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रोजगार समाचार, 20-26 अक्टूबर 2012
महात्मा गांधी नरेगा द्वारा वर्तमान में उपयोग में लाए जा रहे मैनेजमेंट इंफॉरमेशन सिस्टम के जरिए 9 करोड़ से अधिक मस्टर रोल और 12 करोड़ से अधिक जॉब कार्ड ऑनलाइन प्रस्तुत किए जा चुके हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि महात्मा गांधी नरेगा हमारे लाखों सीमांत नागरिकों को पात्रता, अधिकारिता, सुरक्षा और अवसर का वादा प्रदान करता है। यह ग्रामीण बदलाव की एक प्रमुख शक्ति होने का अवसर प्रदान करता है जो कृषि सामुदायिक विकास, टिकाऊ आजीविका सृजन, जल प्रबंधन और स्वच्छता के क्षेत्रों में सकारात्मक आवेगों को बढ़ाती है। महात्मा गांधी नरेगा समीक्षा-महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम पर 2006 से 2012 तक स्वतंत्र शोध अध्ययन एवं विश्लेषण का एक संकलन, भारत में सर्वाधिक पिछड़े लोगों की सहायता के लिए अपेक्षित कानून के मूल्यांकन हेतु एक मंच उपलब्ध कराता है। समीक्षा श्री जयराम रमेश, ग्रामीण विकास मंत्री की एक पहल है और इसे श्री मिहिर शाह, सदस्य योजना आयोग ने संपादित किया है।
इस कार्यक्रम के अनुसार 2010-11, में, करीब 5.50 करोड़ परिवारों अथवा करीब चार ग्रामीण घरों में एक को कार्यक्रम के अधीन 250 करोड़ व्यक्ति-दिवस से अधिक का काम उपलब्ध कराया गया। यह आंकड़े योजना के प्रथम वर्ष 2006-07 में उपलब्ध कराए गए 90 करोड़ व्यक्ति दिवस काम से बहुत अधिक हैं।
समाविष्टि के लिहाज से योजना का उच्च स्कोर है। कार्य में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाती परिवारों का हिस्सा 51 प्रतिशत रहा है और इसमें महिलाओं का हिस्सा 47 प्रतिशत है। योजना की शुरुआत से प्रति व्यक्ति-दिवस औसत दिहाड़ी बढ़कर 81 प्रतिशत हो गई है।
मजदूरी के निर्धारण में, बढ़ती मुद्रास्फ़ीति से कामगारों की संरक्षा को, ध्यान में रखा जाता है। करीब 10 करोड़ बैंक/डाकघर खाते खोले गए हैं और महात्मा गांधी नरेगा का करीब 80 प्रतिशत भुगतान इस अभिनव मार्ग के जरिए किया जाता है जो कि वित्तीय समावेशन की दिशा में एक अभूतपूर्व कदम है। इस योजना के तहत उपलब्ध कराए गए सुरक्षा कवच ने ग्रामीण भारत को वहां अक्सर उत्पन्न होने वाले संकटों और प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में मदद की है।
समीक्षा की प्रस्तावना में, श्री जयराम रमेश ने परिमाणात्मक उपलब्धियों का उल्लेख किया और ये हैं ;-
a. 2006 में अपनी शुरुआत से ही लगभग 1,10,000 करोड़ रुपए ग्रामीण परिवारों को मजदूरी भुगतान के रूप में सीधे दिए गए और लगभग 1200 करोड़ श्रम-दिवस का रोज़गार सृजित किया गया। 2008 से औसतन हर वर्ष 5 करोड़ परिवारों को रोजगार प्रदान किया गया।
b. अस्सी प्रतिशत परिवारों को सीधे बैंक/डाकघर खातों से भुगतान किया गया और 10 करोड़ नए बैंक/डाकघर खाते खोले गए।
