मुश्किल है पर्यावरण प्रभाव का आकलन

Submitted by Hindi on Tue, 03/15/2011 - 10:34
Source
बिज़नेस स्टैंडर्ड, 07 सितंबर 2009

पर्यावरण एवं वन मंत्रालय हर महीने 80 से 100 परियोजनाओं को अनुमति देता है।

 

कल्पवृक्ष नामक स्वयंसेवी संगठन (एनजीओ) के अध्ययन के मुताबिक, अनुपालन न होने पर दी गई अनुमति रद्द नहीं की जाती बल्कि वास्तव में आगे विस्तार के लिए मंजूरी दे दी जाती है।

पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव के आकलन (ईआईए) की बाबत 2006 में जारी अधिसूचना के मुताबिक खनन, बिजली उत्पादन, सड़क व राजमार्ग का निर्माण और विभिन्न औद्योगिक परियोजनाओं की स्थापना की वजह से पर्यावरण पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव का आकलन किए जाने की दरकार है और ऐसे निर्माण कार्य शुरू करने की अनुमति दिए जाने से पहले जन सुनवाई की जाती है।

अनिवार्य रूप से इन कदमों के पूरा होने और विशेषज्ञ समिति द्वारा परियोजना दस्तावेज का आकलन किए जाने के बाद ही किसी परियोजना को पर्यावरण की बाबत हरी झंडी मिलती है। मंत्रालय में निगरानी करने वाली एक यूनिट है जो इन परियोजनाओं की हर छह महीने में अपने कार्यालय से निगरानी करती है और परियोजना अधिकरण की रिपोर्ट का अनुपालन भी करती है।

कल्पवृक्ष नामक स्वयंसेवी संगठन (एनजीओ) के अध्ययन के मुताबिक, अनुपालन न होने पर दी गई अनुमति रद्द नहीं की जाती बल्कि वास्तव में आगे विस्तार के लिए मंजूरी दे दी जाती है। यह अध्ययन ऐसे समय में सामने आया है जब जयराम रमेश जैसे ऊर्जावान मंत्री की अगुआई में मंत्रालय पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव के आकलन की बाबत 2006 में जारी अधिसूचना में संशोधन करने की तैयारी कर रहा है, ताकि परियोजना के लिए खुद से प्रमाणित करने का अधिकार मिल जाए न कि इसकी निगरानी की आवश्यकता हो।

प्रधानमंत्री ने हाल में शिकायत की थी कि पर्यावरण की बाबत हरी झंडी की प्रक्रिया भ्रष्टाचार से ग्रसित है। हालांकि उन्हें इसमें यह जोड़ना चाहिए था कि जिस मकसद के लिए इसका गठन किया गया था वह पूरा नहीं हो पा रहा।

जब क्षेत्रीय इकाई दिल्ली स्थित आकलन करने वाली इकाई को गैर-अनुपालन की बाबत रिपोर्ट भेजती है तो अपेक्षा की जाती है कि वह इसमें शामिल मुद्दों का अध्ययन करे। लेकिन समस्याओं के विश्लेषण के लिए या निगरानी करने की वर्तमान व्यवस्था की खामियों की वजह से इन आंकड़ों का इस्तेमाल नहीं किया जाता। कल्पवृक्ष का कहना है कि इसमें सुधार के लिए रास्ता खोजा जाना चाहिए।

वास्तव में मंत्रालय हालांकि हरी झंडी दिखाई गई परियोजना का सालाना रिकॉर्ड रखता है, लेकिन ऐसा कोई आंकड़ा नहीं होता जिससे पता चल सके कि इन परियोजनाओं ने अनुपालन का लक्ष्य किस स्तर तक हासिल किया। इसका कहना है कि परियोजना को एक बार हरी झंडी मिलने के बाद तीन से चार साल तक इसकी निगरानी की जाती है।

साल 2003 में जिन 50 फीसदी परियोजनाओं को अनुमति दी गई थी, एनजीओ ने उसी का अध्ययन किया है और इसकी निगरानी रिपोर्ट पर्यावरण व वन मंत्रालय ने तैयार की थी। उस साल 223 परियोजनाओं में से 150 को हरी झंडी दिखाई गई थी और उनमें कम से कम एक अनुपालन रिपोर्ट परियोजना अधिकारियों ने सौंपी थी।

क्या होता है जब गैर-अनुपालन का मामला सामने आता है? कुछ भी नहीं। स्टरलाइट कॉपर स्मेल्टर प्लांट का उदाहरण देखिए। हरी झंडी दिखाए जाने से पहले तूतीकोरिन के इस प्लांट में ग्रीन बेल्ट का विकास करने को कहा गया था। कल्पवृक्ष ने पाया कि ऐसा कभी किया ही नहीं गया।

इसका कहना है कि साल 2006 में हुई निगरानी बताती है कि साल 2004-05 में छह हेक्टेयर क्षेत्र में ग्रीन बेल्ट विकसित किया गया था और बाकी दो हेक्टेयर साल 2006-07 के लिए प्रस्तावित था। हरी झंडी की बाबत दिए गए पत्र और मूल प्लांट व विस्तार में साफ-साफ कहा गया था कि ग्रीन बेल्ट के तहत कुल 29 हेक्टेयर जमीन विकसित की जानी थी।

क्षेत्रीय कार्यालय में तैनात मंत्रालय के अधिकारी ने कहा कि स्टरलाइट ने अनुपालन रिपोर्ट में ग्रीन बेल्ट की बाबत जैसा दावा किया है उस तरह का कोई रिकॉर्ड उनके पास नहीं है। इस रिपोर्ट के सहायक लेखक कांची कोहली ने इसे झांसे की कार्रवाई बताया है। उनका कहना है कि निगरानी के तहत भी किसी तरह का अनुपालन नहीं होता, ऐसे में खुद से प्रमाणित करने के मामले में क्या उम्मीद की जा सकती है।

उन्होंने अमेरिका के पर्यावरण संरक्षण एजेंसी का हवाला देते हुए कहा कि उसके पास मंजूरी को रद्द करने की शक्ति है और परियोजना अधिकारियों को दंडित करने का भी। कल्पवृक्ष ने गैर-अनुपालन का कारण ईआईए प्रक्रिया में नजर आता है और उसका निष्कर्ष है कि निगरानी व अनुपालन की विवादास्पद समस्या पर्यावरण मंजूरी की गलत प्रक्रिया का प्रतीक है।

पर्यावरण मंत्रालय ने सेबी और ट्राई की तर्ज पर नए पर्यावरण ओम्बड्समैन का वादा किया है। एनजीओ को संदेह है, लेकिन नई शुरुआत को खारिज नहीं किया जा सकता। खास तौर पर तब जबकि ईआईए के तहत खुद से प्रमाणित करने की विवादास्पद उपधारा को अंतिम रूप देने से पहले सभी पक्षकारों की बात सुन रही है।
 

 

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