निवेश सन्धियों से बढ़ते जोखिम

Submitted by Shivendra on Sun, 01/18/2015 - 12:12
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सप्रेस/थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क, जनवरी 2015
नागरिकों के विकास के लिए मानव अधिकार नीतियों एवं पर्यावरण संरक्षण के मसले पर सरकारों के विरुद्ध कॉरपोरेट जगत की कानूनी मार पहले ही झेल चुके हैं। कचरे ने आज वैश्विक समस्या का रूप ले लिया है। उद्योग,कृषि, शहर व गाँव सभी इसमें भरपूर योगदान दे रहे हैं। आवश्यकता इस बात की है कि इसके निपटान पर नारेबाजी और स्वप्रसिद्धि की कामना से परे जाकर विचार किया जाए। जर्मनी एवं यूरोप के बाकी देशों ने अमेरिका के साथ ट्रांस अटलांटिक व्यापार एवं निवेश भागीदारी (टी टी आई पी) के अन्तर्गत बड़े पैमाने पर व्यापार एवं निवेश समझौतों पर बातचीत के दौरान इस पर हस्ताक्षर करने पर यह कहते हुए सवाल उठाए हैं कि उनकी सरकारें किन आधारों पर निजी निवेशकों को यह अनुमति दे दें जिससे कि नए नियमन के तहत् उन्हें अपनी आर्थिक समृद्धता को प्रोत्साहित करने के लिए सम्बन्धित सरकारों पर मुकदमा दायर करने की अनुमति मिल जाए। वैसे उभरते हुए बाजारों एवं विकासशील देशों के लिए यह समाचार पुराना हो चुका है क्योंकि वे अपने नागरिकों के विकास के लिए मानव अधिकार नीतियों एवं पर्यावरण संरक्षण के मसले पर अपनी सरकारों के विरुद्ध कॉरपोरेट जगत की कानूनी मार पहले ही झेल चुके हैं। एक ओर यूरोप इसमें निहित कमियों के चलते अमेरिका के साथ इस सौदे की लागत एवं लाभों पर विचार कर रहा है तो दूसरी ओर इस दिशा में पहल करने वाले दक्षिण अफ्रीका एवं इक्वाडोर जैसे देश इस मामले में सन्तुलित रहने का पाठ पढ़ा रहे हैं।

दक्षिण अफ्रीका और इक्वाडोर दोनों में पूर्व में अति दक्षिणपंथी सरकारें रहीं हैं जो कि विदेश केन्द्रित कुलीनतन्त्र के पक्ष में थीं। इस शताब्दी की शुरुआत में दोनों ही देशों में इन सरकारों का तख्तापलट हो गया और ऐसी सरकारों की स्थापना हो गई जो कि विगत् में व्याप्त असमानताओं को दूर करने के साथ अपने-अपने देश को व्यापक आधार केन्द्रित समानतावादी समृद्धि की ओर ले जाने को तत्पर थीं। लेकिन इनके साथियों को अब इस बात की चिन्ता सता रही है कि दक्षिण अफ्रीका और इक्वाडोर में नई सरकारों के पदग्रहण कर लेने के पश्चात् कहीं ये सरकारें विश्व के निवेशकर्ताओं यानि ‘दक्षिणपंथियों’ को यह संकेत न भेज दें कि उनके लिए व्यापार के द्वार खुले हैं। इससे नाव के मझधार में डूबने का खतरा बढ़ जाएगा।

दोनों देशों के समक्ष रहस्योद्घाटन हुआ है कि उन्होने ऐसी सन्धियों पर हस्ताक्षर कर रखे हैं जिनके अन्तर्गत इस बात की अनुमति मिली हुई है कि उन्हें गुप्त ट्रिब्यूनलों के समक्ष जवाबदेह ठहराया जा सकता है और इसके परिणामस्वरूप जिस समाज को वे उसका न्यायोचित हक दिलवाना चाहते हैं उसकी नींव ही दरक जाएगी। पिछले कुछ दशकों के दौरान यदि विकासशील देशों ने अमेरिका या किसी यूरोपीय देश के साथ सन्धि पर हस्ताक्षर किए हैं तो वह अत्यधिक सूक्ष्म निरीक्षण में है।

दूसरी ओर यदि यह देश महज विश्व व्यापार संगठन के सदस्य हैं, तो वहाँ पर केवल एक राष्ट्र ही दूसरे राष्ट्र के खिलाफ मामला दायर कर सकता है। परन्तु विकासशील देशों के साथ अक्सर ऐसे समझौते नहीं होते और निजी कम्पनियों को सीधे सरकार पर मुकदमा दायर करने की अनुमति होती है।

दक्षिण अफ्रीका में विदेशी निवेशकों को आकर्षक खनिज क्षेत्र को लेकर सरकार के विरुद्ध मुकदमा चलाने के लिए अधिक समानता वाली धारा में कुछ कमियाँ पकड़ में आई। दक्षिण अफ्रीका में अब आवश्यक है कि ऐसी कम्पनियों का आंशिक स्वामित्व ‘‘ऐतिहासिक रूप से लाभ से वंचित व्यक्तियों’’ के पास हो। इक्वाडोर में विदेशी निवेशकों ने उन नए पर्यावरणीय नियमों के आधार पर देश पर हमला बोला जिसके अन्तर्गत विदेशी फर्मों को अपने कार्य ठीक से करने के लिए बाध्य किया गया था। यह नियम है कि उन स्थानीय एवं देश समुदायों के साथ मिलकर कार्य करना जिनका लम्बे समय से शोषण किया जा रहा था।

