ऑड-इवन स्थायी और कारगर हल

Submitted by RuralWater on Fri, 01/29/2016 - 09:35
Source
राष्ट्रीय सहारा (हस्तक्षेप), 23 जनवरी, 2016

बढ़ते वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये राजधानी में 1-15 जनवरी तक ऑड-इवन (सम-विषम) कार्यक्रम को प्रायोगिक तौर पर लागू किया गया था। इस अवधि में वाहनों की आवाजाही को एक समय विशेष तक सीमित कर वायुमण्डल पर पड़ने वाले उसके गुणात्मक प्रभावों का अध्ययन किया जाना था। अभियान के उत्साहवर्धक परिणाम मिलने की स्थिति में केजरीवाल सरकार का मकसद वायु प्रदूषण से दिल्ली को मुक्त करने का कारगर तरीका के तरफ बढ़ने का था। हालांकि एक पखवाड़े के प्रयोग से प्रदूषण के स्तर में उल्लेखनीय फर्क नहीं पड़ा। अलबत्ता, जगह-जगह जाम की समस्या से निजात ज़रूर मिली। दिल्ली के लिये यह उपलब्धि भी कोई कम नहीं है। फिर भी इस पर विचार किया जाना जरूरी है कि इतनी कवायद और 20 करोड़ खर्च किये जाने के बावजूद दिल्ली की आबोहवा साफ क्यों नहीं हुई? उत्तर खोजे जा रहे हैं और वे मिल भी रहे हैं कि अकेले वाहनों का प्रदूषण बढ़ाने में योगदान कम है बनिस्बत अन्य कारकों के। और फिर हवा को जहरीली बनाने में निर्माण कार्य व औद्योगिकी इकाइयों का हाथ ज्यादा है। अब अगर प्रदूषण वाकई घटाना है तो इसके सभी कारकों पर एक साथ हमला बोलना होगा। खाँचों में बाँटकर की गई कार्रवाई से एक वर्ग खामख्वाह असुविधा झेलेगा और उससे कुछ हासिल भी नहीं होगा। लिहाजा, सभी पक्षों पर गौर कर अभियान चलाया गया तो निस्सन्देह हवा साँस लेने लायक बनाई जा सकेगी। इसके सुपरिणामों को देश के उन नगरों-महानगरों में नजीर के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकेगा। इसी पर प्रस्तुत है-ताज़ा हस्तक्षेप


किसी भी कारगर दीर्घकालिक समाधान को ऐसा होना चाहिए कि वह न तो लोगों को आवाजाही में असुविधा पैदा करता हो और न ही आर्थिक गतिविधि को बाधित करता हो। अगर हर कोई अपना आवागमन रोक दे तो तमाम समस्याएँ काफूर हो जाएँगी लेकिन इस सूरत में शहर आर्थिक रूप से मृत भी हो जाएगा। थोड़े समय के लिये ऐसा होने पर मामूली सुधार जरूर दिखलाई पड़ सकता है। लेकिन असल चुनौती यह है कि सुधार दोहराए जा सकने और टिकाऊ प्रकृति वाले हों ताकि विशेष प्रयास या कहें कि अलग से प्रयास करने की जरूरत ही न पड़े। दिल्ली में खासी चर्चित हुई सम-विषम आजमाइश समाप्त होने के पश्चात भी राजधानी में हवा की ताजगी और यातायात की स्थिति खतरनाक बनी हुई है। महसूस हो रहा है कि दिल्लीवासियों की दिनचर्या को बेहतर बनाने की गरज से दीर्घकालिक ठोस कदम उठाए जाने जरूरी हो गए हैं।

भविष्य के लिये वास्तविक समाधान करने के मद्देनज़र इस आजमाइश से उपयोग की जा सकने वाली सूचना एकत्रित करने के वास्ते जो आँकड़ा केन्द्र और प्रक्रिया इस्तेमाल किये जा रहे हैं, उससे वैज्ञानिक और तकनीकी जानकारों का चिन्तित होना अकारण नहीं है।

स्थिति को समझने के लिये वायु प्रदूषण की बाबत शुरुआती या कहें कि बुनियादी जानकारी की दरकार है। वायु प्रदूषण को सीओ और पीएम 2.5 सरीखे अनेक पैमानों से मापा जाता है। भारत ने एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) भी तैयार किया है, जिससे मोटामोटी जाना जा सके कि वायु किस कदर प्रदूषित है।

