सारांश
किसी भी आपराधिक घटना का वैज्ञानिक विधि व तकनीक द्वारा किया गया विश्लेषण विधि विज्ञान या न्यायालयिक विज्ञान के अन्तर्गत आता है। यह अध्ययन घटनास्थल से प्राप्त अनेक साक्ष्यों पर आधारित होता है। वानस्पतिक साक्ष्यों में शैवाल, डायटम, कवक, स्पोर, परागकण आदि सूक्ष्म साक्ष्य तथा कांटेदार फल, बीज, लकड़ी, रूई व रेशे आदि दृष्ट साक्ष्यों की श्रेणी में आते हैं, पहले घटना स्थल पर उपस्थित इन पादप साक्ष्यों को नजर अन्दाज कर दिया जाता था, परन्तु अनेक मामलों में न्यायालय ने इन साक्ष्यों के महत्व को स्वीकारा है, और अब यह मान्यता प्राप्त साक्ष्य हैं।
Abstract
Scientific studies or investigations of crime can be termed as Forensic science. Forensic biologists play an important role in examining biological exhibits oriented with crime. For long times the botanical evidences at crime sites were ignored but now court considered them as an important evidence. These plant evidence includes microscopic plants like algae, Diatoms, Fungal spores and pollen grain and macrocopic plant parts such as hooked fruits, seeds, wood, fibers etc. There are so many cases where court considered the evidences ofplant parts which decides the judgement of the case and accused was punished.
आज जैसे-जैसे विज्ञान व भौतिक संसाधन विकसित होते जा रहे हैं, वैसे-वैसे हमारा सामाजिक विन्यास बदलता जा रहा है। भौतिकरूप से सम्पन्न इस समाज में नये-नये तरीकों व तकनीक का उपयोग आपराधिक कृत्यों में भी बढ़ता जा रहा है।
किसी भी आपराधिक घटना को सुलझाने व अपराधियों को दण्ड दिलाने में पुलिस विभाग के साथ-साथ न्यायालिक विज्ञान या विधि विज्ञान (फोरेसिंक विज्ञान) के विशेषज्ञ भी शामिल होते हैं। यह विशेषज्ञ घटना को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जाँचकर घटनाक्रम में प्रयोग की गयी वस्तुओं व तकनीक का विश्लेषण कर अपराधियों की पहचान करते हैं। न्यायिक प्रक्रिया में इन विशेषज्ञों के महत्व को दृष्टिगत रखते हुए अब देश के अनेकानेकविश्वविद्यालयों में स्नातक, स्नातकोत्तर व शोधस्तर पर फोरेंसिक विज्ञान का अध्ययन आरम्भ हो चुका है। इस समय देश में विधि विज्ञान की 5 केन्द्रीय व अनेकानेक राज्यस्तरीय प्रयोगशालाएं स्थापित की जा चुकी हैं। इन प्रयोगशालाओं में विज्ञान की 8 शाखाओं के विशेषज्ञों की नियुक्ति की जाती है, यह विषय है भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीवविज्ञान, सीरोलाॅजी, बैलेस्टिक विज्ञान, विष विज्ञान, चित्रांकन विज्ञान व आवश्यक पत्र जात संरक्षण विज्ञान।
इस आलेख में हम किसी भी आपराधिक स्थल से प्राप्त होने वाले पादप साक्ष्यों के अध्ययन की बात करेंगे कि किस प्रकार अनेक उलझे हुए घटनाक्रम को पादप विज्ञानियों ने सुलझाया व अपराधियों को सजा दिलायी गयी। यह पादप वैज्ञानिक, न्यायायिक जीव विज्ञानी(फोरेंसिक बायोलोजिस्ट) कहलाते हैं, जिनका कार्य घटना स्थल से प्राप्त पशु, पक्षी, मानव या पादप साक्ष्यों या उनके अवयवों का विश्लेषण करना होता है, विधि विज्ञान के साक्ष्यों में पादप साक्ष्यों को काफी लम्बे समय तक महत्व नहीं दिया गया, क्योंकि इस क्षेत्र में कार्य करने वाले वैज्ञानिक अधिकतर जन्तुविज्ञान से सम्बन्धित होते थे, परन्तु पादप वैज्ञानिक की विधि विज्ञान प्रयोगशालाओं में बढ़ती उपस्थिति व बढ़ती तकनीक दक्षता ने पादप साक्ष्यों के महत्व को स्वीकार किया है। वर्ष 2003 की विधि विज्ञान की हैण्ड बुक में घटना स्थल से प्राप्त पादप साक्ष्यों यथा-परागकण, स्पोर, लकड़ी, रेशे, रूई, बीज, फल, शैवाल, घटना स्थल के आसपास की वनस्पतियों को महत्वपूर्ण साक्ष्य के रूप में सम्मिलित किया है, तथा न्यायालय द्वारा इनको साक्ष्य रूप में मान्यता दी गयी है।
