महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) भारत सरकार की महत्वपूर्ण योजनाओं में से एक है, लेकिन दलालों का वर्चस्व होने के कारण मजदूरों को योजना का समुचित लाभ नहीं मिल पा रहा है। उक्त बातें राज्य के उपमुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आज पैक्स द्वारा होटल कैपिटल हिल में आयोजित राज्य स्तरीय परिचर्चा में कही। श्री सोरेन ने कहा कि मनरेगा में रोजगार देने का जो आंकड़ा सामने आया है, वह निराशाजनक है। हालांकि कई जिलों ने मनरेगा में अच्छे कार्य भी किये और बेहतर प्रदर्शन के लिए अवार्ड भी दिये हैं। श्री सोरेन ने कहा कि मनरेगा में कागजी कार्रवाई एवं अफसर शाही बहुत ज्यादा हैं। इसके चक्कर में जिले के कई पदाधिकारी कार्यालय छोड़कर क्षेत्र में नहीं जाते हैं। इधर मजदूरों की भी मानसिकता पलायन करने की बन गयी है। पलायन रोकने के लिए उन्होंने स्वयं भी प्रयास किया था, लेकिन वह नहीं रूका। यहां के मजदूरों में ब्लैक एण्ड ह्वाइट लाइफ से कलरफूल लाइफ जीने की मानसिकता भी बन गयी है। उन्होंने कहा कि यह आने वाले समय के लिए अच्छी बात नहीं है।
श्री सोरेन ने कहा कि राज्य सरकार अब पंचायतों को सारी शक्तियां देने का कार्य करेगी। मनरेगा की जिम्मेदारी मुखिया को सौंपी जायेगी। मुखिया ही लोगों को चिह्नित कर इस योजना से जोड़ने का कार्य करेंगे। मजदूरी का भुगतान भी उन्हीं के द्वारा किया जायेगा। श्री सोरेन ने कहा कि मनरेगा के तहत मिट्टी के कार्यों के अलावा पक्के काम भी लिये जायेंगे। इसके लिए 60 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहा कि पानी की समस्या एक गम्भीर समस्या बन गयी है। इसके लिए राज्य में एक लाख से अधिक चापाकल लगाने की योजना है जिसमें 60-65 हजार चापाकल लगाये भी जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि चापाकल पानी का स्थायी समाधान नहीं है। श्री सोरेन ने कहा कि अब नये चापाकल जहां भी लगेंगे शॉकपीट का भी निर्माण किया जायेगा ताकि पानी का जलस्तर बना रहे। राज्य महिला आयोग की सदस्य श्रीमती बासकी किडो ने कहा कि मनरेगा का रिजल्ट हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं है। उन्होंने कहा कि राज्य की आदिवासी, हरिजन, पिछड़े एवं गरीब वर्ग के 50 प्रतिशत महिलाओं को रोजगार नहीं मिल पाया, इसका सीधा मतलब है कि राज्य में मनरेगा फेल है।
श्रीमती किडो ने मनरेगा में अधिक से अधिक महिलाओं को जोड़ने, गर्भवती महिलाओं को 100 दिन में 30 दिन का मातृत्व अवकाश मजदूरी के साथ देने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट के आयुक्त के राज्य सलाहकार बलराम ने कहा कि मनरेगा को नजरअंदाज कर कोई भी सरकार नहीं चल सकती है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर 40 प्रतिशत और झारखंड में केवल 34 प्रतिशत महिलाओं को ही मनरेगा से रोजगार मिला है। उन्होंने कहा कि योजनाओं के चयन में सामूहिकता का अभाव है। प्रो. रमेश शरण ने कहा कि सामाजिक रूढ़ियां योजना को कमजोर कर रही हैं। बड़े लोग कभी नहीं चाहते कि गरीब तबके के मजदूर इस योजना से जुड़े। इनके मनरेगा से जुड़ने से उनके कार्य प्रभावित होते हैं इसलिए वे मनरेगा के बारे में भ्रांतियां भी फैलाने का कार्य करते हैं। परिचर्चा का संचालन राजेन्द्र खोसला एवं अतिथियों का स्वागत पैक्स के झारखंड राज्य मैनेजर जॉनसन टोपनो ने किया। परिचर्चा में बड़ी संख्या में स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधि उपस्थित थे।
Source
रांची एक्सप्रेस, 06 मार्च 2011