मध्यान्तर

Submitted by Hindi on Wed, 06/08/2011 - 09:35
ठीक दोपहर बारह बजे
कुएँ में झाँकता है तमतमाया सूरज
और कुएँ में बैठा अँधेरा
भागता है रख कर सिर पर पाँव
दोपहर बारह बजे कुएँ में
सिर्फ़ सूरज की आवाज़ गूँज रही है
और पानी (उजले मन से)
पी रहा है धूप

परम तेजस्वी संज्ञा की
सुन्दर क्रिया से
कुएँ में हौले-हौले हिल रही है
पानी की कायनात

कुएँ की जगत पर
बाल्टी के पानी के साथ
धूप भी छलक कर आ रही है बाहर

अद्वितीय कवि सूरज
अपनी ही धूप से थक
कुआँ-तल में बैठ सुस्ता रहा है
और पानी में धीरे-धीरे घोल रहा है-

अपना उजला ख़याल
आह! कितनी लय में
गिरा-अरथ का जल
डोल रहा है!