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विज्ञान प्रगति, फरवरी, 2017
भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ एक तरफ व्याप्त दुर्लभ वन्य पादप प्रजातियों की खोज व उनका अध्ययन किया जाता है। फलस्वरूप दुर्लभ प्रजातियों का पूर्णतः उपयोग पादप रासायनिक प्रक्रियाओं में किया जाता है। वहीं दूसरी तरफ कृषि की प्रधानता को बढ़ाने हेतु पादप रसायन की रासायनिक प्रक्रियाओं का ही पूर्णतः अनुप्रयोग जैव तकनीकी के माध्यम से किया जाता है। पादप उत्कर्षण से जैव रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा टिश्यू कल्चर, कैलस कल्चर, माइक्रोप्रोपेगेशन, इनविट्रो कल्चर, इन-वाइवो कल्चर व सबसे महत्त्वपूर्ण जेनेटिक ट्रांसफॉर्मेशन द्वारा कृषि के क्षेत्र में फसलों को बढ़ावा दिया गया।
विज्ञान जगत की अनेक विधाएँ प्रायोगिक शोध कार्य से जुड़कर महत्त्वपूर्ण उद्देश्यों को पूर्ण कर नई तकनीक की खोज एवं विज्ञान के क्षेत्र का नया विस्तार कर रही है। समय-समय पर जटिल बीमारियों की खोज व उनकी रोकथाम का अटूट प्रयास भी कर रही है। ऐसे में विज्ञान जगत की दो महत्त्वपूर्ण विधा पादप रसायन विज्ञान (फाइटोकमेस्ट्री) व जैव तकनीकी (बायोटेक्नोलॉजी) का वैधानिक आकलन विभिन्न चिकित्सा पद्धति व विभिन्न उद्योगों का विकास करके इनका पूर्ण व आंशिक समन्वय स्थापित करती है। पादप रसायन विज्ञान को वैज्ञानिक प्रणाली व प्रक्रियाएँ जैव तकनीकी को परिपूर्ण करती है, जिससे विभिन्न खाद उत्पाद, सौन्दर्य उत्पाद, कृषि उत्पाद, दवाओं इत्यादि का उपयोग जन-जीवन तक पहुँचाया जाता है। अन्य शब्दों में, पादप रसायन की रासायनिक गतिविधियों का पूर्णतः अनुप्रयोग जैव तकनीकी के माध्यम से जनहित के लिये किया जा रहा है। नवीनतम प्रायोगिक शोधकार्य, पादप रसायन से प्राप्त रासायनिक यौगिकों को जैव तकनीकी की सहायता से महत्त्वपूर्ण वांछित उद्देश्यों हेतु उपयोग किया जाता है।चूँकि भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ एक तरफ व्याप्त दुर्लभ वन्य पादप प्रजातियों की खोज व उनका अध्ययन किया जाता है। फलस्वरूप दुर्लभ प्रजातियों का पूर्णतः उपयोग पादप रासायनिक प्रक्रियाओं में किया जाता है। वहीं दूसरी तरफ कृषि की प्रधानता को बढ़ाने हेतु पादप रसायन की रासायनिक प्रक्रियाओं का ही पूर्णतः अनुप्रयोग जैव तकनीकी के माध्यम से किया जाता है। पादप उत्कर्षण से जैव रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा टिश्यू कल्चर, कैलस कल्चर, माइक्रोप्रोपेगेशन, इनविट्रो कल्चर, इन-वाइवो कल्चर व सबसे महत्त्वपूर्ण जेनेटिक ट्रांसफॉर्मेशन द्वारा कृषि के क्षेत्र में फसलों को बढ़ावा दिया गया। पादप रसायन विज्ञान में उत्कर्षण प्रणाली द्वारा प्राथमिक व द्वितीयक उपापचयिक यौगिक (प्राइमरी व सेकण्ड्री मेटाबोलाइट्स) का पृथक्करण किया जाता है। प्राइमरी मेटाबोलाइट्स जैसे- तेल, वसा, प्रोटीन एवं एन्जाइम आदि पदार्थों का पृथक्करण किया जाता है। सेकण्ड्री मेटाबोलाइट्स जैसे- ग्लूकोसाइड्स, फ्लेवेनॉइड्स तथा स्टिराइड्स आदि भी पादप रसायन से प्राप्त रासायनिक गतिविधियों को पूर्णतः क्रियान्वित करते हैं।
