Source
प्रथम प्रवक्ता, 16 मई 2017
छत्तीसगढ़ में गाँवों से लेकर शहरों तक जल संकट नक्सली समस्या जैसी बड़ी समस्या बन गई है। क्योंकि नदियों का पानी उद्योगों ने निचोड़ लिया। तालाबों की जान बिल्डरों ने ले ली। नतीजा पानी का हाहाकार राजधानी रायपुर से लेकर गाँवों तक है। पानी की प्राथमिकता अब रोटी, कपड़ा और मकान से अधिक है। क्योंकि एक तरफ धरती प्यासी है तो दूसरी ओर लोग प्यासे हैं।

रायपुर नगर निगम के आयुक्त रजत बंसल कहते हैं कि जिन तालाबों की स्थिति ज्यादा खराब है उनका प्राथमिकता के आधार पर गहरीकरण और सौन्दर्यीकरण किया जाएगा। सवाल यह है कि एक दर्जन से अधिक तालाब हमारी धरोहर के तहत पुन: गहरीकरण किये जायेंगे। आखिर कागजों पर कब तक तालाबों का सौन्दर्य निखारा जाएगा। रायपुर का करबला तालाब जिसे गहरा करने की दिशा में प्रशासन ने पहल की। इस तालाब से पानी खाली किया गया। लेकिन जो दृश्य देखने को मिला उसने पीओपी (प्लास्टर आॅफ पेरिस) मुक्त प्रतिमाओं के विसर्जन के दावे की पोल खोल दी। जबकि आठ माह पहले ही यहाँ गणेश की प्रतिमाओं का विसर्जन किया गया था। दरअसल यह स्थिति प्रदेश के हर तालाबों की है।
पानी नीचे की ओर भाग रहा है
इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि पानी दिनों-दिन नाचे की ओर भागता चला जा रहा है। इस समय दो सौ फुट पानी नाचे चला गया है। गाँवों के कुओं में पानी नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में जल समस्या कितनी भयावह है इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के आखिरी छोर पर स्थित जिला राजनांदगाव के छुई खदान ब्लॉक के ग्राम जंगलपुर घाट में 800 आदिवासी निवासरत हैं। यहाँ संचालित नल-जल योजना पिछले दिनों से ठप है। गाँवों के किनारे लौह अयस्क युक्त वाले हैण्डपंप चालू हैं। बाकी हैण्डपंप का पानी पीने लायक नहीं है घर लाने के बाद कुछ ही देर में पानी लाल हो जाता है। जंगलघाट के लोगों को पानी के लिये आधा किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। ग्रामीण टोली बनाकर खेत में स्थित कुएँ से पानी लाते हैं। जिम्मेदार अधिकारियों से शिकायत के बाद भी अब तक कोई पहल नहीं की है।
नदियाँ सूखने लगी

पानी के लिये लंबा सफर
जशपुर से 45 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम जरहापाठ में पहाड़ी पर बसे 41 परिवारों के करीब 200 लोग यहाँ निवास करते हैं। इनके बीच एक हैण्डपंप है। ग्रामीणोंं का कहना है कि सड़क और पेयजल की समस्या के निदान के लिये कई बार सरपंच से कहा गया लेकिन समाधान नहीं हुआ। एक हैण्डपंप है, बिगड़ने की स्थिति में पहाड़ी से नीचे उतरकर दो किलोमीटर चलने के बाद पानी मिलता है। जाहिर सी बात है कि जहाँ आबादी है वहाँ अब भी पीने के पानी की समस्या बनी हुई है। कबीरधाम जिला जोकि मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह का गृह जिला है। यहाँ पंडरिया ब्लॉक में बांसाटोला गाँव है। यहाँ पहाड़ से एक किलोमीटर नीचे चट्टानों से पानी रिसकर कोसों दूर पेड़ की जड़ों में जमा होता है। यहाँ बैगा महिलाएँ रोज जान जोखिम में डालकर दो वक्त का पानी जुटाती हैं। वह भी प्रदूषित। बैगा बाहुल गाँवों में पानी की स्थिति भयावह है। समस्या के निराकरण के लिये लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने 12.45 करोड़ रुपये का प्रस्ताव बनाया है। इसे सरकार को भेजा गया है। लेकिन अभी तक बजट नहीं मिला है।

पानी पीता भ्रष्टाचार
दरअसल नदियों का पानी उद्योग घराने साल दर साल पीते जा रहे हैं। इन पर करोड़ो रुपए जल कर बकाया है। सिंचाई विभाग के अनुसार आधा दर्जन उद्योग 6 मिलियन घन मीटर पानी एनीकट से लेते हैं। उन्हें हर साल जल कर भुगतान के लिये तीन महीने का अतिरिक्त समय दिया जाता है। कार्यपालन अभियंता जलसंभाग ए.के.श्रीवास्तव कहते हैं कि जनवरी और मार्च में जल कर नहीं देने वाले उद्योगों को नोटिस दिया गया था। 1 करोड़ 24 लाख 37 हजार रुपये जमा किया गया है। जबकि 22 करोड़ 15 लाख 83 हजार रुपये अभी बकाया है। मेसर्स जायसवाल निको लि. पर 59.44 लाख, मेसर्स मोनेट इस्पात एंड एनर्जी लि. पर 8 करोड़ 45 लाख, सी.एस.आई.डी.सी. पर 8 करोड़ 61 लाख, एस के एस इस्पात एंड पावर लि. पर 8 करोड़ 72 लाख, मेसर्स सारडा एनर्जी एंड मिनरल लि. पर 1 करोड़ 8 लाख बकाया है।

धरती के पेट में पानी नहीं
भूजल का दोहन जरूरत से अधिक होने की वजह से जल संकट की स्थिति निर्मित तो हुई है साथ ही धरती में पानी कम होने की वजह से कई स्थानों का पानी पीने योग्य नहीं है। केन्द्रीय भूजल बोर्ड के मुताबिक बारिश का 70 फीसदी से अधिक भूजल नहीं निकलना चाहिए। लेकिन प्रदेश के कई ब्लॉकों में इसका पालन नहीं हो रहा है। सर्वे में 70 से 90 फीसदी तक अर्थ संकट और 90 से 100 फीसदी को संकटपूर्ण और 100 फीसदी से भी अधिक पानी लेने वाले ब्लॉक को पानी की अधिक खपत करने वाला माना गया है। प्रदेश में लगभग 1200 मि.मी बारिश होती है। इसमें 10 से 20 फीसदी ही पानी जमीन में जाता है। जमीन के पेट में पानी कम जाता है, लेकिन निकाला अधिक जा रहा है। गुरूर में 102 फीसदी भूगर्भ से पानी निकाला जा रहा है। बोर्ड ने संकटपूर्ण स्थिति में रखा है। इसी तरह रायपुर जिले का धरसींवा और फिंगेश्वर में स्थिति चिंताजनक है। यहाँ पर भूगर्भ से 70 फीसदी से अधिक पानी निकाला जा रहा है। धरसींवा में 71.03 और फिंगेश्वर में 70.07 फीसदी पानी निकाला जा रहा है। केन्द्रीय भूजल बोर्ड ने इसे अर्ध संकट की स्थिति में रखा है। भूजल वैज्ञानिकों के मुताबिक 60 फीसदी से अधिक भूजल का दोहन नहीं किया जाना चाहिये। प्रदेश में 781 कुएँ हैं। जिनमें अाधे से अधिक सूख गए हैं।
तालाब सूख गए
