जब से मानव सभ्यता का विकास हुआ है तब से हम पानी को जानते व समझते आए हैं ऐसा माना जाता है कि मानव सभ्यता का विकास नदियों के किनारे ही हुआ है तथा पला-बढ़ा विकसित हुआ है। इस तथ्य से जल व नदियों की महत्ता का अन्दाजा लगाया जा सकता है। विश्व के अधिकतर प्रमुख शहर नदियों के किनारे ही बसे हैं क्योंकि नदियों से जीवन दायक जल तो मिलता ही है साथ ही यात्रा मार्ग तथा आजीविका के साधन भी उपलब्ध होते हैं पर अब इंसानी विकास की आँधी ने प्राकृतिक जलस्रोतों व नदियों के अस्तित्व को खतरे में लाकर खड़ा कर दिया है।
मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश की सीमा पर सबसे प्राचीनतम धार्मिक तीर्थ स्थल चित्रकूट नगरी स्थित राम घाट में लाखों भक्त जब दीपदान कर रहे हैं तब इस नदी में लंबे समय से व्याप्त प्रदूषण को कुछ समय के लिए जरूर ढका जा सकता है। चित्रकूट से 15 किमी. दूर सती अनुसुइया से निकलने वाली यह नदी चित्रकूट, कर्वी से होते हुए बाँदा के राजापुर गाँव के पास यमुना में विलय हो जाती है। लगभग इस 50 किमी. के सफर में मन्दाकिनी कहीं नाले में तब्दील दिखाई देती है तो कहीं बिल्कुल सूखी हुई नजर आती है।
पहले यह नदी सदानीरा रही है और इसके 2003 की बाढ़ के रौद्र रूप के किस्से दूर-दूर तक फैले हुए हैं पर अब यह नदी नाले के रूप में सिकुड़ चुकी है। पूरे चित्रकट का लगभग 70% पीने का पानी इसी सप्लाई होता है। पर इसकी हालत को देखते हुए अब यह कितने दिन तक यह लोंगों की प्यास बुझाएगी कहा नहीं जा सकता। दिनों-दिन नदी के कैचमेंट एरिया में नयी-नयी इमारतें बनती नजर आती हैं जिससे इसके बहाव में तो फर्क आता ही है साथ ही नदी के पारिस्थितिकी में भी बदलाव आ रहा है और बड़ी बात यह है कि यह सब मानव स्वार्थ का ही उदाहरण है।
‘सुरसरी धार नाउ मन्दाकिनी, जो सब पातक पोतक डाकिनि’
गोस्वामी तुलसी दास के द्वारा रचित रामचरित मानस की इन पंक्तियों में पाप हरने वाली मंदाकिनी नदी आज अपने दुर्दशा के दिनों से गुजर रही है। यह बात सही है कि आज मंदाकिनी का पानी बढ़ते प्रदूषण की वजह से आचवन करने लायक भी नहीं रह गया है। मंदाकिनी नदी को लेकर मध्यप्रदेश के उच्च न्यायालय ने स्थिति मे सुधार के आदेश दिये तो स्थानीय संतों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने समय-समय पर सत्याग्रह शुरू किया है। मन्दाकिनी नदी संरक्षण सत्याग्रह के संयोजक अभिमन्यु भाई का कहना हैं कि महात्मा गांधी के देश में जब तक नदियों, पहाड़ों व बचपन के साथ हिंसाएं होती रहेंगी तब तक देश का सही मायने में विकास नहीं हो पायेगा।
नदी का पौराणिक महत्त्व
मन्दाकिनी को लोग पवित्र नदी का दर्जा देते हैं साथ ही श्रद्धा और भक्ति की मिसाल भी मानी जाती है। पौराणिक किवदन्ती के अनुसार ऋषि अत्री को बहुत प्यास लगी थी तो उनकी पत्नी माता अनुसुइया के प्रयासों से इस नदी का उदगार किया गया। चित्रकूट से लगभग 15 किमी़ दूर सती अनुसुइया मन्दिर के पास ही इसका उदगम केंद्र माना जाता है जोकि पहाड़ो से निकली स्प्रिंग्स (झरनों) के पानी से निकलती है। आगे लगातार जंगल के अन्य स्प्रिंग्स का मिलने वाला पानी इसके बहाव को तय करता है। मान्यता के अनुसार भगवान राम, सीता और लक्ष्मण अपने जंगल प्रवास के दौरान यहीं चित्रकूट में ही मन्दाकिनी के तट पर रहे थे। स्वामी तुलसीदास जी ने यहीं मन्दाकिनी के घाट पर रहते हुए रामचरित मानस की रचना की। श्रद्धालु दूर-दूर से भक्ति-भाव से यहाँ आते हैं और मन्दाकिनी में स्नान करने के लिये आते हैं।
