मुंबइया फिल्मों में बरखा बहार

Submitted by admin on Tue, 07/16/2013 - 11:06
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योजना, जुलाई 2012
हिंदी फिल्मों में एक अति चर्चित फिल्म रही है शोमैन राजकपूर की बरसात जिसका शीर्षक ही हमारे इस आलेख की आत्मा है। बरसात 1949 में बनी थी और यह एक प्रकार से मील का पत्थर मानी जाती है रूमानी फिल्मों के क्षेत्र में। इसने कई सितारे, प्रतिमाएं और हिंदी सिनेमा में कई नई चीजों की शुरूआत की। फिल्म का शीर्षक गीत बरसात में तुमसे मिल हम सजन वर्षा की फुहार की तरह ही मानवीय इच्छाओं के प्रवाह का प्रतिनिधित्व करता है। निर्देश ने स्त्री और पुरुष के मिलन की प्रतीक भींगी धरती का बखूबी इस्तेमाल किया है मानव मन की प्यास को दिखाने के लिए। गर्मियों की तपिश अब बीती बात हो चुकी है। अब तो बरखा बहार आ चुकी है हमारे लिए राहत लेकर।

हिंदी फिल्म उद्योग के गढ़ मुंबई का इस मौसम के साथ खास याराना है। करीब चार महीने तक तकरीबन हर बरस मुंबई झमाझम बारिश का आनंद उठाती है और शायद यही वजह है कि मुंबइया फिल्मों में मौसम की रानी बरखा बहार बनकर बरसती है। भींगा-भींगा समां और काली घटाओं का आनंद लेने के अलावा सागर की उमड़ती लहरों और बादलों की घनघोर गरज का मुंबई में अलग ही नजारा होता है। आप चाहे घर में हों, या घर के बाहर मुंबई की बरसात के रूमानी अंदाज से अछूते नहीं रह सकते। यही कारण है कि मुंबइया फिल्मों में चाहे वह हिंदी फिल्म हो या मराठी या अन्य किसी भाषा की, एक-दो गानों में नायक-नायिका मुंबई की सड़कों या समुद्र तट पर या फिर बगीचों में गाना गाते और रोमांस करते नजर अवश्य आते हैं। फिल्म निर्माताओं को भी किसी बंद स्टूडियों के सेट पर नकली बारिश के मुकाबले भीगी सड़कों पर शूटिंग करना प्राकृतिक और किफायती लगता है।

मुंबइया फिल्मों में नायक-नायिका का बारिश में भींगते हुए गाना गाने अथवा भीगी साड़ी में लीपटी नायिका को दिखाने का सिलसिला बड़ा पुराना है। मूक फिल्में भी इससे बच नहीं सकी थीं। यहां तक कि भारत की पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र (1913), जिसे हिंदी और मराठी फिल्मों के इतिहासकार अपनी थाती बताते हैं, में भी एक दृश्य में नायिका को भींगी साड़ी में दिखाया गया। इस फिल्म के महिला चरित्रों के अभिनय के लिए कोई महिला कलाकार नहीं मिल सकी थी इसलिए फिल्मकार दादा साहब फाल्के ने महिला चरित्रों का अभिनय करने के लिए पुरुष कलाकारों को ही उतारा था। उन्हीं में से कुछ कलाकारों को भींगी साड़ी में जलक्रीड़ा करते हुए एक दृश्य में दिखाया गया था।

तूफानी वर्षा


हिंदी सिनेमा में बारिश का विभिन्न उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया गया है। गीतों में, दृश्यों में अथवा कथानक में मानव मन की अनेकानेक भावनाओं को बारिश का सहारा लेकर दिखाया जाता रहा है। दीवानगी (प्रेमाग्नि), चाहे उसका सुलगना हो या भड़कना, कामेच्छा, बहकना, अकेलापन, निराशा और यहां तक कि खतरा और हत्या के दृश्यों को फिल्माने में भी बारिश की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। वर्ष 2007 में प्रदर्शित हुई फिल्म लाइफ इन ए मेट्रो में नायक नायिका के बीच रोमांस इसी बारिश के मौसम में परवान चढ़ता है। इसी प्रकार 1969 की फिल्म अराधना में बरसाती रात में रूप तेरा मस्ताना गीत गाते नायक-नायिका मिलन और 1973 की फिल्म जैसे को तैसा में अब के सावन में जी डर गीत के दौरान नायक-नायिका की मुद्राएं सिनेप्रेमियों को आज भी याद है। रोटी, कपड़ा और मकान (1974 में नायिका हाय हाय यह मजबूरी गीत गाते हुए नायक को ताना देती है कि तेरी दो टके की नौकरी के चक्कर में मेरा लाखों का सावन यूं ही व्यर्थ बीता जा रहा है। इसी प्रकार अनेक फिल्मों के बहुतेरे ऐसे दृश्य हैं जिनमें नायक-नायिकाओं के भाव प्रकट करने के लिए बारिश का सहारा लिया गया है। चांदनी फिल्म 1989 में प्रदर्शित हुई थी। इसमें सह नायक विनोद खन्ना अपनी दिवंगत पत्नी की याद में जो गीत गाता है उसके लिए बारिश की पृष्ठभूमि उपयुक्त लगती है। इसी प्रकार 1984 की फिल्म मशाल में ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार अपनी घायल पत्नी की मदद के लिए भींगी रात में ही गुहार लगाते हैं। कंपनी (2002) और जॉनी गद्दार (2007) के दृश्यों, जिसमें काफी खून-खराब था को फिल्माने के लिए बारिश को ही उपयुक्त समझा गया।

