नदी सामान्यतः दो शब्दों से न+ दी से मिलकर बना जिसका अर्थ सदा नीर देने वाली होता है अर्थात नदी हमेशा पानी देने वाली होती, ये हमेशा ऊंचे से नीचे, पर्वत से मैदान, झील से समुद्र की ओर वर्षा जल या बर्फ के पानी का बहता हुआ स्रोत है। नदी को समझने के लिए स्वाभाविक विभिन्न प्रकार के प्रश्न उत्पन्न होना तय हो जाता नदी क्या ? नदी से लाभ ? नदी का जीवन में क्या योगदान ? आदि अनेक प्रश्न ही नहीं विचार भी उत्पन्न होते जिसके लिए इसकी प्रकृति व प्रवृत्ति को जब तक नहीं समझ जाएं समझ पाना बड़ा मुश्किल होगा।
नदी का वर्गीकरण जल प्रवाह, वर्षा की मात्रा, वनस्पति, भौगोलिक संरचना, क्षेत्र वहां के पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर करता, ऐ सभी नदी की बहाली को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं। नदी को जैसा कृष्ण गोपाल व्यास द्वारा लिखित पुस्तक " ताकि नदियां बहती रहे", मैं परिभाषित किए की "प्रकृति द्वारा निर्मिति एवं अपने पथ पर लगातार बहते पानी की धारा ही नदी है"। इससे नदी को समझना बहुत सरल होगा।
नदी जैसे मानव शरीर विभिन्न अंगों से मिलकर बना उसी प्रकार से नदी विभिन्न छोटी छोटी नालियों के आपस में जुड़ने से बनी प्राकृतिक संरचनाओं में से एक है। बहुत सी छोटी नदियां मिल कर एक बड़ी महानदी का निर्माण करतीं,भारत में लगभग दो सौ नदियों है जिनमें गंगा प्रवाह सबसे बड़ा व सिंधु नदी लम्बाई में सबसे बड़ी है वहीं लगभग ग्यारह सो ऐसी नदी है जो दस से पच्चास किलोमीटर दूर तक जाकर लुप्त हो जाती हैं या अपनी सहायक नदी का हिस्सा बन जाती, इनमें अनेकों नदीया अपना नाम भी नहीं रख पाती। लेकिन नदी का बड़ा या छोटा होना महत्व नहीं रखता, नदी का मानव जीवन में योगदान, उपयोगिता, जैवविविधता, पर्यावरण संरक्षण में सहयोग उससे ज्यादा महत्व रखता । नदी की अपनी महत्त्वाकांक्षाओं से क्षेत्र विशेष के लोगों, वन्यजीव, जलीय जीव, के विकास में योगदान से लगाया जा सकता है।
नदी को परिभाषित होने के बाद नदी की आवश्यकता को समझना बहुत आवश्यक , भूगर्भिक जल के संतुलन बनाने, संरक्षण में नदियों की अहम भूमिका होती है, नदी अपने प्रवाह क्षेत्र में वर्षा जल को उसके ढाल के साथ बहाव क्षेत्र में बहा कर ले जाने के साथ भुजल संरक्षण का कार्य करती, और यह कार्य तब तक करती रहतीं हैं जब तक भुगर्भिक जल का दोहन बड नहीं जाएं व नदी के पेटे में पानी ऊपरी हिस्से से एक्विफरों से डिस्चार्ज होकर मिलना बन्द नहीं हो।
वर्षा काल में पानी के साथ बहती हुई नदी के पानी की कुछ मात्रा धरती के नीचे मौजूदा एक्विफरों में जमा होता है यही भूजल पुनर्भरण है। नदी जल भूजल भंडारों का निर्माण करता है, भूजल पुनर्भरण के प्रभाव से भूजल स्तर ऊपर उठता , नदी में पानी जब तक बहता रहता तब तक भूजल भरण की प्रक्रिया सुचारू रूप से चलती रहतीं तथा वर्षा बंद होने के बाद एक्विफरों में जमा पानी स्थिर नहीं होता वह ऊंचे स्थानों से नीचे स्थानों की ओर बहता रहता है, भूजल का ऊपरी स्तर नदी तल के ऊपर रहता तब तक वह नदी में डिस्चार्ज होता उसके नदी में डिस्चार्ज होने तक नदी अविरल बहती रहती है, यह ईश्वरीय (प्राकृतिक, कुदरती) देन है।
धरती की कोख का पानी नदी तल पर दिखाई देने तक ही नदी अविरल रहती है उसका पानी स्वच्छता निरापद रहता उसके स्वच्छ रहने की क्षमता बनी रहती, जलीय जीव सुरक्षित रहते, फलते फूलते अपना दायित्व निभाते तभी जैवविविधता से परिपूर्ण रहती, वही जलीय जीव वनस्पति को बढ़ावा देने के साथ ही पर्यावरण संरक्षण का कार्य करती, प्राकृतिक आपदाओं से बचाने में सहायक सिद्ध होती हैं।
नदी प्राकृतिक संतुलन जैवविविधता, पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता ,भूगर्भिक भंडारों के रिचार्ज के लिए आवश्यक है उसी प्रकार से नदी की स्वच्छता, बहाव क्षेत्र में उत्पन्न बाधाएं जो नदी को स्वतंत्र बहने से रोकने का कार्य कर रही, उन्हें दूर करना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना नदी की जैव विविधता को बनाए रखना महत्वपूर्ण । मानव समाज, सरकार, सामाजिक संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं को वर्तमान परिवेश में यह समझने की आवश्यकता है कि नदी की प्रकृति, उसके स्वभाव, उसकी प्रवृत्ति, प्राकृतिक क्षेत्र को समझते हुए उसके साथ कार्य करना होगा। तब ही नदियां स्वच्छ सुंदर वह जैव विविधता से परिपूर्ण होने के साथ ही हमारे लिए उपयोगी सिद्ध हो सकेंगे।