मत्स्यपालन-धनार्जन का उत्तम माध्यम

Submitted by admin on Sun, 11/10/2013 - 11:28
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रोजगार समाचार, 25-31 अगस्त 2012
अपने आत्म-विश्वास के बढ़ने और यहां का दौरा करने वाले विशेषज्ञों के मार्गदर्शन से कैलोंग कपिली के सदस्यों ने, उत्पादन तथा आय बढ़ाने के लिए एकीकरण का निर्णय लिया। सूअर विकास पर एक केंद्रीयकृत प्रायोजित योजना प्रारंभ की गई, जिसने एक दर्शनीय तरीके से आय के अवसरों में वृद्धि की। यहां के कुछ निवासी स्थानीय रूप में उपलब्ध सूअरों को पाल रहे थे। हमें सूअर पालन की वैज्ञानिक पद्धतियों को बढ़ावा देना था। यह एक ऐसा प्रयास था जिसे पशुपालन विभाग का समर्थन प्राप्त था। जोश से भरे कुछ साहसी युवकों ने बहुत ही कम समय में मछलीपालन क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में परिवर्तन को एक व्यापक गति दी है। सात शिक्षित युवा, जो कुछ वर्षों पहले तक बेरोजगार थे, अब वे मिश्रित मत्स्यपालन द्वारा अपने परिवारों का पोषण करते हैं और उन्होंने अन्य व्यक्तियों को भी मछलीपालन तथा समवर्गी कार्यों के माध्यम से उनकी आय बढ़ाने में समर्थ बनाया है उनके द्वारा 2007 में स्थापित एक गैर-सरकारी संगठन, कैलोंग कपिली आज असम में ग्रामीण रोज़गार तथा विकास के लिए एक अत्यधिक सम्माननीय आदर्श (मॉडल) के रूप में उभर कर सामने आया है।

ब्रह्मपुत्र के दक्षिणी तट पर गुवाहटी शहर के पूर्व में स्थित दिमोरिया तथा मायोंग ब्लॉकों में मछली एवं झींगा पालन, बागवानी, बतख पालन और सूअरपालन से अब तक 1,380 व्यक्ति लाभान्वित हुए हैं। स्थानीय लोगों को विभिन्न आर्थिक कार्यों में लगाने के लिए दो सौ स्वयं-सहायता समूहों का गठन किया गया है।

इस क्षेत्र के व्यक्ति लम्बे समय से सीमित आर्थिक अवसरों से प्रभावित रहे हैं। तथापि, यहां के भूदृश्यांकन का एक महत्व है, जिसे यहां के स्थानीय निवासियों ने अनदेखा किया है। यह वहां की ऐसी परिसंपत्ति है, जिसे कैलोंग कपिली के युवकों ने पहचाना और अपनी पहली परियोजना चालू करने में इसका उपयोग किया।

बोगीबाड़ी नामक बस्ती में अनेक निचले क्षेत्र हैं, जिनमें से कुछ क्षेत्रों में तालाब हैं, जहां मालिक इनमें मछली तथा बतख पालते थे। इनकी संभावनाओं का अनुभव करते हुए गैर-सरकारी संगठन के सात संस्थापकों ने इन तालाबों को ऐसे गहरे जलाशयों में बदलना शुरू किया जहां मछलीपालन का कार्य वैज्ञानिक तरीके से किया जा सके। राज्य मात्स्यिकी विभाग के कर्मचारियों ने अत्यधिक आवश्यक तकनीकी जानकारी देने में सहायता की।

सबसे बड़ी चुनौती ऋण प्राप्त करना था। बैंकों का हमारी परियोजना में विश्वास नहीं था। किंतु युवकों ने आशा नहीं छोड़ी और अपने प्रयासों में लगे रहे।