नायक और नायिका की पहली मुलाकात में प्यार हो जाने का भावुक दृश्य दिखाने के लिए भी बारिश का मौसम बड़ा माकूल माना जाता है। फिल्म बरसात की रात (1960) का सदाबहार गीत जिंदगी भर नहीं भूलेगी बरसात की रात वाले दृश्य के जरिये नायक-नायिका को कभी विस्मृत न कर पाने की भावना बड़ी शिद्दत से पेश करता है। प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता आमिर खान की फिल्म लगान (2001) में भी सूखे से ग्रस्त गांव में वर्षा के देवता से बरसने की प्रार्थना के लिए जो गीत घनन घनन घिर आए रे बदरा के रूप में गाया जाता है उसके समाप्त होते-होते नायक-नायिका बारिश में भींगते नजर आते हैं। देवानंद की अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त फिल्म गाइड जो 1965 में प्रदर्शित हुई थी, में भी सूखाग्रस्त गांव में पानी बरसाने के लिए सन्यासी से प्रार्थना की जाती है। मानवमन की तमाम भावनाओं – हर्ष, व्यथा, रोमांस, प्रतिशोध, हिंसा आदि को व्यक्त करने के लिए हिंदी फिल्मों में बारिश एक सशक्त माध्यम माना जाता रहा है।

हिंदी फिल्मों में नायक-नायिकाओं और अन्य चरित्रों, परिस्थितियों और मनोदशाओं को व्यक्त करने के लिए बारिश का सहारा लिया जाता रहा है। अनेक फिल्मों के शहरी पृष्ठभूमि के चरित्र भी बारिश का आनंद लेते दिखाई देते रहे हैं। 1977 की फिल्म प्रियतमा में नीतू सिंह द्वारा छम छम बरसे घटा गीत और माधुरी दीक्षित का दिल तो पागल है (1997) फिल्म में बच्चों के साथ सड़कों पर नाचते हुए यह गाना चक धूम धूम कुछ ऐसी ही कहानी सुनाते हैं। यहां 1973 की फिल्म दाग का उल्लेख करना समीचीन होगा जिसमें लगभग सभी महत्वपूर्ण घटनाएं भारी वर्षा के दौरान ही होती है।

हिंदी फिल्मों में एक अति चर्चित फिल्म रही है शोमैन राजकपूर की बरसात जिसका शीर्षक ही हमारे इस आलेख की आत्मा है। बरसात 1949 में बनी थी और यह एक प्रकार से मील का पत्थर मानी जाती है रूमानी फिल्मों के क्षेत्र में। इसने कई सितारे, प्रतिमाएं और हिंदी सिनेमा में कई नई चीजों की शुरूआत की। फिल्म का शीर्षक गीत बरसात में तुमसे मिल हम सजन वर्षा की फुहार की तरह ही मानवीय इच्छाओं के प्रवाह का प्रतिनिधित्व करता है। निर्देश ने स्त्री और पुरुष के मिलन की प्रतीक भींगी धरती का बखूबी इस्तेमाल किया है मानव मन की प्यास को दिखाने के लिए।