वानस्पतिक साक्ष्यों के प्रकार, आकार-प्रकार के आधार पर इनको 2 वर्गों में बांटा गया है।
1. अदृष्ट साक्ष्य (माइक्रोस्कोपिक साक्ष्य) - यह आकार में अति सूक्ष्म होते हैं तथा इनको देखने के लिये सूक्ष्मदर्शी की आवश्यकता होती है जैसे- शैवाल, कवक, स्पोर, परागकण इत्यादि। किसी भी घटना स्थल से प्राप्त यह साक्ष्य अपराधी के बारे में या संदिग्ध व्यक्ति के वस्त्रों, बालों इत्यादि से प्राप्त होने पर घटना स्थल के विषय में अतिआवश्यक संकेत प्रदान करते हैं।
2. दृष्ट साक्ष्य (मैक्रोस्कोपिक साक्ष्य)- यह बड़े आकार के होते हैं जिनको बिना किसी आवर्धन के नेत्रों द्वारा देखा जा सकता है जैसे- पत्ती, फल, बीज, लकड़ी, रूई या रेशे, कांटे इत्यादि।
अदृष्ट साक्ष्य
1. शैवाल- शैवाल (एल्गी) पानी में पाये जाने वाले अधिकतर हरे रंग के पौधे होते हैं, इनके लिये सामान्यतः ‘काई’ शब्द प्रचलित है। वनस्पति विज्ञान के दृष्टिकोण से इनके विशिष्ट गुण धर्मों यथा संरचना, प्रजनन व प्राप्ति स्थान के आधार पर इनकों 11 वर्गों में बांटा गया है। समुद्री पानी में अलग प्रजातियाँ मिलती हैं, इसी प्रकार बहते हुए मीठे पानी व रूके हुए मीठे पानी में अलग-अलग प्रजातियाँ पायी जाती हैं। प्रदूषित पानी में भी प्रदूषण की प्रकृति व मात्रा के अनुसार इनकी प्रजातियाँ मिलती है। इस प्रकार प्रत्येक प्राप्ति स्थान के गुणधर्मों यथा पानी, तापमान व भोज्य पदार्थों के अनुसार एक स्थान विशेष पर विशिष्ट प्रजातियाँ मिलती है। अतः स्पष्ट है कि किसी भी तालाब, नदी, पोखर, झील या समुद्र के स्थान विशेष का जलसंसार अति विशिष्ट होता है। विधि विज्ञान के दृष्टिकोण से यदि पानी के भीतर कोई शव मिलता है तो 2 संभावनाएं बनती हैं-
क. मृत्यु का कारण डूबना है- इस दशा में शव के पेट व फेफड़ों में भरे पानी का विशलेषण किया जाता है और यदि वहाँ के पानी व जलीय वातावरण के पानी में एक जैसी वनस्पतियाँ (शैवाल व डायएटस्) मिलती है तो मृत्यु पानी में डूबने से हुयी है।
ख. हत्या के उपरान्त शव को पानी में डाला गया- इस दशा में सांस बन्द होने के कारण पानी फेफड़ों व पेट में नहीं पहुँचता है अतः वहाँ वाह्य जल के सूक्ष्मजीवी नहीं पहुँच पाते हैं, जोकि स्पष्ट कारण बनता है कि मृत्यु के बाद शव को पानी में फेंक दिया गया।
2. कवक- कवक भी सूक्ष्म क्लोरोफिल रहित पौधे होते है जो कि हर प्रकार के वातावरण में उग सकते हैं परन्तु कुछ कवक विशिष्ट वातावरण में उगते हैं। कभी-2 किसी आपराधिक घटना से गुमराह करने के लिए शव को घटना स्थल से बहुत दूर फेंक दिया जाता है, इस स्थिति में उस पर उगने वाले कवक व उनके स्पोर द्वारा घटना स्थल के बारे में संकेत मिलते हैं।