अंत में, राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) तथा असम ग्रामीण विकास बैंक (ए.जी.वी.बी.), सोनापुर शाखा से समर्थन प्राप्त हुआ। यह समर्थन, कैलोंग कपिली के लिए आगे बढ़ने का एक महत्वपूर्ण कदम था, जिसने युवकों को आधारिक सुविधाओं में निवेश करने तथा अपना कार्य करने के लिए सक्षम बनाया। राहा में मात्स्यिकी कॉलेज ने मछली पालकों को मछलीपालन की आधुनिक पद्धतियों की जानकारी दी। मात्स्यिकी विभाग के कर्मचारियों द्वारा किए गए नियमित दौरों से मछलियों की निगरानी तथा प्रबंधन में सहायता मिली। इन मछलियों में उस समय काटला, रोहू, मृगल, सिल्वर कार्प, तथा ग्रास कार्प मछलियाँ भी शामिल थीं। बागवानी फ़सलों तथा बतखों से कुल मुनाफ़े में वृद्धि हुई। पहली फसल में मछली पालकों की आशा से अधिक आय हुई। इनमें से अधिकांश व्यक्तियों की वार्षिक आय लगभग एक लाख रु. प्रति व्यक्ति थी। नाबार्ड द्वारा प्रमाणित एक मामले में अत्यधिक साधारण शिक्षा प्राप्त एक व्यक्ति ने एक वर्ष में बढ़ी हुई अपनी आय 1.85 लाख रु. दर्शाई।

इस प्रयास में अनेक महिलाओं का शामिल होना एक प्रोत्साहनकारी संकेत है। विशेष रूप से इसलिए, क्योंकि पुरुषों की तुलना में उनके आर्थिक अवसर कम होते हैं। आज, वे स्वयं को अधिक आत्म-विश्वासी समझती हैं और मछलीपालन की नई तकनीकों को अपनाने के लिए तत्पर हैं। इनमें से कुछ महिलाओं को स्थानीय मीडिया में दर्शाया गया है, जिन्होंने कई अन्य महिलाओं को सकारात्मक संदेश दिया है।

अपने आत्म-विश्वास के बढ़ने और यहां का दौरा करने वाले विशेषज्ञों के मार्गदर्शन से कैलोंग कपिली के सदस्यों ने, उत्पादन तथा आय बढ़ाने के लिए एकीकरण का निर्णय लिया। सूअर विकास पर एक केंद्रीयकृत प्रायोजित योजना प्रारंभ की गई, जिसने एक दर्शनीय तरीके से आय के अवसरों में वृद्धि की। यहां के कुछ निवासी स्थानीय रूप में उपलब्ध सूअरों को पाल रहे थे। हमें सूअर पालन की वैज्ञानिक पद्धतियों को बढ़ावा देना था। यह एक ऐसा प्रयास था जिसे पशुपालन विभाग का समर्थन प्राप्त था। तालुकदार ने अनुभव किया कि यहां के लोग उत्पादकता बढ़ाने के लिए हैम्पशायर तथा लार्ज ब्लैक जैसी नस्लों के पालन की आवश्यकता को धीरे-धीरे समझ रहे हैं। सूअर के मल को मछली तालाब में खाद के रूप में उपयोग में लाया गया। इस प्रयास का एक परिणाम यह रहा कि गाँवों में, जहां पहले सूअर खुले घूमते थे, अब वहां स्वास्थ्य स्थितियाँ बेहतर हुई हैं।

एकीकरण से लोगों को कई रूप में सहायता मिली है। मछली पालन का कार्य आवधिक अंतराल पर किया जाता है। बागवानी, बतख तथा सुअर पालन के कार्य से लोग फ़सलों के बीच की अवधि में आय अर्जन करते हैं। इन कार्यों से कई लोग अपने ऋण का भुगतान समय से पहले करने में समर्थ रहे हैं।

