12 फरवरी, 1891 को सुपर राइजिंग इंजीनियर ए.जे.ह्मूज ने ‘मै.बॉल्स लोवेट एण्ड कम्पनी’ (इंजीनियर एण्ड कांट्रेक्टर वाटर सप्लाई कलकत्ता एण्ड बम्बई) द्वारा प्रस्तुत नैनीताल लेक वाटर सप्लाई के लिए सात हजार, सात सौ फीट लम्बी पाईप लाइन बिछाने और नौ हाईड्रेंट लगाने की निविदा को स्वीकृति दी गई।
नगर पालिका कमेटी की बैठक दिनाँक 18 फरवरी, 1891 के प्रस्ताव संख्या-सात द्वारा नैनीताल नगर पालिका के लिए तीन लाख रुपए लागत की पानी और सीवर की योजना को मंजूरी दी गई। इसी बीच नगर पालिका कमेटी ने तल्लीताल में धोबीघाट बना लिया था। मिस्टर ए.जे. ह्मूज की पहल पर मिस्टर बॉल्डविन लेथम, चेयनमैन, रॉयल मैट्रोलॉजिकल सोसाइटी, बंगाल क्लब, कलकत्ता ने नैनीताल के लिए एक लाख 60 हजार रुपए की लागत से सीवर और 52 हजार रुपए पेयजल सहित कुल दो लाख 12 हजार रुपए की योजना तैयार की। 16 फरवरी, 1891 को यह योजना नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध के सचिव को भेज दी गई। सरकार ने इस योजना को सुपरवाइजिंग इंजीनियर, म्युनिसिपल वाटर वर्क्स, नॉर्थ वेर्स्टन प्रोविंसेस एण्ड अवध के पास भेज दिया। उन्होंने इस सम्बन्ध में तत्काल कम्पनी को टेलीग्राम भेज कर कार्य की प्रगति के बारे में जानकारी चाही। बाबू आर. एन.मुखर्जी, मैसर्स ‘मै. बॉल्स लोवेट एण्ड कम्पनी’ (इंजीनियर के टेलीग्राम के जवाब में भेजे पत्र में कहा कि सेना के पाइप चार हफ्तों में कलकत्ता से नहीं आ सकते हैं। कम्पनी के पास इलाहाबाद में 16 सौ फीट पाँच इंच और 26 सौ फीट चार इंच के पाइप उपलब्ध हैं। इन्हें भेजकर काम प्रारम्भ तो किया जा सकता है, पर सेना के पाइपों के पहुँचे बगैर नैनीताल के वाटर वर्क्स का काम पूरा नहीं हो सकता है। इस दौरान मेजर जनरल थॉमसन ने भी मल्लीताल एवं तल्लीताल बाजार के लिए पेयजल आपूर्ति योजनाएँ बनाई थीं।
इसी बीच मिस्टर ए.जे.ह्मूज ने नैनीताल के लिए 1,60,000 रुपए की सीवरेज की योजना बनाई। 16 फरवरी 1891 को बंगाल क्लब कलकत्ता ने भी नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध के वित्त सचिव रॉबट स्मीटन को नैनीताल के सीवरेज और पानी की योजना का प्रारूप बनाकर भेजा। अयारपाटा जल स्रोत से मल्लीताल बाजार के लिए पानी की इस योजना की लागत 32 हजार रुपए थी। कहा गया कि यदि योजना विफल हो जाए तो भविष्य में तालाब से भाप के इंजनों द्वारा पानी खींचने पर विचार किया जा सकता है। इस योजना की धनराशि सवा चार प्रतिशत ब्याज की दर से 30 साल में चुकता होनी थी। इसी बीच नैनीताल से काठगोदाम और हल्द्वानी को पीने के पानी की आपूर्ति की योजना बनी, जिसे बाद में निरस्त कर दिया गया। 19, जून, 1891 में अपर बाजार, तल्लीताल बाजार, गोरखा स्रोत, कुली लाइन के स्रोत सहित नैनीताल के निचले हिस्से में स्थित पाँच प्राकृतिक जल स्रोतों में 43,759 गेलन पानी प्रतिदिन उपलब्ध था। नगर पालिका कमेटी की 22 जून, 1891 की बैठक में पालिका ने प्रत्येक भवन से वार्षिक जल मूल्य लेने का निर्णय लिया। पालिका ने तय किया कि कमेटी प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन पाँच से साढ़े सात गेलन पानी उपलब्ध कराएगी। इसके एवज में जल मूल्य वसूला जाएगा।