3. परागकण- परागकण पुष्प में पायी जाने वाली अतिसूक्ष्म गोलाकार या अण्डाकार रचनाएं होती हैं जोकि बहुत अधिक संख्या में उत्पन्न होती है। प्रत्येक जाति के पौधे का परागकण आकार एवं वाह्यभित्ति संरचना में दूसरी प्रजाति से एकदम अलग होता है। बाह्यभित्ति अत्यन्त कठोर व एक विशिष्ट पैटर्न की होती है, जिससे जाति विशेष की पहचान की जा सकती है। कठोर बाह्यभित्ति के कारण परागकण कुछ वर्षों से लेकर हजारों वर्षों तक सुरक्षित रह सकते है। अपने अतिसूक्ष्म आकार के कारण यह हवा में भी उपस्थित रहते हैं, व किसी का ध्यान इनकी ओर नहीं जाता है तथा यह घटना के मूक गवाह के रूप में उपस्थित रहते हैं व घटना के मौसम व भौगोलिक स्थिति के विषय में भी जानकारी देते हैं। जैसे- अपराध स्थल व संदिग्ध के वस्त्रों से प्राप्त आरटीमीसिया अरबोरिसेन्स के परागकणों के आधार पर न्यूजीलैण्ड में हुए रेप केस में अपराधी को 8 वर्षों की सजा दी गयी (मिडेन हाॅल, 1996)
दृष्ट साक्ष्य
1. फल- अनेक पादप प्रजातियों के फल का बाह्य आवरण काँटे या हुक जैसी संरचनाओं से घिरा होता है, जैसे गोखर, लटजीरा, रिसिनस इत्यादि। यह संरचनाएं इन फलों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्रकीर्णन में मदद करती हैं, परन्तु आपराधिक घटनाओं में यह संदिग्ध के बालों, कपड़ों में फंसकर एक साक्ष्य का कार्य करती है। जैसे (स्टेट आॅफ ओहियो वर्सेज केविन नील, 2000) ओहियो में 1997 में 2 बच्चों के गुम होने की सूचना उनके सौतेले पिता ने दर्ज करायी, कुछ समय बाद दोनों बच्चों के शव एक स्थानीय कब्रिस्तान के बाहर दफन मिले। वहाँ पर जीयम कैनोडेन्स(रोजेसी) व गैलियम अपराइन (रूबिएसी) के पेड़ लगे थे इनके बीज व फल में रोयेदार रचनाएं पायी जाती है। पिता को संदिग्ध मानकर घर की तालाशी में बरामद उसके कपड़ों में यह फल व बीज लगे पाये गये। कपड़ों को न्यायालय में प्रस्तुत किया गया और पिता ने अपराध कबूल किया।
2. बीज- घटनास्थल से प्राप्त काँटेदार बीज के अलावा भोजन के रूप में ग्रहण किये गये बीज भी घटना को सुलझाते हैं। प्रत्येक प्रजाति के बीज का वाह्य आवरण अनूठा व दूसरों से अलग होता है जिससे उसके पौधे को पहचाना जा सकता है। फैबेसी, सोलोनेसी व ब्रेसीकेसी कुल के बीज आहारनाल के रसायनों से अप्रभावित रहते है। यह बीज व्यक्ति के अन्तिम भोजन की जानकारी दे सकते हैं (बौक एवं अन्य, 1998)। सितम्बर 2001 में लन्दन की टेम्स नदी में एक बच्चे का सिरविहीन शव प्राप्त हुआ, आस-पास के किसी बच्चे के गुम होने की कोई सूचना नहीं थी। डी.एन.ए. परीक्षण में बच्चा पश्चिमी अफ्रीका का पता लगा, आहार परीक्षण में एलडर पौधे के परागकण, मिट्टी की गोलियाँ जिनपर सोना चढ़ा था तथा एक विषैली सेम जो कि पश्चिमी अफ्रीका में पायी जाती थी के बीज मिले, इससे सिद्ध हुआ कि बच्चे को विष देने के बाद मानव बलि के लिये इस्तेमाल किया गया व शव को लन्दन में फेंका गया। इस केस में किसी को नही पकड़ा गया, परन्तु इन सूत्रों को इस्तेमाल कर मानव तस्करी से जुड़े 21 लोगों को बाद में गिरफ्तार किया गया। (द गार्डियन 2004, विचक्राफ्ट्स मर्डर, 13 फरवरी 2005, नेशनल जियोग्राफिक चैनल)
3. लकड़ी- कभी-कभी अपराध स्थल से लकड़ी के टुकड़े या डालें बरामद होते हैं। प्रत्येक वृक्ष की लकड़ी की संरचना विशिष्ट होती है अतः विशेषज्ञ उस लकड़ी के पेड़ की जानकारी कर सकता है तथा उस पेड़ की भौगोलिक स्थिति ज्ञात कर अपराधी तक पहुंचा जा सकता है। (चार्लिक लिंडबर्घिसन-लैडर वुडेन किडनैप केस, 1997)
4. रेशे/रस्सी- रस्सी या डोरी जिन रेशों से बनती है वे पौधे के तने या पत्तों से प्राप्त होते हैं हर पौधे में रेशे बनाने वाले ऊतक आकार व रासायनिक संरचना में एकदम अलग होते हैं। अतः घटनास्थल से प्राप्त इस साक्ष्य के द्वारा भी अपराधी की स्थिति को पहचाना जा सकता है।