c. औसतन प्रति श्रम-दिवस अपनी शुरुआत के बाद से 81 प्रतिशत तक बढ़ गया। इसमें राज्य स्तर पर भिन्नताएं हैं। आज अधिसूचित मजदूरी में बिहार, झारखंड में न्यूनतम 122 रु. से लेकर हरियाणा में 199 रु. तक की विविधता है।
d. अनुसूचित जाति (अजा) और अनुसूचित जनजाति (अजजा) का कुल श्रम दिवस रोज़गार में 51 प्रतिशत और महिलाओं का हिस्सा 47 प्रतिशत है, जो कि अधिनियम के अंतर्गत अनिवार्य 33 प्रतिशत से काफी अधिक है।
e. कार्यक्रम की शुरूआत से अब तक 146 लाख काम किए गए, जिनमें से 60 प्रतिशत पूरे हो चुके हैं। इन कामों में –
1. 19 प्रतिशत काम ग्रामीण संपर्क से जुड़े हैं (जैसे, ग्रामीण सड़कें)।
2. 25 प्रतिशत काम जल संरक्षण और वर्षा जल संरक्षण से जुड़े हैं।
3. 14 प्रतिशत काम सिंचाई नहर और पारंपरिक जल निकायों की मरम्मत से जुड़े हैं।
4. 13 प्रतिशत काम बाढ़ सुरक्षा और सूखा बचाव से जुड़े हैं।
5. 14 प्रतिशत काम निजी भूमियों पर किए गए हैं। (छोटे और सीमांत किसानों अजा/अजजा/गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों/इंदिरा आवास योजना और भूमि सुधार लाभान्वितों से जुड़ें हैं। )
6. 12 करोड़ रोज़गार कार्ड दिए गए और इन्हें 9 करोड़ मस्टर रोलों के साथ अधिसूचना प्रबंधन व्यवस्था (एम आई एस) में अपलोड किया गया, जो कि आम लोगों के लिए उपलब्ध है। 2010-11 से महात्मा गांधी नरेगा से जुड़े खर्चों का पूरा ब्यौरा एमआईएस पर उपलब्ध है।
यद्यपि इसका कार्यान्वयन राज्यों और जिलों में असमान रहा है, परंतु साक्ष्य इंगित करते हैं कि महात्मा गांधी नरेगा ने (क) हर जगह ग्रामीण मजदूरी में वृद्धि की; (ख) आर्थिक दिक़्क़तों की वजह से अपने मूल निवास से पलायन करने वाले लोगों की संख्या में कमी; (ग) खेती के लिए बंजर भूमि को उपयोगी बनाने में योगदान दिया; और (घ) कमजोर वर्गों का सशक्तिकरण तथा उन्हें नई पहचान और मोलभाव की ताकत प्रदान करने में योगदान किया है।
महात्मा गांधी नरेगा की उपलब्धियाँ काफी प्रभावशाली रही हैं, परंतु इसके कार्यान्वयन को लेकर कुछ मुद्दे हैं, जिनके पहचानकर अर्थपूर्ण तरीके से हल करने की आवश्यकता है।
7. मांग-आधारित कानूनी हों की सुनिश्चितता
8. ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक तंगी के कारण मूल निवास से पलायन करने वाले लोगों में कमी
9. श्रमिकों को मजदूरी भुगतान में देरी में कमी
10. मांग के अनुरूप वांछित कार्य दिवस उपलब्ध कराना
11. महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत सृजित संपत्ति की गुणवत्ता में सुधार और गरीबों की आजीविका से उनका संबंध
12. महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत निर्धारित मजदूरी का पूर्ण भुगतान करने की सुनिश्चितता
13. जमीनी स्तर पर भागीदारी युक्त नियोजन करना
14. अनुदान का नियमित प्रवाह बनाए रखना
15. शिकायत निवारण तंत्र को मजबूत बनाना
समीक्षा जारी करते हुए प्रधानमंत्री, डॉ. मनमोहन सिंह ने महात्मा गांधी नरेगा को विश्व में सबसे बड़ा और सर्वाधिक महत्वाकांक्षी सामाजिक सुरक्षा और जन जागरण कार्यक्रम बताया।
