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पानी का मोल कितना होता है ?
कहते हैं सूरज की रोशनी, नदियों का पानी और हवा पर सबका हक़ है। लेकिन छत्तीसगढ़ में ऐसा नहीं है। छत्तीसगढ़ की कई नदियों पर निजी कंपनियों का कब्जा है। दुनिया में सबसे पहले नदियों के निजीकरण का जो सिलसिला छत्तीसगढ़ में शुरु हुआ, वह थमने का नाम नहीं ले रहा। छत्तीसगढ़ की इन नदियों में आम जनता नहा नहीं सकती, पीने का पानी नहीं ले सकती, मछली नहीं मार सकती। सेंटर फॉर साइंस एंड इनवारनमेंट की मीडिया फेलोशीप के तहत पत्रकार आलोक प्रकाश पुतुल द्वारा किए गए अध्ययन का यह हिस्सा आंख खोल देने वाला है। आइये पढ़ते हैं, क्रमवार रूप से यह पूरी रिपोर्ट। इस सवाल का जवाब शायद छत्तीसगढ़ में रायगढ़ के बोंदा टिकरा गांव में रहने वाले गोपीनाथ सौंरा और कृष्ण कुमार से बेहतर कोई नहीं समझ सकता। 26 जनवरी, 1998 से पहले गोपीनाथ सौंरा और कृष्ण कुमार को भी यह बात कहां मालूम थी। तब छत्तीसगढ़ नहीं बना था और रायगढ़ मध्यप्रदेश का हिस्सा था। मध्यप्रदेश के इसी रायगढ़ में जब जिंदल स्टील्स ने अपनी फैक्टरी के पानी के लिए इस जिले में बहने वाली केलो नदी से पानी लेना शुरु किया तो गाँव के गाँव सूखने लगे। तालाबों का पानी कम होने लगा। जलस्तर तेजी से गिरने लगा। नदी का पानी जिंदल की फैक्ट्रीयों में जाकर खत्म होने लगा। लोगों के हलक सूखने लगे।
फिर शुरु हुई पानी को लेकर गाँव और फैक्ट्री की अंतहीन लड़ाई। गाँव के आदिवासी हवा, पानी के नैसर्गिक आपूर्ति को निजी मिल्कियत बनाने और उस पर कब्जा जमाने वाली जिंदल स्टील्स के खिलाफ उठ खड़े हुए। गाँववालों ने पानी पर गाँव का हक बताते हुए धरना शुरु किया। रायगढ़ से लेकर भोपाल तक सरकार से गुहार लगाई, चिठ्ठियाँ लिखीं, प्रर्दशन किए। लेकिन ये सब कुछ बेकार गया। अंततः आदिवासियों ने अपने पानी पर अपना हक के लिए आमरण अनशन शुरु किया।
बोंदा टिकरा के गोपीनाथ सौंरा कहते हैं - 'मेरी पत्नी सत्यभामा ने जब भूख हड़ताल शुरु की तो मुझे उम्मीद थी कि शासन मामले की गंभीरता समझेगा और केलो नदी से जिंदल को पानी देने का निर्णय वापस लिया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ 'भूख हड़ताल पर बैठी सत्यभामा सौंरा की आवाज़ अनसुनी रह गई। लगातार सात दिनों से अन्न-जल त्याग देने के कारण सत्यभामा सौंरा की हालत बिगड़ती चली गई और 26 जनवरी 1998 को जब सारा देश लोकतांत्रिक भारत का 48वां गणतंत्र दिवस मना रहा था, पानी की इस लड़ाई में सत्यभामा की भूख से मौत हो गई।
सत्यभामा के बेटे कृष्ण कुमार बताते हैं- “इस मामले में मेरी मां की मौत के ज़िम्मेवार जिंदल और प्रशासन के लोगों पर मुकदमा चलना था लेकिन सरकार ने उलटे केलो नदी को निजी हाथ में सौंपने के खिलाफ मेरी मां के साथ आंदोलन कर रहे लोगों को ही जेल में डाल दिया। ”इस बात को लगभग दस साल होने को आए।
इन दस सालों में सैकड़ों छोटी-बड़ी फैक्ट्रियाँ रायगढ़ की छाती पर उग आईं हैं। पूरा इलाका काले धुएं और धूल का पर्याय बन गया है। सितारा होटलें रायगढ़ में खिलखिला रही हैं। आदिवासियों के विकास के नाम पर अलग छत्तीसगढ़ राज्य भी बन गया है। कुल मिला कर ये कि आज रायगढ़ और उसका इलाका पूरी तरह बदल गया है।
नहीं बदली है तो बस नदी की कहानी।
पानी-पानी छत्तीसगढ
