अनाज को तीन श्रेणियों में बांटा जाता है। पहली श्रेणी में पाॅजिटिव और न्यूट्रल अनाज आते हैं, जिन्हें मिलेट भी कहा जाता है। मिलेट अनाज ही मोटे अनाज भी होते हैं जिनमें रागी, बाजरा, ज्वार, सफेद ज्वार, बारगु, काॅर्न आदि शामिल है। इनमें फाइबर प्रचूर मात्रा में होता है और शरीर को पूरे दिन ऊर्जा से भरपूर रखता है। इनमें प्रोटीन, मिनरल, कैल्शियम, फाॅस्फोरस, पोटेशियम, आयरन, जिंक, मैग्नीशियम, मैगनीज और विटामिन जैसे आवश्यक तत्व होते है। डायबिटीज, गठिया, थायराइड, अग्न्याशय, मस्तिष्क, दिल और तिल्ली से संबंधित बीमारी के अलावा बुखार, गैंगरीन, दौरे पड़ना, अस्थमा, पुरुष और महिला प्रजनन प्रणाली संबंधी समस्याओं आदि से बचाव भी करती है। तो वहीं माइग्रेन और दिल के दौरे को कम करने के लिए मिलेट काफी लाभकारी हैं। लेकिन दुनिया भर में खाए जाने वाले अधिकांश भोजन में गेहूं, चावल और मांस शामिल हैं। इनमें फाइबर की मात्रा न के बराबर होती है, जो कि विभिन्न प्रकार की बीमारियों का कारण भी बनता है। इसके अलावा चावल और गेहूं की फसल में पानी की खपत भी काफी अधिक होती है।
समय के साथ साथ मोटे अनाज भोजन की थाली से दूर होते गए। मांग कम होने के कारण किसानों ने मोटे अनाज की फसल उगाना भी कम कर दिया। लेकिन मध्य प्रदेश सरकार मोटे अनाज को बढ़ावा देेने के लिए एक नई नीति बनाने जा रही है। जिसके लिए मिलटे मिशन कार्पोरेशन बनाया जाएगा। इस संदर्भ में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अधिकारियों की बैठक ली और अधिकारियों को अधिकारियों को प्रोजेक्ट में ज्वार, बाजरा, रागी, समा, कुटकी आदि फसलों को शामिल करने के लिए कहा है। फिलहाल मध्यप्रदेश सरकार कोदो और कुटकी के उत्पादन को दोगुना करना चाहती है। इन उत्पादों की ब्रांडिंग अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर करने के अलावा पर्यटन विभाग के होटलों में कोदो-कुटकी से बने व्यंजनों को मैन्यू में शामिल भी किया जाएगा। साथ ही बिक्री केंद्र भी अनिवार्य रूप से स्थापित करने के निर्देश दिए हैं। सरकार के इस निर्णय से आदिवासी इलाकों के विकास को पंख लगेंगे और उनकी आय बढ़ने की संभावना भी बढ़ जाएगी। क्योंकि कोदो-कुटकी, ज्वार, बाजरा और मक्का फसले ज्यादातर आदिवासी इलाकों में ही होती हैं।
निसंदेश ही मोटे अनाज को बढावा देना सरकार का एक स्वागतयोग्य निर्णय है। इससे न केवल स्वास्थ्यवर्धक अनाज का उत्पादन होगा, बल्कि आदिवासी किसानों के साथ ही सामान्य किसानों के जीवन में खुशहाली आएगी। ये जल संकट का सामना कर रहे मध्य प्रदेश में जल संरक्षण की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
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