पृथ्वी की उत्पत्ति कब और कैसे हुई ? यह एक अबूझ पहेली है। माना जाता है कि ब्रह्माण्ड के एक हिस्से के रूप में करीब साढ़े चार अरब वर्ष पहले पृथ्वी की उत्पत्ति हुई। सृष्टि की उत्पत्ति के साथ सम्भवत: नैनीताल का यह भू-भाग भी अस्तित्व में आ गया होगा। कहते हैं कि पृथ्वी पर मानव जाति की मौजूदगी पिछले करीब 17 लाख वर्षों से है। इस दौरान करीब 99 प्रतिशत कालखण्ड में मानव जाति शिकारी और भोजन संग्रहकर्ता के रूप में रही। मानव ने करीब 10 हजार वर्ष पहले कृषि और पशुपालन प्रारम्भ किया। इस दौरान मानव जाति ने आदिम युग से वर्तमान युग तक की लम्बी यात्रा तय की है।
अपने अस्तित्व को कायम रखने और निरन्तर प्रगति के लिए मानव जाति प्रागैतिहासिक काल से ही प्रकृति को अपने वश में करने की कोशिशें करती चली आ रही है। पृथ्वी में मौजूद सब प्राणियों में सोचने और तर्क की सामर्थ्य रखने वाला अकेला प्राणी होने की वजह से मानव जाति की सभी खोजें तथा आविष्कार जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं से जुडे रहे हैं। यही कारण है कि मनुष्य में सदैव प्राकृतिक सौन्दर्य के प्रति विशेष आकर्षण और लगाव रहा है। प्रागैतिहासिक काल में जब मानव के पास संस्कृति और सभ्यता जैसी कोई धरोहर नहीं थी, तब भी उसने अपने आवास के लिए उन्हीं गुफाओं-कंदराओं को चुना, जहाँ अपार नैसर्गिक सौन्दर्य के साथ पानी भी था।
2600 ईसा पूर्व सिन्धु घाटी सभ्यता का उदय हुआ। मैसोपोटामिया, मिस्र तथा हड़प्पा (मोहनजोदड़ो) सभ्यताएँ विकसित हुई। इन सभ्यताओं के विकास के साथ ही राज तंत्र का उदय तथा विकास हुआ। शक्तिशाली राजवंश वजूद जल में आए। शहरी सभ्यताएँ एवं संस्कृति विकसित हुई। 1500 ईसा पूर्व भूकम्प और जल प्लावन के कारण यह उच्च कोटि की सभ्यता समाप्त हो गई। हड़प्पा संस्कृति के पतन के बाद भारत में एक नई सभ्यता का आविर्भाव हुआ, इसे वैदिक सभ्यता कहा गया।
इधर कुमाऊँ में भी देशज राजवंश का उदय हुआ। प्रारम्भिक काल में यहाँ कत्यूरी राजाओं ने राज किया। उनकी पहली राजधानी जोशीमठ थी। कालान्तर में कत्यूर घाटी आ गई। कत्यूरी राजा ने झूसी (इलाहाबाद) के निवासी सोमचंद के साथ अपनी बेटी की शादी की। उन्होंने सोमचंद को दहेज के रूप में चम्पावत और तराई-भाबर भूमिदान में दे दी। धीरे-धीरे चंद पूरे कुमाऊँ में फैल गए। सातवीं शताब्दी में कुमाऊँ में कत्यूरी वंश का राज समाप्त हो गया। सोमचंद ने चंद वंश की नींव रखी। अब चंद कुमाऊँ के राजा हो गए थे। 13वीं शताब्दी में कुमाऊँ के राजा त्रिलोक चंद ने अपनी सीमाओं की सुरक्षा की दृष्टि से भीमताल में किला बनाया। तब तक नैनीताल का यह भू-भाग स्वतंत्र था।
14वीं से 17वीं शताब्दी के मध्य यूरोप में चले पुनर्जागरण और धर्म सुधार आन्दोलनों ने आधुनिक युग की नींव रखी। विश्व के कई हिस्सों में औपनिवेशीकरण शुरू हुआ। 1488 से 1503 के दौरान कुमाऊँ के राजा किरतचंद के शासनकाल में नैनीताल को चंद राज्य में शामिल कर लिया गया। 1743 में राजा कल्याण चंद ने कुमाऊँ के राजा को सहायता प्रदान की। 1600 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत में व्यापार के लिए मुगल शासकों से कानूनी चार्टर हासिल किया। डेढ़ सौ साल तक व्यापार करने के बाद कम्पनी ने भारत में सियासी घुसपैठ प्रारम्भ कर दी। 1757 में रावर्ड क्लाइव ने बंगाल के नवाब को पराजित कर भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी के राज की नींव रख दी। कुमाऊँ के राजा कल्याण चंद के शासनकाल में शिवदेव जोशी कुमाऊँ के प्रधानमंत्री थे। 1747 में राजा कल्याण चंद की मृत्यु हो गई। प्रधानमंत्री शिवदेव जोशी ने कल्याण चंद के नौजवान बेटे दीप चंद को राजा बना दिया। 1764 में शिवदेव जोशी की हत्या हो गई। उनकी हत्या के बाद समूचे कुमाऊँ में राजनैतिक अस्थिरता और अराजकता का वातावरण बन गया। गद्दी की खातिर राजवंश के भीतर षड्यंत्र और खूनी संघर्ष शुरू हो गया। सत्ता के आंतरिक संघर्ष के चलते अंततः 1790 में कुमाऊँ में गोरखा सैनिक शासन कायम हो गया।
1814 में गोरखों और अंग्रेजों के बीच युद्ध शुरू हुआ। लम्बी लड़ाई के बाद गोरखों के पांव उखड़ गए। गोरखा सैनिकों को अंग्रेजों के साथ संधि को बाध्य होना पड़ा। 17 अप्रैल, 1815 में ईस्ट इंडिया कम्पनी और गोरखों के बीच सिंगोली संधि हुई। अंग्रेजों के प्रतिनिधि ई.गार्डनर और गोरखाओं के तत्कालीन मुख्य शासक बमशाह ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए। 27 अप्रैल, 1815 को कुमाऊँ में ईस्ट इंडिया कम्पनी का आधिपत्य हो गया। 3 मई, 1815 को ई.गार्डनर को कुमाऊँ का पहला कमिश्नर एवं एजेंट, गर्वनर जनरल बना दिया गया। अल्मोड़ा कुमाऊँ कमिश्नर का मुख्यालय बना। तब तक आस-पास के ग्रामीणों को छोड़ नैनीताल बाकी दुनिया की नजरों से ओझल था।
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