माननीय प्रधानमंत्री महोदय
श्री नरेन्द्र भाई दामोदर दास मोदी जी,
तमिलनाडु में स्थित तिरुची के सेनिटेशन के क्षेत्र से जुड़ी गैर सरकारी संगठन 'ग्रामालय' की ओर से भारत के नए प्रधानमंत्री जी को उनकी ऐतिहासिक विजय पर हार्दिक बधाइयाँ।
विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश भारत है। कई विविधताओं से संपन्न भारत अपने आतिशय, भव्य मंदिरों, मूर्तियों, स्थापत्य कला, देशी औषधियाँ आदि के लिये विश्व विख्यात है। हमें अपनी संस्कृति, सभ्यता व आध्यात्मिकता पर गर्व है। यहाँ छ: विभिन्न जलवायु पाए जाते हैं। यहाँ नवयुवकों की संख्या भी विश्व में सबसे अधिक है। हमने सफलतापूर्वक चंद्रमा व मंगल ग्रह पर कृत्रिम उपग्रह भेजे हैं। हमें यह उम्मीद है कि आपके नेतृत्व में बहुत जल्द भारत विकसित देशों की श्रेणी में आ जाएगा।
हमारी इन उपलब्धियों से पड़ोसी देश भी परिचित हैं। मुझे भारतीय होने में गर्व है। इन सबके बावजूद एक ऐसी बात भी है जो हमारे 120 करोड़ की आबादी वाले देश का सर शर्म से झुका देता है। अन्य देश इसके कारण हमारा उपहास करते हैं। इससे हमारा स्वास्थ्य, पर्यावरण, महिलाओं की गरिमा व सुरक्षा, बच्चे बूढ़े हर किसी का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहे हैं।
इसके कारण प्रतिवर्ष करीब 5,00000 बच्चों की मृत्यु हो रही है। इससे हमारी भूमि, जल, वायु संसाधन बहुत ही दूषित हो रहे हैं। इसकी वजह से बच्चे बूढों का स्वास्थ्य बिगड़ रहा है वे इलाज के लिये मजबूर हो रहे हैं। इसके कारण प्रत्येक राज्य के सहस्त्र विकास के लक्ष्य की पूर्ति भी असंभव सी लग रही है। यह प्रत्येक व्यक्ति व घर की मूलभूत आवश्यकता है। बड़े-बूढ़े बीमार, छोटे-बच्चे व गर्भवती महिलाओं आदि के लिये इस सुविधा का होना अत्यावश्यक है। इस सुविधा के अभाव में हमारे देश के विकास पर अगले पाँच दशकों तक बुरा असर पड़ सकता है।
सरकारी अधिकारी विशेषज्ञ, गैर सरकारी संगठन, पर्यावरण के कार्यकर्ता आदि अपने प्रयासों के बावजूद शौचालयों की सुविधा उपलब्ध कराने में असफल रहे हैं। परिणामस्वरूप 70 करोड़ भारतीय खुले में शौच जाने के लिये बाध्य है। (open defecation)
शौचालय की सुविधाओं के अभाव में हमारा पर्यावरण भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। संसार में सर्वाधिक लोग भारत में खुले में शौच जाते हैं और इस कारण संसार में भारत का सर शर्म से झुका है। अपनी सीमा सम्बन्धी समस्याओं पर जब हम पड़ोसी देशों से चर्चा करते हैं तो वे भी उपहासपूर्ण ढंग से कहते हैं कि “पहले आप शौचालय व खुले में शौच की समस्या से तो निपटिए और फिर हमसे आकर अपनी समस्याओं की चर्चा कीजिए।”
ऐसा प्रतीत होता है कि हम सौ सालों के बाद भी इस समस्या से छुटकारा नहीं पा सकेंगे और हमारा सर गर्व से ऊँचा नहीं उठ सकेगा। कई छोटे राष्ट्रों, अविकसित व गरीब राष्ट्रों ने भी अपने नागरिकों के लिये यह सुविधा उपलब्ध करवाकर इस क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। इस वजह से हम सबको भारतीय कहलाने में झिझक महसूस होती है। मैं यह पत्र इस उम्मीद से लिख रहा हूँ कि आप इस गंभीर चुनौती को परम अग्रता देकर इसके महत्त्व पर अवश्य विचार करेंगे।
ग्रामालय
हर गाँव को मंदिर बनाने के उद्देश्य से 'ग्रामालय' गैर सरकारी संगठन की स्थापना 1987 में की गई और पिछले 25 वर्षों से घर-घर में शौचालय के निर्माण हेतु लगी हुई है। तमिलनाडु कर्नाटक की सीमा में स्थित कुप्पम गाँव में मैंने इसके पूर्व 'अन्त्योदय' गैर सरकारी संगठन से जुड़कर अपने जीवन का प्रथम शौचालय बनवाया था और यह निर्माण कार्य अब भी जारी है। बड़े दुख की बात है कि इतना सब करने के बावजूद लक्ष्य बहुत दूर ही नजर आ रहा है।
