हैं जिनमें से 22 जाग्रतावस्था में हैं। कूरील द्वीपपुंज की सर्वोच्च चोटी ओयाकोवे डेक की ऊँचाई 7,654 फुट है। कुनाशीरो शीमा में गंधक प्राप्त होता है।

इस द्वीपपुंज की जलवायु अति शीतल है। इसके पूर्व में ओयाशीवो नामक ठंडी जलधारा प्रवाहित होती है। यहाँ शीतकाल में अनेक बर्फीले तूफान आते हैं तथा अक्टूबर से अप्रैल तक तुषारपात होता है। इन द्वीपों के निकट संसार का एक प्रसिद्ध मत्स्यक्षेत्र है जहाँ स्नेहमीन (कॉड), माहपृथुमीन (हेलीवट), बहुला (हेरिग), सारडिन आदि मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। पहले यह द्वीपपुंज सागर उद्र तथा सील के रोएँ के लिए प्रसिद्ध था, किंतु अब यहाँ केवल सागरशेर तथा ह्वेल पाए जाते हैं।

इसका अन्वेषण 1643 ई. में मार्टिन गेरीट्सजून वराइस नामक एक डच नाविक ने किया था। जब रूसी लोगों को इस द्वीप के विषय में पता चला तब उन्होंने इसका नाम कूरील रखा; जो क्यूरइट (धुआँ) का अपभ्रंश है। अगस्त, 1945 ई. तक यह द्वीपपुंज जापानियों के अधीन था। वे लोग इसे चिशीमा अथवा सहस्र द्वीपपुंज कहते थे। द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के पश्चात यह द्वीपपुंज रूस के अधीन हो गया। अब केवल शिकोटन तथा कुनाशीर नामक दक्षिणी द्वीप जापान के अधीन हैं।

(नवलकिशोरप्रसाद सिंह)