अपनी सफलता से उत्पन्न, विश्वास के साथ, कैलोंग कपिली के सदस्यों ने, नाबार्ड की ग्रामीण नवप्रवर्तन निधि की वित्तीय सहायता से “रिप्लेसमेंट ऑफ बॉटम ड्वेलर फिश बाई फ्रेश वाटर प्रॉन” नामक योजना को कार्यान्वित करने की संभावनाओं का पता लगाना प्रारंभ किया। प्रारंभ में इस विचार को विशेषज्ञों का समर्थन नहीं मिला, जिनका विश्वास था कि मात्स्यकी में झींगापालन के लिए सही स्थितियाँ नहीं होती, तथापि, मात्स्यिकी विभाग के समर्थन से, पहले पश्चिम बंगाल से अंडे लाए गए और किशोर होने के चरण तक उन्हें पाला गया और उसके बाद उन्हें मछली पालकों में बांट दिया गया। मीठा जल झींगा के बड़े होने तक, उनके उपयुक्त मूल्य निर्धारण के लिए क्रेता-विक्रेता बैठकें आयोजित की गई। झींगा के पालने के समय, असम में सर्वप्रथम व्यावसायिक रूप से पाली गई झींगा-मछलियों की बिक्री से काफी लाभ मिला।

वर्ष 2010-11 एक अन्य प्रयास जयंती रोहू पालन के लिए भी महत्वपूर्ण रहा है। केंद्रीय मीठा जल, जल कृषि संस्थान, (सी.आई.एफ.ए), भुवनेश्वर द्वारा विकसित इस मछली का विकास बड़ी तेजी से होता है और इसे एक उन्नत किस्म का माना जाता है। फिंगर लिंग्स का पालन बोगीबाड़ी नर्सरीज में किया गया है और ये मछली, मछली पालकों को दी जाती है।

मात्स्यकी विभाग के कार्मिक के अनुसार कैलोंग कपिली का एक सबसे बड़ा गुण यह है कि उसका ध्यान ज्ञान और कौशल बढ़ाने की ओर होता है। इस सोच को, कोई तथा पुंशियस सराना को इस तरह पालन करने की नई योजनाओं का समर्थन मिला है, जो लाभग्राहियों की संख्या में वृद्धि करेगी। कोई स्थानीय रूप से कवोइ के नाम से प्रसिद्ध है और यह एक खाद्य मछली है, जो स्वाद तथा पानी से बाहर रहने के बावजूद लंबे समय तक ताज़ा रहने के कारण भारी मांग में रहती है। कैलोंग कपिली ने इस मछली को कल्चर पांड्स में पिंजरों में पालने के लिए प्रोत्साहन दिया है। यह परियोजना इस मछली से आय सृजन संभावना के लिए ही नहीं है, बल्कि इसलिए भी है कि कभी यह प्रचुर रही कोई मछली अपने प्राकृतिक पर्यावास में संख्या की दृष्टि से चिंताजनक स्थिति में पहुंच गई थी।

पुंशियस सराना मछली को उनके आस-पास की नदियों तथा जलाशयों में पालने की एक योजना भी कार्यान्वयन के चरण में है। यह मछली अपने स्वाद के लिए प्रसिद्ध है, किंतु इसकी संख्या कम हो गई है, जिससे ब्रह्मपुत्र घाटी के आसपास इसकी मांग बहुत अधिक हो गई है। पोखरों तथा पिंजरों में पालना विशेष रूप से उन व्यक्तियों के लिए लाभदायी है, जिनके पास तालाब नहीं है और जो नदियों में मछली पालन के लिए तैयार हैं।

कैलोंग कपिली की अन्य अधिकांश परियोजनाओं की तरह ही यह परियोजना भी असम के कई भागों में दोहराए जाने योग्य है। कोई आश्चर्य नहीं, यदि ये सात साहसी युवा अपने राज्य में “नीली” क्रांति के अग्रज के रूप में अपनी पहचान बना लें।

(लेखक एक पत्रकार और गुवाहाटी में स्थापित शेवनिंग स्कॉलर हैं, ई-मेल : prabalkumardas@gmail.com)