आमतौर पर हम पृथ्वी पर जीवन को दो रूपों में जानते हैं। जीवन का पहला रूप जो जमीन पर है, जबकि दूसरा जलीय जीवन, जो नदियों और समुद्र की गहराइयों में है। जमीन पर मौजूद जीवन के बारे में हर व्यक्ति को पता है। इसमें इंसान के साथ ही पशु पक्षी और जीव-जंतु तथा सरिसृप आदि शामिल हैं। जीवन के इस पहले भाग को हम सभी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जीते, देखते व महसूस करते हैं, किंतु एक दुनिया समुद्र के अंदर भी बसती है। यहां विभिन्न प्रकार के समुद्री व जलीय जीव होने के साथ ही करोड़ों प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती हैं, जो पृथ्वी पर जीवनचक्र के साथ ही संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती हैं। हर व्यक्ति को बचपन के दिनों में स्कूल में भी जलीय जीवन के बारे में पढ़ाया जाता है, इसलिए ये कहना गलत नहीं होगा कि जलीय जीवन के बारे में हर व्यक्ति जानता भी है, लेकिन शायद ये शिक्षा किताबों तक ही सीमित रह गई है। जिस कारण जमीन के बाद अब जलीय जीवन खतरे में पड़ गया है और महासागर मछलियों व अन्य समुद्री जीवों की जगह प्लास्टिक से भरते जा रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि वर्ष 2050 तक समुद्र में मौजूद प्लास्टिक की संख्या मछलियों से ज्यादा हो जाएगी।
समुद्र में मछलियों की संख्या का पता लगाना नामुमकिन है, लेकिन वैज्ञानिकों के एक अनुमान के मुताबिक समुद्र में करीब 3.5 ट्रिलियन मछलियां हैं, तो वहीं हर साल समुद्र में 80 लाख मीट्रिक टन से अधिक प्लास्टिक कचरा डंप किया जाता है। जिसका वजन लगभग 17.6 अरब पौंड है, यानी 57 हजार ब्लू व्हेल्स के वजन के बराबर, लेकिन हर साल प्लास्टिक वेस्ट की मात्रा बढ़ती जा रही है। इससे समुद्र में डंप किए जाने वाले कूड़े की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। प्लास्टिक कचरे का उत्पादन करने वाले देशों में शीर्ष पर चीन है, जबकि इंडोनेशिया दूसरे, फिलिपीन्स तीसरे, वियतनाम चौथे, श्रीलंका पांचवे, थाईलैंड छठे, मिस्र सातवें, मलेशिया आठवे, नाइजिरिया नौवे, बांग्लादेश दसवे नंबर पर है, जबकि दक्षिण अफ्रिका, भारत, अल्जीरिया, टर्की और पाकिस्तान आदि देशों का नंबर इनके बाद आता है।
आंकड़ों की बात करें तो चीन हर साल लगभग 3.53 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा समुद्र में फेंकता है, जबकि इंडोनेशिया 1.29 मिलियन मीट्रिक टन, फिलिपीन्स 0.75 मिलियन मीट्रिक टन। इसी तरह विश्व के सभी देशों द्वारा समुद्र में फेंके जाने वाले कचरे की बात करें तो हर साल ये आंकड़ा करीब 80 लाख मीट्रिक टन से अधिक है। लेकिन ये आंकड़ा घटने की बजाए बढ़ता जा रहा है। ऐसे में मरीन वैज्ञानिकों का मानना है कि वर्ष 2050 तक समुद्र में मौजूद प्लास्टिक की संख्या महासागरों में मौजूद कुल मछलियों के वजन से भी ज्यादा हो जाएगी। हालाकि वैज्ञानिकों की इस बात से नकारा नहीं जा सकता है। इसलिए वक्त प्लास्टिक को इंसानी जीवन से निकालने का है। वरना जैसे जैसे प्लास्टिक बढ़ेगा समयचक्र के इस पहिये के साथ धरती पर जीवनचक्र बिगड़ता जाएगा और समुद्र जलीय जीवों का कब्रगाह बनता जाएगा। इससे इंसानों का जीवन भी खतरे में पड़ेगा।
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