एक नवंबर, 2001 को अस्तित्व में आए छत्तीसगढ़ को पानीवाला राज्य कहते हैं। 1,37, 360 वर्ग किलोमीटर में फैले इस राज्य हर गांव में छह आगर और छह कोरी तालाब की परंपरा रही है। आगर मतलब बीस और कोरी मतलब एक। यानी कुल 126 तालाब। राज्य में लगभग 1400 मिलीमीटर औसत बरसात भी होती है, लेकिन इन सबों से कहीं अधिक लगभग ढ़ाई करोड की आबादी वाला छत्तीसगढ़ राज्य नदियों पर आश्रित है। यह राज्य पाँच नदी कछार में बंटा हुआ है-महानदी कछार 75,546 वर्ग किलोमीटर, गोदावरी कछार 39,577 वर्ग किलोमीटर, गंगा कछार 18,808 वर्ग किलोमीटर, नर्मदा कछार 2,113 वर्ग किलोमीटर और ब्राम्हणी कछार 1,316 वर्ग किलोमीटर।
महानदी, शिवनाथ, इंद्रावती, जोंक, केलो, अरपा, सबरी, हसदेव, ईब, खारुन, पैरी, माँड जैसी नदियां राज्य में पानी की मुख्य आधार हैं। आँकड़ों के अनुसार राज्य में कुल उपयोगी जल 41,720 मिलीयन क्यूबिक मीटर है, जिसमें से 7203 मिलीयन क्यूबिक मीटर पानी का इस्तेमाल किया जाता है। 59।90 हज़ार मिलियन क्यूबिक मीटर सतही जल में से 41।720 हज़ार मिलियन क्य़ूबिक मीटर सतही जल इस्तेमाल योग्य है। जिसमें से फिलहाल 7।50 हज़ार मिलियन क्यूबिक मीटर पानी का इस्तेमाल हो रहा है। भूजल के मामले में भी राज्य बेहद समृद्ध है। छत्तीसगढ़ में भूजल की मात्रा 13,678 मिलियन क्य़ूबिक मीटर है, जिसमें से 11,600 मिलियन क्य़ूबिक मीटर इस्तेमाल योग्य है।लेकिन ये सब आंकड़े भर हैं। ऐसे आंकड़े, जिनमें सारे दावे के बाद भी आम जनता और खास कर किसानों की पहूंच से यह पानी लगातार दूर होता चला जा रहा है। पानी और नदियों पर आधारित सारी अर्थव्यवस्था चरमरा कर रह गई है। राज्य की अधिकांश नदियां निजी कंपनियों के कब्जे में हैं और आम जनता के लिए उन नदियों से एक बूंद पानी लेना भी गुनाह है। इन नदियों से निस्तार बंद है। इन में मछुवारे अब अपना जाल नहीं फैला सकते। नदियों के किनारे-किनारे फसल लगा कर करोड़ो रुपए कमाने वाले किसान-मज़दूर अब बेरोजगार हैं। किसी जमाने में नदियों पर बनने वाले बांध के पीछे एकमात्र कारण होता था, फसलों की सिंचाई। अब राज्य की हरेक नदी पर बनने वाले बांध का एकमात्र उद्देश्य होता है औद्योगिक घरानों को पानी उपलब्ध कराना। हालत ये हो गई कि छत्तीसगढ़ में सरकार ने पिछले कुछ सालों से गरमी के दिनों में फसलों को पानी देने पर घोषित तौर पर प्रतिबंध लगा दिया।
नदियों से शुरु हो कर नदियों में खत्म होने वाले आम आदमी का जीवन अब नदियों को दूर-दूर से निहारता है, जहां नदियां अब केवल स्मृति का हिस्सा हैं।
नदियों पर कब्जे की कहानी कोई एकाएक शुरु नहीं हुईं। यह सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से हुआ। राज्य की अलग-अलग नदियां एक-एक कर निजी हाथों में सौंपी जाने लगीं। तमाम विरोध और संघर्ष के बाद राज्य की सरकारों ने नदियों को निजी हाथों से मुक्त कराने की घोषणाएं की, दावे किए, सपने दिखाए। लेकिन इसके ठीक उलट हरेक सरकार ने किसी न किसी नदी को नए सिरे से किसी निजी उद्योग के हाथों में गिरवी रखने से कभी गुरेज नहीं किया। नदियों को औद्योगिक घरानों के हाथों में सौंपने का जो सिलसिला मध्य प्रदेश से शुरु हुआ था, वह छत्तीसगढ़ में आज भी जारी है।
नदिया बिक गई पानी के मोलछत्तीसगढ़ में महानदी और शिवनाथ दो ऐसी नदियां रही हैं जो राज्य के 58.48 प्रतिशत क्षेत्र के जल का संग्रहण करती हैं। शिवनाथ मूलतः दुर्ग, रायपुर, बिलासपुर और जाँजगीर-चाँपा से होते हुए महानदी में मिल जाती है।