प्रदूषण फैलने के अनेक कारक हैं। इनमें यातायात, निर्माण कार्यों से छिटकी धूल, कृषि उप-उत्पादों को जलाया जाना, मौसम, ऊर्जा संयंत्रों और उद्योगों से उत्सर्जन वगैरह शामिल हैं। यहाँ तक कि प्रत्येक स्रोत के लिये मात्र कुछेक पैमाने ही दोषपूर्ण हैं। उनकी समुचित पहचान किया जाना आवश्यक है।

उदाहरण के लिये यातायात के मामले को ही लें। वाहन सर्वाधिक प्रदूषण या तो बेहद धीमी गति में चलते समय करते हैं, या बेहद तेज रफ्तारी में। इसलिये यातायात में तेजी लाने की गरज से ज्यादातर वाहनों को हटाए जाने की सूरत में प्रदूषण बढ़ेगा।

प्रदूषण के स्रोतों और प्रकृति को लेकर बहुत कम सार्वजनिक आँकड़े उपलब्ध हैं। इस स्थिति में नीति-निर्माता अन्दाज लगाते ही रह जाते हैं।

आजमाइश की सफलता और विफलता


अगर सम-विषम आजमाइश का उद्देश्य यातायात कम करने की गरज से था, तो यह सफल रहा। लेकिन अगर यह प्रदूषण की दृष्टि से था, तो निश्चित ही है असफल कहा जाएगा।

ज्यादातर सार्वजनिक आँकड़ा केन्द्रों से प्राप्त जानकारी से संकेत मिलते हैं कि सम-विषम आजमाइश का एक्यू स्तर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

आईआईटी, कानपुर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वायु प्रदूषण के प्रमुख कारकों में सड़क की धूल मिट्टी (56%), निर्माण क्षेत्र (14%), उद्योग (10%), वाहन (9%), कूड़े-कबाड़ जलाना और अन्य कारण (10%) शामिल हैं। वाहनों में ट्रक 46% वायु प्रदूषण का कारण बनते हैं। दोपहिया वाहन 33 तथा कारों से 10% प्रदूषण फैलता है। अगर दिल्ली में कारों से फैलने वाले वास्तविक प्रदूषण का आकलन करें तो पता चलता है कि यह आँकड़ा एक प्रतिशत ठहरता है।

ऑड-इवन छूट के मद्देनजर हर दिन करीब 60 प्रतिशत कारें सड़कों पर निकलीं। इस प्रकार एक्यू स्तर में करीब 0.4% सुधार की उम्मीद थी।

ऑड-इवन आजमाइश के पहले हफ्ते में पीएम 2.5 स्तर में 50% वृद्धि दर्ज की गई। उससे पूर्व सप्ताह के करीब 240 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर की तुलना में आजमाइश के प्रथम सप्ताह में यह करीब 360 माइक्रोग्राम के स्तर पर दर्ज किया गया।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटरोलॉजी से सफर-एयरएप, जो दिल्ली/एनसीआर के दस स्थानों पर ध्यान केन्द्रित करता है और समग्र एक्यूआई मुहैया कराता है, ने लगातार दर्शाया कि दिल्ली का एक्यू न केवल ‘बेहद खराब’ रहा, बल्कि ‘ज्यादा’ भी रहा।

दिल्ली में व्यक्तिगत वाहनों के बढ़ने का एक प्रमुख कारण सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था का पर्याप्त न होना है। हालांकि मेट्रो ने डीटीसी बसों की मदद की है, लेकिन मेट्रो की पहुँच सीमित है। मील भर की दूरी या टुकड़े भर की दूरी नहीं पट पाने के कारण मेट्रो 36,00,000 यात्रियों को ढो सकने की अपनी क्षमता से 4,00,000 कम यात्री ढो पा रही है।

दिल्ली में एक करोड़ सोलह लाख से ज्यादा लोग आबाद हैं, इसलिये जरूरी हो जाता है कि सार्वजनिक परिवहन का जाल परस्पर जुड़ा हो। विश्वसनीय होने के साथ ही मजबूत भी हो। मजबूत और सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन प्रणाली के बिना कोई भी शहर स्मार्ट बनने के मंसूबे को पूरा नहीं कर सकता।

किसी भी कारगर दीर्घकालिक समाधान को ऐसा होना चाहिए कि वह न तो लोगों को आवाजाही में असुविधा पैदा करता हो और न ही आर्थिक गतिविधि को बाधित करता हो। अगर हर कोई अपना आवागमन रोक दे तो तमाम समस्याएँ काफूर हो जाएँगी लेकिन इस सूरत में शहर आर्थिक रूप से मृत भी हो जाएगा।