5. आणविक साक्ष्य- वनस्पति साक्ष्यों में आणविक साक्ष्य एक उभरता हुआ क्षेत्र है, जैसे मानव की डी.एन.ए. फिंगरप्रिंटिंग द्वारा बहुत सारे केस सुलझाए गये हैं वैसे ही पौधों की डी.एन.ए. फिंगरप्रिंटिंग द्वारा घटनाओं से सुलझाने की दिशा में कार्य किया गया व न्यायालय ने इसे मान्यता दी है जैसे (स्टेट आॅफ एरिजोना वर्सेज बोगान) एक युवा महिला की हत्या कर शव को रेगिस्तान में दफना दिया गया। घटनास्थल पर एक पेजर पाया गया जिसके मालिक को संदिग्ध माना गया। परन्तु उसके बताया कि उसने उस महिला को कुछ देर के लिये अपनी गाड़ी में लिफ्ट दी थी व उसने उस व्यक्ति का पेजर व वालेट चुरा लिया था। इस घटना की जाँचकर्ता टीम के एक सदस्य चार्ल्स वारटन ने घटना स्थल पर एक पारकिनसोनिया माइक्रोफिला का वृक्ष देखा जिसका तना छिला हुआ था। जो कि संभवतः किसी वाहन के टकराने से हुआ था। उन्होंने उस वृक्ष में लगी फली को तोड़ लिया और बांगान की ट्रक कर निरीक्षण किया, उसके ट्रक में भी उसी प्रकार की फली व फूल पाये गये, उन्होंने एरिजोना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर टिम हेलन टेजारिस से दोनों फलियों का डी.एन.ए. परीक्षण करवाया, जो कि एक समान निकला। अतः बोगान को अपराधी माना गया।
इस घटना से उत्साहित होकर आस्ट्रेलिया के केनबरा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के पादप डी.एन.ए. शोध द्वारा घासों के डी.एन.ए. का एक प्रोटोटाइप तंत्र विकसित किया है जिसे आणविक वर्गीकरण कुँजी कहा गया है (वार्ड एवं अन्य, 2005)। पृथ्वी पर घास, हर ओर मिलती है अतः किसी भी अपराधिक घटना में मौजूद घास का आणविक साक्ष्य एक महत्त्वपूर्ण सूत्र होगा।
निष्कर्ष
इन तथ्यों के महत्व को देखते हुए आवश्यकता है कि किसी भी अपराध स्थल पर उपलब्ध छोटे से छोटे वानस्पतिक साक्ष्य की अनदेखी न की जाए। उसके संग्रह एवं संरक्षण की और उन्नत विधियाँ विकसित की जाएं तथा अधिक से अधिक वनस्पति वैज्ञानिकों को प्रशिक्षित किया जाए व विधि विज्ञान प्रयोगशालाओं में इनकी संख्या को बढ़ाया जाए।
संदर्भ
1. ग्राहम,एस.(1997) एनाटमी आॅफ दि लिंडबर्ग किडनैपिंग, जर्नल आॅफ फोरेंसिक साइन्स, खण्ड 42, मु. पृ. 368-377।
2. द गार्जियन (27 जुलाई 2004) जेल फार टोरसो केस पीपुल स्मगलर, यूनाइटेड किंगडम।
3. बोक, जे. एच.; लाने, एम. ए. एवं नोरिस, डी. ओ. (1988) आइडेंटीफाइड प्लान्ट फूड सेल्स इन गैस्ट्रिक कन्टेंट फार यूज इन फोरेंसिक इन्वेस्टीगेशन, अ लैबोरटरी मैनुअल, यू.एस.डिपार्टमेन्ट आफ जस्टिस, नेशनल इन्स्टीटयूट आफ जस्टिस रिसर्च रिपोर्ट।
4. मिडनहाॅल, डी. (1998) इट टैक्स जस्ट अ फ्यू स्पेक्स आफ डस्ट एण्ड यू आर काॅट, कनैडियन एसोसियेशन आफ प्लैनोलोस्टिस न्यूज लेटर, खण्ड 21, मु. पृ. 18-21।
5. वार्ड, जे. आर.; पीवाल, एस. आर. गिलमोर एवं राबर्टसन, जे. (2005) अ मोलिक्यूलर आइडेन्टिफिकेशन सिस्टम फार ग्रासेस, अ नोवल टेक्नोलाॅजी फार फोरेंसिक बांटनी, फोरेसिंग साइनस इण्टरनेशनल, खण्ड 152, मु. पृ. 121-131।
अर्चना राजन
एसोसिएट प्रोफेसर, वनस्पति विज्ञान विभाग, सन्त कवि बाबा बैजनाथ राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय,हरख, बाराबंकी (उ.प्र.)-225121, भारत
Archna Rajan
Associate Professor, Department of Botany Sant Kavi Baba Baijnath Govt. P. G. CollegeHarakh, Barabanki(U.P.)-225121, India