उदाहरणतः
1. मेडीकागो ट्रंकेट्यूला नामक फली से प्राप्त सेकण्ड्री मेटाबोलाइट्स का अध्ययन इन-विट्रो कल्चर में किया गया, जिसके अनुप्रयोग द्वारा ट्रान्सक्रिप्टोम, प्रोटिओम तथा मेटाबोलोम का अध्ययन किया गया। उच्च संघनित पादप उत्कर्षण से जैव रासायनिक प्रोफाइलिंग करके व एम एस उपकरण का प्रयोग कर मेटाबोलॉमिक्स का क्रियान्वरण किया गया। जिससे पादप प्रजाति में फसलों की गुणवत्ता बढ़ाई गई। ये प्रणाली इन-विट्रो कल्चर द्वारा सेकण्ड्री मेटोबोलाइट के उत्पादन की मान्य एकान्तरण प्रणाली की सूचना देता है।
2. एकेशिया निलोटिका की पत्ती का उत्कर्षण कर स्ट्रेप्टोसिन का विश्लेषण किया गया जिनका चूहों पर परीक्षण कर हाइपर ग्लाइसिमिक व डायबिटिक कन्ट्रोल में उपयोग किया गया। यद्यपि पादप रसायन से भी एंटी-डायबिटिक गुणों का अध्ययन किया गया।
3. जैव तकनीकी के माध्यम से पादप रसायन विज्ञान में नोपल से प्राप्त यौगिकों का इन-विट्रो कल्चर, जेनेटिक ट्रान्सफॉर्मेशन व बायोलिस्टिक प्रोसेस द्वारा एडिबल फिल्म्स व रंजक का उत्पादन किया गया। जिससे खाद्य प्रौद्योगिकी का विकास हुआ। पादप रसायन से प्राप्त विश्लेषित एन्जाइम किण्वन जैव-तकनीकी में भी अपनी अहम भूमिका निभाते हैं जिसका सीधा अनुप्रयोग कार्बोहाइड्रेट मेटाबॉलिज्म में किया गया क्योंकि ये एन्जाइम जीवित कोशिकाओं की रासायनिक अभिक्रियाओं के लिये उत्प्रेरक का कार्य करते हैं। इन्हीं एन्जाइमों द्वारा एन्जाइम तकनीकी का भी विकास हुआ जिससे किण्वन व बेकिंग प्रक्रियाओं द्वारा खाद्य परीक्षण में खाद्य प्रौद्योगिकी के विकास को प्रोत्साहन प्रदान किया गया।
उपर्युक्त तथ्यों से यह स्पष्ट है कि जैव तकनीकी, जैव रसायन, पादप रसायन, सूक्ष्म जीव रसायन, रसायन अभियांत्रिकी, किण्वन तकनीकी एवं एन्जाइम तकनीकी आदि से जुड़कर जीव की अनेक विधाओं में योगदान प्रदान करते हैं। फलस्वरूप, पादप रसायन तथा जैव तकनीकी का पूर्णतः समन्वय दिशात्मक रूपरेखा प्रदर्शित करता है।
पादप रसायन तथा अन्तःविषयी विज्ञान जैवतकनीकी के समन्वय से आशा है कि भविष्य में इंगित उद्देश्य से नई वैज्ञानिक प्रणाली व विज्ञान के क्षेत्र का नया विस्तार सम्भव हो सकेगा।
सम्पर्क सूत्र :
सुश्री कामिनी स्वर्णकार एवं डॉ. मंजूषा श्रीवास्तव, सीएसआईआर-राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थानराणा प्रताप मार्ग, लखनऊ 226 001 (उत्तर प्रदेश), [मो. : 09461179465; ई-मेल : kamini.swarnkar4@gmail.com एवं ms_sks2005@yahoo.co.in]