मुनाफे की खेती बना करेला

Submitted by Hindi on Sat, 09/23/2017 - 10:18
Source
राजस्थान पत्रिका, 23 सितम्बर, 2017

.कौशांबी। करेले का स्वाद भले ही कड़वा हो, लेकिन कौशांबी में सैकड़ों किसानों की जिन्दगी में करेले ने खासा मिठास घोल रखा है। गंगा की तराई से बसे सैकड़ों किसानों ने पूरी मेहनत से करेले की खेती किया और नतीजा यह रहा कि आज कौशांबी में बड़े पैमाने पर करेले का निर्यात हो रहा है। करेले की खेती करने वाले किसानों का कहना है कि बारिश के सीजन में किसी दूसरी हरी सब्जी की खेती करने में नुकसान की आशंका बनी रहती है। जबकि करेला की खेती में ऐसी सम्भावना बहुत कम रहती है। करेला से किसानों को कम लागत में ज्यादा मुनाफा हो रहा है। जिला उद्यान विभाग भी करेला की खेती करने वाले किसानों की मदद कर रहा है। विभाग करेले की खेती करने वाले किसानों को प्रोत्साहन के रूप में धनराशि भी देता है।

पौष्टिकता एवं अपने औषधीय गुणों के कारण पहचाने जाने वाले करेले की खेती का दायरा लगभग कौशांबी में लगभग तीन सौ एकड़ में फैला हुआ है। मूरतगंज ब्लॉक के गंगा की तराई वाले किसान बारिश के दिनों में अपने उपरहार वाले खेतों में करेले की उपज करते हैं।

लगभग तीन से चार महीने के इस खेती में एक बीघा में दस से बीस हजार की लागत आती है। दूसरी हरी सब्जियों की अपेक्षा इसकी देख-रेख भी अधिक नहीं करनी पड़ती है। सबसे अहम बात यह की वनरोजों से करेले की फसल को किसी तरह का नुकसान नहीं रहता है। बुवाई के दो महीने बाद से करेले की उपज शुरू होती है एक से दो महीने तक फसल की तुड़ाई होती है। मूरतगंज ब्लॉक के हर्रायपुर निवासी गजराज सिंह का कहना है कि करेले की उपज को वह अपने खेत पर ही बेंच लेते हैं। दिल्ली व राजस्थान प्रदेश से थोक व्यापारी आते हैं और किसानों को नगद रुपये देकर करेला ले जाते हैं। इसके अलावा प्रदेश के दूसरे जिले से भी व्यापारी आकर किसानों के खेत से ही करेले की खरीददारी करते हैं।

छीतापुर गाँव के किसान मोहन का कहना है कि कम लागत में बुवाई के बाद जब उपज तैयार होती है तो उन्हें करेले के लिये बाजार नहीं खोजना पड़ता। बड़े व्यापारी खुद ही उनके पास आते हैं और उपज की खरीद कर उन्हें दाम दे जाते हैं। इनका कहना है कि एक बीघा करेला की खेती करने में पंद्रह हजार से बीस हजार तक की लागत आती है जबकि चार महीने में वह एक लाख रुपये तक की कमाई कर लेते हैं। जिन किसानों के पास खेत तो है लेकिन उसमें फसल बुवाई के लिये पूँजी कम है वह करेले की खेती करने को तरजीह देते हैं।