मछली पालन कला है और खेल भी

Submitted by Hindi on Tue, 07/02/2013 - 12:45
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चरखा फीचर्स, जुलाई 2013
डोकाद गांव में अब खेती और जंगल के अलावा मछली पालन भी अहम रोजगार का रूप धारण कर चुका है। जिसके कारण गांव में लोगों की न सिर्फ आमदनी बढ़ी है बल्कि रोजगार के नाम पर होने वाला पलायन भी रुक गया है। अब नौजवान परदेस जाकर कमाने की बजाय विजय ठाकुर की तरह गांव में ही मछली पालन में रोजगार ढ़ूढ़ंने लगे हैं। यहां किसान कर्ज लेने के एक साल में ब्याज समेत चुका देता है। किसी भी इलाके के विकास के लिए केवल सरकार की योजनाएं ही काफी नहीं है। यदि समुदाय चाहे तो सरकारी योजनाओं का इंतजार किए बगैर मिसाल कायम कर सकता है। रांची से 35 किलोमीटर दूर जोन्हा पंचायत इसका उदाहरण है। जिसने विगत 6 सालों से मछली पालन से समृद्धि तो की है साथ ही गांव के विकास और पानी के श्रोत तथा मलेरिया जैसे बीमारियों पर भी काबू पा लिया। अनगड़ा प्रखंड का डोकाद गांव के विजय ठाकुर कभी अखबार से जुड़े हुए थे। लेकिन गांव के विकास और सामाजिक काम करने के प्रति उनकी इच्छाशक्ति के आगे उन्होंने इस काम को छोड़ दिया और गांव में ही रोजगार के साधन उपलब्ध कराने के लिए प्रयास करने लगे।आखिरकार वह समय आ ही गया जब 2008 में झारखंड सरकार के मत्स्य विभाग से प्रषिक्षण लेकर उन्होंने गांव में ही मछली पालन का काम शुरू किया। आरंभ में उन्होंने एक तालाब और चार किलो मछली का चारा से व्यवसाय का श्रीगणेश किया। धीरे-धीरे यह काम इतना फल-फूल गया कि आज 6 साल में उनके पास 6 तालाब हैं।

विजय ठाकुर बताते हैं कि मछली पालन की इच्छा उन्हें बचपन से थी। किसान परिवार के होने के बावजूद खेती करना संभव नहीं था। शरीर उस लायक नहीं था कि किसान के तरह कड़ी मेहनत कर परिवार का लालन पालन कर सकें। विजय कहते हैं कि मत्स्य विभाग से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद हमने निश्चय किया कि तालाब लीज़ पर लेकर मछली पालन किया जाए। इसमें हमें कई प्रकार के फायदें भी थे। मछली एक ओर जहां गांव में पानी के श्रोत को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है वहीं पानी में मौजूद जहरीले कीड़े मकोड़ों को भी खात्म करता है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो मछली पालन झारखंड के लिए बहुत उपयोगी है। इससे खेती ही नहीं, वातावरण और पर्यावरण पर भी अनुकूल असर होता है साथ ही मानव जाति के लिए यह अति प्रोटीनयुक्त खाद्य सामाग्री भी है।

अपने तालाब से मछली पकड़ते विजय कुमारविजय बताते हैं कि शुरू में मछली के लिए 4 किलो चारा से 4 क्विंटल मछली और 40 हजार रूपये की आमदनी ने गांव वालों के लिए नई राह खोल दिया। इस काम ने कई छोटे और मझौले किसानों को रोजगार के नए अवसर से जोड़ दिया। इसका एक सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि जिन तालाब में मछली पालन का काम होता था। वहां के आस पास के खेतों में उर्वरक शक्ति बढ़ गई। मछली पालन अब गांव में रोजगार के एक बड़े साधन के रूप में जुड़ गया है। विजय कहते हैं कि अभी झारखंड में 5 करोड़ रुपये का मछली आयात किया जाता है। यदि किसान और सरकार चाहे तो इस रोजगार को अपनाकर झारखंड से 5 करोड़ रुपया बाहर जाने से रोक सकते है। उसी पैसे से यहां किसानों की समृद्धि के लिए मत्स्य पालन प्रषिक्षण केन्द्र की स्थापना कर सकते है।