पानी के बाज़ार सजाने के सिलसिले की शुरुआत इसी शिवनाथ से हुई। औद्योगिक विकास केंद्रों के सहयोग के लिए 1981 में मध्यप्रदेश औद्योगिक केंद्र विकास निगम (रायपुर) लिमिटेड, रायपुर का गठन किया गया था। 26 जून 1996 को दुर्ग औद्योगिक केंद्र बोरई की मेसर्स एचईजी लिमिटेड ने औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर को एक पत्र लिखकर कहा कि वर्तमान में उन्हें 12 लाख लीटर पानी की आपूर्ति की जा रही है लेकिन अगले दो महीने बाद से उन्हें हर रोज़ 24 लाख लीटर अतिरिक्त पानी की आवश्यकता होगी, जिसकी व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।
औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर ने शिवनाथ नदी में उपलब्ध पानी का आकलन करने के बाद मेसर्स एचईजी लिमिटेड को 20 अगस्त, 1996 को पत्र लिखते हुए बताया कि आगामी कुछ दिनों में एचईजी को 25 लाख लीटर पानी की आपूर्ति की जा सकती है और प्रस्तावित बीटी पंप लग जाने के बाद 36 लाख लीटर पानी की आपूर्ति संभव हो पाएगी। लेकिन औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर ने फरवरी से जून तक शिवनाथ में कम पानी का हवाला देते हुए इस अवधि में पानी की आपूर्ति में असमर्थता व्यक्त की। औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर ने इसके लिए मेसर्स एचईजी लिमिटेड को संयुक्त रुप से शिवनाथ नदी पर एनीकट बनाने का प्रस्ताव दिया। औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर का तर्क था कि उनके पास इस एनीकट के निर्माण के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध नहीं हैं और अतिरिक्त पानी की जरुरत भी एचईजी लिमिटेड को है, इसलिए उसे संयुक्त रुप से एनीकट निर्माण का प्रस्ताव दिया गया।
इसके बाद औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर और मेसर्स एचईजी लिमिटेड के बीच अधिकृत बैठकों में पानी को लेकर खिचड़ी पकनी शुरु हो गई। इन सरकारी बैठकों में क्या-क्या निर्णय हुए और इन बैठकों में कौन-कौन शामिल हुआ, इसका सच किसी को नहीं पता लेकिन सरकारी अफसर चाहते थे कि मेसर्स एचईजी लिमिटेड के साथ का इस तरह कागज़ी कारवाई की जाए जिससे मेसर्स एचईजी लिमिटेड एनीकेट बनाने के काम से हाथ खींच ले और यह काम किसी ऐसी एजेंसी को दे दिया जाए, जिससे औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर के अफसरों का अपना हित सधे। यहां तक कि इन बैठकों की कार्रवाई के अलग-अलग फर्जी विवरण भी सरकारी अफसरों ने तैयार कर कागजी खानापूर्ति की कोशिश की और वे इसमें सफल भी हुए।
इसके बाद एनीकेट बनाने के बजाय पहले से ही स्थापित जल प्रदाय योजना को कथित रूप से बिल्ड ओन ऑपरेट और ट्रांसफर यानी बूट आधार पर जल प्रदाय योजना स्थापित करने के लिए निविदा निकाली गई। इस निविदा में टिल्टिंग गेट्स का प्रावधान रखा गया था। मज़ेदार तथ्य ये है कि इस निविदा से पहले ही 14 अक्टूबर, 1997 को राजनांदगाँव की कैलाश इंजीनीयरिंग कार्पोरेशन लिमिटेड ने मध्यप्रदेश औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर को एक पत्र में सूचना दी थी कि ऑटोमैटिक टिल्टिंग गेट्स उनके द्वारा विकसित किए गए हैं और इनका पेटेंट उनके पास है। मतलब ये कि टिल्टिंग गेट्स का प्रावधान रख कर यह साफ कर दिया गया कि जल प्रदाय योजना स्थापित करने का काम कैलाश इंजीनीयरिंग कार्पोरेशन लिमिटेड या उसकी सहमति से ही कोई और कंपनी ले सकती है। और अंततः हुआ भी यही।