कठिन शोध के आधार पर महात्मा गांधी नरेगा का मूल्यांकन, सुधार हेतु तर्कसंगत ढाँचा प्रदान करता है और बंद करने के लिए तर्कहीन मांगों को खारिज करता है।
कुछ लोगों के इस दावे पर कि महात्मा गांधी नरेगा उपयोगी परिसंपत्तियों का निर्माण नहीं करता है, अध्ययन का कहना है कि ऐसे कथन अक्सर कभी किसी सड़क किनारे संचालित कार्य-स्थलों के क्षणिक दौरों के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं। समीक्षा में परिसंपत्तियों के सृजन पर अध्ययन के प्रति समर्पित एक संपूर्ण अध्याय है, जो सामन्यतः कुल मिलाकर ये दर्शाता है कि स्थायी संपत्तियों का सृजन हुआ है। उदाहरण के लिए बिहार, गुजरात, राजस्थान और केरल में जल संचयन के क्षेत्र में श्रेष्ठ कार्य-निष्पादन करने वाली परिसंपत्तियों का अध्ययन इन कार्यों की क्षमता को दर्शाता है जहां अध्ययन की गई ज्यादातर परिसंपत्तियां कुएँ के निवेश पर एक वर्ष से भी कम अवधि में निवेश लागत की वसूली के साथ 100 प्रतिशत से अधिक की वापसी को दर्शाती है। रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि कई स्थानों पर कम कार्यान्वयन हुआ है। भुगतान की गई औसत मजदूरी, न्यूनतम मजदूरी से कम है। मजदूरी के भुगतान में चिंताजनक देरी हुई है; मांग की ठीक से पूर्ति नहीं होती है (एनएसएसओ के एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि काम चाहने वाले 19 प्रतिशत लोगों को काम नहीं मिल पाता) काम के लिए आवेदनों की दिनांकित रसीद सही प्रकार से नहीं दी जाती और बेरोज़गारी भत्ते का भुगतान दुर्लभ वस्तु है। स्टाफ की कमी है और निधियों के अनियमित प्रवाह की कई घटनाएँ हैं। कुछ राज्यों में कार्यस्थलों पर उपलब्ध होने वाले मस्टर रोल जैसे सक्रिय प्रकटीकरण प्रावधानों की अनुपालना एक समस्या बनी हुई है। परिणामस्वरूप चोरी और भ्रष्टाचार जारी है। हालांकि आंध्र प्रदेश में सामाजिक लेखा परिक्षाओं ने महत्वपूर्ण रूप से जागरूकता बढ़ाई है। और घोटालों का पता लगाया है। समीक्षा में नोट किया गया कि ज्यादातर राज्यों में सामाजिक लेखा परिक्षा एक दिखावा मात्रा है। कई पहलों के मिले-जुले परिणाम हैं। मैनेंजमेंट इन्फॉरमेशन सिस्टम महात्मा गांधी नरेगा वेबसाइट के जरिए सार्वजनिक सूचना के तौर पर किसी भी सरकारी कार्यक्रम के डाटा के सबसे बड़े सेट को प्रस्तुत करता है, परंतु राज्य वास्तविक समय आधार पर ऑनलाइन डाटा अपलोड करने के लिए अब भी संघर्षरत हैं। वित्तीय समावेश, और मजदूरी के भुगतानों में भ्रष्टाचारों में कमी लाने के लिए दस करोड़ बैंक और डाकघर खाते खोले गए हैं, परंतु इन खातों के जरिए भुगतानों में देरी होना चिंता का एक बड़ा कारण है।