24 जुलाई, 1891 को नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध के म्युनिसिपल वाटर वर्क्स के कार्यवाहक अधीक्षण अभियंता डब्ल्यू.जे.विल्सन ने कुमाऊँ के कमिश्नर को नैनीताल में पीने के पानी की आपूर्ति की एक और योजना भेजी। यह योजना भी मिस्टर ए.जे.ह्मूज की पहल पर मिस्टर बॉल्डविन लेथम की कम्पनी ने बनाई थी। इस योजना में अयारपाटा पहाड़ी में स्थित जल स्रोत से तालाब के किनारे पीने के पानी के स्टैण्ड पोस्ट बनाने के लिए 22,266 रुपया, लोअर बाजार (तल्लीताल) में पेयजल के स्टैण्ड पोस्ट बनाने के 16,876 रुपए और स्रोत से पानी पम्प कर नलों से अपर बाजार (मल्लीताल) के स्टैण्ड पोस्टों तक पहुँचाने के लिए 38,079 रुपए समेत कुल 77,221 रुपए खर्चना प्रस्तावित था। इस सम्बन्ध योजना फिलहाल मंजूर नहीं की जा रही है। लेकिन अयारपाटा जल स्रोत से तालाब के चारों ओर पीने के पानी के चबूतरे बनाने और जल स्रोत से नलों द्वारा लोअर बाजार में पानी पहुँचाने और वहाँ पानी के स्टैण्ड पोस्ट बनाने की 39,148 रुपए की योजना को तुरन्त स्वीकृत किया जा सकता है।
1891 में सबसे पहले मल्लीताल से ‘हैंग मैंस बे’ तक नौ स्थानों पर सार्वजनिक पेयजल स्टैण्ड पोस्ट बने। इन स्टैण्ड पोस्टों के लिए पर्दाधारा के प्राकृतिक जल स्रोत का पानी लिया गया। मल्लीताल के मस्जिद के पास, भागवत डायल्स के निकट, अलवियन होटल, मैथोडिस्ट चर्च, लंघम होटल, मेलबिले हॉल, डिपो रोड, सर्ल्टन हाउस और रुकरी में पीने के पानी के सार्वजनिक स्टैण्ड पोस्ट बनाए गए। प्रत्येक स्टैण्ड पोस्ट में दो-दो टॉटियाँ लगाई गई। इसके लिए इंग्लैण्ड से नल मंगाए गए। इस योजना की कुल लागत 22 हजार दो सौ 66 रुपए आई। इसके लिए सरकार से सवा चार प्रतिशत ब्याज पर 20 हजार रुपए का कर्ज लिया गया। इस काम में हल्द्वानी वाटर वर्क्स में सहायक अभियंता के तौर पर तैनात मिस्ट जेनकिंग्स ने तकनीकी सहायता प्रदान की। फिर इसी साल मल्लीताल तथा लोअर बाजार में भी नलों के द्वारा सार्वजनिक स्टैण्ड पोस्टों तक पीने का पानी पहुँच गया।
