पानी के अधिकार का आंदोलन

Submitted by Hindi on Wed, 06/27/2012 - 15:51
Source
भारतीय पक्ष, 02 जून 2012
पानी के अधिकार के लिए कैलाश गोदुका, गोपाल अग्रवाल ने ‘जल संगठन अभियान' की शुरुवात की। दिल्ली के एक संगठन ‘सेंटर फॉर सोशल जस्टिस एंड डेमोक्रेसी’ जलाधिकार अभियान का मूल संगठन है। जलाधिकार अभियान से पानी के क्षेत्र में काम कर रहे प्रख्यात लेखक श्री अनुपम मिश्र भी संरक्षक के नाते जुड़े हुए हैं। जलाधिकार अभियान के उद्देश्यों, मुद्दों और मांगो के बारे में बता रहे हैं मंगलेश कुमार।

जलाधिकार अभियान को जिस प्रकार व्यापक समर्थन मिल रहा है, उससे जाहिर होता है कि समाज में पानी के मुद्दे पर कितनी बेचैनी है। लोगों को यकीन हो गया है कि सामाजिक मुद्दों पर राजनीतिक दलों का रवैया हमेशा पक्षपात पूर्ण और खोखला होता है। इसलिए समाज अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए नए-नए संगठनों को आगे कर रहा है। उन्हें मजबूत कर रहा है।

बदले समय में सरकार जल वितरण का काम निजी हाथों में सौंपने का मन बना चुकी है। राष्ट्रीय जल नीति- 2012 के मसौदे से इसकी झलक मिल जाती है। सरकार की इस जल नीति के विरोध में देश के कोने-कोने से आवाज उठने लगी है। लोगों में भारी नाराजगी है और चारों ओर सरकार की नीयत को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। दिल्ली में ‘सेंटर फार सोशल जस्टिस एंड डेमोक्रेसी’ के तत्वावधान में ‘जलाधिकार’ के नाम से एक अभियान तेजी से फैल रहा है। आज के दौर को आर्थिक उदारीकरण का दौर कहा जाता है। लेकिन इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि आज के इस उदारीकरण में पानी जैसी चीज भी बिकाऊ हो गई। जिस पानी को ईश्वर ने प्राणी मात्र के लिए बिना किसी भेदभाव के उपलब्ध कराया, उस पर कुछ लोगों ने पहरा बिठा दिया और उससे पैसा कमाने लगे। आज से कुछ दशक पहले तक हर गली-चैराहे पर धर्मार्थ प्याऊ मिलते थे, जहां पुण्य कार्य मानते हुए सभी को निःशुल्क पानी पिलाने की व्यवस्था होती थी। इस दिशा में सरकार को भी अपनी जिम्मेदारी का अहसास था। इसलिए सार्वजनिक स्थानों पर लोगों को पानी पिलाने के लिए सरकार पूरी व्यवस्था करती थी। बाबू जगजीवन राम के समय में रेलवे स्टेशनों पर पानी पिलाने के लिए सरकारी कर्मचारियों की भर्ती की गई थी, जिन्हें पानी पांडे कहा जाता था।

बदले समय में सरकार को अब यह काम रास नहीं आ रहा। वह जल वितरण का काम निजी हाथों में सौंपने का मन बना चुकी है। राष्ट्रीय जलनीति- 2012 के मसौदे से सरकारी इरादों की पूरी झलक मिल जाती है। सरकार की इस जल नीति के विरोध में देश के कोने-कोने से आवाज उठने लगी है। लोगों में भारी नाराजगी है और चारों ओर सरकार की नीयत को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। दिल्ली में ‘सेंटर फार सोशल जस्टिस एंड डेमोक्रेसी’ के तत्वावधान में ‘जलाधिकार’ के नाम से एक अभियान तेजी से फैल रहा है।

जलाधिकार अभियान को गति देने में कैलाश गोदुका और गोपाल अग्रवाल की प्रमुख भूमिका है। कैलाश गोदुका पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं। पूर्व में आयकर विभाग और बिजली विभाग में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ आपने निर्णायक मुहिम का नेतृत्व किया था। इसी प्रकार गोपाल अग्रवाल भी कई सामाजिक आंदोलनों से जुड़े रहे हैं। ‘जलाधिकार’ अभियान को साथ देने के लिए बड़ी संख्या में विद्यार्थी, पेशेवर, व्यवसायी और सामाजिक कार्यकर्ता आगे आ रहे हैं। जल के क्षेत्र में काम कर रहे कार्यकर्ताओं के पितामह श्री अनुपम मिश्र भी जलाधिकार अभियान में एक संरक्षक के नाते जुड़े हुए हैं। चिन्मय मिशन और ऐसे ही अन्य कई धार्मिक-सामाजिक संस्थाओं ने भी जलाधिकार अभियान को अपना सहयोग दिया है।