भारत सरकार, राज्य सरकार, अन्तरराष्ट्रीय संघ 'यूनिसेफ' व विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के साथ मिलकर लोगों के स्वास्थ्य में सुधार लाने हेतु हम शौचालय निर्माण का कार्य कर रहे हैं। 2003 में तमिलनाडु तिरुची जिले के 'तांडवनपट्टी' गाँव के 'आराय्चची' पंचायत में खुले में शौच पर पहली बार पाबंदी लगाई गई। तिरुची नगर निगम व स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर ग्रामालय ने तिरुची शहर के कलंमदै झुग्गी झोपड़ी (स्लम) को खुले शौच से मुक्त बस्ती घोषित किया।
ग्रामालय ने ही देश में सर्वप्रथम बाल स्नेह शौचालय डिजाइन बनाया जिसे बच्चों ने खुशी-खुशी अपना लिया। ग्रामालय ने सबसे पहला 'स्वास्थ्य रक्षण उदान' (Sanitation Park) की शुरुआत की जिसमें विभिन्न वर्गों के लोगों तथा भिन्न-भिन्न जलवायु वाले स्थानों के लिये तरह-तरह शौचालय के मांडल जनता के प्रदर्शन के लिये बनाए गए ताकि लोग सुविधानुसार अपनी पसंद का पॉडल चुन सके।
पिछले 25 वर्षों में तमिलनाडु के विभिन्न जिले के जिलाधीश, अन्य राज्य, स्वच्छता विशेषज्ञ, अनुसंधान विद्वान, शिक्षाविद। महिलाएँ सामाजिक कार्यकर्ता आदि इस पार्क में बराबर आते रहे हैं। ग्रामालय महिला स्वयं सहकारी गुटों के सदस्यों को आसान किस्तों में घरेलू शौचालय बनाने के लिये ऋण उपलब्ध करवा रही है। इस कार्यक्रम के तहत अब तक 50,000 शौचालय का निर्माण किया जा चुका है। देश के विभिन्न भागों के गैर सरकारी संगठनों द्वारा इस मॉडल को विभिन्न क्षेत्रों में बनवाया जा रहा है।
महिला स्वयं सहकारी गुट ऋण व्यवस्था के अधीन अब तक पूरे देश में लगभग एक लाख शौचालय बनाए गए हैं। भारत सरकार व राज्य सरकार ने खुले में शौच के उन्मूलन के हमारे प्रयास को सराहा है। ग्रामीण, शहरी इलाकों, सुनामी से प्रभावित तटीय प्रदेशों जनजातियों में भी इस कार्यक्रम का शुरुआत किया गया है। सन 1989 में रासिपुरम व 'तिरुचेंगोड' नगर पालिका में निर्मित शौचालयों का प्रयोग अब भी वहाँ के लोग कर रहे हैं। 'तिरुची' जिले के 'तोटिटयम खंड' (Block) के ग्रामीण इलाकों में निर्मित शौचालय दो दशकों के बाद भी लोगों द्वारा उपयोग में लाए जा रहे हैं। ग्रामालय द्वारा निर्मित सामुदायिक व बाल स्नेह शौचालयों का प्रबंधन पिछले 15 वर्षों से महिला स्वयं सहकारी गुट की महिलाओं द्वारा किया जा रहा है।
इससे राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय संगठनों, भारत सरकार के स्वास्थ्य व पेयजल विभाग का भी ध्यानाकर्षित हुआ है। तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश में डीडीडब्ल्युएस (DDWS) ने सेनिटेशन सुधार, शिक्षण व प्रशिक्षण हेतु ग्रामालय को प्रधान संसाधन केंद्र (Key Resource Centre) के रूप में नियुक्त किया है। ग्रामालय तीनों राज्यों में सरकारी अधिकारियों व गैर सरकारी संगठनों को स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी व स्वास्थ्य के क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों हेतु प्रशिक्षण दे रही है। हम घर-घर में शौचालय निर्माण को प्रभावित करने हेतु विद्यालय के शिक्षकों, विद्यार्थियों को भी शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। हाल ही में मैं 20 साल पहले के एक परिचित ग्रामीण व्यक्ति से मिला तो उसने पूछा- क्या अब भी आप शौचालय निर्माण के कार्य में ही लगे हुए हैं।