थोड़े समय के लिये ऐसा होने पर मामूली सुधार जरूर दिखलाई पड़ सकता है। लेकिन असल चुनौती यह है कि सुधार दोहराए जा सकने और टिकाऊ प्रकृति वाले हों ताकि विशेष प्रयास या कहें कि अलग से प्रयास करने की जरूरत ही न पड़े।

इसलिये ऐसा नियम जिससे यातायात ही प्रतिबन्धित हो जाये, हमें ऐसे समाधान की दरकार है, जिससे बेहतर एक्यू का दीर्घकालिक बहुआयामी उद्देश्य पूरा होता हो।

हमारे पास हैं अनेक विकल्प


हम अनेक विकल्पों पर काम कर सकते हैं।

1. स्वच्छ ईंधन के उपयोग और हाईब्रिड तथा इलेक्ट्रिक कारों के इस्तेमाल को बढ़ावा दे सकते हैं।
2. कार-पूलिंग और विशेष जोन या लेन बनाने को तत्पर हो सकते हैं।
3. पदचालन और साइकिल पथ बना सकते हैं।
4. चौथा, निर्माण कार्य केवल सर्दियों के दिनों में करवाए जाने की अनुमति दें। निर्माण कार्य से जुड़े ठेकेदारों के लिये अनिवार्य बनाया जा सकता है कि वे निर्माण स्थलों को धूल-मुक्त रखें।
5. सड़कों की धूल को वैक्युम-क्लीनिंग तरीके से हटवाएँ।
6. सड़क के खुले और किनारों पर पेड़-पौधे लगाएँ।
7. कृषि छट को जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में किसानों को जागरूक करें।
8. दिल्ली से ट्रकों की आवाजाही को प्रतिबन्धित करें तथा नॉन-पीयूसी ट्रकों पर भारी जुर्माना लगाएँ।
9. आखिर विकल्प यह कि ऑड-इवन आजमाइश के नतीजों की विशेषज्ञों द्वारा समीक्षा कराएँ।

इस प्रकार की आजमाइश ज्यादा तकनीक-केन्द्रित होनी चाहिए। इसे लेकर ज्यादा हो-हल्ला न किया जाये।

जब कभी भी तकनीक आधारित मुद्दों, जैसे कि स्मार्ट सिटीज जैसे मुद्दे, पर राजनेता ध्यान देते हैं, तो तकनीक जानकार लोगों को चिन्ता होने लगती है। विज्ञान में सहेजने, मनोयोग से प्रयास करने और प्रक्रियात्मक मूल्यांकन की दरकार होती है। इसमें राजनीतिक हिसाब-किताब, भौतिक प्रोत्साहन और अहं को तवज्जो दिये जाने का कोई स्थान नहीं होता। ऑड-इवन आजमाइश ने प्रदूषण और श्वास सम्बन्धी स्वास्थ्य पर बेहद जरूरी चर्चा को केन्द्र में ला दिया है। लेकिन दिल्ली के निवासी अब कारगर तथा स्थायी समाधानों का शिद्दत से इन्तजार कर रहे हैं।

आईआईटी, कानपुर की एक रिपोर्ट कहती है..


1. वायु प्रदूषण के प्रमुख कारक हैं-सड़क की धूल-मिट्टी 56 फीसद, निर्माण क्षेत्र 14 फीसद, उद्योग 10 फीसद, वाहन 9 फीसद, कूड़े-कबाड़ जलाना और अन्य कारण 10 फीसद
2. वाहनों में ट्रक 46 फीसद वायु प्रदूषण का कारण बनते हैं। दोपहिया वाहन 33 तथा कारों से 10 फीसद प्रदूषण फैलता है।
3. इन आँकड़ों के आइने में दिल्ली में कारों से फैलने वाले वास्तविक प्रदूषण का एक फीसद है।
4. देश में पिछले 3 वर्षो में साँस की बीमारी के कारण 10 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई।
5. साल 2012 में 3.17 करोड़ लोगों में साँस सम्बन्धी गम्भीर बीमारी के केस सामने आये जिनमें से 4,155 लोगों की मौत हो गई। 2013 में 3.17 करोड़ मामले सामने आये थे जिनमें से 3,278 लोगों ने अपनी जान गँवाई जबकि 2014 में 3.48 करोड़ केस सामने आये जिनमें से 2,932 लोगों की मौत हो गई।
6. सेंट्रल पॉलूशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा जारी नेशनल एयर क्वॉलिटी इंडेक्स के मुताबिक देश के 17 में से 15 शहरों की हवा तय गुणवत्ता के मानक से काफी कम थी।
7. जुलाई से नवम्बर के दौरान जयपुर में हवा की गुणवत्ता तय मानक से 100 फीसद कम थी, दिल्ली में यह 93 फीसद, फरीदाबाद में 69 फीसद और पटना में 98 फीसद से कम थी।
8. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी 91 देशों के कुल 1600 शहरों में प्रदूषण को लेकर किये गए अपने सर्वेक्षण में दिल्ली, पटना, ग्वालियर, रायपुर, अहमदाबाद, लखनऊ, फिरोजाबाद, कानपुर, अमृतसर, लुधियाना, इलाहाबाद, आगरा, खन्ना कुल 13 भारतीय शहरों में शीर्ष 20 की सूची में रखा है।