महात्मा गांधी नरेगा द्वारा वर्तमान में उपयोग में लाए जा रहे मैनेजमेंट इंफॉरमेशन सिस्टम के जरिए 9 करोड़ से अधिक मस्टर रोल और 12 करोड़ से अधिक जॉब कार्ड ऑनलाइन प्रस्तुत किए जा चुके हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि महात्मा गांधी नरेगा हमारे लाखों सीमांत नागरिकों को पात्रता, अधिकारिता, सुरक्षा और अवसर का वादा प्रदान करता है। यह ग्रामीण बदलाव की एक प्रमुख शक्ति होने का अवसर प्रदान करता है जो कृषि सामुदायिक विकास, टिकाऊ आजीविका सृजन, जल प्रबंधन और स्वच्छता के क्षेत्रों में सकारात्मक आवेगों को बढ़ाती है।
(यह संपादकीय लेख ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार की रिपोर्ट पर आधारित है। लेखक एम्लॉयमेंट न्यूज के मुख्य संपादक और संपादक हैं और director.employmentnews@com पर संपर्क किया जा सकता है।)
इस कार्यक्रम के अनुसार 2010-11, में, करीब 5.50 करोड़ परिवारों अथवा करीब चार ग्रामीण घरों में एक को कार्यक्रम के अधीन 250 करोड़ व्यक्ति-दिवस से अधिक का काम उपलब्ध कराया गया। यह आंकड़े योजना के प्रथम वर्ष 2006-07 में उपलब्ध कराए गए 90 करोड़ व्यक्ति दिवस काम से बहुत अधिक हैं।
समाविष्टि के लिहाज से योजना का उच्च स्कोर है। कार्य में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाती परिवारों का हिस्सा 51 प्रतिशत रहा है और इसमें महिलाओं का हिस्सा 47 प्रतिशत है। योजना की शुरुआत से प्रति व्यक्ति-दिवस औसत दिहाड़ी बढ़कर 81 प्रतिशत हो गई है।
मजदूरी के निर्धारण में, बढ़ती मुद्रास्फ़ीति से कामगारों की संरक्षा को, ध्यान में रखा जाता है। करीब 10 करोड़ बैंक/डाकघर खाते खोले गए हैं और महात्मा गांधी नरेगा का करीब 80 प्रतिशत भुगतान इस अभिनव मार्ग के जरिए किया जाता है जो कि वित्तीय समावेशन की दिशा में एक अभूतपूर्व कदम है। इस योजना के तहत उपलब्ध कराए गए सुरक्षा कवच ने ग्रामीण भारत को वहां अक्सर उत्पन्न होने वाले संकटों और प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में मदद की है।
समीक्षा की प्रस्तावना में, श्री जयराम रमेश ने परिमाणात्मक उपलब्धियों का उल्लेख किया और ये हैं ;-
a. 2006 में अपनी शुरुआत से ही लगभग 1,10,000 करोड़ रुपए ग्रामीण परिवारों को मजदूरी भुगतान के रूप में सीधे दिए गए और लगभग 1200 करोड़ श्रम-दिवस का रोज़गार सृजित किया गया। 2008 से औसतन हर वर्ष 5 करोड़ परिवारों को रोजगार प्रदान किया गया।
b. अस्सी प्रतिशत परिवारों को सीधे बैंक/डाकघर खातों से भुगतान किया गया और 10 करोड़ नए बैंक/डाकघर खाते खोले गए।
c. औसतन प्रति श्रम-दिवस अपनी शुरुआत के बाद से 81 प्रतिशत तक बढ़ गया। इसमें राज्य स्तर पर भिन्नताएं हैं। आज अधिसूचित मजदूरी में बिहार, झारखंड में न्यूनतम 122 रु. से लेकर हरियाणा में 199 रु. तक की विविधता है।
d. अनुसूचित जाति (अजा) और अनुसूचित जनजाति (अजजा) का कुल श्रम दिवस रोज़गार में 51 प्रतिशत और महिलाओं का हिस्सा 47 प्रतिशत है, जो कि अधिनियम के अंतर्गत अनिवार्य 33 प्रतिशत से काफी अधिक है।
e. कार्यक्रम की शुरूआत से अब तक 146 लाख काम किए गए, जिनमें से 60 प्रतिशत पूरे हो चुके हैं। इन कामों में –
1. 19 प्रतिशत काम ग्रामीण संपर्क से जुड़े हैं (जैसे, ग्रामीण सड़कें)।