शुरू में जलाधिकार से जुड़े लोगों ने यह मुद्दा बनाया कि सभी सार्वजनिक स्थानों पर पेयजल की निःशुल्क व्यवस्था की जाए। इस दिशा में मुख्यमंत्री और अन्य अधिकारियों को पत्र लिखा गया। सरकार ने ढुलमुल रवैया अपनाते हुए पत्रों का जवाब दिया, लेकिन खुद कोई जिम्मेदारी लेने से बचती रही। बाद में जलाधिकार के सभी कार्यकर्ताओं ने तय किया कि वे अपने आंदोलन को और व्यापक बनाएंगे। सर्वसम्मति से सरकार के सामने तीन मांगें रखी गई हैं।

1. संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त जीवन के अधिकार के तहत सरकार प्रत्येक नागरिक को शुद्ध और स्वच्छ पेयजल निःशुल्क उपलब्ध कराए।

2. राष्ट्रीय जलनीति- 2012 का हाल ही में जो मसौदा जारी हुआ है, उसमें पानी के निजीकरण की बात कही गई है। यह बात गरीब विरोधी है और इससे ट्रस्टीसिप की अवधारणा का उल्लंघन होता है। इसे तुरंत बिना किसी शर्त के रद्द किया जाए।

3. जलसंसाधनों के एकीकृत नियोजन एवं प्रबंधन के लिए स्थानीय निकायों को सशक्त एवं प्रभावी बनाया जाए। इसके लिए उन्हें पारंपरिक ज्ञान का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए और साथ ही जिओग्राफिक इन्फार्मेशन सिस्टम तथा रिमोट सेंसिंग जैसी आधुनिक तकनीकों से भी लैस किया जाए। यह सब सुनिश्चित करने के लिए उन्हें पर्याप्त वित्तीय सहायता दी जाए।

जलाधिकार अभियान की मूल प्रवृत्ति आंदोलनात्मक है, लेकिन इससे जुड़े लोग शोध और अध्ययन पर पूरा जोर देते हैं। जलाधिकार की एक टीम ने जल के निजीकरण से जुड़े विभिन्न आयामों का विस्तृत अध्ययन किया है। देश और विदेश में पानी के निजीकरण को लेकर जो भी बातें हुई हैं, उसका पूरा ब्यौरा जलाधिकार के पास है।

जलाधिकार से जुड़े लोगों ने पहले चरण में सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों और पेशेवर लोगों को अपने अभियान से जोड़ा। अब वे आम आदमी के बीच जाकर काम करने के लिए कमर कस चुके हैं। जून, 2012 से पूरी दिल्ली में जनजागरण अभियान चलाए जाने की योजना है। इसके लिए दिल्ली की तमाम रेजिडेन्ट वेलफेयर एसोसिएशंस और ग्रामीण इलाकों की पंचायतों से संपर्क स्थापित किया जा रहा है। लोगों को अपनी बात सरल सहज शब्दों में समझाने के लिए विविध प्रकार के साहित्य और पोस्टर तैयार किए गए हैं। सुमधुर संगीत के साथ एक जलगीत भी तैयार करवाया गया है।

आप क्या चाहते हैं? इस सपाट सवाल के जवाब में जलाधिकार के महासचिव कैलाश गोदुका बताते हैं कि हमारा उद्देश्य सरकार को उसकी जिम्मेदारी का अहसास कराना और उसे करने के लिए बाध्य करना है। कैलाश जी बताते हैं, ‘‘हम पानी के प्रबंधन और वितरण में किसी प्रकार की निजी भागीदारी के खिलाफ हैं। अपने नागरिकों को निःशुल्क पेयजल उपलब्ध कराना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है। इसके लिए कितना भी खर्च करना पड़े, सरकार को करना चाहिए। अगर सरकार के पास पैसे कम पड़ रहे हैं तो उसे पेट्रोल, डीजल, हवाई यात्रा और ऐसे ही तमाम चीजों पर सब्सिडी खत्म करके पानी उपलब्ध कराने पर ध्यान देना चाहिए।’’

जलाधिकार अभियान को जिस प्रकार व्यापक समर्थन मिल रहा है, उससे जाहिर होता है कि समाज में पानी के मुद्दे पर कितनी बेचैनी है। लोगों को यकीन हो गया है कि सामाजिक मुद्दों पर राजनीतिक दलों का रवैया हमेशा पक्षपात पूर्ण और खोखला होता है। इसलिए समाज अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए नए-नए संगठनों को आगे कर रहा है। उन्हें मजबूत कर रहा है। निरंकुश राजसत्ता को रोकने का यही एक उपाय है।