और कब तक यह कार्य चलता रहेगा? मेरे लिये वह दुखद पल था, इसी वजह से मैं आपको यह पत्र लिख रहा हूँ। आपके सृजनात्मक नेतृत्व व नेताओं के समन्वित साकाल्यवाद विधि से सन 2025 तक अवश्य इस समस्या को सुलझाया जा सकता है और भारत को खुले में शौच मुक्त देश बनाया जा सकता है। हम सबको इस लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु कठिन परिश्रम करना होगा जिससे अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर हमारा सर गर्व से ऊँचा उठ सके।
हमारे देश में 90 प्रतिशत जनता मोबाइल फोन का प्रयोग करती है। 70 करोड़ लोगों के पास टीवी सेट है। 50 प्रतिशत लोगों के पास दोपहिया वाहन है। लेकिन यह बहुत ही दुख की बात है कि केवल 40 प्रतिशत लोगों के घरों में ही शौचालय हैं और उनमें से केवल 20 प्रतिशत जनता अपने शौचालय का उपयोग करते हैं। लोग जितना महत्त्व सुख सुविधाओं के साधनों पर देते हैं उतना शौचालय पर नहीं देते।
आपने भी चुनाव के पूर्व यह बात कही थी कि अच्छा हो कि हम भारत में मंदिरों से ज्यादा, शौचालय का निर्माण करें। आपने अपने ही दस सूत्री कार्यक्रम में शिक्षा, स्वास्थ्य व पेयजल को सबसे अधिक प्राथमिकता दी थी। श्रीलंका, बांग्लादेश, वियतनाम जैसे कई छोटे देश भारतीयों के तुलना में बड़ी तेजी से शौचालय का निर्माण कर रहे हैं। खुले में शौच के मुख्य कारण अज्ञानता, गरीबी, अक्षमता, शौचालय प्रौद्योगिकी में विकल्प का अभाव व मार्ग दर्शन हेतु किससे व कैसे संपर्क करने की जानकारी का अभाव आदि हैं। सरकार को खुले में शौच के उन्मूलन हेतु शौचालयों के निर्माण कार्य को परम अग्रता देनी चाहिए।
भारत में सिक्किम ही एक मात्र ऐसा राज्य है जिसे खुले में शौच मुक्त राज्य घोषित किया गया है। इस लक्ष्य को हासिल करने हेतु केरल व हिमाचल प्रदेश भी प्रयासरत है। तमिलनाडु में कन्याकुमारी जिले में 97.5 प्रतिशत घरों में शौचालय बनाए गए हैं। लेकिन यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि तमिलनाडु 100 प्रतिशत लक्ष्य कब तक प्राप्त कर पाएगा। हाल ही में हुई जनगणना के अनुसार उड़ीसा, मध्य प्रदेश व राजस्थान इस क्षेत्र में बहुत पिछड़े हुए हैं। ऐसा बताया गया है कि इस लक्ष्य को हासिल करने में 160 वर्ष लग सकते हैं। अनुमान है कि बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कनार्टक, जम्मू व कश्मीर, गुजरात, अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, असम को शौचालयों की उपलब्धता व खुले में शौच मुक्त राज्य बनाने में कम से कम 25 वर्ष लग सकते हैं।
इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सुनियोजन, वित्तीय आवंटन, उचित कार्यान्वयन, समुदायों की सहभागिता अत्यावश्यक है। हमें अभी से इस कार्य में जुट जाना चाहिए क्योंकि समय के साथ-साथ घरों की संख्या व वित्तीय भार भी बढ़ने की संभावना है।
खुले में शौच के कारण शिशु मृत्यु दर में बढ़ोतरी हुई है। यह कम बौद्धिक स्तर वाले बच्चे महिलाओं की गंभीर स्वास्थ्य की समस्याएं, दस्त, पोलियो, पीलिया, हैजा आदि बीमारियों का कारण बन जाता है। अत: हर हाल में खुले में शौच का उन्मूलन होना अत्यावश्यक है। सभी घरों, स्कूलों सार्वजनिक स्थानों, बस अड्डों, मंदिरों, अस्पतालों, साप्ताहिक मंडियों में शौचालयों की सुविधाएँ उपलब्ध करवाना चाहिए। सिर्फ इसी की वजह से हम सब भारतीयों को अपनी महान संस्कृति विरासत, सभ्यता व वैज्ञानिक उन्नति पर गर्व होगा।
अत: आपसे सविनय अनुरोध है कि आप भारत को खुले में शौच मुक्त देश बनाने के लिये यथाशीघ्र सक्रिय कदम उठाएँ और उचित कार्यान्वयन व आकलन सुनिश्चित करें।
जय हिंद।
से. दामोदरन
स्थापित निर्देशक, ग्रामालय
यह पत्र 6.6.2014 को अंग्रेजी में भेजी गई पत्र का अनुवाद है।
स्थान : तिरुचिरापल्ली
Source
ग्रामालय