साल 2018 में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट बताती है कि मंदाकिनी का पानी काफी जहरीला पाया गया है । इस पानी में टोटल डिजॉल्वड सॉलिड (टीडीएस) की मात्रा 700 से 900 प्रति लीटर स्तर तक पहुंच गई है वहीं कुल हार्डनेस (टीएच) 150 मिलीग्राम प्रति लीटर से ऊपर करीब तक पहुंच गया है | जो पथरी, किडनी और पेट से संबंधित कई बीमारियां इंसानों को अपनी चपेट में ले सकती हैं | वैसे भी, 300 प्रति लीटर स्तर तक टीडीएस की मात्रा पहुँचती है तो वह बेहद नुकसानदेह होती है।
जानकी कुंड से रामघाट तक गंदगी के दर्शन
गत दिनों पूर्व प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता स्व.एस. एन.सुब्बाराव का अस्थि कलश विसर्जन किये जाने की सूचना सर्वोदयी कार्यकर्ता अभिमन्यु भाई से फेसबुक पर मिली और हम अनायास ही चित्रकूट पहुंच गए। पहली बार चित्रकूट जाते हुये मन में उत्साह था कि संत तुलसी दास के जिस राम चरित मानस में हम चित्रकूट व मंदाकिनी का वर्णन सुनते आए हैं उसके सुंदर दर्शन प्राप्त होंगे। श्रद्धांजली कार्यक्रम में शामिल होने के बाद हम जानकी कुंड से होते हुये रामघाट पुल की ओर जैसे- जैसे बढ़ते गए खुले में शौच व नदी में जगह-जगह मिलने वाले सीवेज व प्लास्टिक, शैवाल आदि का प्रदूषण मन को दुखी कर गया।
उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित पुल के पास एक चेक डैम नुमा संरचना से श्रद्धालुओं के लिए नदी को बांधकर पानी जमा करने की कोशिश की गयी है। इससे ही नाविकों की रोजी-रोटी चलती है किन्तु नदी के किनारे पर मिलते सीवेज व जगह- जगह जमे कचरे की बदबू कारण नाक बंद करने की स्थिति बन जाती है। पुल के दूसरी और नदी पूरी तरह से नाले के स्वरूप में आ चुकी है। इसके एक किनारे पर गंदगी व झाड़ियों का ढेर लगा हुआ है जहां लोग खुले मे शौच करते हुए दिखने लग रहा है। वहीं दूसरी तरफ बने मकानों का गंदा पानी नदी को बेहद प्रदूषित कर रहा है। यह एक पौराणिक मान्यता है कि प्रभु रामचन्द्र ने अपने वनवासकाल का 11 वर्ष यहीं बिताया जिस दौरान वे मन्दाकिनी नदी में स्नान कर दीपदान किया करते थे । इसी पौराणिक मान्यता की याद में यहां प्रत्येक वर्ष बड़ा मेला लगता है जिसमें लगभग 40 लाख श्रद्धालु स्नान व दीपदान करने आते हैं ।हर नदी का अपना कैचमेंट एरिया होता है जिससे बारिश का पानी बहकर नदी में आता है और नदी बहने के साथ भूजल को भी रीचार्ज करती है।
कैचमेंट एरिया में बसाहट
हर नदी का अपना कैचमेंट एरिया होता है जिससे बारिश का पानी बहकर नदी में आता है और नदी बहने के साथ भूजल को भी रीचार्ज करती है। मन्दाकिनी सती अनुसुइया से निकलकर राजापुर गाँव के पास यमुना में मिलती है। इसका अधिकतम कैचमेंट एरिया पहाड़ी है। पर पहले जहाँ इसके आसपास पहाड़ियाँ थीं वहाँ बड़े-बड़े मन्दिर, इमारतें व होटल बने नजर आते हैं जिससे इसका कैचमेंट एरिया प्रभावित हुआ है। इसी वजह से इसके बेस फ्लो में भी गिरावट दर्ज हुई है साथ ही चित्रकूट का भूजल स्तर भी गिरा है। पहले जहाँ से पानी बहकर आता था अब वहाँ इमारतें बन जाने से या कहें विकास हो जाने से नदी का विनाश हो रहा है जिसका अन्दाजा राज और समाज कोई नहीं लगा पा रहा है।
कम हुआ है मन्दाकिनी में ऑक्सीज़न लेबल