हद तो यह हो गई कि औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर ने बोरई की अपनी पूरी अधोसंरचना और लगभग पाँच करोड़ रुपये की संपत्ति बूट आधार पर जल प्रदाय योजना स्थापित करने के लिए केवल एक रुपये की टोकन राशि लेकर कैलाश इंजीनीयरिंग कार्पोरेशन लिमिटेड के मालिक कैलाश सोनी को सौंप दी।
शिवनाथ नदी को निजी क्षेत्र को सौंपे जाने की जाँच को लेकर गठित छत्तीसगढ़ विधानसभा की लोकलेखा समिति ने औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर के संचालक की कार्यशैली को संदेहास्पद बताते हुए कहा कि “औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर के प्रबंध संचालकों की व्यक्तिगत रुचि एवं कारणों तथा येन-केन प्रकारेण मेसर्स एचईजी लिमिटेड को जानबूझकर सोची समझी नीति के अंतर्गत परिदृश्य से बाहर करने की कूटरचित योजना के कारण परिदृश्य से ओझल कर दिया गया।।।। इस योजना से मेसर्स एचईजी लिमिटेड का जल प्राप्त करने का हित जुड़ा हुआ था। उसके साथ जो आरंभिक शर्तें निर्धारित हुई थीं, वे भी तुलनात्मक रुप से शासन के हित में लाभकारी थी। इसके बावजूद मेसर्स एचईजी लिमिटेड के साथ जल प्रदाय की लाभकारी योजना को अंतिम रूप न देकर बूट आधार पर तुलनात्मक रूप से अलाभकारी शर्तों के साथ जल प्रदाय के क्षेत्र में अनुभवहीन निजी संस्थान के साथ नियमों के विपरीत अनुबंध निष्पादित करते हुए बूट आधार पर एनीकट निर्माण एवं जल प्रदाय के अनुबंध से सम्पूर्ण योजना का प्रयोजन उद्देश्य एवं औचित्य ही समाप्त हो गया। फलस्वरुप शासन को जल प्रदाय के प्रथम दिवस से ही हानि उठानी पड़ रही है….जल प्रदाय योजना की परिसम्पत्तियां निजी कंपनी को लीज़ पर मात्र एक रुपये के टोकन मूल्य पर सौंपा जाना तो समिति के मत में ऐसा सोचा समझा शासन को सउद्देश्य अलाभकारी स्थिति में ढकेलने का कुटिलतापूर्वक किया गया षड़यंत्र है, जिसका अन्य कोई उदाहरण प्रजातांत्रिक व्यवस्था में मिलना दुर्लभ ही होगा….दस्तावेजों से एक के बाद एक षडयंत्रपूर्वक किए गए आपराधिक कृत्य समिति के ध्यान में आये, जिसके पूर्वोदाहरण संभवतः केवल आपराधिक जगत में ही मिल सकते हैं। प्रजातांत्रिक व्यवस्था में कोई शासकीय अधिकारी उद्योगपति के साथ इस प्रकार के षड़यंत्रों की रचना कर सकता है, यह समिती की कल्पना से बाहर की बात है।”
बहरहाल सारे नियम कायदे कानून को ताक पर रख कर कैलाश इंजीनीयरिंग कंपनी लिमिटेड राजनांदगाँव द्वारा इस प्रोजेक्ट के लिए प्रस्तावित कंपनी रेडियस वॉटर लिमिटेड को जल प्रदाय योजना का काम 5 अक्टूबर, 1998 को सौंप दिया। औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर ने रेडियस वाटर लिमिटेड के साथ जो अनुबंध किया गया, उसके अनुसार यह अनुबंध 4 अक्टूबर, 2000 से 4 अक्टूबर, 2020 तक प्रभावी रहेगा। हालांकि निविदा में अनुभव और पूंजी का जो हवाला दिया गया था, उस पर यह कंपनी कहीं भी खरी नहीं उतरती थी। यहां तक कि रेडियस के साथ अनुबंध करने से पहले औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर ने सिंचाई विभाग, राजस्व विभाग समेत सरकार के किसी भी उपक्रम से न तो स्वीकृति ली और ना ही इस बात की जानकारी किसी विभाग को दी गई। औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर रेडियस पर किस तरह मेहरबान थी, इसे निविदा औऱ अनुबंध के हरेक हिस्से में साफ देखा जा सकता है। बूट आधार पर निर्माण का मतलब ये होता है कि निर्माण और उसके रख रखाव का काम कंपनी अपने संसाधनों से करेगी। लेकिन औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर ने एक तो अपने संसाधन सौंप दिए, दूसरा यह अनुबंध भी कर लिया कि इस योजना में खर्च होने वाले लगभग 9 करोड़ रुपए में से 650 करोड़ रुपये कर्ज से और 2.50 करोड़ रुपए इक्विटी शेयर के रुप में रेडियस प्राप्त करेगा।
