अब नैनीताल में स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा था। साफ-सफाई की व्यवस्था के बेहतर प्रबन्धन के लिहाज से नैनीताल को कई वृत्तों में बांट दिया गया। प्रत्येक वृत्त में एक यूरोपीय स्वास्थ्य निरीक्षक तैनात किया गया। सफाई नायक और हवलदार बनाए गए। यूरोपीय स्वास्थ्य निरीक्षक अपने वृत्त के सफाई कर्मचारियों के कामों का नियमित रूप से निरीक्षण करते थे। 1884 में पशु वध स्थलों में पक्के फर्श बना दिए गए। इनकी निगरानी की पुख्ता व्यवस्था की गई।
‘रुहेलखण्ड एण्ड कुमाऊँ रेलवे कम्पनी’ ने बरेली के भोजीपुरा जंक्शन से काठगोदाम तक मीटर गेज लाइन डाल दी थी। आखिरकार 24 अक्टूबर, 1884 को काठगोदाम तक रेल पहुँच गई। तब किच्छा, रुद्रपुर, लालकुआँ, किलपुर, हल्द्वानी और काठगोदाम में रेलवे स्टेशन बन गए थे। काठगोदाम तक रेल आने से ब्रेबरी होते हुए नैनीताल आना सम्भव हो गया था। इससे पहले मुरादाबाद से कालाढूँगी-खुर्पाताल होते हुए ही नैनीताल पहुँचा जा सकता था। घोड़ा और पालकी यातायात के मुख्य और एकमात्र साधन थे। उन दिनों कालाढूँगी सुल्ताना डाकू का प्रभाव क्षेत्र माना जाता था। लिहाज से यह यात्रा असुरक्षित तथा जोखिम भरी भी थी। 1884 के बाद मैदानी क्षेत्र से रेल द्वारा काठगोदाम तक डाक आने लगी थी। डाक बाँटने का काम धावकों के ही जिम्मे था। 1885 तक काठगोदाम से ब्रेबरी तक सड़क बन गई थी। ब्रेबरी तक ताँगे आने लगे थे। अब कुमाऊँ रेलवे या डाक गाड़ी से काठगोदाम और वहाँ से ताँगे में बैठकर ब्रेबरी तक पहुँचा जा सकता था। काठगोदाम से ब्रेबरी के बीच तीन स्थानों पर ताँगे के घोड़े बदले जाते थे। जनवरी 1885 को नैनीताल में टेलीग्राफ ऑफिस खुला।
अब नैनीताल के पर्यावरण के विवेकपूर्ण उपयोग पर ध्यान दिया जाने लगा था। नैनीताल के लचीले और भंगुर पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए पौधरोपण की वैज्ञानिक विधियाँ अपनाई गई। पी.डब्ल्यू.डी के अधिशासी अभियन्ता मिस्टर हेन्सलोव की अगुआई में 1885 में नैना पीक की पहाड़ी में सघन पौधरोपण किया गया। इससे पहले नैना पीक की पहाड़ी में खतरनाक दरारें देखी गई थी। एक अक्टूबर, 1886 को शेर-का-डांडा पहाड़ी के नालों और सड़कों के निर्माण का जिम्मा पी.डब्ल्यू.डी को सौंप दिया गया। इसी साल जनवरी में तहसीलदार कक्ष का निर्माण हुआ। 22 दिसम्बर, 1887 को नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस के सचिव रॉबर्ट स्मीटन ने नगर पालिका को पुलिस स्टेशन तल्लीताल के लिए 500 रुपए में जमीन खरीदने की अनुमति दी।
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