पर्यावरणविद गुंजन मिश्रा, द्वारा 1994 में एक शोध कार्य के लिए गए अध्धयन के अनुसार मन्दाकिनी नदी का औसत बहाव सती अनुसूइया, स्फटिकशिला, जानकीकुंड, रामघाट, कर्वी घाट, सूर्यकुंड और राजापुर में क्रमशः 19, 1.8, 1.8, 1.9, 1.8, 1.4, 0.96 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड था। यही वजह थी कि पुराने समय में 1970 से पहले मोहकमगढ़, जानकी कुंड, सूर्यकुंड में पनचक्की चला करती थी, लेकिन आज यही बहाव रामघाट और कर्वी घाट पर नगण्य हो गया है। मन्दाकिनी नदी का पर्यावरणीय प्रवाह कितना होना चाहिए, बिना इसके अध्ययन के सिंचाई आदि के साथ-साथ नदी किनारे बोर वेल अथवा ट्यूबवेल से पानी लेने के कारण नदी के कनेक्टिविटी स्टेटस इंडेक्स को भी प्रभावित करते हैं।
मन्दाकिनी नदी का स्वस्थ रहना कितना महत्वपूर्ण है वह एक अध्ययन बताता है कि बेटा मछली, गप्पी मछली, फ्लॉवरहॉर्न फिश, गोल्ड मछली, ऑस्कर मछली, ग्रास कार्प मछली आदि एक्वेरियम में पाली जाने वाली मछलियां 1994 में मन्दाकिनी नदी में भी पायी जाती थीं, लेकिन आज प्रदूषण के कारण जल में घुली ऑक्सीजन की मात्रा कम होने के कारण ये मछलियां विलुप्त हो चुकी हैं।
कब तक पूरा होगा सीवेज लाइन प्रोजेक्ट ?
प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह ने वर्ष 2017 मे मंदाकिनी को सदानीरा बनाने के लिए संकल्प लिया था उन्होंने भरतघाट में 28 करोड़ 87 लाख 61 हजार रुपए की लागत के मंदाकिनी नदी संरक्षण योजना के अतंर्गत चित्रकूट नगर को पूरी तरह से सीवेज लाइन से जोड़ने की बात कही थी जो कि कागजों में अधिक है। फिलहाल सितंबर माह में पूरी होने वाली यह परियोजना न सिर्फ अधूरी है बल्कि बड़े भ्रष्टाचार का शिकार भी हुई है यही कारण है कि ठीक रामघाट पर ही शहरी नाला मन्दाकिनी में मिलता हुआ दिखाई पड़ रहा है ।
तो दीपावली के अवसर पर दीपदान की परंपरा को निभाते भक्तों व संत, सरकार की उपस्थिति में जब बड़े खर्चे और व्यवस्था के बीच हर तरफ रौशनी जगमगा रही है तब जरा सीवेज, प्लास्टिक, शैवाल की बेतहाशा गंदगी के बीच प्रदूषण से कराह रही मन्दाकिनी को जरूर देखें जो कभी तुलसी दास रचित रामचरित मानस में सदानीरा और पाप नाशिनी कही गयी है। यह देखते हुये सरकार खुद से पूछे कि हमने अपनी नदियों को नाला क्यों बनने दिया, उसके लिए वास्तव में क्या किया और भक्त भी अपने मन से पूछें कि इन जीवन रेखा नदियों के प्रदूषित होने में उनका कोई दोष नहीं है? इस समस्या पर चित्रकूट के स्थानीय निवासियों, व्यापारियों, धार्मिक प्रतिष्ठानों व स्थानीय प्रशासन को सच्चे भागीरथी प्रयास करने की आवश्यकता है।
नदी तो बचानी ही होगी
जैसा कि हम मानते हैं नदियों के किनारे ही हमारी सभ्यताओं उदय तथा विकास हुआ है तो अगर नदियों पर संकट आता है तो यह संपूर्ण सभ्यताओं पर भी एक बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा। अगर कोई नदी मृत या खत्म होती है तो वह केवल एक नदी नहीं मरती, मरता है उसके साथ एक कल्चर, एक सभ्यता, एक फ्लोरा और फौना का संसार..। इसलिये मन्दाकिनी को हर हाल में बचाना होगा क्योंकि मन्दाकिनी नहीं रही तो चित्रकूट का अस्तित्व भी नहीं रहेगा। मन्दाकिनी को बचाने का संकल्प किसी अकेले का नहीं होना चाहिये यह हम सबकी जिम्मेवारी है जिसे समाज और सत्ता दोनों को समझनी चाहिए। काल के ग्रास में खड़ी मन्दाकिनी को उसके पुरातन स्परूप में वापस लाना होगा जिसके लिये ठोस योजना के साथ काम करने की जरूरत है।