2. 25 प्रतिशत काम जल संरक्षण और वर्षा जल संरक्षण से जुड़े हैं।
3. 14 प्रतिशत काम सिंचाई नहर और पारंपरिक जल निकायों की मरम्मत से जुड़े हैं।
4. 13 प्रतिशत काम बाढ़ सुरक्षा और सूखा बचाव से जुड़े हैं।
5. 14 प्रतिशत काम निजी भूमियों पर किए गए हैं। (छोटे और सीमांत किसानों अजा/अजजा/गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों/इंदिरा आवास योजना और भूमि सुधार लाभान्वितों से जुड़ें हैं। )
6. 12 करोड़ रोज़गार कार्ड दिए गए और इन्हें 9 करोड़ मस्टर रोलों के साथ अधिसूचना प्रबंधन व्यवस्था (एम आई एस) में अपलोड किया गया, जो कि आम लोगों के लिए उपलब्ध है। 2010-11 से महात्मा गांधी नरेगा से जुड़े खर्चों का पूरा ब्यौरा एमआईएस पर उपलब्ध है।
यद्यपि इसका कार्यान्वयन राज्यों और जिलों में असमान रहा है, परंतु साक्ष्य इंगित करते हैं कि महात्मा गांधी नरेगा ने (क) हर जगह ग्रामीण मजदूरी में वृद्धि की; (ख) आर्थिक दिक़्क़तों की वजह से अपने मूल निवास से पलायन करने वाले लोगों की संख्या में कमी; (ग) खेती के लिए बंजर भूमि को उपयोगी बनाने में योगदान दिया; और (घ) कमजोर वर्गों का सशक्तिकरण तथा उन्हें नई पहचान और मोलभाव की ताकत प्रदान करने में योगदान किया है।
महात्मा गांधी नरेगा की उपलब्धियाँ काफी प्रभावशाली रही हैं, परंतु इसके कार्यान्वयन को लेकर कुछ मुद्दे हैं, जिनके पहचानकर अर्थपूर्ण तरीके से हल करने की आवश्यकता है।
7. मांग-आधारित कानूनी हों की सुनिश्चितता
8. ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक तंगी के कारण मूल निवास से पलायन करने वाले लोगों में कमी
9. श्रमिकों को मजदूरी भुगतान में देरी में कमी
10. मांग के अनुरूप वांछित कार्य दिवस उपलब्ध कराना
11. महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत सृजित संपत्ति की गुणवत्ता में सुधार और गरीबों की आजीविका से उनका संबंध
12. महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत निर्धारित मजदूरी का पूर्ण भुगतान करने की सुनिश्चितता
13. जमीनी स्तर पर भागीदारी युक्त नियोजन करना
14. अनुदान का नियमित प्रवाह बनाए रखना
15. शिकायत निवारण तंत्र को मजबूत बनाना
समीक्षा जारी करते हुए प्रधानमंत्री, डॉ. मनमोहन सिंह ने महात्मा गांधी नरेगा को विश्व में सबसे बड़ा और सर्वाधिक महत्वाकांक्षी सामाजिक सुरक्षा और जन जागरण कार्यक्रम बताया।
कठिन शोध के आधार पर महात्मा गांधी नरेगा का मूल्यांकन, सुधार हेतु तर्कसंगत ढाँचा प्रदान करता है और बंद करने के लिए तर्कहीन मांगों को खारिज करता है।