इसी वर्ष मिस्टर विल्सन ने लोअर बाजार (तल्लीताल) के लिए पीने के पानी की योजना बनाई। मिस्टर विल्सन की इस योजना की कुल लागत 39,142 रुपए थी। योजना अयारपाटा पहाड़ी में स्थित प्राकृतिक जल स्रोत (पर्दाधारा) से बननी थी। योजने के तहत मल्लीताल तथा लोअर बाजार (तल्लीताल) में पानी के नल बिछाना और स्टैण्ड पोस्टों का निर्माण शामिल था। योजना के निर्माण की यह धनराशि सवा चार प्रतिशत ब्याज के साथ 2455 रुपए वार्षिक किश्त और सालाना 545 रुपए वर्किंग चार्ज के साथ 30 साल में चुकानी थी। लेफ्टिनेंट गवर्नर ने मिस्टर विल्सन की बनाई इस योजना को स्वीकृति प्रदान कर दी। इसके साथ ही पब्लिक-प्राइवेट पाटनरशिप (पी.पी.पी) मोड के जरिए नैनीताल में अधिसंरचनात्मक एवं बुनियादी सुविधाएँ जुटाने की शुरुआत हो गई। इस दिशा में उठाया गया यह पहला कदम था। 17 दिसम्बर, 1891 को नगर पालिका ने प्रस्ताव संख्या 12 द्वारा नैनीताल वाटर सप्लाई एण्ड सीवरेज स्कीम को स्वीकृति दी गई। 23 फरवरी, 1892 को नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध के सचिव आर.स्मीटन ने नगर पालिका के इस प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान कर दी थी। इसी बीच सरकार ने नैनीताल का मैदानी क्षेत्रों से सम्पर्क कायम करने तथा पेयजल आपूर्ति योजना में 67 हाजर रुपए खर्च किए। 1891 में नैनीताल की आबादी 12 हजार थी, जिसमें 10 हजार हिन्दुस्तानी और दो हजार यूरोपियन शामिल थे।
इस बीच नगर पालिका कमेटी ने उपभोक्ता सामान पर भी चुंगी लगाने सहित कमेटी द्वारा पूर्व स्वीकृत अनेक प्रस्तावों को अनुमोदन के लिए लेफ्टिनेंट गवर्नर एवं चीफ कमिश्नर के पास भेजा। नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध के सचिव ने 17 मार्च, 1891 को नगर पालिका कमेटी द्वारा अनुमोदनरार्थ भेजे गए प्रस्तावों के सम्बन्ध में कुमाऊँ कमिश्नर को पत्र भेजा। पत्र में नगर पालिका की पेयजल सप्लाई, नालों के निर्माण, कुली, झम्पानी और सफाई कर्मियों के लिए आवासीय योजनाओं को स्वीकृति देने की सूचना दी गई। कहा कि हाउस टैक्स सात से साढ़े सात प्रतिशत करने पर कोई आपत्ति नहीं है, पर साइड टैक्स दोगुना करने और उपभोक्ता वस्तुतओं पर चुंगी लगाने पर सवाल उठाए। कहा कि नैनीताल में अनाज, घी, चीनी समेत तमाम उपभोक्ता सामान पहले से ही बहुत महंगे है। अग्रिम ड्यूटी चुकादेने की वजह से शराब और बीमार कर मुक्त है। चुंगी का प्रभाव रोजमर्रा उपयोग की उन उपभोक्ता वस्तुओं पर पड़ेगा, जिनका इस्तेमाल आम आदमी करता है। कहा गया कि लेफ्टिनेंट गवर्नर की राय में नैनीताल में उपभोक्ता वस्तुओं पर चुंगी लगाने का प्रस्ताव व्यवहारिक नहीं है। इसलिए फिलहाल इसे स्थगित कर देना चाहिए।
उस दौर में नगर पालिका कमेटी दो आना प्रति गज ‘भूमि संरक्षण कर’ भी लेती थी। नगर पालिका ने ‘भूमि संरक्षण कर’ को दो आना प्रति गज से बढ़ाकर तीन आना प्रति गज करने का प्रस्ताव पास किया था। लेफ्टिनेंट गवर्नर ने नगर पालिका के इस प्रस्ताव को भी नहीं माना। पुनर्विचार करने के निर्देश के साथ इसे भी लौटा दिया गया। नगर पालिका ने बाजार क्षेत्र में शौचालय कर लगाने का प्रस्ताव पारित कर अनुमोदन/स्वीकृति के लिए लेफ्टिनेंट गवर्नर के पास भेजा। लेफ्टिनेंट गवर्नर ने इस प्रस्ताव को अस्पष्ट करार देते हुए नगर पालिका को वापस भेज दिया।
