नैनो टेक्नोलाॅजी से जल प्रदूषण नियंत्रण

Submitted by Shivendra on Tue, 03/03/2020 - 11:15

फोटो - safety and health magazine.com।

कहना न होगा कि आज नैनो की सूक्ष्मता की प्रौद्योगिकी ने कृषि, पर्यावरण, चिकित्सा, इंजीनियरी, जैव-प्रौदृयोगिकी, सूचना-प्रौद्योगिकी इत्यादि अनेक क्षेत्रों में संभावनाओं के द्वारा खोल दिए हैं। भविष्य में इसकी असंख्य संभावनाएं हैं, जिनको कार्यरूप देना एक बड़ी चुनौती है। विकसित और विकासशील देशों के वैज्ञानिक इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं। नैनो परिमाप पर आधारित विज्ञान एवं अभियांत्रिकी, रचनात्मक पदार्थों को क्रियात्क संरचनाओं तथा उनके गुणधर्मों को अभिव्यक्त करने वाली अतिसूक्ष्म वैज्ञानिक, क्रमबद्धता को अत्याधुनिक शब्दों में नैनो टेक्नोलाॅजी कहते हैं। पृथ्वी एवं जीव-जगत के निर्माण में प्रारंभिक अवस्था से ही इसकी उपयोगिता रही है। जीव के परिप्रेक्ष्य में डीएनए की द्विकुंडली का व्यास लगभग 2 नैनो मीटर तथा राइबोसोम का व्यास 25 नैनो मीटर के बराबर होता है। मानव निर्मित नैनो-आकृति पदार्थों की नूतन उत्पत्ति एक ऐसी डोमेन आकार की अवयवी कणिकाएं हैं, जिनके द्वारा पर्यावरण अभियांत्रिकी में अकल्पनीय क्रांति आने की प्रबल संभावनाएं हैं। परिणामस्वरूप विभिन्न पर्यावरणीय क्षेत्रों में नैनो कणों एवं नैनो-नलिकाओं का कुशलतापूर्वक अनुप्रयोग हो रहा है। 

नैनो शब्द मूलतः ग्रीक भाषा का है, जिसका अर्थ अति सूक्ष्म या अति बौना होता है। मापन की अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में नैनो का तात्पर्य अरबांश से है, जिसका मान 10.9 मीटर के बराबर होता है। नैनो मीटर कितना सूक्ष्म है इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यह महज एक आलपिन की घुंडी के दस लाखवें हिस्से के बराबर होता है। नैनो जगत की अवधारणा सबसे पहले प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी एवं नोबेल पुरस्कार विजेता रिचर्ड फैनमेन ने की थी। नैनो टेक्नोलाॅजी जीवन के प्रत्येक पहलू को प्रभावित करने में सक्षम है। नैनो-विज्ञान की व्यापकता एवं विभिन्न क्षेत्रों में होने वाले प्रभाव को देखते हुए इसकी अनेक शाखाएं बन गई हैं। इस क्षेत्र में विकास के साथ-साथ नई शाखाओं का जन्म भी निरंतर हो रहा है। आज जो नैनो टेक्नोलाॅजी पर शोध हो रहे हैं उनका केन्द्र बिन्दु दूसरी तकनीकों के साथ नैनो का समन्वय है।  वास्तव में ऐसी अनेक प्रौद्योगिकियां हैं, जहाँ आज नैनोकण, नैनो पाउडर तथा नैनो नलिकाओं का सफलता से उपयोग हो रहा है। पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए भी नैनोप्रोैद्योगिकी अत्यंत उपयोगी है। वास्तव में नैनो जैसे सूक्ष्म स्तर पर पदार्थ का व्यवहार बिल्कुल ही अलग होता है। उसकी रासायनिक-प्रतिक्रिया क्षमता बहुत तीव्र हो जाती है। उसकी गुणवत्ता बढ़ जाती है। वैज्ञानिकों ने नैनो-तकनीक से ऐसी प्रक्रिया विकसित की है, जिससे हमारे पर्यावरण में व्याप्त हानिकारक रसायनों को समाप्त करने में मदद मिलेगी। 

पर्यावरण की बात करें तो हमारे चारों ओर जो आवरण हैं जिसमें वायुमंडल, जलमंडल, और स्थलमंडल आते हैं तथा जो जीव धारियों पर सीधा या परोक्ष रूप से प्रभाव डालता है, पर्यावरण या Environment कहलाता है। वैसे तो पर्यावरण के सभी घटक महत्वपूर्ण हैं, किन्तु, इनमें से जल की महत्ता कुछ विशेष ही है। पृथ्वी का तीन-चैथाई भाग में जल है और जीवित पदार्थोंं का 70 प्रतिशत भाग जल का ही बना हुआ है। इसलिए जल को अमृत कहा गया है। दूसरे शब्दों में जल ही जीवन है। सभी जीवधारियों के लिए जल अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है। जल में बहुत से खनिज तत्व, कार्बनिक-अकार्बनिक पदार्थ तथा गैसें घुली होती हैं। यदि जल में घुले पदार्थ आवश्यकता से अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाते हैं जो साधरणतः जल में उपस्थित नहीं होते हैं, तो जल हानिकारक हो जाता है और प्रदूषित जल कहलाता है। जल में प्रदूषण का कारण औद्योगिक संस्थानों से निकले अपशिष्ट पदार्थ, कृषि के लिए इस्तेमाल हो रही रासायनिक खाद, कीटाणुनाशक पदार्थ, अपतृणनाशी पदार्थ, दूसरे कार्बनिक पदार्थ एवं सीवेज इत्यादि है। इन सभी प्रदूषकों के कारण जल अशुद्ध हो जाता है तथा पीने लायक नहीं रहता। अशुद्ध जल के सेवन से अनेकों बीमारियां जैसे-पेचिश, पीलिया, टाइफाइड आदि होती है।