विजय ठाकुर और उनके परिवार द्वारा शुरू किया गया मछली पालन और उनसे होने वाले लाभ की चर्चा तेजी से आसपास के गांव में फैलती जा रही है। दूर दूर से लोग उत्सुकतावश उनसे मछली पालन से होने वाले लाभ के बारे में जानने आते हैं। विजय बताते हैं कि वह रोज़ाना रात दो बजे से मछली पकड़ने का काम शुरू कर देते हैं और सुबह 4 बजे इन्हें रांची के बाजार में पहुंचाते हैं। उन्होंने बताया कि इसे बाजार तक पहुंचाने में पुलिस वालों से काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। विजय अब अपने इस काम से दूसरों को भी जोड़ने का सराहनीय प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए 5 लाख मछली बीज का उत्पादन करेंगे जिसे गांव के सभी तालाबों में डाला जाएगा।

विजय कुमारझारखंड में मछली की खपत काफी अधिक है। यहां समाज के सभी वर्गों में खुशी के अवसर पर मछली परोसना शुभ माना जाता है। विजय द्वारा उत्पादित मछली से जोन्हा के स्थानीय बाज़ार के साथ-साथ रांची का बाजार भी गुलजार हो रहा है। अब वे मद्रासी तरीके से मछली का उत्पादन करने के लिए तैयार हो रहे है। अभी झारखंड के किसान इस तरीके से मछली का उत्पादन करना नहीं जानते हैं। जोन्हा पंचायत में आज विजय ठाकुर प्ररेणा बन चुके हैं। इस समय पूरे पंचायत में 25 से 30 तालाब हैं। जिसमें मछली पालन का काम होता है। हालांकि इन तालाबों से केवल मछली पालन का ही काम नहीं होता है बल्कि सिचांई, और मवेशी के लिए पानी के साथ छोटी बड़ी जरूरतों की पूर्ति भी होती है।

डोकाद गांव में अब खेती और जंगल के अलावा मछली पालन भी अहम रोजगार का रूप धारण कर चुका है। जिसके कारण गांव में लोगों की न सिर्फ आमदनी बढ़ी है बल्कि रोजगार के नाम पर होने वाला पलायन भी रुक गया है। अब नौजवान परदेस जाकर कमाने की बजाय विजय ठाकुर की तरह गांव में ही मछली पालन में रोजगार ढ़ूढ़ंने लगे हैं। यहां किसान कर्ज लेने के एक साल में ब्याज समेत चुका देता है। परिवार में किसी बड़ी बीमारी हो या शादी विवाह के खर्चे की बात हो मछली पालन व्यवसाय से जुड़े किसानों के लिए अब कोई चिंता की बात नहीं रही है। अपने बच्चों को अच्छे संस्थान में पढ़ाने के लिए खर्च मछली पालन से भी निकाल लेते हैं। एक तालाब कई लोगों को रोजगार देने लगा है। विजय कहते हैं कि उनकी दृष्टि में अंग्रेजी के Fish का अर्थ केवल मछली ही नहीं है। बल्कि F-Food, I-Income, S-sport और H-Health है। वह मानते हैं कि गांव में मछली पालन एक कला है और एक खेल भी। इसे ग्रामीण रोमांचित और आनंदमय होकर उत्पादन करते हैं। वह कहते हैं कि यदि मछली उत्पादन को ग्रामीण उद्योग का रूप दिया जाए तो झारखंड पूरे भारत को रोजगार प्रदान कर सकता है। जोन्हा के किसान वास्तव में इसी संकल्प के साथ मछली के उत्पादन में जुटे हुए हैं।