औद्योगिक क्षेत्र बोरई से प्रति माह 3.6 एम.एल.डी पानी की आपूर्ति फैक्टरियों को की जा रही थी। रेडियस वॉटर लिमिटेड को जब जल प्रदाय योजना का काम सौंपा गया, उसी दिन से रेडियस वॉटर लिमिटेड ने औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर को 4 एम एल डी पानी की गारंटी दी। इसका मतलब यह हुआ कि औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर की बोरई परियोजना में 4 एम एल डी पानी की आपूर्ति क्षमता इस निविदा के पहले से ही थी। ऐसे में फिर सहज ही सवाल उठता है कि आखिर फिर जल प्रदाय योजना स्थापित करने की जरुरत क्यों पड़ी ? औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर और रेडियस वॉटर लिमिटेड के बीच 22 वर्षों के लिए यह अनुबंध भी किया गया कि औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर 4 एमएलडी पानी ले चाहे न ले, उसे 4 एमएलडी का भुगतान अनिवार्य रुप से करना होगा। जबकि सच्चाई ये थी कि औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर को अधिकतम 2.4 एमएलडी पानी की ही जरुरत थी। भुगतान की जो दर रखी गई वह भी चौंकाने वाली थी। रायपुर के मुरेठी में शिवनाथ नदी से ही पानी लिए जाने पर सिंचाई विभाग को एक रुपए प्रति क्यूबिक का भुगतान किया जाता रहा है। लेकिन रेडियस को 12।60 रुपये प्रति क्यूबिक की दर से भुगतान करने का अनुबंध किया गया।
नया राज्य और नदी के नए जागीरदार
अब शिवनाथ पर एनिकट बनाने और पानी आपूर्ति का जिम्मा रेडियस वाटर लिमिटेड पर था। इस पूरी प्रक्रिया के संपन्न होने तक शिवनाथ नदी मध्य प्रदेश के बजाय नए राज्य छत्तीसगढ़ का हिस्सा बन चुकी थी और अब शिवनाथ पर रेडियस वाटर लिमिटेड का कब्जा था। औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर अब छत्तीसगढ़ स्टेट इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट कारपोरेशन (सीएसआईडीसी) में तब्दील हो चुका था।
रेडियस ने देखते ही देखते शिवनाथ नदी के 22।7 किलोमीटर हिस्से पर घेराबंदी शुरु कर दी। नदी किनारे की 176 एकड़ जमीन के अलावा हजारो वर्गफीट जमीन पर रेडियस वाटर लिमिटेड ने अपना साम्राज्य जमा लिया था।
औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर के बोरई स्थित सारे संसाधनों पर एक रुपए में कब्जा जमा कर उसी संसाधन से रेडियस वाटर लिमिटेड ने पहले महीने से ही औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर यानी छत्तीसगढ़ स्टेट इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट कारपोरेशन (सीएसआईडीसी) से 4 एमएलडी पानी की कीमत 15 लाख 12 हजार रुपए वसुलना शुरु किया। यानी बिना एक रुपए की पूंजी लगाए रेडियस ने राज्य सरकार से पहले ही साल एक करोड़ 81 लाख 44 हजार रुपए का भुगतान प्राप्त कर लिया।