1 से 15 जनवरी तक दिल्ली में वाहनों को लेकर सम-विषम का प्रयोग किया गया

पक्ष


1. सम-विषम फ़ॉर्मूला केवल वाहनों से पैदा हुए विषैले प्रदूषण पर क़ाबू पाने के लिये लागू किया गया था इस दौरान में 20 से 25 प्रतिशत प्रदूषण कम हुआ है।
2. पहले जहाँ 47 लाख लोग बसों से रोज सफ़र करते थे, वहीं इस अवधि में यह संख्या 52 लाख तक पहुँच गई
3. वाहनों से निकलने वाले पीएम 2.5 प्रदूषण में 25 प्रतिशत से अधिक की कमी दर्ज हुई

विपक्ष


1. धूल और गर्द से होने वाले प्रदूषण पीएम 10 में विशेष कमी दर्ज नहीं देखी गई
2. कुल प्रदूषण में वाहनों का योगदान 20 प्रतिशत है। इस 20 प्रतिशत में डीज़ल वाली गाड़ियों का योगदान 60 से 90 प्रतिशत है
3. दोपहिया को इस फॉर्मूले से बाहर रखा गया, जो सीधे तौर पर प्रदूषण पर असर डालते हैं

सुझाव


1. पेट्रोल और डीजल में मिलावट को खत्म करना चाहिए। प्रदूषण नियंत्रण केन्द्रों की संख्या बढ़ानी चाहिए
2. अच्छी सड़कें, फुटपाथों से अतिक्रमण, ट्रैफिक सिग्नल को बेहतर के अलावा साइकिल ट्रैक का निर्माण सम-विषम के बेहतर विकल्प हैं।
3. हवा में दो तरह से प्रदूषण फैलता है। एक ज्वलनशील पदार्थों से जैसे कि पेट्रोल और डीज़ल, ये जहरीले पदार्थों में शामिल होते हैं। प्रदूषण का दूसरा सबसे बड़ा जरिया हैं। गैर जहरीले पदार्थ जिनमें धूल और गर्द है
4. भारत सरकार ने प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये एक अप्रैल 2020 से प्रदूषण उत्सर्जन मानक बीएस-6 लागू करने की घोषणा की है
5. विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़ों के अनुसार 2000 शहरों में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर हैं
6. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे स्वास्थ्य के आपातकाल की संज्ञा दी है
7. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने समय से पहले होने वाली आठ में से एक मौत के लिये वायु प्रदूषण को वजह माना है
8. भारत में सिर्फ एक फीसद लोगों को ही विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के अनुरूप साफ हवा मिल पाती है
9. अंतिम संस्कार के दौरान लकड़ियाँ जलाने से भी हवा की शुद्धता को नुकसान पहुँचता है। इसकी जगह विद्युत शवदागृह को प्रोत्साहित करने की जरूरत है
10. निर्माण कार्य के दौरान उड़ने वाली धूल, कचरों का जलाया जाना, कोयला-उपला का ईंधन के रूप में उपयोग प्रदूषण का बड़ा कारण है

1. हिंदुस्तान टाइम्स अखबार के एक सर्वे में 61 प्रतिशत ने इसे कामयाब क़रार दिया और 68 फीसद ने कहा कि इसे जारी रखा जाना चाहिए। केवल 18 प्रतिशत लोगों ने इसका विरोध किया
2. मिंट अखबार के एक सर्वेक्षण में 71 प्रतिशत लोगों ने कहा कि इस योजना को 15 जनवरी के बाद भी जारी रखना चाहिए जबकि लगभग 29 प्रतिशत इसे खत्म करने के पक्ष में थे

लेखक द्वय स्मार्ट सिटी व आईटी क्षेत्र से सम्बद्ध विशेषज्ञ हैं।

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