आज वैज्ञानिक नैनो टेक्नोलाॅजी का उपयोग करके जल-प्रदूषण को नियंत्रित करने में सफल हो रहे हैं। उल्लेखनीय है कि प्रदूषित जल को शुद्ध करने की पारम्परिक विधियाॅं उतनी कारगर सिद्ध नहीं हुई हैं जितनी की आवश्यकता है। इसके अलावा जल-प्रदूषण नियंत्रण की पुरानी विधियों में खर्च भी अधिक आता है। हाल ही में दक्षिण ऑस्ट्रेलिया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों पीटर मैजवस्की तथा च्यूपिंग चैन ने सिलिका के नैनो-कणों का उपयोग करके प्रदूषित जल को शुद्ध करने में सफलता प्राप्त की है। उनकी यह विधि पारम्परिक विधियों से अधिक सरल, कारगर एवं कम खर्चीली सिद्ध हुई है। इस विधि में सिलिका के अति-सूक्ष्म क्रियाशील नैनो-कणों द्वारा प्रदूषित जल में उपस्थित विषैले रसायनों, हानिकारक बैक्टीरिया तथा विषाणुओं को अधिक प्रभावशाली ढंग से नष्ट किया जाता है। 

नैनो टेक्नोलाॅजी का प्रयोग करके प्रदूषित जल में उपस्थित औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों (Industrial Waste Materials) को भी आसानी से दूर किया जा सकता है। नैनो-कणों का उपयोग करके प्रदूषित अपशिष्टों को रासायनिक अभिक्रिया द्वारा अहानिकारक पदार्थों में परिवर्तित कर दिया जाता है। जिससे कि जल शुद्ध हो जाए। नैनो प्रोैद्योगिकी का उपयोग करके अशुद्ध जल में उपस्थित हानिकारक लवणों तथा धातुओं को भी प्रदूषित जल से मिटाया जा सकता है। इस विधि में डिआयोनाइजेशन विधि द्वारा नैनो साइज फाइबर्स का उपयोग करके जल को शुद्ध किया जाता है। इस तकनीक से जल के शुद्धिकरण की प्रक्रिया अधिक सरल, सस्ती एवं प्रभावशाली होती है। इसके अतिरिक्त इसमें ऊर्जा भी कम लगती है। आज हम लोग जिन स्टैण्डर्ड फिल्टर्स का प्रयोग कर रहे हैं उनसे अति-सूक्ष्म विषाणु सम्पूर्ण रूप से नष्ट नहीं होते हैं। आज शोधकर्ताओं ने नैनो टेक्नोलाॅजी द्वारा ऐसे फिल्टर्स विकसित कर लिए हैं जो इन अतिसूक्ष्म हानिकारक विषाणुओं को समाप्त करके जल को संपूर्ण स्वच्छ बनाने में सक्षम हैं। 

जल-प्रदूषण नियंत्रण के क्षेत्र में ही वैज्ञानिकों ने लौह नैनोकणों का प्रयोग करके भूगर्भ जल में पाये जाने वाले हानिकारक रासायनिक पदार्थ कार्बन-टैट्राक्लोराइड को भी प्रदूषित भूगर्भ जल से हटाने में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है। इस प्रकार हम देखते हैं कि आज वैज्ञानिकों एवं शोधकर्ताओं ने नैनो टेक्नोलाॅजी का प्रयोग करके जल-प्रदूषण को समाप्त करने में असाधारण सफलता प्राप्त की है। विकसित देशों में इस प्रोैद्योगिकी का प्रयोग सफलतापूर्वक हो रहा है। विकासशील देश भारत में भी नैनो टेक्नोलाॅजी आधारित अनुसंधान तेजी से हो रहा है। वह दिन दूर नहीं कि जब हम भारतीय भी इस प्रौद्योगिकी की उपयोग करके जल-प्रदूषण की समस्या से संपूर्ण रूप से मुक्त हो सकेंगे। उल्लेखनीय है कि नैनो टेक्नोलाॅजी ऐसी विद्या है जो नैनो अर्थात अति सूक्ष्म होकर भी अत्यन्त प्रभावी बनती जा रही है एवं जिसमें भौतिक, रसायन, जीव विज्ञान तथा इंजीनियरिंग की अनेकों उपलब्धियाँ गागर में सागर की भांति समाहित हैं। 


लेखक

डाॅ. दीपक कोहली, उपसचिव,

वन एवं वन्य जीव विभाग, उत्तर प्रदेश

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