बाद के सालों में जब अनुबंध के अनुसार रेडियस ने प्रति हजार लिटर पानी के लिए 15.02 रुपए छत्तीसगढ़ स्टेट इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट कारपोरेशन (सीएसआईडीसी) से वसुलना शुरु किया तो इस अनुबंध के भ्रष्टाचार खुल कर सामने आने लगे। बोरई में केवल दो उद्योग थे और उन्हें 2.4 एमएलडी से अधिक पानी की आवश्यकता कभी होनी ही नहीं थी, जबकि छत्तीसगढ़ स्टेट इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट कारपोरेशन को 4 एमएलडी पानी का भुगतान अनिवार्य था। इसके अलावा छत्तीसगढ़ स्टेट इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट कारपोरेशन जिन उद्योगों को पानी की आपूर्ति कर रहा था, उनसे प्रति हजार लिटर पानी के लिए केवल 12 रुपए ही लेने का अनुबंध था। यानी रेडियस से पानी लेने और उद्योगों को पानी देने में प्रति हजार लीटर पानी में 3.02 रुपए का घाटा छत्तीसगढ़ स्टेट इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट कारपोरेशन को भुगतना अनिवार्य था।
जिस नदी का अब तक कोई भी निःशुल्क इस्तेमाल कर सकता था, उसमें नहाने या उसके पानी से सिंचाई करने पर रोक लगा दी गई। कई पीढ़ियों से इस नदी में मछली मारने वाले सैकड़ों मछुवारों को इस इलाके से भगा दिया गया। पालतु पशुओं के लिए पानी का संकट पैदा हो गया। यहां तक कि नदी किनारे की चारागाह के रुप में इस्तेमाल होने वाली जमीन भी एनिकट के लिए पानी रोके जाने के कारण डूब क्षेत्र में आ गई। शिवनाथ के आसपास बसे अधिकांश गांवों के लिए पानी का मुख्य स्रोत नदी ही रही है। लेकिन इस नदी पर रेडियस वाटर लिमिटेड के कब्जे के बाद शिवनाथ के किनारे बसे गांवों को नदी के इस्तेमाल के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया। जिस नदी का अब तक कोई भी निःशुल्क इस्तेमाल कर सकता था, उसमें नहाने या उसके पानी से सिंचाई करने पर रोक लगा दी गई। कई पीढ़ियों से इस नदी में मछली मारने वाले सैकड़ों मछुवारों को इस इलाके से भगा दिया गया। पालतु पशुओं के लिए पानी का संकट पैदा हो गया। यहां तक कि नदी किनारे की चारागाह के रुप में इस्तेमाल होने वाली जमीन भी एनिकट के लिए पानी रोके जाने के कारण डूब क्षेत्र में आ गई। गांव के लोगों को रेत भी दूसरे इलाकों से मंगाने की नौबत आ गई। नदी किनारे बोर्ड लगा दिया गया- “ नदी में नहाना और मछली पकड़ना सख्त मना है। इससे जान को खतरा हो सकता है।”गांव के हजारों किसान हतप्रभ रह गए। कल तक जो नदी सबकी थी, अब उस पर एक निजी कंपनी के अधिकार ने चौंका दिया। नदी किनारे बसे मोहलाई के सरपंच बठवांराम टंडन आक्रोश के साथ कहते हैं-“ यह कैसा पंचायती राज्य है, जहां गांव वालों से पूछे बिना नदियां तक बेच दी गईं। कल को ये सरकारें सूरज की रोशनी और हवा भी बेच देंगी तो हमें अचरज नहीं होगा।”नदी और पानी को बेचने की इस साजिश के खिलाफ इस इलाके में लगातार सक्रिय नदी घाटी मोर्चा के संयोजक गौतम बंदोपाध्याय कहते हैं- “ रेडियस ने गांवों में हैंडपंप का इस्तेमाल करने और नए कुएं खोदे जाने पर भी पाबंदी लगा दी। कंपनी के कारिंदे गांव में घुम-घुम कर गांव वालों को डराने लगे। सिंचाई करने वाले किसानों के पंप रेडियस ने जप्त कर लिए।”
मोहलाई, खपरी, रसमरा, सिलोदा, महमरा जैसे गांवों का एक जैसा हाल हुआ। लेकिन इससे भी बुरा हाल उन गांवों का था, जो बोरई एनिकट के नीचे वाले हिस्से में बसे थे। चिरबली, नगपुरा, मालूद, झेरनी, पीपरछेड़ी, बेलोदी के किसानों का संकट ये था कि बांध के कारण सारा पानी ऊपर ही रुक जा रहा था और शिवनाथ के नीचे का पूरा हिस्सा सूख गया।
गरमी के दिनों में जब हाहाकार मचा तो गांव के लोग संगठित होने लगे। नदी घाटी मोर्चा ने दुर्ग से रायपुर और दिल्ली तक आंदोलन शुरु किया। धरना, जुलूस, सड़क जाम, प्रदर्शन और घेराव की रणनीति बनाई गई।