कुछ और भी फिल्में हैं जिनके नाम में ही बरसात के प्रतीक सावन को महत्व दिया गया है। सावन की घटा (1966) आया सावन झूम के (1969), सावन को आने दो (1979), प्यासा सावन (1981), बरसात (2005), बरसात की एक रात (1998) और बारिश (1957, 1990) ऐसी कुछ फिल्में हैं, जिनके नाम में तो सावन अथवा बरसात है परंतु उनके कथानक से बारिश का कोई लेना-देना नहीं था। कुछ समय पूर्व अंग्रेजी/ हिंदी में बनी मीरा नायर की मानसून वेडिंग की कथावस्तु में अवश्य वर्षा का कुछ महत्व था। यह फिल्म भारत में बरसात के मौसम में पंजाबियों की शादी से संबंधित कहानी पर आधारित थी।

सावन का महीना


अब हम हिंदी फिल्मों में मानसून (वर्षा) का प्रतिनिधित्व करने वाली फिल्मों के बारिश में भींगे गीतों की चर्चा करेंगे। कुछ की चर्चा पूर्व में की जा चुकी है।

इन वर्षा गीतों के बहाने हिंदी फिल्मों में कुछ बहुत ही रूमानी और प्रेम गीतों की रचना हुई है। गीतकारों ने वर्षा की रिमझिम बूंदों और भींगी-भींगी रातों के सहारे अनेक अमर और सदाबहार गीत हिंदी फिल्मों को दिए हैं। नायक-नायिका के भींगे अरमान इन गीतों में छलकते दिखते हैं। वर्षा चाहे प्राकृतिक हो या कृत्रिम, बिजली का चमकना हो या फिर बादल की गरज नायिका का मादक सौंदर्य और नायक का सुगठित शरीर इन वर्षा गीतों के दृश्यों में लोगों को आकर्षित करते रहे हैं। वर्ष 1967 में प्रदर्शित मिलन फिल्म का गीत सावन का महीना, पवन करे सोर इस बात के लिए काफी चर्चित हुआ कि इस गीत में कोई मादक सौंदर्यबोध नजर नहीं आता। इसमें नायक-नायिका को एक लोकगीत सिखा रहा होता है। परंतु राजकपूर-नरगिस की जोड़ी का श्री चार सौ बीस फिल्म का गीत प्यार हुआ इकरार हुआ वर्षा गीतों में अपनी रूमानियत के लिए अमर रहेगा। छतरी के नीचे आधे-आधे भींगते नायक-नायिका का यह गीत आज भी फिल्म प्रेमियों की आल टाइम ग्रेट्स गीतों में शामिल है। 1955 में प्रदर्शित इस फिल्म के निर्देशक श्री राजकपूर थे। ऐसा ही वर्षा में भींगा प्रेमगीत 1994 की मोहरा फिल्म में देखने को मिला जिसके बोल टिप-टिप बरसा पानी में नायक-नायिका का प्रेम परवान चढ़ता है।

हिंदी फिल्मों में कुछ वर्षागीत ऐसे भी रहे हैं जिन्हें सिनेप्रेमी चाह कर भी विस्मृत नहीं कर पाते। बरसात (1949) में अभिनेत्री निम्मी पर फिल्माया बरसात में तक धिनाधिन उनके मासूम अंदाज के लिए मशहूर है तो 1982 में प्रदर्शित नमक हलाल फिल्म में बिगबी अमिताभ बच्चन और स्मिता पाटिल पर फिल्माया गया गीत आज रपट जाएं नायक-नायिका के मन में एक-दूसरे के प्रति बढ़ती चाहत को अभिव्यक्त करता है। कुछ इसी तरह का गीत 1983 की फिल्म बेताब में भी दिखाया गया जिसमें नवोदित नायक-नायिका सनी देओल और अमृता सिंह बादल यूं गरजता है के बोल पर अपनी युवा भावनाओं को दर्शाते हैं। प्रसिद्ध गायक स्व. किशोर कुमार के तमाम गीतों में दो वर्षा गीत इक लड़की भीगी-भागी-सी (चलती काम नाम गाड़ी, 1958) और काटे नहीं कटते यह दिन यह रात मिस्टर इंडिया, 1987 अविस्मरणीय हैं। चलती का नाम गाड़ी वाले गीत में मधुबाला और किशोर कुमार का अभिनय भी अपने निखार पर था।