उन दिनों नगर पालिका कमेटी द्वारा पारित सभी प्रस्तावों को नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध के लेफ्टिनेंट गवर्नर एवं चीफ कमिश्नर अनुमोदित या स्वीकृत करते थे। लेफ्टिनेंट गवर्नर की स्वीकृति के बाद गजट नोटिफिकेशन होता था। इसके बाद ही पालिका द्वारा स्वीकृत प्रस्तावों को क्रियान्वित किया जा सकता था। आज से सवा सौ साल पहले भी किसानों की भूमि अधिग्रहण एक विवादस्पद मुद्दा था। अंग्रेज सरकार को ‘रूहेलखण्ड एण्ड कुमाऊँ रेलवे कम्पनी’ के लिए ताँगा पड़ाव (दो गाँव) में जमीन की आवश्यकता थी। इसके लिए सरकार ने दो गाँव के स्थानीय काश्तकार लछम सिंह, खड़क सिंह तथा नंदन सिंह की साढ़े 18 नाली जमीन को अधिगृहीत करने की कारवाई शुरू कर दी। भूमि अधिग्रहण का यह मसला कुमाऊँ कमिश्नर की अदालत में पहुँच गया।
उस दौर में अधिकारी बंद कमरों में बैठकर प्रशासन नहीं चलाते थे। छोटे-बड़े सभी अधिकारी ज्यादातर समय अपने कार्य क्षेत्र के दौरों में ही रहा करते थे। पर अधिकारियों के दौरों के दौरान भी कोई सरकारी काम लटकता नहीं था। अधिकारियों के साथ उनका दफ्तर और यहाँ तक कि अदालत भी सचल होती थी। जहाँ अधिकारी, वहीं दफ्तर और वहीं अदालत। मौके पर सुनवाई होती थी और मौके पर ही निर्णय दे दिए जाते थे। भूमि अधिग्रहण के इस मामले की सुनवाई भी कमिश्नर के दौरों के दौरान कई स्थानों में हुई। 28 अक्टूबर, 1891 को मामले की सुनवाई भीमताल में हुई। उस दिन नंदन सिंह की ओर से अदालत में हाजिरी माफी का प्रार्थना-पत्र पेश किया गया। लिहाजा सुनवाई मुल्तवी हो गई। हुक्म हुआ कि मामले की अगली सुनवाई 4 जनवरी, 1892 को हल्द्वानी में होगी। इस रोज हल्द्वानी में अदालत में समझौते के आधार पर सम्मानजनक मुआवजा मिलने के आश्वासन के बाद किसानों ने जमीन अधिग्रहण के लिए सरकार के हक में अपनी सहमति दे दी।
अन्ततः नैनीताल रेलवे योजना के लिए ताँगा पड़ाव (दो गाँव) में स्थानीय निवासी नंदन सिंह, खड़क सिंह और लछम सिंह की साढ़े 18 नाली जमीन अधिगृहीत कर रूहेलखण्ड एण्ड कुमाऊँ रेलवे कम्पनी को दे दी गई। इससे पहले भी दो गाँव में रेलवे कम्पनी को नैनीताल रेलवे के लिए पौने तीन एकड़ जमीन दी जा चुकी थी। अंग्रेज समय के बेहद पाबंद थे। जनश्रुति के अनुसार- ब्रिटेन के सम्राट के जन्म दिन पर खेल के मैदान में परेड का आयोजन होना था और लेफ्टिनेंट गवर्नर ने परेड की सलामी लेनी थी। गवर्नर की कार मस्जिद के पास पहुँची थी, परन्तु सलामी का समय हो गया था। पूर्वी कमान के कमांडर ने तय समय पर सलामी लेने की औपचारिकता पूरी कर दी। गवर्नर को वापस लौटना पड़ा।
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