कुछ लोगों के इस दावे पर कि महात्मा गांधी नरेगा उपयोगी परिसंपत्तियों का निर्माण नहीं करता है, अध्ययन का कहना है कि ऐसे कथन अक्सर कभी किसी सड़क किनारे संचालित कार्य-स्थलों के क्षणिक दौरों के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं। समीक्षा में परिसंपत्तियों के सृजन पर अध्ययन के प्रति समर्पित एक संपूर्ण अध्याय है, जो सामन्यतः कुल मिलाकर ये दर्शाता है कि स्थायी संपत्तियों का सृजन हुआ है। उदाहरण के लिए बिहार, गुजरात, राजस्थान और केरल में जल संचयन के क्षेत्र में श्रेष्ठ कार्य-निष्पादन करने वाली परिसंपत्तियों का अध्ययन इन कार्यों की क्षमता को दर्शाता है जहां अध्ययन की गई ज्यादातर परिसंपत्तियां कुएँ के निवेश पर एक वर्ष से भी कम अवधि में निवेश लागत की वसूली के साथ 100 प्रतिशत से अधिक की वापसी को दर्शाती है। रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि कई स्थानों पर कम कार्यान्वयन हुआ है। भुगतान की गई औसत मजदूरी, न्यूनतम मजदूरी से कम है। मजदूरी के भुगतान में चिंताजनक देरी हुई है; मांग की ठीक से पूर्ति नहीं होती है (एनएसएसओ के एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि काम चाहने वाले 19 प्रतिशत लोगों को काम नहीं मिल पाता) काम के लिए आवेदनों की दिनांकित रसीद सही प्रकार से नहीं दी जाती और बेरोज़गारी भत्ते का भुगतान दुर्लभ वस्तु है। स्टाफ की कमी है और निधियों के अनियमित प्रवाह की कई घटनाएँ हैं। कुछ राज्यों में कार्यस्थलों पर उपलब्ध होने वाले मस्टर रोल जैसे सक्रिय प्रकटीकरण प्रावधानों की अनुपालना एक समस्या बनी हुई है। परिणामस्वरूप चोरी और भ्रष्टाचार जारी है। हालांकि आंध्र प्रदेश में सामाजिक लेखा परिक्षाओं ने महत्वपूर्ण रूप से जागरूकता बढ़ाई है। और घोटालों का पता लगाया है। समीक्षा में नोट किया गया कि ज्यादातर राज्यों में सामाजिक लेखा परिक्षा एक दिखावा मात्रा है। कई पहलों के मिले-जुले परिणाम हैं। मैनेंजमेंट इन्फॉरमेशन सिस्टम महात्मा गांधी नरेगा वेबसाइट के जरिए सार्वजनिक सूचना के तौर पर किसी भी सरकारी कार्यक्रम के डाटा के सबसे बड़े सेट को प्रस्तुत करता है, परंतु राज्य वास्तविक समय आधार पर ऑनलाइन डाटा अपलोड करने के लिए अब भी संघर्षरत हैं। वित्तीय समावेश, और मजदूरी के भुगतानों में भ्रष्टाचारों में कमी लाने के लिए दस करोड़ बैंक और डाकघर खाते खोले गए हैं, परंतु इन खातों के जरिए भुगतानों में देरी होना चिंता का एक बड़ा कारण है।
महात्मा गांधी नरेगा द्वारा वर्तमान में उपयोग में लाए जा रहे मैनेजमेंट इंफॉरमेशन सिस्टम के जरिए 9 करोड़ से अधिक मस्टर रोल और 12 करोड़ से अधिक जॉब कार्ड ऑनलाइन प्रस्तुत किए जा चुके हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि महात्मा गांधी नरेगा हमारे लाखों सीमांत नागरिकों को पात्रता, अधिकारिता, सुरक्षा और अवसर का वादा प्रदान करता है। यह ग्रामीण बदलाव की एक प्रमुख शक्ति होने का अवसर प्रदान करता है जो कृषि सामुदायिक विकास, टिकाऊ आजीविका सृजन, जल प्रबंधन और स्वच्छता के क्षेत्रों में सकारात्मक आवेगों को बढ़ाती है।
(यह संपादकीय लेख ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार की रिपोर्ट पर आधारित है। लेखक एम्लॉयमेंट न्यूज के मुख्य संपादक और संपादक हैं और director.employmentnews@com पर संपर्क किया जा सकता है।)