वर्षा गीतों की मादकता, सौंदर्य और माधुर्य के पीछे संगीतकारों का भी उल्लेखनीय योगदान रहा है। आर.डी.बर्मन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, शंकर-जयकिशन सहित अनेक संगीतकारों ने बहुतेरे मादक और मधुर गीत हिंदी फिल्म जगत को दिए हैं। एक से एक सुंदर गीतों ने हिंदी फिल्मों की सफलता में भी योगदान किया है। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी ने रोटी, कपड़ा और मकान, मिस्टर इंडिया, मिलन फिल्मों में जो संगीत दिया, उसे भुलाया नहीं जा सकता। उन्हीं की रचनाएं पानी रे पानी (शोर, 1972), आया सावन झूम के का शीर्षक गीत रिमझिम के गीत सावन के (अनजाना, 1969), ओ घटा सांवरी (अभिनेत्री, 1970) हाय रे हाय (हमजोली, 1970), जिंदगी की न टूटे लड़ी (क्रांति, 1981) और मेघा रे मेघा (प्यासा सावन, 1981) कुछ ऐसे ही यादगार गीत हैं।

छलिया (1961) फिल्म का गीत डम डम डिगा डिगा, काला बाजार (1960) का रिमझिम के तराने और बंधन (1970) का गीत आयो रे सावन आयो रे भी प्रेम रस बरसाने वाले गीतों में शामिल हैं। 1956 में प्रदर्शित फिल्म चोरी-चोरी में प्रेमी युगल राजकपूर और नरगिस अलग-अलग स्थिति में एक ही गीत यह रात भीगी-भीगी गाते हुए एक-दूसरे के प्रति मन में उमड़ रहे प्यार का बयान करते हैं।

वर्षा की पृष्ठभूमि वाले प्रेमगीतों और अन्य गीतों में कवियों/गीतकारों ने प्रेम की मधुर भावनाओं के अलावा जीवनदर्शन की सख्त शब्दों में व्याख्या की है। प्रसिद्ध फिल्मकार वी. शांताराम की फिल्म दो आंखे बारह हाथ (1957) के गीत उमड़-घुमड़ कर आई रे घटा में गीतकार भरत व्यास ने जब सनम पवन को लगा तीर, बादल को चीर कर निकला तीर, झर झर झर अब धार झरे, ओ धरती जल से मांग भरे जैसे सरस-सहज और सरल शब्दों के माध्यम से जो लालित्य उंडेला है, वह अनुपम है।

मनोज कुमार की फिल्म क्रांति (1981) का कथानक 1857 की क्रांति से अनुप्राणित था और उसका अमर गीत जिंगदी की न टूटे लड़ी में दो प्रेमी स्वातंत्र्य योद्धाओं पर फिल्माया गया था, जो ब्रिटिश जहाज में बंदी थे। परंतु वर्षा से भीगे इस गीत में कवि संतोषानंद ने वर्षा के बारे में तो कुछ खास नहीं कहा परंतु इस गीत के माध्यम से जीवन की कुछ सच्चाइयों को उजागर करने का प्रयास जरूर किया है। गीत के ये बोल-लंबी-लंबी उमरिया को छोड़ो, प्यार की इक घड़ी है बड़ी वास्तव में प्रसिद्ध अंग्रेजी कवियित्री पी.बी.शेली की अमर रचना-लिली ऑफ ए डे इज, फेयर इन में (मई) की याद दिलाते हैं।

हिंदी फिल्मों के कुछ और भी अर्थपूर्ण और मर्मस्पर्शी गीत हैं जो याद आते हैं। इनमें एक हैं- लम्हें (1991)। इस फिल्म में आनंदबख्शी रचित गीत मेघा रे मेघा। इस गीत के दृश्य में नायक अनिल कपूर नायिका श्रीदेवी को अपनी सहेलियों के साथ उन्मुक्त भाव से नृत्य करते देखता है, नायिका के गीत के बोल-मेरी सखियां ऐसी बतियां करें, मेरी अंखियां झुके बड़े सहज भाव से नायिका की कोमल भावनाओं को व्यक्त करते हैं जो अपनी शरारती सखियों की बातों से शर्मा जाती है। इसी तरह का एक और गीत है फिल्म दिल वाले दुल्हनियां ले जाएंगे जा जिसमें नायिका काजोल बारिश से भींगे माहौल में अपनी मां को अपने सपनों के साथी का बयान करने के लिए यह गीत गाती है – मेरे ख्वाबों में जो आए।

बरखा बहार के ऐसे और भी बहुत से गीत हैं जो लंबे अरसे से फिल्म प्रेमियों के दिलों-दिमाग पर छाए हैं। ऐसे गीत आगे भी लिखे और रचे जाते रहेंगे। प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए बारिश से सुहावना कोई बहाना जो नहीं है। सो, भींगते और भींगाते रहिये।

(लेखक फिल्म पत्रकार एवं समीक्षक हैं।

ई-मेल : rajivvijayakar@gmail.com)