विदेशी फर्माें द्वारा अश्वेतों के सशक्तिकरण सम्बन्धित कानून पर हमला किए जाने के पश्चात्, दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने एक प्रक्रिया प्रारम्भ की है। इसके अन्तर्गत सभी भागीदार प्रत्येक द्विपक्षीय निवेश सन्धियों की समीक्षा करेंगे।

सरकार का यह निष्कर्ष था कि ये सन्धियाँ उस नएसंविधान के तारतम्य में नहीं हैं जिसका कि लक्ष्य है मानव अधिकारों की पुर्नस्थापना एवं दक्षिण अफ्रीकी नागरिकों के लिए रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी करना। समीक्षा में पाया गया कि द्विपक्षीय निवेश नीतियाँ संवैधानिक रूपान्तरण के एजेण्डे को लागू करने की राह में सरकार की क्षमता के सामने जोखिम एवं सीमाएँ प्रस्तुत कर रही हैं।

समीक्षा के पश्चात् दक्षिण अफ्रीका की सरकार इस निष्कर्ष पर पहुँची कि द्विपक्षीय निवेश नीतियाँ अब बेकार हो चुकी हैं और जनहित में नीतियाँ बनाने की दिशा में जोखिम बढ़ाती जा रही हैं। इस आधार पर सरकार ने हाल ही में अनेक द्विपक्षीय निवेश नीतियों को रद्द करने की दिशा में कदम उठाया है। दक्षिण अफ्रीका अभी भी विदेशी पूँजी के जाल में फँसा हुआ है। वह अत्यन्त सावधानीपूर्वक इन सन्धियों से अपने को अलग करते हुए पुनः नए समझौते के लिए भी तैयार है। इसी तरह ऑक्सीडेंटल पेट्रोलियम कॉरपोशन ने गुप्त ट्रिब्युनल के अन्तर्गत इक्वाडोर पर हमला करने के साथ-ही-साथ तेल के कुओं से भी स्वयं को अलग करना शुरू कर दिया है। ऑक्सीडेंटल एवं अन्य कम्पनियाँ इक्वाडोर के नए संविधान से टकराहट पर हैं जिसके अन्तर्गत वह अतीत की असमानताओं को दूर करना चाहता है एवं अपने देश निवासियों के साथ बेहतर व्यवहार करते हुए अपनी समृद्ध परिस्थितिकी का संरक्षण करना चाहता है।

यह दोनों ही देश अत्यन्त सुद्धढ़ नैतिक एवं आर्थिक आधार पर खड़े हैं। दोनों ही देशों में ऐसी सत्ता रही है जिसने कटु अतियों एवं अन्यायमूलक असमानता के बल पर शासन किया था। दूसरा यह कि इन व्यापार एवं निवेश नीतियों ने वह लाभ नहीं पहुँचाए जिनका कि उन्होंने वायदा किया था। इस तरह की सन्धियाँ दावा करती हैं कि इनके माध्यम से अधिक मात्रा में विदेशी निवेश आएगा और आर्थिक विकास में तेजी आएगी। जबकि अधिकांश आर्थिक विश्लेषकों का मत है कि इस तरह की सन्धियों से वैसे तो विदेशी निवेश आता ही नहीं है और यदि आता भी है तो यह आवश्यक नहीं है कि आर्थिक वृद्धि से तालमेल बैठा पाए। ब्राजील एक ऐसा देश है जिसने इन सन्धियों पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया है लेेकिन इसके बावजूद वहाँ विकासशील देशों में दूसरा सर्वाधिक विदेशी निवेश हुआ है।

संयुक्त राष्ट्र की व्यापार एवं विकास सम्मेलन की नवीनतम रिपोर्ट ने यह स्थापित कर दिया है कि निवेश सन्धियाँ विदेशी निवेश आकर्षित करने में बहुत मददगार साबित नहीं हुई हैं। इसके अतिरिक्त पीटरसन इंस्टिट्यूट फॉर इंटरनेशनल लईकॉनामिक्स के नए शोध में यह सुनिश्चित किया है कि यदि विदेशी निवेश किसी देश में आया भी हो तो यह आवश्यक नहीं कि वह आर्थिक वृद्धि में सहायक होेगा। वस्तु स्थिति यह है कि अनेक मामलों मे विदेशी फर्मों ने ऐसे व्यापार में धन लगाया जिससे स्थानीय लोगों का रोजगार छिन गया और उसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा। दक्षिण अफ्रीका और इक्वाडोर दोनों के द्वारा इन नीतियों का पुर्नमुल्यांकन किए जाने के बावजूद उनकी स्थिति मजबूत बनी रही हैं ठीक ऐसा ही जर्मनी एवं अन्य यूरोपीय देशों के साथ भी होगा। हाल के वर्षों में इक्वाडोर की ‘क्रेडिट रेटिंग’ में जबरदस्त सुधार हुआ है।

वैश्विक आर्थिक प्रशासन और वैश्विक पूँजी बाजारों ने भी यह महसूस करना शुरू कर दिया है कि राष्ट्रीय सरकारों के ऊपर निजी पूँजी को वरीयता देने से लाभ के बजाय राजनीतिक व आर्थिक संकट अधिक पैदा होंगे। जर्मनी और यूरोप के उसके जोड़ीदार देशों को चाहिए कि इस दिशा में पहल करें और यह सुनिश्चित कराएँ कि टी टी आई पी केवल बाजार पूँजीवांद एवं और अपने नागरिकों के कल्याण की दिशा में ही कार्य करे।